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भारत में सार्वभौमिक बुनियादी साक्षरता का आकलन

  • 29 Nov 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, नव भारत साक्षरता कार्यक्रम, शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER), राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण

मेन्स के लिये:

सार्वभौमिक साक्षरता के मूल्यांकन के तरीके, सार्वभौमिक साक्षरता के लिये सरकारी रणनीतियाँ, साक्षरता स्तरों के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ।

स्रोत: इकोनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, जुलाई 2022 और जून 2023 के बीच आयोजित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के 79 वें दौर से पता चला है कि भारत में 15-29 आयु वर्ग के 95.9% व्यक्तियों के पास बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल है।

  • सर्वेक्षण में भारतीयों की साक्षरता और बुनियादी संख्यात्मक कौशल का आकलन किया गया है, जिसमें पढ़ने, लिखने और अंकगणितीय क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • ग्रामीण क्षेत्रों में 95.3% व्यक्तियों के पास बुनियादी साक्षरता और अंकगणित कौशल है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 97.4% है। 
    • विशेष रूप से, 97.4% ग्रामीण पुरुषों और 93.4% ग्रामीण महिलाओं के पास ये कौशल हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में 98% पुरुष और 96.7% महिलाएँ इस मानक को पूरा करती हैं।
  • मिज़ोरम (100%), गोवा (99.9%), और सिक्किम (99.9%) जैसे राज्य साक्षरता दर में आगे हैं, जबकि बिहार (91.9%) और उत्तर प्रदेश (92.3%) पीछे हैं।

नोट: NSS साक्षरता को किसी भी भाषा में एक सरल संदेश को पढ़ने, लिखने और समझने की क्षमता के रूप में परिभाषित करता है।

  • "सार्वभौमिक" शब्द का तात्पर्य सामान्यतः पूर्ण या लगभग पूर्ण कवरेज से है, जो आमतौर पर 100% के करीब होता है।
  • यूनेस्को के अनुसार, साक्षरता का दायरा पढ़ने, लिखने और गिनती से कहीं आगे तक फैला हुआ है; यह पहचान, समझ और संचार से जुड़ा एक सतत् कौशल है, जो हमारी तेज़ी से बदलती, सूचना-समृद्ध विश्व में डिजिटल, मीडिया और नौकरी-विशिष्ट कौशल तक विस्तारित हो रहा है।

साक्षरता और संख्यात्मकता दर बढ़ाने के लिये सरकार की रणनीतियाँ क्या हैं?

सार्वभौमिक बुनियादी साक्षरता कितनी सार्वभौमिक है? 

  • असंगत परिभाषाएँ: "बुनियादी साक्षरता" शब्द की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है। उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन साक्षरता को किसी भी भाषा में पढ़ने और लिखने की क्षमता के रूप में परिभाषित करता है, जो साक्षरता की बहुत ही संकीर्ण व्याख्या प्रतीत होती है।
  • आँकड़ों में असंगति: NSS के अनुसार, 95.9% युवाओं के पास बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल है, जो लगभग सार्वभौमिक दक्षता को दर्शाता है। 
    • हालाँकि, वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2023 एक विपरीत परिदृश्य को उजागर करती है, जिसमें कक्षा 10 या उससे नीचे के 14-18 वर्ष की आयु के 29% छात्र दूसरी कक्षा के स्तर पर पढ़ने में असमर्थ हैं।
  • पूर्वाग्रह: कई साक्षरता मूल्यांकन पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं, जहाँ कुछ जनसांख्यिकी ( जैसे, ग्रामीण आबादी, हाशिये पर रहने वाले समुदाय) का प्रतिनिधित्व कम होता है। 
    • जिन व्यक्तियों ने कभी औपचारिक शिक्षा में दाखिला नहीं लिया है, उनके लिये NSS के प्रश्न, बिना किसी औपचारिक परीक्षण के, स्व-रिपोर्टिंग के आधार पर उनकी पढ़ने और लिखने की क्षमता का निर्धारण करते हैं।
    • औपचारिक शिक्षा में नामांकित लोगों के लिये, उनकी पढ़ने और लिखने की क्षमता की जाँच किये बिना, यह मान लिया गया कि उन्होंने कम-से-कम पूर्व-प्राथमिक या कक्षा 1 तक की शिक्षा पूरी कर ली है। 
      • यह विधि बुनियादी साक्षरता कौशल को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं कर सकती है।
  • दिव्यांगता बहिष्करण: मौजूदा ढाँचे में अक्सर दिव्यांग व्यक्तियों की ज़रूरतों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। 
    • इस जनसांख्यिकी के लिये साक्षरता कार्यक्रमों का लेखा-जोखा न रखने से बुनियादी साक्षरता हासिल करने में उनकी विशिष्ट चुनौतियों और बाधाओं को समझने में अंतराल उत्पन्न होता है।

भारत में साक्षरता स्तर के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ क्या हैं?

  • आर्थिक विकास: उच्च साक्षरता दर कार्यबल उत्पादकता और नवाचार को बढ़ाकर आर्थिक विकास में योगदान देती है।
    • साक्षर जनसंख्या कुशल श्रम में संलग्न होने के लिये बेहतर रूप से सुसज्जित है, जो भारत के ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिये आवश्यक है।
  • सामाजिक सशक्तीकरण: साक्षरता व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं को सूचित निर्णय लेने के लिये आवश्यक सूचना और संसाधनों तक पहुँच प्रदान करके सशक्त बनाती है।
  • यह समुदायों में गरीबी के स्तर को कम करने और स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • विश्व बैंक का कहना है कि सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा से अत्यधिक गरीबी में 12% की कमी आ सकती है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय भिन्नताएँ मौज़ूद हैं, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में साक्षरता दर कम है, जो समग्र राष्ट्रीय प्रगति में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
  • दीर्घकालिक विकास लक्ष्य: निष्कर्ष संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (SGD-4) के अनुरूप हैं।
    • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना सतत् विकास और सामाजिक समानता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • स्वास्थ्य और कल्याण: साक्षरता स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाती है क्योंकि साक्षर व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधी जानकारी को बेहतर ढंग से समझते हैं, सेवाओं तक पहुँच और सूचित विकल्प सुनिश्चित करते हैं। 
    • शिक्षित महिलाओं द्वारा अपने बच्चों का टीकाकरण कराने की संभावना 50% अधिक होती है, जिससे भावी पीढ़ियों के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • सामाजिक सामंजस्य और स्थिरता: साक्षरता आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करके और सामाजिक तनाव को कम करके सामाजिक सामंजस्य को बढ़ाती है। 
    • इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज ट्रस्ट (ISST) ने पाया कि जिन समुदायों में साक्षरता दर अधिक है, उनमें हिंसा और सामाजिक अशांति का स्तर कम है।

किन रणनीतियों द्वारा भारत में साक्षरता की दर बढ़ सकती है?

  • मानकीकृत परिभाषाएँ और मापदंड: बुनियादी साक्षरता की सार्वभौमिक परिभाषा के साथ मूल्यांकन के लिये मानकीकृत मापदंड स्थापित करने से विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति को मापने हेतु अधिक सुसंगत ढाँचा बनाने में मदद मिल सकती है।
  • समावेशी मूल्यांकन पद्धतियाँ: ऐसे मूल्यांकन उपकरण विकसित करने चाहिये जो विविध शिक्षण वातावरणों एवं समूहों (जिनमें विकलांग लोग भी शामिल हैं) को ध्यान में रखते हुए साक्षरता स्तरों की अधिक सटीक तस्वीर प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • शिक्षक प्रशिक्षण को मज़बूत बनाना: शिक्षक प्रशिक्षण में निवेश करने से शिक्षकों को आवश्यक कौशल (खासकर संसाधन-सीमित ग्रामीण क्षेत्रों में) प्राप्त होते हैं। निरंतर व्यावसायिक विकास से शिक्षकों को फिनलैंड और सिंगापुर जैसी सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में अपडेट रखा जा सकता है।
  • सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम: शिक्षा को बढ़ावा देने में स्थानीय समुदायों को शामिल करने वाली पहल से सीखने की संस्कृति को बढ़ावा मिलने के साथ नामांकन दर में वृद्धि हो सकती है।
    • सर्व शिक्षा अभियान (SSA) का उद्देश्य समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देना है और इससे हाशिये पर स्थित समूहों को सहायता मिलती है।
  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: शैक्षिक सामग्री वितरण के लिये स्वयं प्रभा पोर्टल जैसे डिजिटल प्लेटफाॅर्मों का उपयोग करने से विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों में शिक्षण संसाधनों तक पहुँच बढ़ सकती है।
    • युवाओं को इंटरैक्टिव शिक्षण अनुभव प्रदान करने के लिये E-PG पाठशाला जैसे मोबाइल शिक्षण एप्लिकेशन विकसित किये जा सकते हैं।
    • डिजिटल इंडिया पहल का उद्देश्य डिजिटल विभाजन को कम करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि छात्रों की ऑनलाइन संसाधनों तक पहुँच हो।
  • शिक्षा की गुणवत्ता: कोठारी आयोग ने ऐसे पाठ्यक्रम की वकालत की जो समाज एवं अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के लिये प्रासंगिक हो। 
    • व्यावहारिक कौशल एवं समकालीन ज्ञान को शामिल करने के लिये पाठ्यक्रम को अद्यतन करने से छात्रों को अधिक रोज़गार योग्य बनने एवं अपने समुदायों में अधिक सक्रिय होने में मदद मिल सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: सार्वभौमिक साक्षरता की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। आकलन कीजिये कि भारत में युवा साक्षरता सामाजिक-आर्थिक विकास को किस प्रकार प्रभावित करती है एवं इससे संबंधित चुनौतियों का समाधान करने हेतु रणनीतियाँ बताइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. संविधान के निम्नलिखित प्रावधानों में से कौन से प्रावधान भारत की शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत
  2.  ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
  3.  पाँचवीं अनुसूची
  4.  छठी अनुसूची
  5.  सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (2021)

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