भारतीय इतिहास
मध्य भारत में ताम्रपाषाण संस्कृति
- 18 Dec 2021
- 7 min read
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) ने मध्य भारत में ताम्रपाषाणिक संस्कृति से संबंधित दो प्रमुख स्थलों (ऐरण, ज़िला सागर और तेवर, ज़िला जबलपुर) मध्य प्रदेश राज्य में खुदाई की।
प्रमुख बिंदु
- ताम्रपाषाणिक संस्कृति
- परिचय: नवपाषाण काल के अंत में धातुओं का उपयोग देखा गया। कई संस्कृतियाँ तांबे और पत्थर के औजारों के उपयोग पर आधारित थीं।
- जैसा कि नाम से संकेत मिलता है, ताम्रपाषाण काल (चाल्को = ताम्र और लिथिक = पाषाण) के दौरान, धातु और पत्थर दोनों का उपयोग दैनिक जीवन में उपकरणों के निर्माण के लिये किया जाता था।
- ताम्रपाषाण संस्कृतियों ने कांस्य युग की हड़प्पा संस्कृति का अनुसरण किया।
- यह लगभग 2500 ईसा पूर्व से 700 ईसा पूर्व तक फैला था।
- मुख्य विशेषताएँ: विभिन्न क्षेत्र की ताम्रपाषाण संस्कृतियों को सिरेमिक और अन्य सांस्कृतिक उपकरणों जैसे तांबे की कलाकृतियों, अर्द्ध-कीमती पत्थरों के मोतियों, पत्थर के औजारों और टेराकोटा मूर्तियों में देखी गई कुछ मुख्य विशेषताओं के अनुसार परिभाषित किया गया था।
- विशेषताएँ:
- ग्रामीण बस्तियाँ: अधिकांश लोग ग्रामीण थे और पहाड़ियों और नदियों के पास रहते थे।
- ताम्रपाषाण युग के लोग शिकार, मछली पकड़ने और कृषि पर आश्रित रहे।
- क्षेत्रीय भिन्नता: सामाजिक संरचना, अनाज और मिट्टी के बर्तनों में क्षेत्रीय अंतर दिखाई देते हैं।
- प्रवासन: जनसंख्या समूहों के प्रवासन और प्रसार को अक्सर ताम्रपाषाण काल की विभिन्न संस्कृतियों की उत्पत्ति के कारणों के रूप में उद्धृत किया जाता है।
- भारत में प्रथम धातु युग: चूँकि यह भारत में प्रथम धातु युग की शुरुआत थी इसलिये तांबे और इसकी मिश्र धातु कांसा जो कम तापमान पर पिघल जाती थी, इस अवधि के दौरान विभिन्न वस्तुओं के निर्माण में उपयोग की जाती थी।
- कला और शिल्प: ताम्रपाषाण संस्कृति की विशेषता पहिया एवं मिट्टी के बर्तन थे जो ज़्यादातर लाल और नारंगी रंग के होते थे।
- ताम्रपाषाण काल के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार के मृदभांडों का प्रयोग किया जाता था। काले और लाल मिट्टी के मृदभांड काफी प्रचलित थे।
- गैरिक मृदभांडों (Ochre-Coloured Pottery- OCP) का भी प्रचलन था।
- ग्रामीण बस्तियाँ: अधिकांश लोग ग्रामीण थे और पहाड़ियों और नदियों के पास रहते थे।
- परिचय: नवपाषाण काल के अंत में धातुओं का उपयोग देखा गया। कई संस्कृतियाँ तांबे और पत्थर के औजारों के उपयोग पर आधारित थीं।
- वर्ष 2020-21 में ऐरण में उत्खनन कार्य:
- ऐरण (प्राचीन एयरिकिना) बीना (प्राचीन वेनवा) नदी के बाएँ किनारे पर स्थित है जो तीन तरफ से नदी से घिरा हुआ है।
- बीना नदी भारत के मध्य प्रदेश राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह बेतवा नदी (यमुना नदी की एक सहायक नदी) की एक प्रमुख सहायक नदी है।
- ऐरण, सागर ज़िला मुख्यालय से 75 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
- वर्ष 2020-21 में इस स्थल पर हुई खुदाई में तांबे का सिक्का, लोहे के तीर का सिरा, टेराकोटा मनका, पत्थर के मोतियों के साथ तांबे के सिक्के, पत्थर के सेल्ट, स्टीटाइट और जैस्पर के मोती, काँच, कारेलियन, देवनागरी में शिलालेख के साथ टेराकोटा व्हील, जानवरों की मूर्तियाँ, लघु बर्तन, लोहे की वस्तुएँ, मूसल और रेड-स्लिप्ड टेराकोटा सहित कई प्राचीन वस्तुओं का पता चला है।
- सादे, पतले भूरे रंग के बर्तन भी उल्लेखनीय है।
- कुछ धातु की वस्तुओं से लोहे के उपयोग के साक्ष्य भी मिले हैं।
- स्थल पर इस उत्खनन से ताम्रपाषाण संस्कृति के अवशेषों का भी पता चला, जिनमें चार प्रमुख काल थे।
- अवधि I: ताम्रपाषाण काल (18वीं -7वीं ईसा पूर्व),
- अवधि II: प्रारंभिक इतिहास (7वीं-दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व-पहली शताब्दी ई.),
- अवधि III: पहली से छठी शताब्दी ई.
- अवधि IV: उत्तर मध्यकालीन (16 वीं-18 वीं शताब्दी ई.)
- ऐरण (प्राचीन एयरिकिना) बीना (प्राचीन वेनवा) नदी के बाएँ किनारे पर स्थित है जो तीन तरफ से नदी से घिरा हुआ है।
- वर्ष 2020-21 के दौरान तेवर में प्रारंभिक ऐतिहासिक उत्खनन:
- तेवर (त्रिपुरी) गाँव जबलपुर ज़िले से 12 किमी पश्चिम में जबलपुर-भोपाल राजमार्ग पर स्थित है।
- इस उत्खनन से सांस्कृतिक अनुक्रमों के संदर्भ में चार वंशों अर्थात् कुषाण, शुंग, सातवाहन और कलचुरी का पता चलता है।
- इस उत्खनन में पुरातात्त्विक अवशेषों में मूर्तियों के अवशेष, हॉप्सकॉच, टेराकोटा बॉल, लोहे की कील, तांबे के सिक्के, टेराकोटा के मोती, लोहे और टेराकोटा की मूर्ति के उपकरण, सिरेमिक में लाल बर्तन, काले बर्तन, हांडी के आकार के साथ लाल फिसले हुए बर्तन, नलयुक्त बर्तन, छोटा बर्तन, बड़ा ज़ार आदि शामिल है और संरचनात्मक अवशेषों में ईंट की दीवार और बलुआ पत्थर के स्तंभों की संरचना शामिल है।