हॉन्गकॉन्ग की चुनावी प्रणाली में परिवर्तन | 17 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने हॉन्गकॉन्ग की चुनावी प्रणाली में कई बड़े बदलाव किये हैं।

China

प्रमुख बिंदु: 

नई चुनावी प्रणाली::

  • विधानपरिषद की सदस्यता में वृद्धि:
    • इस बदलाव के तहत हॉन्गकॉन्ग की विधानपरिषद (HKLC) के सदस्यों की संख्या बढ़कर 90 हो जाएगी। साथ ही बढ़ी हुई सीटों के लिये अतिरिक्त सदस्यों को मनोनीत किया जाएगा, जिससे निर्वाचित प्रतिनिधियों की हिस्सेदारी कम हो जाएगी।
    • वर्तमान में HKLC के कुल 70 सदस्यों में से केवल आधे सदस्य ही सीधे चुने जाते हैं और बाकी सदस्यों को मनोनीत किया जाता है।
  • चुनाव समिति का विस्तार:
    • चुनाव समिति (हॉन्गकॉन्ग इलेक्टोरल कॉलेज) में चीन से मनोनीत सदस्यों को शामिल करने के लिये इसका विस्तार किया गया है। 
    • चुनाव समिति पहले की तरह मुख्य कार्यकारी या चीफ एक्जीक्यूटीव (Chief Executive) का चुनाव करने के लिये उत्तरदायी होगी और यह HKLC के कुछ सदस्यों का भी चुनाव करेगी।
  • नई उम्मीदवार की योग्यता:
    • नई उम्मीदवार योग्यता समीक्षा समिति की स्थापना के माध्यम से चुनावों के लिये "देशभक्त" उम्मीदवारों का चयन सुनिश्चित किया जाएगा।

प्रभाव:

  • यह परिवर्तन हॉन्गकॉन्ग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (HKSAR) के संचालन में चीन द्वारा नियुक्त राजनेताओं के प्रभाव/हस्तक्षेप को बढ़ाएगा, जो वर्ष 1997 के सत्ता हस्तांतरण के बाद सबसे बड़े बदलाव को चिह्नित करता है।
  • बीजिंग समर्थक अधिकारियों की बढ़ी हुई संख्या शहर के नेतृत्व को प्रभावित करने में विपक्ष की शक्ति को कमज़ोर कर देगी।
  • यह उस राजनीतिक स्वतंत्रता को समाप्त कर देगा जो हॉन्गकॉन्ग को "एक देश, दो प्रणाली" मॉडल के तहत मुख्य भूमि (चीनी जन-गणराज्य या पी.आर.सी.) से अलग करता था।

भारत के लिये निहितार्थ:

  •  हॉन्गकॉन्ग वैश्विक बाज़ार में भारतीय वस्तुओं के पुनर्निर्यात का एक प्रमुख केंद्र है।
    • हॉन्गकॉन्ग भारत के लिये चौथा सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है।
  • भारत का मत है कि हॉन्गकॉन्ग चीन के साथ इसके संबंधों को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि इसे चीन का प्रवेश द्वार माना जाता है।
  • ऐसे में हॉन्गकॉन्ग में राजनीतिक अशांति के कारण उत्पन्न वैश्विक तनाव शेष विश्व और चीन के साथ भारत के व्यापार को भी प्रभावित कर सकता है।

आलोचना:

  • यूरोपीय संघ ने इन परिवर्तनों की निंदा करते हुए चीन को व्यापक प्रतिबंधों की चेतावनी दी है।
  • G7 ने इस बदलाव को हॉन्गकॉन्ग में असहमतिपूर्ण आवाज़ों एवं  विचारों को दबाने की दिशा में एक कदम बताया है।
  • विश्व की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं (जैसे-संयुक्त राज्य अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया) ने इस कदम की निंदा की है और चीन से एक अधिक सहभागी और प्रतिनिधित्व वाली व्यवस्था के संचालन की अनुमति देने का आग्रह किया है।
  • यह परिवर्तन ‘चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा’ (Sino-British Joint Declaration) के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करता है।

चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा :

परिचय

  • यह चीन की संप्रभुता के तहत हॉन्गकॉन्ग को लेकर यूनाइटेड किंगडम और चीन के बीच वर्ष 1985 में हस्ताक्षरित एक संधि है।
  • इस संधि के मुताबिक, चीन 1 जुलाई, 1997 से अफीम युद्ध (वर्ष 1840) के बाद ब्रिटेन के कब्ज़े वाले हॉन्गकॉन्ग का नियंत्रण पुनः प्राप्त कर लेगा।
    • अफीम युद्ध: ये चीन के चिंग राजवंश और यूरोप के बीच लड़े गए युद्ध थे। ये दोनों युद्ध अफीम व्यापार पर अंकुश लगाने के लिये चिंग राजवंश के प्रयासों का परिणाम थे।
      • पहला युद्ध वर्ष 1839 से वर्ष 1842 के बीच, जबकि दूसरा युद्ध वर्ष 1856 से वर्ष 1860 के बीच लड़ा गया था।

प्रावधान

  • इस संधि में कहा गया है कि हॉन्गकॉन्ग के बारे में चीन की बुनियादी नीतियाँ 50 वर्षों तक अपरिवर्तित रहेंगी और हॉन्गकॉन्ग के लिये उच्च स्तर की स्वायत्तता सुनिश्चित की जाएगी। इन नीतियों को हॉन्गकॉन्ग के ‘बेसिक लॉ’ के तहत निर्धारित किया गया है।
    • वर्ष 1997 से हॉन्गकॉन्ग को शासित करने वाले ‘बेसिक लॉ’ के मुताबिक, हॉन्गकॉन्ग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र, चीन का हिस्सा तो है, किंतु विदेश नीति और रक्षा मामलों के अतिरिक्त हॉन्गकॉन्ग को काफी अधिक ‘स्वायत्तता’ एवं ‘कार्यकारी, विधायी तथा स्वतंत्र न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त हैं।
    • इसके मुताबिक, चीन की समाजवादी प्रणाली और नीतियाँ 50 वर्षों के लिये हॉन्गकॉन्ग पर लागू नहीं होंगी।

आगे की राह

  • इस नए कानून से हॉन्गकॉन्ग के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ेगा और वर्ष 1997 में चीन को सौंपे जाने पर हॉन्गकॉन्ग को प्रदान की गई स्वायत्तता पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा कानून और नए चुनावी परिवर्तनों के साथ हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र समर्थक विपक्ष के लिये काफी कम स्थान रह गया है।
  • चीन को अपने कानूनी दायित्वों के अनुरूप कार्य करना चाहिये और हॉन्गकॉन्ग में मौलिक अधिकारों एवं हॉन्गकॉन्ग की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू