सामाजिक न्याय
भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित चुनौतियाँ
- 08 Apr 2025
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019, नालसा निर्णय 2014, उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020, गरिमा गृह मेन्स के लिये:भारतीय समाज और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये सुधार, उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम- प्रावधान और संबंधित विषय |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ होने वाले भेदभाव और हिंसा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये 31 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर विज़िबिलिटी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अधिनियमित होने के बावजूद, समुदाय को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो विधिक प्रावधानों और ज़मीनी वास्तविकताओं में व्यापक अंतराल को उजागर करता है।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति से क्या अभिप्राय है?
- उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसार, ट्रांसजेंडर अथवा उभयलिंगी व्यक्ति वह होता है जिसकी लैंगिक पहचान जन्म के समय निर्धारित लिंग से सुमेलित नहीं होती है।
- जनसंख्या: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, उनकी जनसंख्या लगभग 4.8 मिलियन है। इसमें इंटरसेक्स भिन्नता वाले ट्रांस-व्यक्ति, जेंडर-क्वीर और सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता वाले व्यक्ति जैसे किन्नर, हिजड़ा, आरावानी और जोगता शामिल हैं।
- LGBTQIA+ का हिस्सा: ट्रांसजेंडर व्यक्ति LGBTQIA+ समुदाय का हिस्सा हैं, जिन्हें संक्षिप्त नाम में "T" द्वारा दर्शाया गया है।
- LGBTQIA+ एक संक्षिप्ति (शब्दों के प्रथम अक्षरों से बना शब्द) है जो लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल का प्रतिनिधित्व करता है।
- "+" उन अनेक अन्य अस्मिताओं को दर्शाता है जिनकी पहचान प्रकिया और अवबोधन वर्तमान में जारी है।
- इस संक्षिप्ति में निरंतर परिवर्तन जारी है और इसमें नॉन-बाइनरी और पैनसेक्सुअल जैसे अन्य पद भी शामिल किये जा सकते हैं।
भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- कार्यान्वयन में अंतराल: वर्ष 2019 अधिनियम में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये समय पर सहायता अनिवार्य करने के बावजूद, दिसंबर 2023 तक केवल 65% आईडी कार्ड आवेदनों का ही निपटान किया गया, और 3,200 से अधिक आवेदन 30-दिन की विधिक समय सीमा से परे विलंबित थे।
- प्रमाणन की जटिल प्रक्रिया से आत्म-पहचान स्पष्ट करने में बाधा उत्पन्न होती है तथा पुलिस उत्पीड़न और परिवार द्वारा अस्वीकृति जैसे मुद्दों का समाधान करना कठिन हो जाता है।
- सामाजिक भेदभाव: भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को व्यापक अस्वीकृति, उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता होता है जिसमें 31% आत्महत्या कर लेते हैं और 50% 20 वर्ष की आयु से पहले ऐसा करने का प्रयास करते हैं।
- NALSA द्वारा आयोजित सर्वेक्षण के अनुसार 27% व्यक्तियों को लिंग पहचान के कारण उपचार से वंचित रखा गया। लिंग-पुष्टि उपचार की लागत 2-5 लाख रूपए है, जो सामान्यतः बीमा द्वारा कवर नहीं की जाती है।
- आयुष्मान भारत टीजी प्लस के तहत 5 लाख रूपए वार्षिक कवरेज की पेशकश के बावजूद, जागरूकता और अभिगमता सीमित है।
- आर्थिक अपवर्जन: व्यक्तियों को नियुक्ति संबंधी पूर्वाग्रह, कार्यस्थल पर दुर्भावना और लिंजेंडर-न्यूट्रल सुविधाओं के अभाव के कारण रोज़गार और उद्यमिता के सीमित अवसर प्राप्त होते हैं।
- 48% बेरोज़गारी दर (ILO 2022) के साथ 92% व्यक्ति आर्थिक रूप से अपवर्जित हैं (NHRC 2018)। संयुक्त बैंक खातों पर 2024 के परिपत्र के बावजूद, जागरूकता अभाव और संस्थागत अंतराल के कारण वित्तीय पहुँच सीमित बनी हुई है।
- शिक्षा में बाधाएँ: भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की साक्षरता दर 56.1% है, जो राष्ट्रीय औसत (74%) (2011 की जनगणना) से कम है। हालाँकि महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों ने समावेशी नीतियों का कार्यान्वन किया है, लेकिन राष्ट्रव्यापी जेंडर-सेंसिटिव पाठ्यक्रम का अभाव है।
उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 क्या है?
- परिचय: इस अधिनियम का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना और उनके सशक्तिकरण के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करना है।
- प्रमुख प्रावधान:
- भेदभाव न करना: शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक सेवाओं में भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- स्व-पहचान: यह स्व-अनुभूत लैंगिक पहचान का अधिकार प्रदान करता है, जिसका प्रमाण-पत्र ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा बिना मेडिकल परीक्षण के जारी किया जाता है।
- चिकित्सा देखभाल: बीमा कवरेज़ के साथ लैंगिक-पुष्टि उपचार (Gender-Affirming Treatments) और HIV निगरानी तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय परिषद: इस अधिनियम के तहत वर्ष 2020 में एक वैधानिक निकाय के रूप में राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद (NCTP) की स्थापना की गई।
ट्रांसजेंडर अधिकार सुधार में प्रमुख उपलब्धियाँ
- निर्वाचन आयोग का निर्देश (वर्ष 2009): पंजीकरण फॉर्म को अद्यतन कर उसमें "अन्य" विकल्प शामिल किया गया, जिससे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पुरुष या महिला पहचान से बचने में मदद मिली।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (वर्ष 2014): राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ मामले, 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर लोगों को "थर्ड जेंडर" के रूप में मान्यता दी, तथा इसे मानवाधिकार मुद्दा माना।
- विधायी प्रयास (वर्ष 2019): ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिये उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 लागू किया गया।
ट्रांसजेंडर कल्याण के लिये भारत का प्रयास क्या है?
- SMILE योजना
- गरिमा गृह
- आयुष्मान भारत TG प्लस
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय पोर्टल
- ट्रांसजेंडर पेंशन योजना: ट्रांसजेंडर व्यक्ति अब दिव्यांगता पेंशन योजना के लिये पात्र हैं, तथा दिव्यांगता फॉर्म में "ट्रांसजेंडर" विकल्प भी शामिल किया गया है।
- भारतीय जेलों में मान्यता: जनवरी 2022 में, गृह मंत्रालय ने थर्ड जेंडर के कैदियों की गोपनीयता, गरिमा सुनिश्चित करने के लिये राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के जेल प्रमुखों को एक सलाह भेजी थी।
- राज्य स्तरीय प्रयास: महाराष्ट्र ने कॉलेजों में ट्रांसजेंडर प्रकोष्ठ स्थापित किये हैं, जबकि केरल ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये विश्वविद्यालय स्तर पर आरक्षण और छात्रावास सुविधाएँ प्रदान करता है।
आगे की राह
- विधिक ढाँचे को मज़बूत करना: उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 को समय पर कल्याणकारी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये अक्षरशः लागू किया जाना चाहिये।
- आर्थिक सशक्तिकरण: लैंगिक-समावेशी नीतियाँ, विविधतापूर्ण भर्ती और वित्तीय योजनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। टाटा स्टील जैसे स्केलिंग मॉडल भागीदारी को बढ़ावा दे सकते हैं।
- विश्व बैंक की 2021 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यदि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कार्यबल में शामिल किया जाए तो GDP में 1.7% की वृद्धि होगी।
- स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच: बीमा में लैंगिक-पुष्टि उपचार (Gender-Affirming Treatments) शामिल होना चाहिये, और प्रदाताओं को संवेदनशीलता प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिये। समर्पित ट्रांसजेंडर क्लीनिक और विस्तारित मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ आवश्यक हैं।
- सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देना: शैक्षिक संस्थानों और कार्यस्थलों में लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देना, विविध मीडिया प्रतिनिधित्व और कूवगम महोत्सव जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
- "मैं भी मानव हूँ (I Am Also Human)" जैसे जागरूकता अभियान सामाजिक पूर्वाग्रहों को चुनौती देने के लिये आवश्यक हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाएँ: भारत अर्जेंटीना, कनाडा और UK जैसे देशों से प्रेरणा लेकर लैंगिक पहचान की स्व-घोषणा, लैंगिक-तटस्थ नीतियों और भेदभाव-विरोधी कानूनों को अपनाकर ट्रांसजेंडर अधिकारों को बढ़ा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: कानूनी प्रगति के बावजूद भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। उनके समावेशन के लिये किन उपायों की आवश्यकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारत में, विधिक सेवा प्रदान करने वाले प्राधिकरण (Legal Services Authorities) निम्नलिखित में से किस प्रकार के नागरिकों को नि:शुल्क विधिक सेवाएँ प्रदान करते हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |