जैव विविधता और पर्यावरण
हिंदू-कुश और काराकोरम शृंखला पर जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट
- 12 Feb 2021
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
'भारतीय क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का आकलन’ (Assessment of Climate Change over the Indian Region) रिपोर्ट के अनुसार, हाल के दशकों में हिंदू-कुश हिमालयी पर्वत शृंखलाओं की चोटियों पर बर्फबारी की घटनाएँ बढ़ी हैं, जिसने इस क्षेत्र के ग्लेशियरों को सिकुड़ने से बचा लिया है।
- हाल ही में अलकनंदा नदी में आई भारी बाढ़ का कारण संभवतः ग्लेशियर विस्फोट को माना गया, जिसने हाल के दशकों में ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण उच्च गति से पिघल रहे ग्लेशियर के मुद्दे को उजागर किया है। हालाँकि यह रिपोर्ट हिंदुकुश हिमालय की एक विपरीत तस्वीर को इंगित करती है।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences- MoES) द्वारा भारतीय क्षेत्र रिपोर्ट (Indian Region Report) के आधार पर जलवायु परिवर्तन पर आकलन प्रकाशित किया गया है। यह आने वाली शताब्दी में उपमहाद्वीप पर पड़ने वाले ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को लेकर भारत का पहला राष्ट्रीय पूर्वानुमान है।
हिंदू-कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र
- HKH क्षेत्र अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, किर्गिज़स्तान, मंगोलिया, म्यांँमार, नेपाल, पाकिस्तान, ताज़िकिस्तान और उज़्बेकिस्तान तक फैला हुआ है।
- यह लगभग 5 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ क्षेत्र है जो एक बड़ी और सांस्कृतिक रूप से विविध आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।
- इसे तीसरे ध्रुव की संज्ञा दी जाती है (उत्तर और दक्षिण ध्रुवों के बाद), जिसका जलवायु पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव देखा जाता है।
- इस क्षेत्र में विशाल क्रायोस्फेरिक ज़ोन (जमा पानी का हिस्सा) अवस्थित है जो विश्व में ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर बर्फ का सबसे विशाल भंडार है।
प्रमुख बिंदु:
- रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण पहलू:
- हाल के दशकों में हिंदू-कुश और काराकोरम हिमालय के कई क्षेत्रों में बर्फबारी में गिरावट और ग्लेशियरों के पीछे हटने की प्रवृत्ति का अनुभव किया गया है।
- इसके विपरीत उच्च-ऊंँचाई वाले काराकोरम हिमालय क्षेत्र में सर्दियों के समय उच्च हिमपात देखा गया है जिसने इस क्षेत्र के ग्लेशियरों को सिकुड़ने से बचा लिया है।
- काराकोरम एशिया के केंद्र में स्थित एक जटिल पर्वत शृंखला का हिस्सा है, जिसमें पश्चिम में हिंदू-कुश, उत्तर-पश्चिम में पामीर, उत्तर-पूर्व में कुनलुन पर्वत और दक्षिण-पूर्व में हिमालय अवस्थित है।
- इसके विपरीत उच्च-ऊंँचाई वाले काराकोरम हिमालय क्षेत्र में सर्दियों के समय उच्च हिमपात देखा गया है जिसने इस क्षेत्र के ग्लेशियरों को सिकुड़ने से बचा लिया है।
- यहांँ तक कि जब अधिक ऊंँचाई वाले काराकोरम हिमालय पर सर्दियों में बर्फबारी की घटनाएँ बढ़ रही हैं, तो हिंदूकुश काराकोरम क्षेत्र की संपूर्ण जलवायु अन्य मौसमों की तुलना में सर्दियों के मौसम में ग्लोबल वार्मिग की उच्च दर देखी जा रही थी।
- हाल के दशकों में हिंदू-कुश और काराकोरम हिमालय के कई क्षेत्रों में बर्फबारी में गिरावट और ग्लेशियरों के पीछे हटने की प्रवृत्ति का अनुभव किया गया है।
- कारण:
- हिमालय का तीव्र गति से गर्म होना:
- उष्णकटिबंधीय और बहिरुष्ण-कटिबंधीय मौसम प्रणाली ( Tropical and Extratropical Weather Systems) के कारण हिमालयी क्षेत्र में मौसमी परिवर्तन के बारे में जानना काफी जटिल है।
- वर्ष 1951-2018 के मध्य हिमालय शेष भारतीय भू-भाग की तुलना में अधिक तीव्र गति से गर्म हुआ।
- इसके अलावा इस क्षेत्र के गर्म होने की दर (वार्मिंग) वैश्विक औसत तापमान से अधिक है।
- ग्लोबल वार्मिंग:
- वर्ष 1951 से 2014 के दौरान दशकीय तापन/वार्मिंग की दर 1.3 डिग्री सेल्सियस थी। वर्ष 1900 से 1950 के दौरान जब ग्लोबल वार्मिग के बारे में अधिक स्पष्ट नहीं था तब इसमें 0.16 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई।
- हिमालय का तीव्र गति से गर्म होना:
- प्रभाव:
- वार्षिक औसत सतह तापमान में वृद्धि:
- रिपोर्ट में वर्ष 2040-2069 के दौरान 2.2 डिग्री सेल्सियस वार्षिक औसत तापमान में वृद्धि का अनुमान लगाया गया है और पुनः इसी दर के साथ वर्ष 2070-2099 के दौरान इसमें 3.3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।
- अत्यधिक वर्षण:
- वार्मिंग के कारण इस क्षेत्र में वर्षण की मात्रा में वृद्धि होने की उम्मीद है। हिंदू-कुश और काराकोरम क्षेत्र में अधिकतम पांँच-दिवसीय वर्षण की घटनाओं के साथ उल्लेखनीय वृद्धि होने का अनुमान है।
- वार्षिक औसत सतह तापमान में वृद्धि:
- महत्त्व:
- मानसून चालक: हिंदू-कुश और काराकोरम पर्वत शृंखला, तिब्बत के पठार के साथ भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के मुख्य चालक हैं।
- जीवन-यापन का साधन: ये पर्वत शृंखलाएँ एशिया की 10 प्रमुख नदी प्रणालियों के स्रोत हैं, जो महाद्वीप के 1.3 अरब लोगों को पीने के पानी, सिंचाई और बिजली आपूर्ति की सुविधा उपलब्ध कराती है।
- सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जो कि भारत की प्रमुख नदियाँ है, बर्फ के पिघलने के कारण पुनः जल से भर जाती हैं ।
- उत्तर और दक्षिण ध्रुवों के बाद हिंदू-कुश और काराकोरम पर्वत शृंखलाएँ तिब्बत पठार के साथ मीठे पानी की आपूर्ति के सबसे बड़े स्रोत हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस