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शासन व्यवस्था

राज्य कानूनों की वार्षिक समीक्षा 2023

  • 06 May 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बजट, लोक लेखा समिति, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, अध्यादेश, संगठित अपराध, लोकायुक्त, वस्तु एवं सेवा कर

मेन्स के लिये:

लोक लेखा समिति की प्रभावशीलता, बजटीय पारदर्शिता एवं जाँच, विधायी प्रक्रिया की दक्षता, गवर्नेंस और शासन सुधार

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च ने हाल ही में "राज्य कानूनों की वार्षिक समीक्षा 2023" रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में पूरे भारत में राज्य विधानसभाओं के कामकाज़ का गहन विश्लेषण किया गया तथा उनके प्रदर्शन के विभिन्न प्रमुख पहलुओं पर प्रकाश डाला गया।

नोट:

  • PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च, जिसे आमतौर पर PRS कहा जाता है, एक भारतीय गैर-लाभकारी संगठन है जिसे भारतीय विधायी प्रक्रिया को बेहतर जानकारी, अधिक पारदर्शी और भागीदारीपूर्ण बनाने के लिये एक स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान के रूप में सितंबर 2005 में स्थापित किया गया था। PRS का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु क्या हैं?

    • बिना चर्चा के बजट पारित होनाः 
      • वर्ष 2023 में 10 राज्यों द्वारा प्रस्तावित 18.5 लाख करोड़ रुपए के बजट का लगभग 40% बिना किसी बहस के अनुमोदित किया गया था।
        • मध्य प्रदेश में, 3.14 लाख करोड़ रुपए के बजट का 85% बिना चर्चा के पारित किया गया, जो सूची में शीर्ष पर है।
  • वित्त मंत्री द्वारा बजट की घोषणा के बाद, यह सामान्य चर्चा के लिये चला जाता है। इसके बाद समितियों द्वारा मांगों की जाँच की जाती है।
    • इसके बाद मंत्रालय के खर्च पर चर्चा और मतदान होता है। 
  • संसद में बजट छह चरणों से गुजरता है: प्रस्तुति, सामान्य चर्चा, जाँच, मतदान, विनियोग विधेयक पारित करना, वित्त विधेयक पारित करना।
      • केरल, झारखंड और पश्चिम बंगाल क्रमशः 78%, 75% तथा 74% के साथ क्रमशः दूसरे तीसरे और चौथे स्थान पर रहे। हालाँकि, 10 राज्यों में जहाँ डेटा उपलब्ध था, 36% व्यय मांगों पर मतदान किया गया और बिना चर्चा के बजट को पारित कर दिया गया।
      • यह प्रवृत्ति राज्य के वित्त की पारदर्शिता और जाँच के बारे में चिंता उत्पन्न करती है।
    • लोक लेखा समिति (PAC):
      • 2023 में PAC ने 24 बैठकें कीं और विचाराधीन राज्यों में औसतन 16 रिपोर्ट पेश कीं।
      • 13 राज्यों में से पाँच (बिहार, दिल्ली, गोवा, महाराष्ट्र और ओडिशा) में PAC ने कोई रिपोर्ट पेश नहीं की।
      • महाराष्ट्र में PAC ने पूरे वर्ष न तो कोई बैठक बुलाई और न ही कोई रिपोर्ट जारी की।
      • जवाबदेही बनाए रखने में राज्यों के बीच व्यापक असमानता पर ज़ोर देने वाली 95 रिपोर्टें पेश करके तमिलनाडु सबसे आगे रहा।
      • बिहार और उत्तर प्रदेश में PAC की महत्त्वपूर्ण बैठकें हुईं तथा एक भी रिपोर्ट पेश नहीं की गई।
    • त्वरित विधायी कार्रवाई:
      • 44% बिल या तो पेश किये जाने के उसी दिन, या उससे अगले दिन पारित किये गए।
        • यह आँकड़ा 2022 (56%) और 2021 (44%) में देखे गए रुझान के अनुरूप है 
      • गुजरात, झारखंड, मिज़ोरम, पुडुचेरी और पंजाब ने सभी विधेयक उसी दिन पारित कर दिये, जिस दिन उन्हें पेश किया गया था।
        • 28 राज्य विधानसभाओं में से 13 में विधेयक पेश होने के पाँच दिनों में पारित कर दिये गए।
      • केरल और मेघालय को अपने 90% से अधिक बिलों को पारित करने में पाँच दिनों से अधिक का समय लगा, जो एक धीमी लेकिन संभावित रूप से अधिक विचारशील प्रक्रिया को दर्शाता है। 
    • अध्यादेश:
      • 20 अध्यादेशों के साथ उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है, उसके बाद आंध्रप्रदेश (11) और महाराष्ट्र (9) आते हैं।
        • अध्यादेशों में नए विश्वविद्यालयों की स्थापना, सार्वजनिक परीक्षाओं और स्वामित्व नियमों सहित कई विषयों को शामिल किया गया।
        • केरल में वर्ष 2022 से 2023 तक अध्यादेशों में उल्लेखनीय कमी ऐसे उपायों की आवश्यकता और प्रभावशीलता पर प्रश्न उठाती है।
  • कानून बनाने का अवलोकन:
    • वर्ष 2023 में प्रत्येक राज्य ने औसतन 18 विधेयक पारित किये, बजट के लिये विनियोग विधेयकों की गिनती नहीं की।
      • महाराष्ट्र 49 विधेयकों के साथ शीर्ष पर रहा जबकि दिल्ली और पुडुचेरी में केवल 2-2 विधेयक पारित हुए।
    • संविधान के अनुसार, हालाँकि राज्यपाल को विधेयकों पर यथाशीघ्र सहमति देनी होती है, 59% विधेयकों को पारित होने के एक महीने के भीतर ही मंज़ूरी मिल जाती है। जबकि असम, नगालैंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में विलंब देखा गया।
      • पारित किये गए 500 से अधिक विधेयकों में से केवल 23 को पारित होने से पहले गहन परीक्षण के लिये विधायी समितियों को भेजा गया था।

विषयों पर आधारित अन्य पारित प्रमुख कानून क्या हैं? 

  • स्वास्थ्य:
  • कानून एवं न्याय:
    • संगठित अपराध से निपटने के लिये हरियाणा और राजस्थान ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 (MCOCA) के आधार पर कानून प्रस्तुत किया।
    • गुजरात सार्वजनिक स्थान पर विरोध प्रदर्शन निषेध विधेयक, 2023 सार्वजनिक स्थान पर विरोध प्रदर्शन करने और आंदोलन करने पर रोक लगाता है, जिससे सार्वजनिक आंदोलन में बाधा उत्पन्न हो सकती है, सड़कें अवरुद्ध हो सकती हैं या अन्य कानून तथा व्यवस्था संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
  • भूमि:
    • आंध्र प्रदेश ने आवंटित भूमि (स्थानांतरण का निषेध) अधिनियम, 1977 में भी संशोधन किया, जिसने भूमिहीन गरीब लोगों को खेती के लिये सरकार द्वारा सौंपी गई भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगा दी गई।
    • हिमाचल प्रदेश ने अनुमेय जोत की गणना में लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिये अपने हिमाचल प्रदेश भू-जोत सीमा अधिनियम, 1972 में संशोधन किया।
  • श्रम एवं रोज़गार:
    • राजस्थान द्वारा सामाजिक सुरक्षा और डिलीवरी कर्मियों जैसे गिग/प्लेटफॉर्म श्रमिकों के कल्याण के लिये यह कानून बनाया गया।
    • राजस्थान द्वारा नये कानून के तहत न्यूनतम गारंटीयुक्त रोज़गार की व्यवस्था की गई।
  • स्थानीय शासन:
    • छत्तीसगढ़ ने शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों को पट्टे का अधिकार प्रदान करने के लिये एक कानून छत्तीसगढ़ शहरी क्षेत्रों के बेघर व्यक्तियों को पट्टा अधिकार अधिनियम, 2023 बनाया, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा सुरक्षा मानकों को बनाए रखते हुए उनके पुनर्वास एवं पुनर्वास को सुनिश्चित करना है।

बेहतर प्रशासन और जवाबदेही हेतु कानून में सुधार कैसे किया जा सकता है?

  • PAC को मज़बूत बनाना:
    • बैठकों की आवृत्ति, रिपोर्टिंग आवश्यकताओं और रिपोर्टिंग समय-सीमा सहित दिशानिर्देशों एवं प्रोटोकॉल के साथ PAC संचालन को मानकीकृत किया जाना चाहिये।
    • PAC प्रदर्शन की नियमित रूप से निगरानी और मूल्यांकन करने के लिये तंत्र लागू करने चाहिये। सभी व्यवस्थाओं में ठोस चर्चा और रिपोर्ट तालिकाबद्ध रूप में सुनिश्चित करके PAC सदस्यों के के समक्ष अधिक जवाबदेही को प्रस्तुत करनी चाहिये।
  • त्वरित निर्णय लेना:
    • राज्यपाल की सहमति के लिये समय-सीमा को निर्धारित करते हुए एक विधायी ढाँचा स्थापित किया जाए:
    • यह केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग (1988) की सिफारिशों के अनुरूप है, जिसने विधेयकों पर समय पर निर्णय लेने पर ज़ोर दिया था।
    • पारदर्शिता के लिये राज्यपाल को, सहमति देने में की गई देरी के लिये स्पष्ट और विशिष्ट कारण बताने का आदेश दिया जाए।
  • विधायी समीक्षा: 
    • विधायिका में पारित होने से पूर्व बजट पर गहन चर्चा एवं बहस का समर्थन किया जाए। 
    • केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग ने राज्य वित्त आयोगों की भूमिका को दृढ़ करने तथा यह सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया है कि बजट पर विधायी चर्चाओं में उनकी अनुशंसाओं पर उचित ध्यान दिया जाए।
  • विधायी कार्यप्रणाली:
    • संविधान के कामकाज़ की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग अनुशंसा करता है:
      • सांसदों को लोकपाल द्वारा की गई सार्वजनिक जाँच के अधीन होना चाहिये।
      • 70 से कम सदस्यों वाले राज्य विधानमंडलों को वार्षिक तौर पर न्यूनतम 50 दिनों के लिये एकत्रित होना चाहिये; तथा जिन विधानमंडलों पास अधिक सदस्य हैं उन्हें कम से कम 90 दिनों के लिये एकत्र होना चाहिये।
        • राज्यसभा और लोकसभा को क्रमशः न्यूनतम 100 व 120 दिनों के लिये सत्र आयोजित करने चाहिये।

निष्कर्ष:

  • ये निष्कर्ष प्रभावी शासन सुनिश्चित करने हेतु, राज्य विधानसभाओं में पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
  • राज्य स्तर पर लोकतांत्रिक सिद्धांतों एवं कुशल शासन को बनाए रखने के लिये बजटीय प्रक्रियाओं, उत्तरदायित्व, विधायी दक्षता तथा अध्यादेशों के उपयोग में असमानताओं को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्र. विधान सभाओं में राज्यों के बजट को जल्दबाज़ी में पारित करने की प्रवृत्ति, जैसा कि भारतीय राज्यों में 2023 के बजट पारित होने में देखा गया है, पारदर्शिता, जवाबदेही और राजकोषीय ज़िम्मेदारी को कैसे प्रभावित करती है?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना। 
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना। 
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना। 
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न . जब वार्षिक केंद्रीय बजट लोकसभा द्वारा पारित नहीं किया जाता है, (2011)

(a) बजट को संशोधित किया जाता है और फिर से प्रस्तुत किया जाता है,
(b) बजट को सुझावों के लिये राज्य सभा में भेजा जाता है,
(c) केंद्रीय वित्तमंत्री को इस्तीफा देने के लिये कहा जाता है,
(d) प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का इस्तीफा सौंपते हैं,

उत्तर: (d)


प्रश्न. केंद्र सरकार के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. राजस्व विभाग संसद में पेश किये जाने वाले केंद्रीय बजट की तैयारी के लये ज़िम्मेदार है।
  2. भारत की संसद की अनुमति के बिना भारत की संचित निधि से कोई भी राशि नहीं निकाली जा सकती।
  3. सार्वजनिक खाते से किये गए सभी संवितरणों के लिये भी भारत की संसद से प्राधिकरण की आवश्यकता होती है।

ऊपर दिये गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग के लिये आवश्यक शर्तों की चर्चा कीजिये। राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों को विधायिका के समक्ष रखे बिना पुन: प्रख्यापित करने की वैधता पर चर्चा कीजिये। (2022) 

प्रश्न.विभिन्न स्तरों पर सरकारी प्रणाली की प्रभावशीलता और शासन प्रणाली में लोगों की भागीदारी अन्योन्याश्रित हैं।” भारत के संदर्भ में उनके संबंधों की चर्चा कीजिये। (2016)

प्रश्न. उदारीकरण के बाद की अवधि के दौरान बजट बनाने के संदर्भ में सार्वजनिक व्यय प्रबंधन भारत सरकार के लिये एक चुनौती है। स्पष्ट कीजिये। (2019)

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