स्विट्ज़रलैंड में बुर्का पर प्रतिबंध | 13 Jan 2025

प्रिलिम्स के लिये:

उच्चतम न्यायालय, बुर्का , मौलिक अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मामले

मेन्स के लिये:

मौलिक अधिकार, न्यायपालिका, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिलाओं के मुद्दे, धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मामले।

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों?

स्विट्ज़रलैंड में बुर्का अथवा नकाब से चेहरा ढकने वाले वस्त्रों पर प्रतिबंध लगाया गया है, जो 1 जनवरी 2025 से लागू हो गया है।

  • स्विट्जरलैंड में मार्च 2021 में एक राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह के माध्यम से बुर्का और नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया था। इस निर्णय ने भारत में भी इस बहस को तेज़ कर दिया है।

नोट: स्विट्जरलैंड के अलावा, फ्राँस, बेल्जियम, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया और कनाडा जैसे देशों ने भी बुर्का और नकाब से चेहरे को ढकने वाले वस्त्रों पर प्रतिबंध लगाया है।

बुर्का प्रतिबंध पर कर्नाटक सरकार

  • वर्ष 2022 में, कर्नाटक सरकार ने सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में बुर्का (सिर ढकने वाला कपड़ा) पहनने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित किया।
  • आदेश में कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 की धारा 133(2) का हवाला दिया गया, जो राज्य को सरकारी स्कूलों के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करती है।
  • वर्ष 2013 में राज्य ने इस प्रावधान के तहत यूनिफॉर्म को अनिवार्य बना दिया था। नवीनतम आदेश में कहा गया है कि बुर्का मुसलमानों के लिये एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है जिसे संविधान के तहत संरक्षित किया जा सके।

ईरानी बुर्का आंदोलन

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति के बाद, महिलाओं के लिये बुर्का अनिवार्य कर दिया गया, जिसके कारण दशकों तक विरोध चला।
  • विरोध प्रदर्शन और प्रतीकवाद: "गर्ल ऑफ एन्घेलैब स्ट्रीट" जैसे प्रतिष्ठित प्रदर्शन, जिसमें एक महिला ने एक छड़ी पर अपना सफेद स्कार्फ लहराया, ड्रेस कोड के खिलाफ अवज्ञा का प्रतीक है।
  • कथित तौर पर बुर्का के सख्त पालन के कारण महसा अमीनी की मौत के बाद विरोध प्रदर्शन फिर से भड़क उठे, जिसके कारण व्यापक प्रदर्शन हुए।
  • सरकारी कार्रवाई: ईरान में बुर्का की अनिवार्यता लागू की गई, जिसका पालन न करने पर ज़ुर्माना और कारावास का प्रावधान गया है, जिससे सामाजिक तनाव में वृद्धि हो रही है।
  • वर्तमान में इस आंदोलन को पुरुषों और महिलाओं दोनों का समर्थन प्राप्त है, जो अनिवार्य ड्रेस कोड का विरोध करते हैं, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और महिलाओं के अधिकारों की व्यापक मांग को दर्शाता है।

भारत में बुर्का पहनने की स्थिति क्या है?

  • आमना बिंत बशीर बनाम सीबीएसई, 2016 : आमना बिंत बशीर बनाम सीबीएसई, 2016 में, केरल उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बुर्का पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, लेकिन सीबीएसई ड्रेस कोड को बरकरार रखा तथा 2015 की तरह अतिरिक्त उपाय और सुरक्षा उपायों की अनुमति दी।
  • केंद्रीय विद्यालय शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने तर्क दिया कि ड्रेस कोड अनुचित व्यवहार को रोकने के लिये बनाया गया है। 
  • केरल उच्च न्यायालय, 2018: फातिमा थस्नीम बनाम केरल राज्य, 2019 में, मामला दो लड़कियों से जुड़ा था, जो सिर पर स्कार्फ़ पहनना चाहती थीं और ईसाई मिशनरी स्कूल ने सिर पर स्कार्फ़ पहनने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। 
  • अदालत ने स्कूल के निर्णय के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि स्कूल के "सामूहिक अधिकारों" को व्यक्तिगत छात्र अधिकारों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • रेशम बनाम कर्नाटक राज्य, 2022: मार्च 2022 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सरकारी कॉलेजों में बुर्का पर राज्य सरकार के प्रतिबंध को वैध ठहराया। 
  • उच्च न्यायालय ने प्रतिबंध को बरकरार रखते हुए कहा कि बुर्का पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और यह प्रतिबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करता है।
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभाजित फैसला, 2022 : रेशम बनाम कर्नाटक राज्य, 2022 मामले में सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने विभाजित फैसला सुनाया। मामले को अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच को भेज दिया गया है।

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के लिये संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान भाग III (मौलिक अधिकार) में निहित अनुच्छेद 25-28 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी दी गई है :
    • अनुच्छेद 25(1): "अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने के अधिकार " को सुनिश्चित करता है। यह एक नकारात्मक स्वतंत्रता प्रदान करता है जहाँ राज्य धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
    • अनुच्छेद 26: "धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता" प्रदान करता है, जिससे धार्मिक संप्रदायों को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, धार्मिक तथा धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थाओं की स्थापना एवं  प्रबंधन करने की अनुमति मिलती है।
    • अनुच्छेद 27 : धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को सुदृढ़ करते हुए राज्य को किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देने या बनाए रखने के लिये नागरिकों को कर देने के लिये बाध्य करने से रोकता है।
    • अनुच्छेद 28 : शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा को विनियमित करता है, राज्य द्वारा वित्त पोषित या राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा को प्रतिबंधित करता है, सिवाय जहाँ स्पष्ट रूप से अनुमति दी गई हो।
  • इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करते हैं तथा उनकी विशिष्ट पहचान की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

ऐसे प्रतिबंध के पक्ष और विपक्ष में तर्क क्या हैं?

  • पक्ष में तर्क:
    • एकरूपता और अनुशासन: ड्रेस कोड लागू करने से शैक्षणिक संस्थानों में एकरूपता और अनुशासन को बढ़ावा मिलता है।
      • यह प्रत्यक्ष धार्मिक चिह्नों के प्रदर्शन को रोकता है तथा धार्मिक विभाजनों से मुक्त एक तटस्थ स्थान बनाए रखता है।
    • लैंगिक समानता: बुर्का और इसी प्रकार की प्रथाओं को प्रायः पितृसत्ता के उपकरण के रूप में देखा जाता है जो लैंगिक असमानता को बनाए रखते हैं और महिलाओं की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करते हैं।
    • समाज में एकीकरण: ऐसी प्रथाओं पर रोक लगाने से व्यापक समाज में एकीकरण को बढ़ावा मिलता है  तथा दृश्यमान धार्मिक चिह्नों के कारण होने वाले संभावित अलगाव से बचा जा सकता है।
    • मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं है: मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं हैं और उचित प्रतिबंधों के अधीन हैं। 
      • अनुच्छेद-25 के अंतर्गत धर्म का अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को दरकिनार नहीं कर सकता, विशेषकर सरकारी वित्तपोषित शैक्षणिक संस्थानों में
    • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: ऐसे प्रतिबंधों का उद्देश्य गुमनामी (Anonymity) को रोकना भी है, जो पहचान में बाधा उत्पन्न कर सकती है, शस्त्रों को छिपाने के लिये वस्त्रों के दुरुपयोग को रोकना तथा उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में सार्वजनिक सुरक्षा को बढ़ाना है।
      • उदाहरण के लिये: वर्ष 2019 में श्रीलंका में ईस्टर बम विस्फोट में आत्मघाती हमलावर जनता के साथ घुलमिल गए थे। 
  • प्रतिबंध के विरुद्ध तर्क:
    • धार्मिक स्वतंत्रता: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म का पालन करने और उसे मानने के अधिकार को सुनिश्चित करता है, ऐसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने से अलगाव की भावना उत्पन्न हो सकती है तथा सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।
    • स्वायत्तता और विकल्प: प्रतिबंध लगाने से व्यक्तिगत स्वतंत्रता और व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं के अपने परिधान के बारे में चुनाव करने के अधिकार का उल्लंघन होता है।
    • शिक्षा पर प्रभाव: बुर्का पर प्रतिबंध लगाने से रूढ़िवादी पृष्ठभूमि की छात्राएँ स्कूल जाने से हतोत्साहित हो सकती हैं, जिससे उनकी शिक्षा और सशक्तीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
      • उदाहरण के लिये: वर्ष 2019-20 में अधिकांश राज्यों में मुस्लिम लड़कियों की स्कूल उपस्थिति दर हिंदू लड़कियों की तुलना में कम थी।
      • उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश में, जहाँ केवल 63.2% मुस्लिम लड़कियाँ स्कूल जाती हैं, वहीं 81% हिंदू लड़कियाँ स्कूल जाती हैं।
    • इस प्रकार के प्रतिबंध शिक्षा तक पहुँच में भी बाधा उत्पन्न कर सकते हैं, रूढ़िवादी पृष्ठभूमि की लड़कियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं तथा इन समूहों को और अधिक कमज़ोर कर सकते हैं।

निष्कर्ष

बुर्का /बुर्का पर बहस व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सामाजिक मूल्यों और संस्थागत अनुशासन के साथ संतुलित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। जबकि धार्मिक अधिकार संविधान के अंतर्गत संरक्षित हैं, ये निरपेक्ष नहीं हैं और इन्हें लोक व्यवस्था एवं समानता के साथ संरेखित किये जाने की आवश्यकता है। न्यायिक निर्णय समावेशिता एवं लैंगिक समानता पर बल देते हैं, जो संवाद को बढ़ावा देने और ऐसी नीतियों के निर्माण के महत्त्व को रेखांकित करते हैं जो शिक्षा तक पहुँच में बाधा डाले बगैर या समुदायों को हाशिये पर रखे बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

1. धर्मनिरपेक्षतावाद की भारतीय संकल्पना धर्मनिरपेक्षतावाद के पाश्चात्य मॉडल से किन-किन बातों से भिन्न है? चर्चा कीजिये। (2016)

2. क्या सहिष्णुता, सम्मिलन एवं बहुलता मुख्य तत्व हैं? जो धर्मनिरपेक्षता भारतीय के रूप का निर्माण करते हैं? तर्कसंगत उत्तर दें। (2022)

3. स्वतंत्र भारत में धार्मिकता किस प्रकार सांप्रदायिकता में रूपांतरित हो गई है, इसका एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए धार्मिकता एवं सांप्रदायिकता के मध्य विभेदन कीजिये। (2017)