अमूल: भारत के डेयरी क्षेत्र का प्रमुख स्तंभ | 07 Mar 2024
प्रिलिम्स के लिये:आनंद पैटर्न, श्वेत क्रांति, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB), विश्व खाद्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय पशुधन मिशन मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था में डेयरी और पशुधन क्षेत्र की भूमिका, इस क्षेत्र से संबंधित मुद्दे और इसके संवर्द्धन के लिये की गई पहल |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (Gujarat Cooperative Milk Marketing Federation- GCMMF) के स्वर्ण जयंती समारोह में भाग लिया और आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड (अमूल) की सफलता पर प्रकाश डाला जो GCMMF का हिस्सा है।
अमूल का इतिहास क्या है?
- अमूल की स्थापना वर्ष 1946 में गुजरात के आनंद में कैरा डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड के रूप में की गई थी।
- इसकी स्थापना त्रिभुवनदास पटेल द्वारा मोरारजी देसाई और सरदार वल्लभभाई पटेल के सहयोग से की गई थी।
- वर्ष 1950 में उक्त सहकारी द्वारा उत्पादित डेयरी उत्पादों के लिये अमूल (आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड) को एक ब्रांड के रूप में गठित किया गया।
- अमूल का प्रबंधन GCMMF द्वारा किया जाता है, जिसमें गुजरात के 3.6 मिलियन से अधिक दुग्ध उत्पादकों का संयुक्त स्वामित्व है।
- अमूल ने सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से लघु उत्पादकों को सशक्त बनाने के लिये डिज़ाइन किये गए एक आर्थिक संगठनात्मक मॉडल, आनंद पैटर्न को अपनाने का बीड़ा उठाया है।
- आनंद पैटर्न एक आर्थिक संगठनात्मक मॉडल है जिसे अमूल ने अपनाने का नेतृत्व किया। इस मॉडल का उद्देश्य सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से लघु दुग्ध उत्पादकों को सशक्त बनाना था।
- यह दृष्टिकोण उत्पादकों के एकीकरण को बढ़ावा देता है और निर्णय करने में वैयक्तिक स्वायत्तता को संरक्षित करते हुए बड़े पैमाने के लाभ अर्जित करने में सहायता प्रदान करता है।
- अमूल की सफलता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है जो सहकारिता अर्थशास्त्र और ग्रामीण विकास के संबंध में एक केस स्टडी के रूप में भूमिका निभा रहा है।
- अमूल ने भारत की श्वेत क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य दुग्ध उत्पादन बढ़ाना तथा भारत को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना था।
- अमूल ने वर्ष 1955 में दुग्ध पाउडर निर्माण की शुरुआत के साथ भारत में श्वेत क्रांति में अहम भूमिका निभाई।
- 18,000 से अधिक दुग्ध सहकारी समितियों और 36,000 से अधिक किसानों के नेटवर्क के साथ, वर्तमान में अमूल उत्पादों का 50 से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है। प्रतिदिन 3.5 करोड़ लीटर से अधिक दुग्ध का प्रसंस्करण करते हुए, अमूल ने पशुपालकों को 200 करोड़ रुपए से अधिक का ऑनलाइन भुगतान किया।
भारत की श्वेत क्रांति या ऑपरेशन फ्लड क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- वर्गीस कुरियन ('भारत में श्वेत क्रांति के जनक') की अध्यक्षता में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना वर्ष 1965 में भारत के डेयरी उद्योग में क्रांति लाने के लिये की गई थी। सफल "आनंद पैटर्न" से प्रेरित होकर, NDDB द्वारा वर्ष 1970 में श्वेत क्रांति शुरू की गई जिसे ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों को शहरी उपभोक्ताओं से जोड़ा गया।
- इस पहल ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश में बदल दिया, जिससे दुग्ध उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और इसकी प्रबंधन दक्षता में भी सुधार हुआ।
- ऑपरेशन फ्लड ने डेयरी की कमी वाले राष्ट्र को दुग्ध उत्पादन में वैश्विक नेता में बदल दिया।
- तीन दशकों से अधिक समय में देशव्यापी ऑपरेशन फ्लड तीन चरणों में चलाया गया।
- वर्गीस कुरियन ('भारत में श्वेत क्रांति के जनक') की अध्यक्षता में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना वर्ष 1965 में भारत के डेयरी उद्योग में क्रांति लाने के लिये की गई थी। सफल "आनंद पैटर्न" से प्रेरित होकर, NDDB द्वारा वर्ष 1970 में श्वेत क्रांति शुरू की गई जिसे ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों को शहरी उपभोक्ताओं से जोड़ा गया।
- ऑपरेशन फ्लड के चरण:
- चरण-1(1970-1980):
- विश्व खाद्य कार्यक्रम के माध्यम से यूरोपीय संघ (तत्कालीन यूरोपीय आर्थिक समुदाय) द्वारा उपहार में दिये गए स्किम्ड मिल्क पाउडर एवं बटर ऑयल की बिक्री से वित्त पोषण किया जाता है।
- ऑपरेशन फ्लड द्वारा उपभोक्ताओं को 18 मिल्कशेडों के माध्यम से प्रमुख महानगरीय शहरों से जोड़ा गया।
- ग्राम सहकारी समितियों की एक आत्मनिर्भर प्रणाली की नींव की शुरुआत की गई।
- चरण-II (1981-1985):
- मिल्कशेडों को 18 से बढ़ाकर 136 किया गया और साथ ही 290 शहरी बाज़ारों में आउटलेट्स का विस्तार किया गया।
- 43,000 ग्राम सहकारी समितियों की एक आत्मनिर्भर प्रणाली स्थापित की, जिसमें 4.25 मिलियन दुग्ध उत्पादक शामिल थे।
- आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देते हुए, घरेलू दुग्ध पाउडर उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- चरण-III (1985-1996):
- डेयरी सहकारी समितियों को दुग्ध की खरीद और विपणन के लिये बुनियादी ढाँचे का विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण करने में सक्षम बनाया गया।
- पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं, चारा और कृत्रिम गर्भाधान पर ज़ोर दिया गया।
- वर्ष 1988-89 में 30,000 नई डेयरी सहकारी समितियाँ जोड़ी गईं और साथ ही मिल्कशेडों की संख्या 173 तक पहुँच गई।
- चरण-1(1970-1980):
- ऑपरेशन के बाद बाढ़:
- वर्ष 1991 में भारत में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण सुधार हुए, जिससे डेयरी सहित विभिन्न क्षेत्रों में निजी भागीदारी की अनुमति प्राप्त हुई।
- माल्टेड उत्पादों को छोड़कर, दुग्ध उत्पादों में 51% तक की विदेशी हिस्सेदारी की अनुमति दी गई थी।
- प्रारंभिक चरण में अनियमित डेयरियों का प्रसार देखा गया, जिसके परिणामस्वरूप मिलावटी एवं दूषित दुग्ध वितरण को लेकर समस्या बढ़ी थी।
- इस क्षेत्र को विनियमित करने के साथ-साथ निगरानी करने के लिये वर्ष 1992 में दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद ऑर्डर (MMPO) की स्थापना की गई थी।
- MMPO, भारत सरकार का एक नियामक आदेश है जो दुग्ध और दुग्ध उत्पादों के उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण को नियंत्रित करता है। MMPO को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत प्रख्यापित किया गया था।
- इसका उद्देश्य दुग्ध और दुग्ध उत्पादों की आपूर्ति को बनाए रखने के साथ-साथ उसमें वृद्धि करना है।
- MMPO, भारत सरकार का एक नियामक आदेश है जो दुग्ध और दुग्ध उत्पादों के उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण को नियंत्रित करता है। MMPO को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत प्रख्यापित किया गया था।
- मुख्य रूप से बड़े निजी अभिक र्त्ताओं द्वारा संचालित इस उद्योग की प्रसंस्करण क्षमता में बीते कुछ वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
- वर्ष 1991 में भारत में उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण सुधार हुए, जिससे डेयरी सहित विभिन्न क्षेत्रों में निजी भागीदारी की अनुमति प्राप्त हुई।
- दुग्ध उत्पादन की वर्तमान स्थिति:
- वैश्विक दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से भारत सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है, वर्ष 2021-22 में चौबीस प्रतिशत योगदान के साथ विश्व में पहले स्थान पर है।
- विगत 10 वर्षों में दुग्ध उत्पादन में लगभग 60% की वृद्धि हुई है और प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता लगभग 40% बढ़ी है।
- शीर्ष 5 दुग्ध उत्पादक राज्य राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश हैं।
- वैश्विक औसत 2% की तुलना में भारतीय डेयरी क्षेत्र में प्रति वर्ष 6% की दर से वृद्धि हो रही है।
- वर्ष 2022-23 के दौरान भारत का डेयरी उत्पादों का निर्यात विश्व भर में 67,572.99 मीट्रिक टन था, जिसका मूल्य 284.65 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
डेयरी क्षेत्र से संबंधित पहल क्या हैं?
- पशुपालन अवसंरचना विकास निधि
- डेयरी विकास के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम
- प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना
- पशुपालकों को किसान क्रेडिट कार्ड
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन
भारतीय डेयरी क्षेत्र के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
- दुग्ध उत्पादन में कमी:
- भारत में प्रति पशु दुग्ध उत्पादन वैश्विक औसत से काफी कम है। इसके लिये खराब गुणवत्ता वाले चारे, पारंपरिक मवेशी नस्लों और उचित पशु चिकित्सा देखभाल की कमी जैसे कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- दुग्ध संग्रहण और प्रसंस्करण में मुद्दे:
- दुग्ध के संग्रहण, पास्चुरीकरण और परिवहन में चुनौतियाँ महत्त्वपूर्ण बाधाएँ पैदा करती हैं, विशेष रूप से अनौपचारिक डेयरी सेटअप में सुरक्षित दुग्ध प्रबंधन सुनिश्चित करने में।
- दुग्ध के संग्रहण, पास्चुरीकरण और परिवहन में चुनौतिया, विशेष रूप से अनौपचारिक डेयरी सेटअपों में सुरक्षित दुग्ध प्रबंधन सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
- मिलावट संबंधी चिंताएँ:
- गुणवत्ता नियंत्रण में कठिनाइयों के कारण दुग्ध में मिलावट एक लगातार समस्या बनी हुई है।
- लाभ असमानताएँ:
- दुग्ध उत्पादकों को अक्सर बाज़ार दरों की तुलना में कम खरीद मूल्य मिलता है, जिससे मूल्य शृंखला के भीतर लाभ वितरण में असमानताएँ पैदा होती हैं।
- मवेशी स्वास्थ्य चुनौतियाँ:
- खुरपका और मुँहपका रोग, ब्लैक क्वार्टर संक्रमण तथा इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारियों का बार-बार फैलने से पशुधन के स्वास्थ्य एवं कम उत्पादकता पर काफी प्रभाव पड़ता है।
- सीमित क्रॉसब्रीडिंग सफलता:
- आनुवंशिक क्षमता में सुधार के लिये विदेशी प्रजातियों के साथ स्वदेशी प्रजातियों को क्रॉसब्रीडिंग करने से सीमित सफलता मिली है।
आगे की राह
- उत्पादकता और स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिये पशु चिकित्सा देखभाल को सुदृढ़ करना, गुणवत्तापूर्ण आहार तथा चारे को सुनिश्चित करना एवं मज़बूत गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को लागू करना आवश्यक है।
- दुग्ध संग्रहण, प्रसंस्करण और परिवहन के लिये बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने से परिचालन को सुव्यवस्थित करने एवं सुरक्षित दुग्ध प्रबंधन सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
- पशु स्वास्थ्य और दुग्ध-उत्पादन को बढ़ाने के लिये आनुवंशिकी, पोषण व रोग प्रबंधन में अनुसंधान एवं विकास पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण होगा।
- किसान सहकारी समितियों को बढ़ावा देना और संधारणीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करना छोटे पैमाने के उत्पादकों को सशक्त बना सकता है तथा डेयरी मूल्य शृंखला में समान विकास सुनिश्चित कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q.1 भारत की निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से दलहन उपयोग दलहन, चारा और हरी खाद के रूप में प्रयोग होता है/होते हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:Q.1 पशुधन पालन में ग्रामीण क्षेत्रों में कृषीतर रोज़गार और आय का प्रबंध करने में पशुधन पालन की बड़ी संभाव्यता है। भारत में इस क्षेत्रक की प्रोन्नति करने के उपयुक्त उपाय सुझाते हुए चर्चा कीजिये। (2015) Q.2 हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचनाओं में असुविधाओं और सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन सुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालिये। (2015) |