चाइना प्लस वन | 17 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

चाइना प्लस वन रणनीति, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI), मुद्रास्फीति, GDP, भारत के व्यापार समझौते, GST, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 

मेन्स के लिये:

चीन की आर्थिक मंदी और भारत के लिये अवसर,भारत अपने कार्यों से स्वयं को चीन के समक्ष एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में प्रस्तुत करता है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

भारत के पास चाइना प्लस वन रणनीति का लाभ उठाने तथा वैश्विक विनिर्माण के क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने का अवसर है।

  • हालाँकि चीन के निर्यात की स्थिति सुदृढ़ बनी हुई है किंतु भारत का वृहद् घरेलू बाज़ार, कम श्रम लागत और विकास की संभावना इसे चीन का एक आकर्षक विकल्प बनाती है।

चाइना+1 रणनीति क्या है?

  • परिचय:
    • यह कंपनियों की वैश्विक प्रवृत्ति को संदर्भित करता है जिसमें कंपनियाँ चीन के अतिरिक्त अन्य देशों में अपने परिचालन इकाई स्थापित कर अपने विनिर्माण और आपूर्ति शृंखलाओं का विस्तार करते हैं।
    • इस दृष्टिकोण का उद्देश्य विशेष रूप से भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों को दृष्टिगत रखते हुए किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता के कारण होने वाले जोखिमों को कम करना है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में चीन का प्रभुत्व:
    • विगत कुछ दशकों से चीन वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं का केंद्र रहा है जिससे इसे "वर्ल्ड्स फैक्ट्री" की संज्ञा दी जाती है। यह उत्पादन के अनुकूल कारकों और सुदृढ़ व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र के कारण संभव हुआ है।
  • 1990 के दशक में चीन की ओर रुख:
    • 1990 के दशक में अमेरिका और यूरोप की बड़ी विनिर्माण इकाइयों ने कम विनिर्माण लागत तथा वृहद् घरेलू बाज़ार तक पहुँच के कारण चीन में अपना उत्पादन करना शुरू किया।
  • महामारी के दौरान व्यवधान:
    • कोविड-19 महामारी से कई अर्थव्यवस्थाओं में गंभीर व्यवधान उत्पन्न हुए। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समय के साथ महामारी से उबरने के पश्चात् मांग में अचानक वृद्धि हुई। हालाँकि चीन की ज़ीरो-कोविड नीति के परिणामस्वरूप औद्योगिक लॉकडाउन जारी रहा जिससे आपूर्ति शृंखला और कंटेनर की उपलब्धता प्रभावित हुई।
  • चाइना+1 रणनीति की उत्पत्ति:
    • चीन की ज़ीरो-कोविड नीति, आपूर्ति शृंखला व्यवधान, माल ढुलाई की उच्च दरों और लीड हेतु लंबे समयावधि सहित कई कारकों के परिणामस्वरूप कई वैश्विक कंपनियों को "चाइना-प्लस-वन" रणनीति अपनाने के लिये प्रेरित किया।
      • इसमें एशिया के भारत, वियतनाम, थाईलैंड, बांग्लादेश और मलेशिया जैसे अन्य विकासशील देशों में कंपनियों द्वारा अपनी आपूर्ति शृंखला निर्भरता में विविधता लाने के उद्देश्य से वैकल्पिक विनिर्माण इकाइयों की स्थापना करना शामिल है।

भारत के लिये विदेशी निवेश आकर्षित कर पाने की क्या संभावनाएँ हैं?

  • जनसांख्यिकीय लाभ और उपभोग शक्ति:
    • विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023 में भारत की 28.4% जनसंख्या की आयु 30 वर्ष से कम है जबकि चीन में यह आँकड़ा 20.4% का है, जो कार्यबल और उपभोक्ता बाज़ार को आगे बढ़ा रही है। इससे उपभोग, बचत और निवेश को बढ़ावा मिलता है, जिससे भारत एक संभावित मल्टी-ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तथा वैश्विक कंपनियों के लिये आकर्षक बाज़ार के रूप में स्थापित होता है।
  • लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और बुनियादी ढाँचे का लाभ:
    • वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धी देशों की तुलना में भारत की कम श्रम और पूंजी लागत इसके उत्पादन क्षेत्र को अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
      • डेलॉयट द्वारा वर्ष 2023 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार भारत का औसत विनिर्माण वेतन चीन की तुलना में 47% कम है।
    • इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) के माध्यम से सरकार द्वारा बुनियादी ढाँचे में किये गए महत्त्वपूर्ण निवेश का उद्देश्य विनिर्माण लागत को कम करना और रसद में 20% सुधार करना है, जिससे भारत के प्रति कंपनियों अधिक आकृष्ट होंगी।
  • व्यावसायिक वातावरण और नीतिगत पहल:
    • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, कर सुधार और एफडीआई मानदंडों में ढील जैसे हालिया नीतिगत हस्तक्षेपों ने अनुकूल व्यावसायिक परिवेश तैयार किया है।
    • मेक इन इंडिया पहल और व्यवसाय को सुगम बनाने के प्रयासों से विदेशी निवेश आकर्षित हो रहा है।
  • डिजिटल कौशल और तकनीकी बढ़त:
    • जनवरी 2024 तक भारत में 870 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं, जो इसकी आबादी का 61% है। इसके साथ ही गूगल और फेसबुक जैसी वैश्विक तकनीकी दिग्गजों तक पहुँच, जो चीन में उपलब्ध नहीं है, भारतीय युवाओं को डिजिटल लाभ देती है।
  • रणनीतिक आर्थिक साझेदारी:
    • संयुक्त अरब अमीरात के साथ CEPA व्यापार समझौते जैसी पहलों के माध्यम से उप-क्षेत्रीय साझेदारी और चीन के प्रभाव नियंत्रण पर भारत का ध्यान, उसके रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
    • इस विविधीकरण से 5 वर्षों के भीतर द्विपक्षीय व्यापार में 200% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे घरेलू हितों की रक्षा करते हुए नए बाज़ारों तक पहुँच सुनिश्चित होगी।
  • गतिशील कूटनीति और वैश्विक प्रभाव:
    • QUAD और I2U2 जैसे समूहों में भारत की सक्रिय भागीदारी साथ ही प्रमुख देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते, इसके आर्थिक संबंधों को मज़बूत करते हैं तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, वित्त एवं बाज़ार पहुँच के द्वार खोलते हैं।
    • चूँकि भारत G20 और SCO में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है, इसलिये वह वैश्विक व्यापार प्रवृत्तियों को आकार देने के लिये अपनी स्थिति का लाभ उठा सकता है।
  • बड़ा घरेलू बाज़ार:
    • भारत का 1.3 अरब लोगों का बड़े घरेलू बाज़ार, जिसकी आय में वृद्धि हो रही है, चीन के लिये एक आकर्षक विकल्प प्रस्तुत करता है।
    • भारत की प्रति व्यक्ति GDP वर्ष 2018 और 2023 के बीच औसतन 6.9% बढ़ी है, जिससे एक बड़ा उपभोक्ता आधार तैयार हुआ है जो निरंतर आर्थिक विकास तथा बढ़े हुए वैश्विक व्यापार के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान करता है।

भारत में चीन+1 रणनीति से कौन-से क्षेत्र लाभांवित होंगे?

  • सूचना प्रौद्योगिकी/सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवाएँ (IT/ITeS): वर्ष 2024 NASSCOM रिपोर्ट में भारत को IT सेवाओं के निर्यात में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में मान्यता दी गई है, जिसे "मेक इन इंडिया" जैसी पहलों से बल मिला है, जिसका उद्देश्य देश को IT हार्डवेयर के लिये विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना है। इस प्रयास ने प्रमुख वैश्विक प्रौद्योगिकी फर्मों को आकर्षित किया है।
  • फार्मास्यूटिकल्स: भारत का फार्मास्यूटिकल उद्योग, जिसका मूल्य वर्ष 2024 में 3.5 लाख करोड़ रुपए होगा और यह मात्रा के हिसाब से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उद्योग होगा।
    • भारत "विश्व की फार्मेसी" के रूप में उभरा है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की लगभग 70% वैक्सीन आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है तथा अमेरिका की तुलना में 33% कम विनिर्माण लागत प्रदान करता है।
  • धातु और इस्पात: भारत के समृद्ध प्राकृतिक संसाधन और विशेष इस्पात के लिये PLI योजना से वर्ष 2029 तक 40,000 करोड़ रुपए के निवेश आकर्षित करने की उम्मीद है, इसे एक प्रमुख इस्पात निर्यातक के रूप में स्थापित करती है। चीन द्वारा निर्यात छूट वापस लेने तथा प्रसंस्कृत इस्पात उत्पादों पर शुल्क लगाने से भारत का आकर्षण बढ़ता है।

C+1 परिदृश्य में भारत का प्रदर्शन कैसा है?

  • आयात वृद्धि:
    • विश्लेषित देशों में पश्चिमी देशों से भारत के आयात में दूसरी सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है, जिसकी वर्ष 2014 से 2023 तक चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compound Annual Growth Rate- CAGR) 6.3% रही है।
    • वियतनाम और थाईलैंड ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है, जहाँ अमेरिका, ब्रिटेन तथा यूरोपीय संघ के आयात में CAGR 12.4% रहा है।

  • व्यावसायिक धारणा:
    • प्रचुर संसाधन और रणनीतिक योजना होने के बावजूद, भारत को चीन से स्थानांतरित होने वाले व्यवसायों के बीच सकारात्मक प्रभाव पैदा करने में संघर्ष करना पड़ा है।
    • वियतनाम और थाईलैंड अधिक आकर्षक गंतव्य के रूप में उभरे हैं।

  • टैरिफ दरें:
    • भारत में गैर-कृषि उत्पादों के लिये औसतन 14.7% की उच्च टैरिफ दरों ने पश्चिमी निवेशकों को हतोत्साहित किया है। विश्लेषण किये गए देशों में यह सबसे अधिक है।
      • भारत में रिवर्स शुल्क संरचना (Inverted Duty Structure), जिसमें आयातित कच्चे माल पर कर, अंतिम उत्पादों पर कर से अधिक है, भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करता है।

  • आशाजनक भविष्य की संभावनाएँ:
    • विश्लेषण के अनुसार, एशिया में उत्पादन स्थानांतरित करने या नई सुविधाओं में निवेश करने की योजना बना रही कंपनियों के लिये भारत सबसे पसंदीदा स्थान के रूप में उभरा है, जहाँ 28 कंपनियों ने रुचि दिखाई है, जबकि वियतनाम के लिये यह आँकड़ा 23 है।
    • उल्लेखनीय बात यह है कि इन इच्छुक कंपनियों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (28 में से 8) इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से हैं, एक ऐसा क्षेत्र जिसमें भारत पहले वियतनाम से पीछे था।

भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा डालने वाले कारक क्या हैं?

  • ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस: भारत का विनियामक वातावरण जटिल है, जिसमें नौकरशाही संबंधी बाधाएँ और असंगत नीति कार्यान्वयन शामिल हैं, जो घरेलू तथा विदेशी दोनों निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
  • विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता: उच्च इनपुट लागत, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और कुशल श्रम की कमी के कारण भारत को विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • CME समूह की रैंकिंग इस मुद्दे को उजागर करती है, जिसमें भारत को कई दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से पीछे रखा गया है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमियाँ: खराब परिवहन, रसद और ऊर्जा बुनियादी ढाँचे से परिचालन लागत बढ़ जाती है तथा व्यावसायिक दक्षता कम हो जाती है।
  • श्रम बाज़ार की कठोरता: प्रतिबंधात्मक श्रम कानून, विशेष रूप से संगठित क्षेत्र में, लचीलेपन और रोज़गार सृजन में बाधा डालते हैं।
  • कर संरचना: कई अप्रत्यक्ष करों सहित जटिल कर व्यवस्था, व्यापार करने की लागत में वृद्धि करती है।
  • भूमि अधिग्रहण की चुनौतियाँ: औद्योगिक परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण की जटिल प्रक्रिया से निवेश में देरी होती है और लागत बढ़ जाती है।
  • कौशल में भिन्नता: शिक्षा प्रणाली प्राय: आधुनिक अर्थव्यवस्था की मांग के अनुरूप कौशल स्नातक तैयार करने में विफल रहती है।
  • भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार की व्यापकता से निवेशकों का विश्वास कम होता है और लेन-देन की लागत बढ़ती है।

आगे की राह

  • लक्षित प्रोत्साहन एवं सब्सिडी: भारत को अपनी विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करने के लिये, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में प्रोत्साहन तथा सब्सिडी प्रदान करनी चाहिये, जिसमें कर लाभ, भूमि सब्सिडी एवं बुनियादी ढाँचे का समर्थन शामिल हो।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में वृद्धि करना: भारत में समग्र रूप से व्यावसाय को आसान बनाने हेतु विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, नौकरशाही बाधाओं को कम करने, श्रम कानूनों, भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं के साथ-साथ पर्यावरणीय मंज़ूरी को सरल बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • विशिष्ट औद्योगिक क्लस्टर विकसित करना: प्लग-एंड-प्ले सुविधाओं, सामान्य परीक्षण एवं प्रमाणन केंद्रों के साथ-साथ साझा लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे सहित विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे एवं सहायता सेवाओं एवं विशिष्ट क्षेत्रों के लिये समर्पित औद्योगिक क्लस्टर या विनिर्माण केंद्र बनाने की आवश्यकता है।
  • कौशल विकास में निवेश करना: भारत को व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मज़बूत करने पर भी ध्यान देना चाहिये तथा विनिर्माण क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप कुशल कार्यबल विकसित करने के लिये उद्योग के साथ सहयोग करना चाहिये, STEM शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिये तथा उच्च तकनीक विनिर्माण की मांगों को पूरा करने के लिये मौजूदा कार्यबल को भी उन्नत करना चाहिये।
  • बुनियादी ढाँचे और लॉजिस्टिक्स को बढ़ाना: सड़क, रेलवे, बंदरगाह एवं हवाई अड्डों सहित आधुनिक, कुशल तथा अच्छी तरह से जुड़े परिवहन नेटवर्क में निवेश करना और विद्युत आपूर्ति, जल एवं अन्य आवश्यक उपयोगिताओं की विश्वसनीयता व उपलब्धता में सुधार करना।
  • व्यापार नीतियों एवं समझौतों को सुव्यवस्थित करना: भारतीय निर्यात के लिये बाज़ार पहुँच में सुधार, आयात-निर्यात प्रक्रियाओं को सरल बनाने और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने हेतु टैरिफ को कम करने हेतु प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर वार्ता एवं हस्ताक्षर करना।
  • अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना: सरकार को विनिर्माण प्रौद्योगिकियों एवं प्रक्रियाओं में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान और विकास (R&D) में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये तथा कंपनियों को भारत में अनुसंधान व विकास केंद्र स्थापित करने के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करने हेतु प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

C+1 अवसर भारत के लिये अपने विनिर्माण क्षेत्र की दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करने तथा वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति के रूप में उभरने के लिये एक विशेष अवसर प्रस्तुत करता है। प्रमुख बाधाओं को दूर करके और एक व्यापक रणनीति को लागू करके, भारत इस प्रवृत्ति का लाभ उठाकर सतत् आर्थिक विकास एवं रोज़गार सृजन को बढ़ावा दे सकता है। भारत के लिये अब C+1 क्षमता का लाभ उठाने और स्वयं को शीर्ष विनिर्माण गंतव्य के रूप में स्थापित करने का अवसर है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: चाइना प्लस वन रणनीति क्या है? इस रणनीति का पूर्ण उपयोग करने के लिये भारत के सामने चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है?(2017)

(a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी।
(b) तेल-उत्पादक अरब देशों से भारत के संबंध सुदृढ़ होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुँच के लिये भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन का संस्थापन सुकर बनाएगा और उसकी सुरक्षा करेगा।

उत्तर: C 


मेन्स:

प्रश्न. मध्य एशिया, जो भारत के लिये एक हित क्षेत्र है, में अनेक बाह्य शक्तियों ने स्वयं को संस्थापित कर लिया है। इस संदर्भ में, भारत द्वारा अश्गाबात करार, 2018 में शामिल होने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (2018)