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जलवायु संकट और जेंडर आधारित हिंसा

  • 26 Apr 2025
  • 9 min read

स्रोत: संयुक्त राष्ट्र

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र (UN) स्पॉटलाइट इनिशिएटिव द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से, विशेष रूप से निर्धन और सुभेद्य समुदायों में, महिलाओं के खिलाफ होने वाले जेंडर आधारित हिंसा (GBV) के मामले बढ़ रहे हैं।

  • इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो वर्ष 2100 तक अंतरंग साथी द्वारा कारित हिंसा (IPV) के 10 में से 1 मामला जलवायु में होने वाले परिवर्तन के कारण होगा।

संयुक्त राष्ट्र स्पॉटलाइट पहल

  • स्पॉटलाइट पहल यूरोपीय संघ (EU) और संयुक्त राष्ट्र (UN) के बीच एक वैश्विक, बहु-वर्षीय साझेदारी है जिसका उद्देश्य महिलाओं और बालिकाओं (VAWG) के साथ होने वाली सभी प्रकार की हिंसा की रोकथाम करना है

जलवायु-जेंडर आधारित हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के निष्कर्ष और अनुशंसाएँ क्या हैं?

संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • जलवायु परिवर्तन से GBV में मामलों में बढ़ोतरी: तापमान में 1°C की वृद्धि से अंतरंग साथी द्वारा कारित हिंसा (IPV) के मामलों में 4.7% की बढ़ोतरी हुई। 
    • तापमान में 2°C वृद्धि के साथ, वर्ष 2090 तक प्रतिवर्ष 40 मिलियन अधिक महिलाओं और बालिकाओं को IPV का सामना करना पड़ सकता है तथा 3.5°C से निम्न की स्थिति में यह संख्या दोगुने से भी अधिक हो सकती है। 
    • तापन को 1.5°C तक सीमित करने से वर्ष 2060 तक IPV दर 24% से घटकर 14% हो सकती है।
  • आपदा-जनित हिंसा और अंडर रिपोर्टिंग: वर्ष 2023 में, 93.1 मिलियन लोगों को जलवायु आपदाओं का सामना करना पड़ा, और 423 मिलियन महिलाओं को IPV का सामना करना पड़ा।
    • हीट वेव्स के कारण महिलाओं की हत्या (Femicide) के मामलों में 28% की बढ़ोतरी हुई, तथा आपदा के बाद की स्थितियों, विशेष रूप से बाढ़, अनावृष्टि और विस्थापन, के कारण बाल विवाह, मानव तस्करी और लैंगिक शोषण की घटनाएँ बढ़ गईं। 
    • इस रिपोर्ट में जेंडर आधारित हिंसा (GBV) को "शैडो पेंडेमिक" के रूप में विनिर्दिष्ट  किया गया है, और उल्लेख किया गया कि समग्र विश्व में तीन में से एक महिला को शारीरिक, लैंगिक अथवा मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, और केवल 7% पीड़िताओं ने ही इन घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज कराई।
  • सुभेद्य समूहों को GBV का अधितम जोखिम: निर्धनता में जीवन यापन करने वाली महिलाओं, अनौपचारिक बस्तियों, कृषि व मूल समुदायों, दिव्यांग यक्तियों, वृद्धजनों और LGBTQ+ व्यक्तियों को सीमित सहायता प्रणालियों के कारण GBV का अधिक जोखिम होता है।
    • पर्यावरण अधिकारों के लिये लड़ने वाली महिलाओं को उत्पीड़न, हिंसा, अपहरण और यहाँ तक ​​कि हत्या का भी सामना करना पड़ता है। 
  • जेंडर-क्लाइमेट फंडिंग में अंतराल: जलवायु संबंधी विकास सहायता का केवल 0.04% ही मुख्य रूप से जेंडर समानता पर केंद्रित है, जो जलवायु कार्यवाही में जेंडर समानता से निपटने में बड़ी विफलता को दर्शाता है।

संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें

  • जलवायु नीति में GBV को एकीकृत करना: स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर सभी जलवायु नीतियों और कार्यक्रमों में जेंडर हिंसा की रोकथाम को मुख्यधारा में लाना तथा जेंडर केंद्रित जलवायु वित्तपोषण में वृद्धि करना।
  • महिलाओं की सुरक्षा और नेतृत्व को प्राथमिकता देना: यह सुनिश्चित करना कि महिलाएँ नेतृत्वकर्त्ता और लाभार्थी के रूप में जलवायु समाधान में केंद्रीय भूमिका का निर्वहन करें।
    • GBV को जलवायु लचीलेपन में बाधा के रूप में पहचानना और उसका समाधान करना, तथा इसे सतत् विकास प्रयासों का मुख्य भाग बनाना।
    • नागरिक समाज संगठनों और महिला आंदोलनों, जैसे कि पैसिफिक फेमिनिस्ट कम्युनिटी ऑफ प्रैक्टिस, की क्षमता का समर्थन करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जेंडर जस्टिस COP27 जैसे वैश्विक जलवायु मंचों का केंद्रबिंदु हो, तथा समावेशी और सतत् जलवायु समाधानों को बढ़ावा दिया जा सके।
  • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम पद्धतियाँ अपनाना: जेंडर-संवेदनशील कार्यक्रमों को लागू करना, जैसा कि वानुअतु, लाइबेरिया और मोज़ाम्बिक में देखा गया है, जो जेंडर जस्टिस को जलवायु लचीलेपन से जोड़ते हैं। 
    • प्रमुख उपायों में पूर्व महिला जननांग विकृति (FGM) चिकित्सकों को जलवायु-स्मार्ट कृषि में पुनः प्रशिक्षित करना, आपदा प्रतिक्रिया में GBV सेवाओं को शामिल करना, तथा जलवायु-प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल हेल्थ क्लीनिकों की तैनाती करना शामिल है। 

महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को न्यूनतम करने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

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निष्कर्ष

जलवायु संकट एक जेंडर क्राइसिस है। संयुक्त राष्ट्र के निष्कर्ष जलवायु रणनीतियों के मूल में जेंडर समानता और हिंसा की रोकथाम को एकीकृत करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। भारत और वैश्विक समुदाय के लिये इसका अर्थ है नीतिगत ढाँचे पर पुनर्विचार करना ताकि वह समावेशी, उत्तरदायी और अधिकार-केंद्रित हो। केवल तभी हम एक जलवायु-लचीला भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जो सभी के लिये सुरक्षित और न्यायसंगत हो।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जलवायु संकट और जेंडर हिंसा के बीच संबंध की जाँच कीजिये। जलवायु कार्यवाही में जेंडर-संवेदनशील रणनीतियों को शामिल करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौमिक लैंगिक अंतराल सूचकांक' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) संयुक्त राष्ट्र महिला
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a) 


मेन्स

प्रश्न 1: “महिलाओं का सशक्तीकरण जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” विवेचना कीजिये। (2019) 

प्रश्न 2: भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों की चर्चा कीजिये? (2015) 

प्रश्न 3: महिला संगठन को लैंगिक पूर्वाग्रह से मुक्त बनाने के लिये पुरुष सदस्यता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (2013)

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