किशोर न्याय प्रणाली | 17 Feb 2022
प्रिलिम्स के लिये:बच्चों से संबंधित संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधान, बाल अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRC), राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग मेन्स के लिये:किशोर न्याय प्रणाली का विकास, किशोर न्याय प्रणाली का उद्देश्य, बच्चों से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के एक निर्णय को चुनौती देने वाली एक अपील को खारिज करते हुए कहा कि किशोर न्याय संबंधी याचिकाओं को प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित होना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि यदि किशोर होने की प्रमाणिकता के लिये संदिग्ध प्रकृति के दस्तावेज़ प्रस्तुत किये जाते हैं, तो आरोपी को किशोर नहीं माना जाएगा, यह देखते हुए कि यह कानून एक लाभकारी कानून है।
- गौरतलब है कि किशोर अपराधियों (18 वर्ष से कम आयु) को ‘किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000’ के तहत संरक्षण प्रदान किया जाता है।
- इस अधिनियम की धारा 7A के तहत एक आरोपी व्यक्ति ‘किशोर होने का दावा’ किसी भी न्यायालय के समक्ष, किसी भी स्तर पर, यहाँ तक कि मामले के अंतिम निपटान के बाद भी कर सकता है।
भारत में विकसित किशोर न्याय प्रणाली:
- किशोर न्याय प्रणाली की परिभाषा: किशोर न्याय प्रणाली उन बच्चों से संबंधित है जिन्होंने किसी प्रकार से कानून का उल्लंघन किया है और जिन्हें देखभाल एवं सुरक्षा की आवश्यकता है।
- भारत में 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को किशोर माना जाता है।
- अवयस्क वह व्यक्ति है, जिसने पूर्ण कानूनी उत्तरदायित्व संबंधी आयु प्राप्त नहीं की है और किशोर एक ऐसा अवयस्क है जिसने कोई अपराध किया है और उसे देखभाल एवं सुरक्षा की आवश्यकता है।
- भारत में 7 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को ‘डॉक्ट्रिन ऑफ डोली इनकैपैक्स’ के कारण किसी भी अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि अपराध करने का इरादा रखने में असमर्थ व्यक्ति।
- किशोर न्याय प्रणाली का मुख्य उद्देश्य युवा अपराधियों का पुनर्वास और उन्हें दूसरा अवसर प्रदान करना है।
- इस सुरक्षा का मुख्य कारण यह है कि बच्चों का मस्तिष्क पूरी तरह से विकसित नहीं होता है और उनमें गलत एवं सही की पूरी समझ नहीं होती है।
- यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब माता-पिता उचित पालन-पोषण करने में असमर्थ होते हैं और घरों में हिंसा की घटनाएँ होती हैं या ‘एकल पेरेंट’ जो अपने बच्चों को लंबे समय तक असुरक्षित छोड़ देते हैं।
- समाचार, फिल्में, वेब सीरीज़, सोशल मीडिया और शिक्षा की कमी का प्रभाव भी बच्चों के आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने का कारण है।
- भारत की स्वतंत्रता के बाद संविधान ने बच्चों की सुरक्षा और विकास के लिये मौलिक अधिकारों एवं राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत कुछ प्रावधान किये।
- बाल अधिनियम, 1960: इस अधिनियम ने किसी भी परिस्थिति में बच्चों के कारावास को प्रतिबंधित किया और देखभाल, कल्याण, प्रशिक्षण, शिक्षा, रखरखाव, सुरक्षा और पुनर्वास प्रदान किया।
- किशोर न्याय अधिनियम, 1986: बाल अधिनियम को एकरूपता प्रदान करने हेतु किशोर न्याय अधिनियम,1986 लागू किया गया, साथ ही संयुक्त राष्ट्र घोषणा,1959 के अनुसार, किशोरों की सुरक्षा के लिये मानक निर्धारित किये गए।
- 1959 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों की घोषणा को अपनाया।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000: भारत सरकार द्वारा किशोर न्याय अधिनियम (JJA) को निरस्त कर एक नया अधिनियम, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 लाया गया।
- इसमें 'कानून के साथ विवाद' और 'देखभाल एवं सुरक्षा की आवश्यकता' जैसी बेहतर शब्दावली थी।
- जिन किशोरों का कानून के साथ टकराव होता है, उन्हें किशोर न्याय बोर्ड द्वारा नियंत्रित किया जाता है और जिन किशोरों को देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता होती है, उन्हें बाल कल्याण समिति द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- वर्ष 2006 में किशोर अधिनियम में किशोरावस्था को अपराध करने की तिथि से माने जाने के लिये संशोधन किया गया था।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: इसने किशोर अधिनियम, 2000 को प्रतिस्थापित किया है।
- इस अधिनियम को संसद में काफी विवाद और विरोध के बाद पारित किया गया था। इसके द्वारा मौज़ूदा कानून में कई बदलाव किये गए हैं।
- इस अधिनियम के तहत जघन्य अपराधों में शामिल 16-18 आयु वर्ग के किशोरों को वयस्कों के रूप में माना गया है।
- किशोर न्याय प्रणाली को अधिक उत्तरदायी और समाज की बदलती परिस्थितियों के अनुसार बनाया गया है।
- अधिनियम अनाथ, परित्यक्त, आत्मसमर्पण करने वाले बच्चों की स्पष्ट परिभाषा देने के साथ उनके लिये एक संगठित प्रणाली प्रदान करता है।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021: हाल ही में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 राज्यसभा में पारित किया गया है।
- यह अधिनियम बच्चों की सुरक्षा और उन्हें गोद लेने के प्रावधानों को मज़बूत करने तथा कारगर बनाने का प्रयास करता है।
- न्यायालय के समक्ष गोद लेने के कई मामले लंबित हैं तथा न्यायालय की कार्यवाही में तीव्रता लाने हेतु अब शक्तियों को ज़िला मजिस्ट्रेट को हस्तांतरित कर दिया गया है।
- संशोधन में प्रावधान है कि इस तरह के गोद लेने के आदेश जारी करने का अधिकार अब ज़िला मजिस्ट्रेट के पास है।
बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण के लिये अन्य कानूनी ढांँचे:
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (POCSO), 2013
- बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 2016
- बाल अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCRC)
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, 2005