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भारतीय अर्थव्यवस्था

आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण

  • 18 Jun 2024
  • 15 min read

स्रोत: ओईसीडी

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD), आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण (BEPS), G20, डिजिटल हस्तांतरण, इक्वलाइजेशन लेवी

मेन्स के लिये:

वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) की भूमिका, सहयोग को बढ़ावा देने में आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण (BEPS) का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) ने बहुपक्षीय सम्मेलन (MLC) पर हस्ताक्षर प्रक्रिया में शेष बचे मुद्दों को सुलझाने के लिये कार्य करते रहने हेतु आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण (BEPS) पर समावेशी ढाँचे के 147 सदस्यों की प्रतिबद्धता का स्वागत किया।

आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण (BEPS) क्या है?

  • परिचय:
    • BEPS पहल एक OECD पहल है, जिसे G20 द्वारा अनुमोदित किया गया है, इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर अधिक मानकीकृत कर नियम प्रदान करने के तरीकों की पहचान करना है।
    • BEPS का तात्पर्य उन कर रणनीतियों से है, जो समग्र कॉर्पोरेट कर भुगतान को कम करने के लिये विभिन्न देशों में कर नियमों में अंतर का फायदा उठाती हैं।
  • उद्देश्य:
    • इस रणनीति का उद्देश्य मुनाफे को कम करने या उन्हें न्यूनतम वास्तविक आर्थिक गतिविधि वाले न्यून कर वाले क्षेत्रों में ले जाकर समग्र कॉर्पोरेट कर देयता को कम करना है।
    • हालाँकि ये अवैध नहीं हैं, लेकिन BEPS की रणनीति अंतर्राष्ट्रीय कर विनियमों में भिन्नताओं का लाभ उठाती है।
    • विकासशील देश विशेष रूप से बहुराष्ट्रीय निगमों से कॉर्पोरेट आयकर पर अपनी मज़बूत निर्भरता के कारण BEPS के प्रति संवेदनशील हैं।
  • BEPS पर समावेशी ढाँचा:
    • समावेशी ढाँचे की स्थापना वर्ष 2016 में OECD और G20 द्वारा की गई थी।
    • यह कर चोरी से निपटने और न्यायसंगत कर प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये 147 देशों एवं अधिकार क्षेत्रों को एकजुट करता है, इसमें दो स्तंभ शामिल हैं।
      • पहला स्तंभ:
        • यह बहुराष्ट्रीय एवं डिजिटल कंपनियों द्वारा सीमा पार से होने वाले लाभ स्थानांतरण को संबोधित करता है।
        • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ये बड़े उद्यम उन स्थानों पर कर का भुगतान करें जहाँ वे लाभ अर्जित करते हैं, जिससे संभावित रूप से प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि बाज़ार क्षेत्राधिकारों में पुनः आवंटित की जा सके।
      • दूसरा स्तंभ:
        • इसमें संपूर्ण विश्व के लिये एक न्यूनतम निगम कर की दर का सुझाव दिया गया है, जो अभी 15% है, ताकि राष्ट्रों के बीच हानिकारक कर प्रतिद्वंद्विता से बचा जा सके।
        • इससे विकसित तथा विकासशील देशों के लिये प्रतिवर्ष 192 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक का राजस्व एकत्रित किया जा सकेगा।

ग्लोबल मिनिमम टैक्स (GMT) क्या है?

  • वैश्विक स्तर पर सहमत न्यूनतम कर दर, जो वर्तमान में 15% सुझाई गई है, कंपनियों को वित्तीय हानि पहुँचाए बिना कर आधार क्षरण को कम कर सकती है।
  • GMT के माध्यम से, अग्रणी देश बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कम-कर क्षेत्राधिकार में लाभ स्थानांतरण पर अंकुश लगाना चाहते हैं, भले ही उनकी वास्तविक बिक्री कुछ भी रही हो।
  • कंपनियां अपने देशों में उच्च करों का भुगतान करने से बचने के लिये सॉफ्टवेयर, पेटेंट तथा IP रॉयल्टी जैसी अमूर्त संपत्तियों से होने वाली आय को कर-मुक्त देशों में स्थानांतरित कर रही हैं।
  • G-20 तथा OECD इस वैश्विक न्यूनतम कर पहल के संबंध में महत्त्वपूर्ण निर्णयों का नेतृत्व करेंगे।

BEPS का महत्त्व क्या है?

  • न्यायसंगत कर अंशदान: यह सुनिश्चित करता है कि जिन क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय निगम (MNEs) जहाँ अपना कारोबार करते हैं, वहाँ वे अपना उचित हिस्सा अदा करें। उदाहरण के लिये, एक वैश्विक कॉफी शृंखला को प्रत्येक देश में कर का भुगतान करना होगा जहाँ वह बिक्री करती है, न कि केवल उस देश में जहाँ उसका मुख्यालय है
  • राजकोषीय सुधार: यह सरकारों को विभिन्न अप्रत्याशित परिस्थितियों (मानव निर्मित या प्राकृतिक आपदाओं) से प्रभावित सार्वजनिक वित्त को सुधारने के लिये धन एकत्रित करने में सहायता प्रदान करती है।
    • कोई देश महामारी से प्रेरित ऋण को कम करने के लिये अतिरिक्त कर राजस्व का उपयोग कर सकता है। बढ़ी हुई कर आय से स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं को उन्नत करने या ब्रॉडबैंड पहुँच का विस्तार करने की अनुमति प्रदान करता है।
  • प्रतिस्पर्द्धी संतुलन: इससे छोटे एवं घरेलू व्यवसायों की कीमत पर बड़ी कंपनियों के कर लाभ सीमित होते हैं।
  • डिजिटल-प्रणाली से समन्वय: इस कर प्रणाली का ऑनलाइन वाणिज्य के साथ सामंजस्य है। जैसे किसी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म द्वारा उस जगह कर का भुगतान किया जाता है जहाँ ग्राहक खरीदारी करते हैं, चाहे उनके पास भौतिक स्टोर न हों।
  • विश्वव्यापी टीमवर्क: इसके तहत सीमा-पार कर चुनौतियों का समाधान करने के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता पर बल दिया जाता है।

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD):

  • OECD एक अंतर-सरकारी आर्थिक संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1961 में पेरिस, फ्राँस में की गई 
  • इसमें कुल 38 सदस्य देश हैं।
  • भारत इसका सदस्य नहीं है अपितु एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है।
  • इसका उद्देश्य आर्थिक प्रगति व विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करना है।
  • अधिकांश OECD सदस्य राष्ट्र उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ हैं एवं उन्हें विकसित देश माना जाता है।

वैश्विक कर सुधार पर भारत की स्थिति:

  • वैश्विक कर सुधार पर हस्ताक्षर: भारतीय बहुराष्ट्रीय उद्यमों को भारत द्वारा हस्ताक्षरित वैश्विक कर सुधार के अनुसार, किसी भी अतिरिक्त कर देयता की समीक्षा एवं लेखा-जोखा संबंधी कार्य शुरू करना होगा
    • उदाहरण के लिये, भारत वर्ष 2015 में वित्तीय लेखों के स्वचालित आदान-प्रदान पर बहुपक्षीय सक्षम प्राधिकरण समझौता (Multilateral Competent Authority Agreement on Automatic Exchange of Financial Account Information) में शामिल हुआ
    • इसका उद्देश्य अपने देश/क्षेत्राधिकार के वित्तीय संस्थानों से व्यापक स्तर पर वित्तीय जानकारी एकत्र करने के बाद इस वित्तीय जानकारी का आदान-प्रदान करना है
  • आम सहमति: आम सहमति वाले नियमों को लागू करने से उनका अनुपालन करना आसान हुआ है
    • भारत, नवीन कर कानूनों के व्यापक कार्यान्वयन पर बल देता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इससे मौजूदा समतुल्य लेवी (Equalisation Levy) से प्राप्त होने वाले राजस्व की तुलना में कम राजस्व प्राप्त न हो
  • बाज़ार क्षेत्राधिकार का पालन करना: भारत इस बात पर बल देता है कि विशेष रूप से विकासशील एवं उभरती अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में पर्याप्त तथा सतत् राजस्व आवंटन पर ध्यान देना चाहिये।
    • दो-स्तंभ वाली यह योजना, बाज़ारों को लाभ में बड़ा हिस्सा देने तथा लाभ आवंटन में मांग-पक्ष के तत्त्वों को ध्यान में रखने के भारत के रुख के अनुरूप है।
    • भारत ने आधार क्षरण और लाभ हस्तांतरण को रोकने के लिये कर संधि से संबंधित उपायों को लागू करने हेतु बहुपक्षीय संधि की पुष्टि की है।

नोट:

  • भारत ने वर्ष 2016 में गैर-निवासियों द्वारा ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं पर 6% शुल्क लगाना शुरू किया था। 1 अप्रैल, 2020 से, भारत में परिचालन करने वाली या स्थानीय बाज़ार तक पहुँच बनाने वाली विदेशी संस्थाओं द्वारा डिजिटल लेन-देन पर 2% शुल्क लगाया गया।

वैश्विक कर सुधार से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • संप्रभुता संबंधी मुद्दे: यह सुधार किसी राष्ट्र के अपनी कर नीतियों को निर्धारित करने के संप्रभु अधिकार का उल्लंघन कर सकता है।
    • वैश्विक न्यूनतम कर दर, देशों को उनके व्यक्तिगत हितों को बढ़ावा देने के लिये उपयोग किये जाने वाले नीतिगत साधन से वंचित कर सकती है।
  • कर प्रतिस्पर्द्धा को सीमित करना: कुछ लोग तर्क देते हैं कि कर प्रतिस्पर्द्धा के डर से सरकारें नागरिकों पर अत्यधिक कर लगाने से बचती हैं।
  • प्रभावशीलता: ऑक्सफैम जैसे संगठनों सहित आलोचकों ने सुधार की क्षमता पर सवाल उठाया है, उनका कहना है कि इससे टैक्स हैवन समाप्त नहीं होंगे, क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ आक्रामक कर नियोजन रणनीतियों में संलग्न हैं, जो विनियामक अंतराल और विसंगतियों का फायदा उठाती हैं।
    • उदाहरण के लिये एक बहुराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कंपनी बौद्धिक संपदा अधिकारों (जैसे पेटेंट या ट्रेडमार्क) को सीमित कर क्षेत्राधिकार में स्थित एक सहायक कंपनी को ऐसी कीमत पर बेच सकती है जो इन परिसंपत्तियों का कम मूल्यांकन करती है।

आगे की राह:

  • अनुकूल कार्यान्वयन: समझौते की भावना को बनाए रखते हुए देशों को अपने विशिष्ट आर्थिक संदर्भों के अनुसार नियमों को अनुकूलित करने की अनुमति देना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, किसी विकासशील देश को न्यूनतम कर दर के पूर्ण कार्यान्वयन से पहले एक रियायत अवधि (Grace Period) दी जा सकती है
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुदृढ़ करना: सीमा-पार जटिल कर मुद्दों से निपटने के लिये सूचना साझाकरण और संयुक्त लेखा-परीक्षण को उन्नत करने की आवश्यकता है।
    • जैसे कि वित्तीय लेखों के स्वचालित आदान-प्रदान पर बहुपक्षीय सक्षम प्राधिकरण समझौता (Multilateral Competent Authority Agreement on Automatic Exchange of Financial Accounts)
  • सार्वजनिक पारदर्शिता: बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को देशवार अपने परिचालनों की सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • उदाहरण, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की बड़ी कंपनी द्वारा अपने राजस्व अर्जन को सार्वजनिक करना और प्रत्येक देश में स्थापित इकाई में कर के भुगतान का प्रकटीकरण करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण (BEPS) वैश्विक स्तर पर देशों को किस प्रकार प्रभावित करता है? BEPS को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में देशों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के   

प्रिलिम्स

प्रश्न. समाचारों में कभी-कभी देखे जाने वाले 'आधार क्षय एवं लाभ स्थानांतरण (Base Erosion and Profit Shifting) पद का क्या संदर्भ है? (2016)

(a)संसाधन-संपन्न किंतु पिछड़े क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा खनन कार्य
(b)बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किये जाने वाले कर-अपवंचन पर प्रतिबंध लगाना
(c)बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किसी राष्ट्र के आनुवंशिक संसाधनों का दोहन
(d)विकास परियोजनाओं की योजना और कार्यान्वयन में पर्यावरणीय लागतों के विचारों का आभाव

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. यदि विगत कुछ दशक एशिया के विकास की कहानी के रहे, तो परवर्ती कुछ दशक अफ्रीका के हो सकते हैं। इस कथन के आलोक में, हाल के वर्षों में अफ्रीका में भारत के प्रभाव का परीक्ष्ण कीजिये। (2021)

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