भारतमाला परियोजना | 23 Aug 2024
प्रिलिम्स के लिये:भारतमाला, सार्वजनिक निवेश बोर्ड, पूंजीगत व्यय, वस्तु एवं सेवा कर मेन्स के लिये:भारतमाला परियोजना, पीएम गति शक्ति योजना और भारत के बुनियादी अवसंरचना के विकास में योगदान। |
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
प्रमुख सड़क नेटवर्क विस्तार कार्यक्रम भारतमाला परियोजना चरण-I का लगभग 50% कार्य 31 मार्च 2024 तक पूरा हो चुका है और इसके वर्ष 2027-28 तक पूरा होने की उम्मीद है।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के विज़न 2047 का लक्ष्य सभी नागरिकों को 100-150 किलोमीटर के भीतर हाई-स्पीड कॉरिडोर प्रदान करना तथा विश्व स्तरीय सुविधाएँ विकसित करके यात्री सुविधा को बढ़ाना है।
- यह दृष्टिकोण भारत में राजमार्गों और संबंधित बुनियादी अवसंरचना के लिये मास्टर प्लान का आधार है।
भारतमाला परियोजना क्या है?
- परिचय:
- भारतमाला परियोजना सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) के तहत शुरू किया गया एक व्यापक कार्यक्रम है।
- भारतमाला के पहले चरण की घोषणा वर्ष 2017 में की गई थी और इसे 2022 तक पूरा किया जाना था लेकिन धीमे कार्यान्वयन और वित्तीय बाधाओं के कारण इसे पूरा नहीं किया जा सका।
- कनेक्टिविटी एवं लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ाने के लिये भारतमाला, सागरमाला, शुष्क/भूमि बंदरगाह और अन्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को पीएम गति शक्ति योजना के तहत शामिल किया गया है।
- जबकि भारतमाला परियोजना का उद्देश्य माल और यात्री आवागमन को बढ़ाते हुए सड़क संपर्क में सुधार करना है, सागरमाला परियोजना का उद्देश्य व्यापार एवं समुद्री गतिविधि को बढ़ाने के लिये बंदरगाहों का आधुनिकीकरण तथा तटीय शिपिंग को बढ़ावा देना है।
- भारतमाला परियोजना सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) के तहत शुरू किया गया एक व्यापक कार्यक्रम है।
- प्रमुख विशेषताऐं:
- आर्थिक कॉरिडोर और उनकी दक्षता में सुधार: भारतमाला पहले से निर्मित बुनियादी अवसंरचना की बढ़ी हुई प्रभावशीलता, बहुविध एकीकरण, निर्बाध आवागमन के लिये बुनियादी अवसंरचना की कमियों को दूर करने एवं राष्ट्रीय व आर्थिक कॉरिडोर को एकीकृत करने पर केंद्रित है।
- इसका उद्देश्य राजमार्गों पर अधिकांश माल यातायात को ले जाने के लिये स्वर्णिम स्वर्णिम चतुर्भुज (GQ) और उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम (NS-EW) कॉरिडोरों सहित लगभग 26,000 किलोमीटर आर्थिक कॉरिडोर का निर्माण करना है।
- इंटर-कॉरिडोर और फीडर रूट: यह प्रथम मील से अंतिम मील तक की कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगा।
- इन कॉरिडोर की प्रभावशीलता में सुधार के लिये लगभग 8,000 किलोमीटर इंटर-कॉरिडोर और लगभग 7,500 किलोमीटर फीडर रूट की पहचान की गई है।
- सीमा और अंतर्राष्ट्रीय संपर्क सड़कें: बेहतर सीमा सड़क बुनियादी अवसंरचना से अधिक गतिशीलता सुनिश्चित होगी और साथ ही पड़ोसी देशों के साथ व्यापार को भी बढ़ावा मिलेगा।
- तटीय व पोर्ट कनेक्टिविटी हेतु सड़कें: तटीय क्षेत्रों में कनेक्टिविटी के माध्यम से बंदरगाह आधारित आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है, जिससे पर्यटन एवं औद्योगिक विकास दोनों बेहतर होते हैं।
- ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेसवे: उच्च यातायात सघनता और अधिक जाम वाले स्थान की उपस्थिति वाले एक्सप्रेसवे ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेसवे से लाभान्वित होंगे।
- आर्थिक कॉरिडोर और उनकी दक्षता में सुधार: भारतमाला पहले से निर्मित बुनियादी अवसंरचना की बढ़ी हुई प्रभावशीलता, बहुविध एकीकरण, निर्बाध आवागमन के लिये बुनियादी अवसंरचना की कमियों को दूर करने एवं राष्ट्रीय व आर्थिक कॉरिडोर को एकीकृत करने पर केंद्रित है।
- वित्तपोषण तंत्र:
- भारतमाला परियोजना को केंद्रीय सड़क और अवसंरचना निधि उपकर, प्रेषण, अतिरिक्त बजटीय सहायता, राष्ट्रीय राजमार्गों के मुद्रीकरण, आंतरिक एवं अतिरिक्त बजटीय संसाधनों तथा निजी क्षेत्र के निवेश सहित विभिन्न स्रोतों से वित्त पोषित किया जा रहा है।
- स्थिति:
- मार्च 2024 तक, भारतमाला परियोजना चरण-1 ने 26,425 किलोमीटर सड़कों के निर्माण के लिये सफलतापूर्वक अनुबंध प्रदान किये हैं और 4.59 लाख करोड़ रुपए के कुल व्यय के साथ 17,411 किलोमीटर का कार्य पूरा किया है।
- यह परियोजना 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तथा 550 से अधिक ज़िलों में 34,800 किलोमीटर क्षेत्र को शामिल करती है।
- मार्च 2024 तक, भारतमाला परियोजना चरण-1 ने 26,425 किलोमीटर सड़कों के निर्माण के लिये सफलतापूर्वक अनुबंध प्रदान किये हैं और 4.59 लाख करोड़ रुपए के कुल व्यय के साथ 17,411 किलोमीटर का कार्य पूरा किया है।
सड़क अवसंरचना विकास हेतु अन्य समान पहल
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY): यह परियोजना वर्ष 2001 में असंबद्ध बस्तियों को जोड़ने के लक्ष्य के साथ शुरू हुई थी।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP): राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) एक पहल है जो सभी नागरिकों के जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार लाने और घरेलू एवं विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आकर्षित करने हेतु पूरे भारत में विश्व स्तरीय बुनियादी अवसंरचना प्रदान करेगी।
- बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में ऊर्जा, सड़क, शहरी और रेलवे जैसे क्षेत्रों में सामाजिक एवं आर्थिक बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ शामिल हैं, जो भारत में बुनियादी अवसंरचना में अनुमानित पूंजीगत व्यय का लगभग 70% है।
- इसमें 100 करोड़ रुपए से अधिक लागत वाली ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड परियोजनाएँ शामिल हैं।
- स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना:
- यह 4-6 लेन वाले राजमार्गों का एक नेटवर्क है जो भारत के 4 शीर्ष महानगरीय शहरों अर्थात दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ता है, जिससे एक चतुर्भुज बनता है।
- यह परियोजना राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) के हिस्से के रूप में वर्ष 2001 में शुरू की गई थी। यह भारत की सबसे बड़ी राजमार्ग परियोजना है।
- स्वर्णिम चतुर्भुज की 4 भुजाएँ/फलक:
- दिल्ली-कोलकाता: 1,453 किमी
- चेन्नई-मुंबई: 1,290 किमी
- कोलकाता-चेन्नई: 1,684 किमी
- मुंबई-दिल्ली: 1,419 किमी
- नये अनुबंध मॉडल और परिसंपत्ति मुद्रीकरण: इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (EPC) तथा बिल्ड, ऑपरेट, ट्रांसफर (BOT) जैसी पारंपरिक निविदा पद्धतियों के अलावा कई नये अनुबंध मॉडल भी उभर कर सामने आये हैं।
- इनमें हाइब्रिड एन्युइटी मॉडल (HAM), टोल, ऑपरेट और ट्रांसफर (TOT) तथा इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InVIT) शामिल हैं।
भारत के विकास में सड़क अवसंरचना का क्या महत्त्व है?
- आर्थिक विकास और उत्पादकता: सड़क नेटवर्क भारत के आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो सकल घरेलू उत्पाद में 3.6% से अधिक का योगदान देते हैं और 85% से अधिक यात्री यातायात एवं 65% माल ढुलाई करते हैं।
- वे परिवहन लागत को कम करते हैं, बाज़ार तक पहुँच बढ़ाते हैं और व्यापार को प्रोत्साहित करते हैं।
- वे स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन करते हुए और गरीबी को कम करने में मदद करते हुए महत्त्वपूर्ण रोज़गार अवसर का भी सृजन करते हैं।
- ग्रामीण विकास और सामाजिक समानता: PMGSY जैसी योजनाओं के तहत ग्रामीण सड़कें दूरदराज़ के क्षेत्रों और आवश्यक सेवाओं के बीच की दूरी को न्यून करती हैं।
- ये हाशिये पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाती हैं, अलगाव को कम करती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती हैं।
- उन्नत सड़क संपर्क शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच को बढ़ाता है।
- पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: कुशल सड़क नेटवर्क पर्यटन को सुविधाजनक बनाते हैं, जो अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। दर्शनीय मार्ग और धरोहर स्थलों तक पहुँच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देती है तथा स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन करती है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा: सड़कें रक्षा रसद और आपातकालीन प्रतिक्रियाओं के लिये महत्वपूर्ण हैं। सीमा और सामरिक सड़कें राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सैन्य आवागमन के लिये आवश्यक हैं।
सड़क अवसंरचना विकास से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: सड़क निर्माण से वनों की कटाई, जैवविविधता का ह्रास और प्रदूषण में वृद्धि जैसी पर्यावरणीय चिंताएँ उत्पन्न होती हैं। यह आवास विखंडन, वायु व ध्वनि प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन का बहुत बड़ा कारक है, जो स्थायी अवसंरचना प्रथाओं की आवश्यकता को उजागर करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट है कि भारत के CO2 उत्सर्जन में सड़क परिवहन का योगदान 12% है, जिसमें भारी वाहन पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 उत्सर्जन में प्राथमिक योगदानकर्त्ता हैं।
- सामाजिक चिंताएँ: सड़क परियोजनाओं से समुदायों का विस्थापन हो सकता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं। अपर्याप्त पुनर्वास गरीबी को बढ़ा सकता है, जबकि खराब तरीके से डिज़ाइन की गई सड़कें दुर्घटना दर में योगदान करती हैं। वर्ष 2021 में भारत में 1,50,000 से अधिक मौतें हुईं, जो सुरक्षित अवसंरचना की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
- आर्थिक चिंताएँ: कई सड़क परियोजनाओं में अत्यधिक लागत वृद्धि और विलंब होता है, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) ने ऐसे उदाहरणों की रिपोर्ट की है जिनमें लागत, बजट से 40% से अधिक पाई गई।
- इसके अतिरिक्त सुदृढ़ रखरखाव फ्रेमवर्क की कमी से सड़कों की हालत तेज़ी से खराब होती है, जिससे दीर्घकालिक लागत लगभग दोगुनी हो जाती है।
- शासन और नीतिगत मुद्दे: इसमें नीलामी और क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार शामिल है, जिससे घटिया अवसंरचना का निर्माण होता है।
- इसके अतिरिक्त व्यापक नियोजन की कमी के कारण खराब तरीके से निष्पादित परियोजनाएँ सामने आती हैं, जिससे एकीकृत परिवहन नियोजन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
आगे की राह
प्रतिस्पर्द्धी दरों पर कच्चा माल प्राप्त करने और आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ अनुकूल शर्तों पर सौदागिरी करने के लिये रणनीतिक खरीद पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। साथ ही पारदर्शी प्रथाओं को अपनाकर भूमि अधिग्रहण को सुव्यवस्थित करना और विवादों को कम करने के लिये भूमि पूलिंग जैसे विकल्पों की खोज करना आवश्यक है। इसके अलावा स्थिर GST नीतियों की आवश्यकता है और उद्योग पर कर परिवर्तनों के प्रभावों को दूर करने के लिये सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न . “अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के प्रकाश में चर्चा कीजिये। (2021) |