जैव विविधता और पर्यावरण
प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने हेतु निवेश
- 03 Aug 2020
- 11 min read
प्रीलिम्स के लिये:NGO, अलायंस टू एंड प्लास्टिक वेस्ट, प्लास्टिक अपशिष्ट से जुड़ी टर्म्स मेन्स के लिये:प्लास्टिक अपशिष्ट से जुड़े मुद्दे, पर्यावरण संरक्षण के संबंध में भारत सरकार की पहलें, इस दिशा में वैश्विक प्रयास |
चर्चा में क्यों?
सिंगापुर स्थित एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) ‘अलायंस टू एंड प्लास्टिक वेस्ट’ (Alliance to End Plastic Waste) आगामी पाँच वर्षों में प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने के लिये भारत में 70 से 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश करने की योजना बना रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- यह NGO पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिये कुल 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की योजना बना रहा है। इसमें से 100 मिलियन डॉलर भारत के लिये जबकि बाकि धनराशि दक्षिण पूर्व एशिया और चीन के लिये आरक्षित है।
अलायंस टू एंड प्लास्टिक वेस्ट
- एक गैर-लाभकारी संगठन के रूप में ‘अलायंस टू एंड प्लास्टिक वेस्ट’ की स्थापना वर्ष 2019 में हुई थी, इसका लक्ष्य प्रत्येक वर्ष 8 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट के समुद्र में फैंके जाने जैसी गंभीर एवं जटिल समस्या के समाधान के लिये कार्य करना है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट की रोकथाम के साथ-साथ इसे मूल्यवान बनाने की शृंखला में लगभग पचास कंपनियाँ इस अलायंस के साथ मिलकर कार्य कर रही हैं जो इस समस्या के समाधान के लिये तकरीबन 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने के लिये प्रतिबद्ध है।
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस
(World Nature Conservation Day):
- विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस (28 जुलाई) के अवसर पर भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट को समाप्त करने के लिये इस निवेश की घोषणा की गई।
- प्राकृतिक संसाधनों के महत्त्व के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने एवं इसके प्रसार के उद्देश्य से हर वर्ष इस दिवस का आयोजन किया जाता है।
- यह दिवस पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सुरक्षा के लिये लोगों को प्रोत्साहित करता है जो अति-शोषण एवं दुरुपयोग के कारण तेज़ी से कम हो रहे हैं।
इस दिशा में भारत के प्रयास:
- वर्तमान में 'अलायंस टू एंड प्लास्टिक वेस्ट' प्रोजेक्ट ‘अविरल’ (Aviral) पर कार्य कर रहा है जिसका उद्देश्य गंगा नदी में प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करना है।
- ‘अविरल’ प्रोजेक्ट का लक्ष्य अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक सार्थक दृष्टिकोण प्रदान करना है। विशेष रूप से, यह एक एकीकृत प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को सुदृढ़ करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
विश्वव्यापी पहल:
- UN-हैबिटेट वेस्ट वाइज़ सिटीज़ (UN-Habitat Waste Wise Cities-WWC):
- अलायंस टू एंड प्लास्टिक वेस्ट भी संसाधनों की पुनर्प्राप्ति को बढ़ावा देते हुए व्यवसाय को बढ़ावा देने और आजीविका के अवसर पैदा करने वाली परिपत्र अर्थव्यवस्था (Circular Economy) की तरफ ध्यान केंद्रित कर रहा है, इस संदर्भ में यह UN-हैबिटेट के साथ मिलकर काम कर रहा है।
- यह UN-हैबिटेट वेस्ट वाइज़ सिटीज़ की सहायता से अपशिष्ट प्रवाह का पता लगाने और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों से संभावित प्लास्टिक रिसाव का आकलन करने की दिशा में कार्य करना चाहता है।
- यह संयुक्त रूप से वर्ष 2022 तक विश्व के 20 शहरों में स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन को स्थापित करने और शहरों की सफाई करने के लिये WWC चैलेंज का सहयोग और समर्थन करते हैं।
- ज़ीरो प्लास्टिक वेस्ट सिटीज़ इनिशिएटिव (Zero Plastic Waste Cities Initiative):
- यह भारत और वियतनाम में ज़ीरो प्लास्टिक वेस्ट सिटीज़ की पहल को लागू करने की दिशा में भी कार्य कर रहा है जिसका उद्देश्य नगरपालिका अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार और आवश्यक सहायता प्रदान करके प्लास्टिक की समस्या से निपटना है, इसके तहत एकत्र अपशिष्ट का पुनर्प्रयोग करने और इसे समुद्र में बहने से रोकने जैसे पक्षों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है।
- यह स्थायी सामाजिक व्यवसायों को भी विकसित करेगा जो प्लास्टिक अपशिष्ट के पर्यावरण में प्रवेश को बाधित करते हुए बहुत से लोगों की आजीविका में सुधार करते हो।
- इस परियोजना में शामिल दो प्रारंभिक शहर पुदुच्चेरी (भारत) और वियतनाम के मेकांग डेल्टा क्षेत्र में अवस्थित टैन एन (Tan An) हैं।
प्लास्टिक कचरा
- वैश्विक परिदृश्य में बात करें तो:
- वर्ष 1950 से अब तक वैश्विक स्तर पर तकरीबन 8.3 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है और इसका लगभग 60% हिस्सा लैंडफिल या प्राकृतिक वातावरण में ही निस्तारित हो गया है।
- अभी तक उत्पादित सभी प्रकार के प्लास्टिक अपशिष्ट में से केवल 9% का ही पुनर्नवीनीकरण किया गया है और लगभग 12% को जलाया गया है, जबकि शेष 79% लैंडफिल, डंपिंग के रूप में प्राकृतिक वातावरण में ही मौजूद है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट, चाहे वह किसी नदी या अन्य जलधारा में मौजूद हो, समुद्र में हो या फिर भूमि पर, सदियों तक पर्यावरण में बना रह सकता है, एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक विश्व भर के समुद्रों और महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा का वज़न वहाँ पाई जाने वाली मछलियों की तुलना में अधिक होने की संभावना है।
- भारतीय परिदृश्य में बात करें तो:
- वर्तमान में भारत में प्रत्येक दिन लगभग 26,000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है जिसमें से लगभग 10,000 टन से अधिक का संग्रहण तक नहीं हो पाता है।
- भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत 11 किग्रा से कम है जो संयुक्त राज्य अमेरिका (109 किग्रा) का लगभग दसवाँ हिस्सा है।
- भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट को आपूर्ति शृंखला में वापस लाने से अर्थात् इसके पुनर्नवीनीकरण से वर्ष 2050 में 40 लाख करोड़ रुपए तक का वार्षिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
- वैश्विक के साथ साथ भारत सरकार की पहलें:
- वैश्विक स्तर पर समुद्री प्लास्टिक अपशिष्ट के मुद्दे से निपटने हेतु G20 (G20) समूह ने कार्रवाई के लिये एक नया कार्यान्वयन ढाँचा अपनाने पर सहमति व्यक्त की है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 (Plastic Waste Management Rules, 2016) के अनुसार, प्रत्येक स्थानीय निकाय को प्लास्टिक अपशिष्ट के पृथक्करण, संग्रहण, प्रसंस्करण और निपटान के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे को स्थापित करने के अपने दायित्व को पूरा करना चाहिये।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018 ने विस्तारित निर्माता के उत्तरदायित्व (EPR) की अवधारणा पेश की है।
- EPR एक नीतिगत दृष्टिकोण है जिसके अंतर्गत उत्पादकों को उपभोक्ता के खरीदने के बाद बचे उत्पादों के निपटान के लिये एक महत्त्वपूर्ण वित्तीय और भौतिक जिम्मेदारी (स्रोत पर अपशिष्ट के पृथक्करण और संग्रहण) दी जाती है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन पर एक नए राष्ट्रीय ढाँचा को लाने पर विचार किया जा रहा रहा है, जो निगरानी तंत्र के एक भाग के रूप में कार्य करेगा।
आगे की राह
- सरकार को सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, विनियमों के कड़ाई से कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये नीतियों का निर्माण करना चाहिये।
- आर्थिक रूप से सस्ते और पारिस्थितिक रूप से व्यवहार्य विकल्पों, ताकि संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ न पड़े, पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- इसके साथ-साथ नागरिकों को भी अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहिये और अपशिष्ट पृथक्करण एवं अपशिष्ट प्रबंधन में मदद करते हुए इस दिशा में चलाई जा रही पहलों को सफल बनाने के प्रयास करने चाहिये। यदि देश का प्रत्येक व्यक्ति पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपने उत्तरदायित्व को पूरा करता है तो एकल प्लास्टिक के उन्मूलन को सुनिश्चित करना कोई कठिन कार्य नहीं होगा।