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शासन व्यवस्था

मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019

  • 05 Sep 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम [Arbitration and Conciliation (Amendment) Act], 2019 के विभिन्न प्रावधानों को लागू करने के संबंध में एक आवश्‍यक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई है।

अधिसूचना

केंद्र सरकार मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 की उप-धारा 1 के तहत प्राप्त अधिकारों का उपयोग कर 30 अगस्त, 2019 की तिथि को मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 के निम्‍नलिखित प्रावधानों के लागू होने के बारे में निर्दिष्‍ट कर सकती है-

  1. धारा 1
  2. धारा 4 से लेकर धारा 9 तक (दोनों ही इनमें शामिल)
  3. धारा 11 से लेकर धारा 13 तक (दोनों ही इनमें शामिल)
  4. धारा 15

मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 की धारा 1 की उप-धारा 2 में यह उल्‍लेख किया गया है-

‘जैसा कि इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है उसके अनुसार ही संचित करें। यह उस तारीख को अमल में आएगा जिसे केंद्र सरकार द्वारा सरकारी राजपत्र में निर्दिष्‍ट किया जा सकता है। इस अधिनियम के विभिन्‍न प्रावधानों के लिये अलग-अलग तिथियाँ तय की जा सकती है। इस अधिनियम के प्रभावी होने से संबंधित इस तरह के किसी भी प्रावधान के बारे में किसी भी संदर्भ को उस प्रावधान के प्रभावी होने के संदर्भ के रूप में समझा जा सकता है।’

  • उपर्युक्‍त अधिसूचना को ध्‍यान में रखते हुए मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 1996 की धारा 17, 23, 29A, 34, 37, 45 और 50 को संशोधित कर दिया गया है। यही नहीं, तीन नई धाराओं यथा; 42A, 42B और 87 को भी अधिनियम में शामिल किया गया है।
  • धारा 87 को 23 अक्‍तूबर, 2015 से ही इसमें शामिल माना गया है, ताकि मध्‍यस्‍थता एवं संबंधित अदालती कार्यवाही से जुड़ी कथित निर्दिष्‍ट तिथि को मान्‍य माने जाने के बारे में स्‍पष्‍टीकरण दिया जा सके।

पृठभूमि

  • 9 अगस्‍त, 2019 को मध्‍यस्‍थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2019 को अधिसूचित किया गया था।
  • यह विवादों के समाधान के लिये संस्‍थागत मध्‍यस्‍थता को प्रोत्‍साहित करने के सरकार के प्रयास का एक हिस्‍सा है। यह भारत को मज़बूत वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution-ADR) व्‍यवस्‍था का केंद्र बनाता है।

वैकल्पिक विवाद समाधान

(Alternative Dispute Resolution-ADR)

  • कानूनी तथा गैर-कानूनी मामलों की बढ़ती संख्या को मद्देनज़र रखते हुए अदालतों पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव को कम करने के लिये कुछ विशेष मामलों को वैकल्पिक तरीकों से सुलझाया जाना चाहिये।
  • इस संदर्भ में पंचाट, मध्यस्थता तथा समाधान (इन्हें संयुक्त रूप से पंचाट तंत्र कहा जाता है) कुछ ऐसे उपाय हैं जो वैकल्पिक क्षतिपूर्ति प्रणाली के आधार-स्तंभों के रूप में उपस्थित हैं।

भारतीय मध्‍यस्‍थता परिषद

Arbitration Council of India:

इस अधिनियम में एक स्‍वतंत्र संस्‍था भारतीय मध्‍यस्‍थता परिषद (Arbitration Council of India-ACI) बनाने का प्रावधान है।

कार्य:

  • यह संस्‍था मध्‍यस्‍थता करने वालें संस्‍थानों को ग्रेड देगी और नियम तय करके मध्‍यस्‍थता करने वालों को मान्‍यता प्रदान करेगी।
  • साथ ही, वैसे सभी कदम उठाएगी जो मध्‍यस्‍थता, सुलह तथा अन्‍य वैकिल्‍पक समाधान व्‍यवस्‍था को बढ़ावा देंगे।
  • इसका उद्देश्‍य मध्‍यस्‍थता तथा वैकल्पिक विवाद समाधान व्‍यवस्‍था से जुड़े सभी मामलों में पेशेवर मानकों को बनाने के लिये नीति और दिशा-निर्देश तय करना है।
  • यह परिषद सभी मध्‍यस्‍थता वाले निर्णयों का इलेक्‍ट्रॉनिक डिपोज़िटरी रखेगी।

परिषद की सदस्य संरचना

  • ACI निकाय निगम (Body Corporate) के रूप में कार्य करेगी। ACI का अध्‍यक्ष वह व्‍यक्ति होगा जो उच्‍चतम न्‍यायालय का न्‍यायाधीश रहा हो या किसी उच्‍च न्‍यायालय का मुख्‍य न्‍यायाधीश और न्‍यायाधीश रहा हो।
  • अन्‍य सदस्‍यों में सरकारी नामित लोगों के अतिरिक्‍त जाने-माने शिक्षाविद् आदि शामिल किये जाएंगे।

मध्यस्थों की नियुक्ति:

  • 1996 के अधिनियम के तहत मध्यस्थ नियुक्त करने के लिये पक्षों को स्वतंत्र रखा गया था।
  • किसी नियुक्ति पर असहमति के मामले में संबंधित पक्ष को उच्चतम न्यायालय या संबंधित उच्च न्यायालय, या किसी भी व्यक्ति या संस्थान द्वारा नामित किसी व्यक्ति या संस्था को मध्यस्थ नियुक्त करने का अनुरोध कर सकती हैं।

स्रोत: PIB

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