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भारतीय राजव्यवस्था

समान नागरिक संहिता पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय

  • 20 Nov 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद-21, राज्य के नीति निदेशक तत्त्व

मेन्स के लिये: 

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता और संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से समान नागरिक संहिता (UCC) के कार्यान्वयन की प्रक्रिया शुरू करने का आह्वान किया है।

  • न्यायालय का निर्देश अंतर-धार्मिक जोड़ों द्वारा दायर 17 याचिकाओं के एक समूह के संदर्भ में आया है, जिन्होंने धर्मांतरण के पश्चात् विवाह किया और संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत अपने जीवन, स्वतंत्रता और गोपनीयता की गारंटी की सुरक्षा की मांग की।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • धर्मांतरण विरोधी नया कानून: उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किया है, जिसे ‘उत्तर प्रदेश धर्म गैरकानूनी धर्मांतरण की रोकथाम अधिनियम, 2021’ कहा जाता है।
    • इसके मुताबिक, ज़िला प्राधिकरण द्वारा यह जाँच किये बिना शादी को पंजीकृत नहीं किया जा सकता है कि क्या धर्मांतरण स्वैच्छिक है और ज़बरदस्ती, प्रलोभन व धमकी से प्रेरित नहीं है।
    • अधिनियम में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन या विवाह से पहले ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम) की मंज़ूरी आवश्यक है।
    • यह अधिनियम विवाह के लिये धर्म परिवर्तन को गैर-जमानती अपराध बनाता है।
  • न्यायालय द्वारा अवलोकन:
    • विवाह पंजीयक के पास केवल इस कारण विवाह के पंजीकरण को रोकने की शक्ति नहीं है कि विवाह पक्षों ने ज़िला प्राधिकरण से धर्मांतरण की आवश्यक स्वीकृति प्राप्त नहीं की है।
      • न्यायालय ने ‘मैरिज रजिस्ट्रार’ को ऐसे जोड़ों के विवाह का तत्काल पंजीकरण करने का निर्देश दिया है।
    • न्यायालय ने कहा कि इस तरह की मंज़ूरी निर्देशिका है और अनिवार्य नहीं है।
      • यह अधिनियम तर्कसंगतता और निष्पक्षता की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा तथा अनुच्छेद-14 (कानून के समक्ष समानता) एवं अनुच्छेद-21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) का उल्लंघन करता है।
    • यह देखा गया कि परिवार या समुदाय या कबीले या राज्य या कार्यपालिका की सहमति आवश्यक नहीं है, एक बार जब दो वयस्क व्यक्ति विवाह करने के लिये सहमत होते हैं, तो यह वैध या कानूनी होगा।
    • न्यायालय ने संबंधित ज़िलों की पुलिस को इन जोड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
    • इसके अलावा न्यायालय ने केंद्र सरकार से ‘समान नागरिक संहिता’ को लागू करने हेतु एक कानून बनाने का आग्रह किया, ताकि इस तरह के अत्याचारों की पुनरावृत्ति न हो।
      • क्योंकि इसके लागू होने के बाद धर्मांतरण विरोधी कानूनों की आवश्यकता नहीं होगी।

समान नागरिक संहिता:

  • पृष्ठभूमि:
    • ब्रिटिश शासन के अंतिम काल में व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों में वृद्धि ने सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने हेतु ‘बी.एन. राव’ समिति बनाने को मजबूर किया।
    • ‘समान नागरिक संहिता’ का आशय पूरे देश में एक ही प्रकार के कानून के प्रचलन से है, जो सभी धार्मिक समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे- शादी, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि में लागू होगा।
    • संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य, भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये ‘समान नागरिक संहिता’ सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
    • एकरूपता लाने के लिये न्यायालयों ने अक्सर अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार को UCC की ओर बढ़ना चाहिये।
      • शाह बानो मामले (1985) का फैसला सर्वविदित है।
      • शायरा बानो मामले (2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तालक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया था।
  • UCC की आवश्यकता:
    • राष्ट्रीय एकता: एक समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाले कानूनों के प्रति असमान निष्ठाओं को दूर करके राष्ट्रीय एकता के उद्देश्य में मदद करेगी।
    • बदलते समय के अनुरूप: हाल के दिनों में अंतर-समुदाय, अंतर-जाति और अंतर-धार्मिक विवाह व संबंधों में भारी वृद्धि हुई है।
      • साथ ही एकल महिलाओं की संख्या में वृद्धि के साथ एक व्यापक UCC बदलते समय के अनुरूप होगा।
    • समाज के कमज़ोर वर्गों को संरक्षण: UCC का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित कमज़ोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है।
    • धर्मनिरपेक्षता के आदर्श का पालन करना: धर्मनिरपेक्षता, प्रस्तावना में निहित उद्देश्य है, एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक सामान्य कानून की आवश्यकता होती है।
    • कानूनों का सरलीकरण: यह संहिता विवाह, विरासत, उत्तराधिकार, गोद लेने संबंधी जटिल कानूनों को सभी के लिये एक समान बना देगा। फिर वही नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होगा चाहे उनकी आस्था कुछ भी हो।
  • संबद्ध चुनौतियाँ:
    • सांप्रदायिक राजनीति: समान नागरिक संहिता की मांग को सांप्रदायिक राजनीति के संदर्भ में तैयार किया गया है।
      • समाज का एक बड़ा वर्ग इसे सामाजिक सुधार की आड़ में बहुसंख्यकवाद के रूप में देखता है।
    • संवैधानिक बाधा: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता को संरक्षित करने का प्रयास करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता की अवधारणाओं के साथ संघर्ष करता है।

आगे की राह

  • सरकार और समाज को इसके प्रति विश्वास को बनाए रखने के लिये कड़ी मेहनत करनी होगी, लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि धार्मिक रूढ़िवादियों के बजाय समाज सुधारक मिलकर काम करें।
  • एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण के बजाय सरकार अलग-अलग पहलुओं जैसे- विवाह, गोद लेने, उत्तराधिकार और रखरखाव को चरणों में एक UCC में ला सकती है।
  • समय की मांग है कि सभी व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध किया जाए ताकि प्रत्येक समुदाय में मौजूद पूर्वाग्रह और रूढ़िवादियों को स्पष्ट किया जा सके और उनके आधार पर संविधान के मौलिक अधिकारों का परीक्षण किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू

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