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भारतीय अर्थव्यवस्था

सलाहकार समिति का डीज़ल 4-पहिया वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव

  • 10 May 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन, फेम योजना, शुद्ध-शून्य लक्ष्य 2070, इलेक्ट्रिक वाहन

मेन्स के लिये:

अक्षय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में भारत का संक्रमण, डीज़ल चालित वाहनों का प्रभाव, शुद्ध-शून्य लक्ष्य 2070 को प्राप्त करने की भारत की रणनीतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा गठित ऊर्जा संक्रमण सलाहकार समिति ने सिफारिश की है कि भारत को वर्ष 2027 तक डीज़ल संचालित 4-पहिया वाहनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिये एवं उत्सर्जन को कम करने हेतु दस लाख से अधिक आबादी वाले तथा प्रदूषित शहरों में इलेक्ट्रिक व गैस-ईंधन चालित वाहनों को अपनाना चाहिये। 

  • पूर्व पेट्रोलियम सचिव तरुण कपूर की अध्यक्षता वाली समिति ने वर्ष 2035 तक आंतरिक दहन इंजन वाले मोटरसाइकिल, स्कूटर और तिपहिया वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का भी सुझाव दिया।

समिति की सिफारिशें:

  • नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना: 
    • भारत विश्व स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जकों में से एक है, अतः इसे अपने शुद्ध-शून्य लक्ष्य 2070 को प्राप्त करने हेतु नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से 40% विद्युत ऊर्जा उत्पादन करना चाहिये।
      • इसके अनुरूप पैनल की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2030 तक केवल इलेक्ट्रिक सिटी बसों को जोड़ा जाना चाहिये, डीज़ल सिटी बसों को वर्ष 2024 से चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिये।
    • इसने प्रत्येक श्रेणी में लगभग 50% हिस्सेदारी के साथ आंशिक रूप से इलेक्ट्रिक और आंशिक रूप से इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल के उपयोग का आह्वान किया।
  • EV उपयोग को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहन:
  • गैस चालित ट्रकों और रेलवे में संक्रमण: 
    • पैनल ने यह भी सिफारिश की है कि वस्तुओं की आवाजाही हेतु रेलवे और गैस चालित ट्रकों के अधिक उपयोग के साथ वर्ष  2024 से केवल विद्युत चालित शहर के डिलीवरी वाहनों को नए पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिये।
    • रेलवे नेटवर्क के दो से तीन वर्ष के भीतर पूरी तरह से इलेक्ट्रिक होने की उम्मीद है। पैनल के अनुसार, भारत में लंबी दूरी की बसों को दीर्घकाल तक विद्युत से संचालित किया जाना चाहिये, जिसमें पेट्रोल अगले 10-15 वर्षों में संक्रमणकालीन ईंधन के रूप में काम करेगा।
  • ऊर्जा मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी में वृद्धि: 
    • भारत का लक्ष्य 2030 तक अपने ऊर्जा मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी को मौजूदा 6.2% से बढ़ाकर 15% करना है।
      • इस लक्ष्य को हासिल करने हेतु’ पैनल ने दो महीने की मांग के बराबर भूमिगत गैस भंडारण का निर्माण करने का सुझाव दिया है।
    • पैनल विदेशी गैस उत्पादक कंपनियों की भागीदारी के साथ गैस भंडारण के निर्माण हेतु घटते तेल एवं गैस क्षेत्रों, नमक की गुफाओं तथा एक्वीफर्स के उपयोग की भी सिफारिश करता है।

भारत में डीज़ल की खपत: 

  • खपत पैटर्न:  
    • वर्तमान में भारत के पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में डीज़ल की हिस्सेदारी लगभग 40% है, जिसका 80% परिवहन क्षेत्र में उपयोग किया जाता है।
    • भारत में पेट्रोल और डीज़ल की मांग वर्ष 2040 में चरम पर पहुँचने और उसके बाद  के समय में वाहनों के विद्युतीकरण के कारण इसकी मांग में गिरावट आने की उम्मीद है।  

Sector-wise-Diesel

  • डीज़ल की उच्च प्राथमिकता का कारण:
    • पेट्रोल चालित परिवहन साधनों की तुलना में डीज़ल इंजनों की उच्च ईंधन बचत इसकी प्राथमिकता का एक कारक है। यह प्रति लीटर डीज़ल की अधिक ऊर्जा क्षमता और डीज़ल इंजन की अंतर्निहित दक्षता के कारण है।
    • डीज़ल इंजन में उच्च-वोल्टेज स्पार्क इग्निशन (स्पार्क प्लग) का उपयोग नहीं किया जाता है और इस प्रकार प्रति किलोमीटर कम ईंधन का उपयोग होता है क्योंकि डीज़ल ईंधन में उच्च संपीड़न अनुपात होता है जिससे यह भारी वाहनों के लिये काफी उपयोगी ईंधन बन जाता है।
    • इसके अलावा डीज़ल इंजन अधिक टॉर्क (घूर्णन बल अथवा टर्निंग फोर्स) प्रदान करते हैं और इन इंजनों के बंद होने की संभावना कम होती है क्योंकि वे एक यांत्रिक अथवा इलेक्ट्रॉनिक संचालक द्वारा नियंत्रित होते हैं जो कि ढुलाई के लिये बेहतर साबित होते हैं।
  • डीज़ल चालित वाहनों का प्रभाव: 
    • वायु प्रदूषण:  
      • डीज़ल इंजन उच्च स्तर के पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, जो वायु प्रदूषण में योगदान करते हैं एवं मनुष्यों तथा वन्यजीवों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन:  
      • चूँकि डीज़ल इंजन में ईंधन की खपत कम होती है, वे उच्च स्तर के कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी करते हैं जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
    • ध्वनि प्रदूषण:  
      • डीज़ल इंजन आमतौर पर गैसोलीन इंजनों की तुलना में अधिक आवाज़ उत्पन्न करते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण बढ़ सकता है और यह शहरी क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
    • पर्यावरणीय क्षति:
      • डीज़ल के रिसाव से गंभीर पर्यावरणीय क्षति हो सकती है, विशेषकर यदि जब रिसाव जल स्रोतों या संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र के निकट होता है।

डीज़ल आधारित वाणिज्यिक वाहनों पर प्रतिबंध के कारण चुनौतियाँ:

  • व्यावहारिकता और कार्यान्वयन:
    • मध्यम और भारी वाणिज्यिक वाहनों की तुलना में प्रस्तावित डीज़ल प्रतिबंध की व्यावहारिकता को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।
    • इसके परिणामस्वरूप रसद आपूर्ति और सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के संचालन  में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
  • परिवहन क्षेत्र में डीज़ल का दबदबा:
    • लंबी दूरी के परिवहन और शहरी बस सेवाओं के लिये डीज़ल पर अत्यधिक निर्भरता बनी हुई है।
    • परिवहन क्षेत्र में डीज़ल की खपत लगभग 87 प्रतिशत है, जबकि ट्रकों एवं बसों में डीज़ल की खपत लगभग 68 प्रतिशत है।
  • रूपांतरण चुनौतियाँ:
    • डीज़ल चालित ट्रकों को संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) में परिवर्तित करने की सीमाएँ हैं।
      • CNG का उपयोग मुख्य रूप से छोटी दूरी के लिये अनुकूल है और इसकी टन भार वहन क्षमता कम है।
  • वर्तमान उत्सर्जन मानदंडों का अनुपालन:
    • वाहन निर्माताओं का तर्क है कि डीज़ल वाहन मौजूदा उत्सर्जन मानदंडों का पालन करते हैं।
    • डीज़ल बेड़े को BS-VI उत्सर्जन मानदंडों में बदलने के लिये कार निर्माताओं द्वारा महत्त्वपूर्ण निवेश किये गए हैं और डीज़ल वाहनों पर प्रतिबंध से उनका समय, पैसा और प्रयास व्यर्थ चला जाएगा।

नवीकरणीय ऊर्जा आधारित परिवहन क्षेत्र हेतु भारत की पहल: 

  • FAME योजना: 
    • यह EV निर्माण और इसे अपनाने के लिये राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
    • वर्ष 2030 तक विद्युत वाहनों की हिस्सेदारी 30% तक करने का लक्ष्य।
    • यह शहरी केंद्रों में चार्जिंग तकनीक और स्टेशनों की तैनाती का समर्थन करती है।
  • परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन:
    • इसका उद्देश्य हवा की गुणवत्ता में सुधार करना, तेल आयात पर निर्भरता को कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा एवं भंडारण समाधानों को बढ़ाना है।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों, इसके कल-पूर्जों, और बैटरी के साथ-साथ क्रांतिकारी परिवहन के लिये पहल पहल चरणबद्ध निर्माण योजनाओं को बढ़ावा देना।
  • लिथियम-आयन सेल बैटरियों के लिये सीमा शुल्क छूट:
    • सरकार ने लिथियम-आयन सेल बैटरियों के आयात को सीमा शुल्क से छूट दी है ताकि भारत में उनकी लागत कम की जा सके और उनका उत्पादन बढ़ाया जा सके।
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन:
    • इस मिशन का उद्देश्य उद्योग, परिवहन और बिजली जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिये स्वच्छ एवं किफायती ऊर्जा स्रोत के रूप में हरित हाइड्रोजन को विकसित करना है।
      • इसमें हरित हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्रों की स्थापना, भंडारण और वितरण अवसंरचना तथा अंतिम उपयोग अनुप्रयोगों की परिकल्पना की गई है।
  • इथेनॉल सम्मिश्रण:
    • इसमें जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल को मिलाना शामिल है।
    • भारत में पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण का स्तर 9.99 प्रतिशत तक पहुँच गया है। पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) का लक्ष्य वर्ष 2030 से 2025 कर दिया गया है।
  • PLI योजना के तहत प्रोत्साहन:
    • इसे ऑटोमोबाइल और ऑटो-कंपोनेंट उद्योग सहित विभिन्न उद्योगों के लिये लागू किया गया है।
    • एडवांस सेल केमिकल बैटरी स्टोरेज निर्माण के विकास के लिये लगभग 18,000 करोड़ रुपए स्वीकृत किये गए।
    • इन प्रोत्साहनों का उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के स्वदेशी विकास को प्रोत्साहित करना है ताकि उनकी अग्रिम लागत को कम किया जा सके।
  • SATAT योजना:
    • सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (SATAT) पहल का उद्देश्य वैकल्पिक, हरित परिवहन ईंधन के रूप में कंप्रेस्ड बायो-गैस (CBG) को बढ़ावा देना है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. "वहनीय (एफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनेबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) 

स्रोत: द हिंदू

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