चीन का EAST रिएक्टर एवं नाभिकीय संलयन | 20 Feb 2025

प्रिलिम्स के लिये:

टोकामक, नाभिकीय संलयन, नाभिकीय संलयन और नाभिकीय विखंडन के बीच अंतर।

मेन्स के लिये:

नाभिकीय संलयन के लाभ, नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग में चुनौतियाँ

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

चीन के प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक (EAST) नाभिकीय संलयन रिएक्टर द्वारा 1,066 सेकंड के लिये 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस पर प्लाज्मा को बनाए रखकर नाभिकीय संलयन में एक नया मील का पत्थर स्थापित किया गया है। 

  • यह उपलब्धि भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा के लिये स्वच्छ एवं धारणीय संलयन ऊर्जा की खोज को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है।

टोकामक: टोकामक एक प्रायोगिक उपकरण है जिसे नाभिकीय संलयन के माध्यम से ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 

  • टोकामक के अंदर, नाभिकों के संलयन से उत्पन्न ऊष्मा को संबंधित वेसल की दीवारों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। 
  • पारंपरिक विद्युत संयंत्रों के समान, इस ऊष्मा का उपयोग भाप उत्पन्न करने के लिये किया जाता है, जिससे विद्युत उत्पन्न करने के क्रम में टर्बाइनों और जनरेटरों को चलाया जाता है।

प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक (EAST) क्या है?

  • परिचय:
    • EAST एक उन्नत नाभिकीय संलयन अनुसंधान उपकरण है जो चीन के हेफेई में प्लाज्मा भौतिकी संस्थान, चीन की विज्ञान अकादमी (ASIPP) में स्थित है।
    • इसे वर्ष 2006 में शुरू किया गया।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य सूर्य को ऊर्जा प्रदान करने वाली नाभिकीय संलयन प्रक्रिया का अनुसरण करना है जिससे धारणीय ऊर्जा के विकास में योगदान (बिना किसी हानिकारक रेडियोधर्मी अपशिष्ट के) मिल सके।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (ITER) पहल का एक हिस्सा है, जो वर्ष 2035 तक शुरू होने पर विश्व का सबसे बड़ा संलयन रिएक्टर होगा।
      • फ्राँस में स्थित और वर्ष 1985 में स्थापित ITER, 35 देशों का एक सहयोगात्मक प्रयास है। इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर कार्बन मुक्त ऊर्जा स्रोत के रूप में संलयन की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करने के क्रम में विश्व का सबसे बड़ा टोकामक बनाना है।
      • इसके सदस्यों में चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, कोरिया, रूस और अमेरिका शामिल हैं।
  • संचालन प्रणाली:
    • EAST नाभिकीय संलयन प्रक्रिया पर आधारित है, जिसमें ड्यूटेरियम और ट्रिटियम नाभिक (हाइड्रोजन के समस्थानिक) मिलकर हीलियम नाभिक बनाते हैं, जिससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है।
    • हाइड्रोजन ईंधन को 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान तक गर्म करके गर्म प्लाज्मा (आयनित गैस) बनाया जाता है।
    • एक मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र से प्लाज्मा में ऊष्मा का नुकसान रुकने के साथ संलयन अभिक्रियाएँ जारी रहती हैं।
  • उपलब्धियाँ और महत्त्व: 
    • EAST द्वारा प्रमुख उपलब्धियाँ हासिल की गई हैं, जैसे 60 सेकंड (वर्ष 2016) और 100 सेकंड (वर्ष 2017) तक 50 मिलियन डिग्री सेल्सियस पर प्लाज्मा को बनाए रखना, 403 सेकंड के लिये (वर्ष 2023) स्टिडी-स्टेट हाई-कन्फाईन्मेंट प्लाज्मा प्राप्त करना।
    • इन सबके बावजूद, EAST द्वारा अभी तक इग्निशन (सेल्फ-सस्टेनिंग फ्यूज़न) या विद्युत उत्पादन की क्षमता हासिल नहीं की जा सकी है। 
    • यह ITER के लिये एक परीक्षण स्थल के रूप में कार्य करता है, जो एक बहुराष्ट्रीय परियोजना है जिसमें भारत और यूरोपीय संघ भी शामिल हैं। इसका उद्देश्य शुद्ध ऊर्जा लाभ प्राप्त करने में सक्षम टोकामक विकसित करना है।

नाभिकीय अभिक्रियाएँ क्या हैं?

  • नाभिकीय अभिक्रियाएँ: नाभिकीय अभिक्रिया दो नाभिकीय कणों या दो नाभिकों के बीच एक अंतःक्रिया है, जिसके परिणामस्वरूप मूल नाभिकों से भिन्न नए नाभिकों का निर्माण होता है। 
  • नाभिकीय अभिक्रियाएँ को दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: नाभिकीय विखंडन और नाभिकीय संलयन।
  • नाभिकीय विखंडन: यह वह क्रिया है, जिसमें कोई भारी नाभिक दो या दो से अधिक छोटे भागों में विखंडित हो जाता है। इस क्रिया में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
    • यह प्राकृतिक रूप से (रेडियोधर्मी क्षय) घटित हो सकता है या प्रयोगशाला में नाभिक पर न्यूट्रॉन या अन्य कणों की बमबारी करके प्रेरित किया जा सकता है।
    • परिणामी छोटे भागों का संयुक्त द्रव्यमान मूल नाभिक से कम होता है, तथा अतिरिक्त द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है।
    • सभी वाणिज्यिक नाभिकीय रिएक्टर नाभिकीय विखंडन पर कार्य करते हैं।
  • नाभिकीय संलयन: यह वह प्रक्रिया है जिसमें दो हल्के नाभिक संयोजित होकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। 
    • यह प्रतिक्रिया प्लाज्मा अवस्था (पदार्थ की उच्च तापमान एवं आवेशित अवस्था) में होती है। 
    • सूर्य और अन्य तारे संलयन द्वारा संचालित होते हैं, तथा नाभिकों के बीच विद्युत प्रतिकर्षण पर काबू पाने के लिये लगभग 10 मिलियन डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है
    • हाइड्रोजन बम थर्मोन्यूक्लियर संलयन पर कार्य करता है, जिसमें विखंडन बम (यूरेनियम/प्लूटोनियम आधारित) प्रतिक्रिया को प्रारंभ करने के लिये प्रारंभिक ऊर्जा प्रदान करता है।

नाभिकीय संलयन अभिक्रिया प्राप्त करने के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • अत्यधिक तापमान की आवश्यकताएँ: संलयन अभिक्रिया को बनाए रखने के लिये सूर्य के केंद्र से अधिक तापमान (100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक) की आवश्यकता होती है।
  • चुंबकीय परिरोध: ऊर्जा की हानि को न्यूनतम करने और प्रतिक्रियाओं को बनाए रखने के लिये, उच्च ऊर्जा प्लाज्मा को शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग करके स्थिर अवस्था में रखा जाना चाहिये, जैसा कि टोकामक रिएक्टरों में देखा जाता है।
  • ट्रिटियम की कमी: ट्रिटियम सीमित मात्रा में उपलब्ध है और अधिकांशतः विशेष नाभिकीय विखंडन प्रतिक्रियाओं से प्राप्त होता है, जिससे दीर्घकालिक ईंधन आपूर्ति के बारे में प्रश्न उठते हैं, जबकि ड्यूटेरियम समुद्री जल में आसानी से पाया जाता है।
    • ट्रिटियम के वर्तमान स्रोतों में कनाडा, भारत और दक्षिण कोरिया के भारी-जल रिएक्टर शामिल हैं, लेकिन ITER की मांग वैश्विक भंडार को समाप्त कर सकती है।
  • इग्निशन माइलस्टोन: एक आत्मनिर्भर संलयन प्रतिक्रिया, जहाँ ऊर्जा आउटपुट ऊर्जा इनपुट से अधिक हो, अभी भी एक प्रमुख लक्ष्य है जिसे हासिल किया जाना है।
  • सतत् प्रतिक्रियाएँ: वर्तमान में, लंबे समय तक स्थिर प्लाज्मा स्थिति बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

संलयन ऊर्जा के वैकल्पिक दृष्टिकोण: टोकामक्स के अलावा, शोधकर्त्ता अन्य संलयन विधियों की खोज कर रहे हैं।

  • स्टेलरेटर्स: यह एक जटिल किंतु आशाजनक चुंबकीय परिरोधन विधि प्रस्तुत करता है, जो टोकामक में पोलोइडल क्षेत्र (चुंबकीय क्षेत्र का एक प्रकार) की आवश्यकता को समाप्त कर देता है, यद्यपि इन्हें बनाना अधिक कठिन होता है।
  • लेजर इनर्शियल फ्यूजन: इसमें ड्यूटेरियम-ट्रिटियम पेलेट को संपीड़ित करने के लिये उच्च-शक्ति वाले लेजर बीम का उपयोग किया जाता है, जिससे फ्यूजन शुरू हो जाता है। मुक्त ऊर्जा से टर्बाइन के संचालन हेतु भाप उत्पन्न की जा सकती है, जिससे विद्युत् उत्पन्न होती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

वैश्विक डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को प्राप्त करने में नाभिकीय ऊर्जा की भूमिका पर चर्चा कीजिये। स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित प्रमुख लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. एक नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का क्या कार्य होता है? (2011)

(a) न्यूट्रॉन की गति को कम करना
(b) न्यूट्रॉन की गति को बढ़ाना
(c) रिएक्टर को ठंडा करना
(d) नाभिकीय क्रिया को रोकना

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भय की विवेचना कीजिये। (2018)