शासन व्यवस्था
मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक, 2021
- 16 Feb 2021
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा ने "फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटर" (fly-By-Night Operator) द्वारा धोखाधड़ी से कानून का दुरुपयोग किये जाने की जाँच के लिये मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक [Arbitration and Conciliation (Amendment) Bill], 2021 पारित किया है।
- यह विधेयक नवंबर 2020 में जारी मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अध्यादेश [Arbitration and Conciliation (Amendment) ordinance] की जगह लेगा।
प्रमुख बिंदु
विधेयक की विशेषताएँ:
- मध्यस्थों की योग्यता:
- इस विधेयक में मध्यस्थों की योग्यता को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की 8वीं अनुसूची से परे रखा गया है। इस अधिनियम में एक मध्यस्थ का प्रावधान है:
- उसे अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अंतर्गत एक वकील होना चाहिये, जिसके पास 10 साल का अनुभव हो, या
- भारतीय विधिक सेवा का एक अधिकारी होना चाहिये।
- इस विधेयक के अनुसार, मध्यस्थों की योग्यता का निर्धारण एक मध्यस्थता परिषद द्वारा निर्धारित नियमों द्वारा किया जाएगा।
- पुरस्कार पर बिना शर्त रोक:
- यदि पुरस्कार भ्रष्टाचार के आधार पर दिया जा रहा है तो अदालत मध्यस्थता कानून की धारा 34 के तहत की गई अपील पर अंतिम फैसला आने तक इस पुरस्कार पर बिना शर्त रोक लगा सकती है।
लाभ:
- यह विधेयक मध्यस्थता प्रक्रिया में सभी हितधारकों के बीच समानता लाएगा।
- इससे सभी हितधारकों को धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से प्रेरित मध्यस्थता पुरस्कारों के प्रवर्तन को बिना शर्त रोकने का अवसर मिलता है।
- मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के प्रावधानों का दुरुपयोग करदाताओं से पैसे वसूलने के लिये किया जा रहा था जिसे इस विधेयक द्वारा रोका जाएगा।
कमियाँ:
- भारत पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों और समझौतों के प्रवर्तन के मामले में पीछे है। यह विधेयक मेक इन इंडिया (Make in India) अभियान की भावना को बाधित और इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स (Ease of Doing Business Index) की रैंकिंग में गिरावट कर सकता है।
- भारत का उद्देश्य घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनना है। इन विधायी परिवर्तनों के कार्यान्वयन के माध्यम से वाणिज्यिक विवादों के समाधान में अब अधिक समय लग सकता है।
भारतीय मध्यस्थता परिषद
- संवैधानिक पृष्ठभूमि: अनुच्छेद 51 के अनुसार, भारत निम्नलिखित संवैधानिक आदर्शों को पालन करने के लिये प्रतिबद्ध है:
- संगठित लोगों के एक-दूसरे के प्रति व्यवहार में अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाना।
- अंतर्राष्ट्रीय विवादों के निपटारे के लिये मध्यस्थता को प्रोत्साहित करना। ए.सी.आई. इस संवैधानिक दायित्व की प्राप्ति हेतु एक कदम है।
- उद्देश्य: मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत मध्यस्थता, सुलह तथा अन्य विवादों के निवारण के लिये एक निवारण तंत्र के रूप में भारतीय मध्यस्थता परिषद (Arbitration Council of India) का प्रावधान करना।
- मध्यस्थता: यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें विवाद को एक स्वतंत्र तीसरे पक्ष को नियुक्त कर सुलझाया जाता है जिसे मध्यस्थ (Arbitrator) कहा जाता है। मध्यस्थ समाधान पर पहुँचने से पहले दोनों पक्षों को सुनता है।
- सुलह: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विवादों के सुलह के लिये एक समझौताकार (Conciliator) को नियुक्त किया जाता है। यह विवादित पक्षों को समझौते पर पहुँचने में मदद करता है। बिना मुकदमे के विवाद का निपटारा करना एक अनौपचारिक प्रक्रिया है। इस प्रकार से तनाव को कम कर, मुद्दों की व्याख्या कर, तकनीकी सहायता आदि द्वारा सुलह कराया जाता है।
- ACI की संरचना:
- ACI में एक अध्यक्ष होगा, जिसे:
- सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश; या
- उच्च न्यायालय का न्यायाधीश; या
- उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश; या
- मध्यस्थता के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाला एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होना चाहिये।
- अन्य सदस्यों में सरकार द्वारा नामित लोगों के अतिरिक्त जाने-माने शिक्षाविद्, व्यवसायी आदि शामिल किये जाएंगे।
- ACI में एक अध्यक्ष होगा, जिसे:
- मध्यस्थों की नियुक्ति: इस अधिनियम के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय मध्यस्थ संस्थाओं को नामित कर सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नामित संस्था की नियुक्ति अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के लिये की जाएगी।
- उच्च न्यायालय द्वारा नामित संस्था की नियुक्ति घरेलू मध्यस्थता के लिये की जाएगी।
- यदि कोई मध्यस्थ संस्था उपलब्ध नहीं हैं तो मध्यस्थ संस्थाओं के कार्यों को करने के लिये संबंधित उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश मध्यस्थों का एक पैनल बना सकता है।
- मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये किये गए आवेदन को 30 दिनों के भीतर निपटाया जाना आवश्यक है।