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जैव विविधता और पर्यावरण

सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का विकल्प

  • 22 Sep 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सिंगल-यूज़ प्लास्टिक, कृषि अवशेष, वायु गुणवत्ता सूचकांक, बायो-प्लास्टिक

मेन्स के लिये:

सिंगल-यूज़ प्लास्टिक : विकल्प एवं संभावित लाभ  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू (IISc) के शोधकर्त्ताओं ने एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) के लिये एक विकल्प बनाने का उपाय खोजा है, जो सैद्धांतिक रूप से पर्यावरण में प्लास्टिक अपशिष्ट के संचय की समस्या को कम करने में मदद कर सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • शोध के बारे में:
    • शोध में पॉलिमर बनाने की इस प्रक्रिया में गैर-खाद्यान अरंडी के तेल का उपयोग किया गया था जिसमें उन्हें सेल्यूलोज (कृषि अवशेषों से) और डाइ-आइसोसायनेट यौगिक के साथ अभिक्रिया कराने की अनुमति शामिल है।
    • इन पॉलिमर को बैग, कटलरी या कंटेनर बनाने के लिये उपयुक्त गुणों वाली चादरों में ढाला जा सकता है। 
    • इस प्रकार बनाई गई सामग्री बायोडिग्रेडेबल, लीक-प्रूफ और गैर-विषाक्त होती है।
  • संभावित लाभ:
    • एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) की समस्या का समाधान करना:  एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि और साथ ही लैंडफिल के प्रबंधन की चुनौती के मद्देनज़र ऐसे विकल्प विशेष रूप से पैकेजिंग क्षेत्र (SUP के सबसे बड़े उपभोक्ता) में महत्त्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं।
    • कृषि अवशेषों की समस्या से निपटना: भारत के कई उत्तरी राज्यों में कृषि अवशेषों को जलाया जाना वायु प्रदूषण के लिये उत्तरदायी कारकों में से एक है।
      • जैसे- दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक प्रत्येक वर्ष सर्दियों में प्रदूषण के "गंभीर" या "खतरनाक" स्तर पर वायु गुणवत्ता में गिरावट को इंगित करता है और यह स्थिति आसपास के क्षेत्रों में कृषि अवशेषों को जलाने के कारण उत्पन्न होती है।
      • सिंगल यूज़ प्लास्टिक के स्थान पर कृषि अवशेषों का उपयोग करने से सिर्फ वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि किसानों के लिये अतिरिक्त आय के अवसर भी सृजित होंगे।
    •  स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में उपयोग: चूँकि यह पदार्थ बायोडिग्रेडेबल और गैर-विषाक्त है, इसलिये शोधकर्त्ता स्वास्थ्य देखभाल अनुप्रयोगों के लिये भी इस पदार्थ या सामग्री का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं।
  • सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के अन्य विकल्प:
    • लंबी अवधि तक उपयोग में लाए जाने वाले प्लास्टिक के विकल्प जो अभी उपलब्ध हैं, इस प्रकार हैं- स्टेनलेस स्टील, काँच, प्लेटिनम सिलिकॉन, बाँस, मिट्टी के बर्तन और चीनी मिट्टी की वस्तुएँ आदि।
    • इनके अलावा पारंपरिक प्लास्टिक को बदलने के लिये बायो-प्लास्टिक का उपयोग किया जा सकता है।
      • बायोप्लास्टिक एक प्रकार का प्लास्टिक है जिसे प्राकृतिक संसाधनों जैसे वनस्पति तेलों और स्टार्च से निर्मित किया जाता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करने की आवश्यकता:
    • भारतीय केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018-2019 में भारतीयों द्वारा 33 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न किया गया था।
      • हालाँकि कई रिपोर्टें में इसे कम करके आँका गया है।
    • एक और चौंकाने वाला आँकड़ा यह है कि विश्व में उत्पादित सभी प्लास्टिक कचरे का 79% पर्यावरण में प्रवेश करता है।
      • सभी प्रकार के प्लास्टिक कचरे के केवल 9% का ही पुनर्नवीनीकरण (Recycled) किया जाता है।
    • प्लास्टिक अपशिष्ट का संचय पर्यावरण के लिये हानिकारक है और जब यह अपशिष्ट समुद्र में प्रवेश करता है तो जलीय पारिस्थितिक तंत्र को भी बड़ा नुकसान हो सकता है।
    • SUP इतना सस्ता और सुविधाजनक है कि इसने पैकेजिंग उद्योग की अन्य सभी सामग्रियों को विस्थापित कर दिया है लेकिन इसे विघटित होने में सैकड़ों वर्ष लगते हैं।

आगे की राह: 

  •  चक्रीय अर्थव्यवस्था: प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिये देशों को प्लास्टिक मूल्य शृंखला में चक्रीय और टिकाऊ आर्थिक गतिविधियों को अपनाना चाहिये।
    • एक चक्रीय अर्थव्यवस्था  क्लोज़्ड-लूप सिस्टम (Closed-Loop System) बनाने के लिये संसाधनों के पुन: उपयोग, साझाकरण, मरम्मत, नवीनीकरण, पुन: निर्माण और पुनर्चक्रण पर निर्भर करती है जो संसाधनों के उपयोग को कम करते हुए अपशिष्ट उत्पादन, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करती है।
  • व्यवहार परिवर्तन: नागरिकों को अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा और कचरा न फैलाकर अपशिष्ट पृथक्करण एवं अपशिष्ट प्रबंधन में मदद कर योगदान देना होगा।
  • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व: नीतिगत स्तर पर विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility-EPR)  की अवधारणा, जो पहले से ही 2016 के नियमों के तहत उल्लिखित है, को बढ़ावा देना होगा।
    • EPR एक नीतिगत दृष्टिकोण है जिसके तहत उत्पादकों द्वारा उपभोक्ता को उत्पादों के उपचार या निपटान के लिये वित्तीय और/या भौतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी जाती है।

स्रोत: द हिंदू 

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