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सामाजिक न्याय

महिलाओं के मुद्दों और अधिकारों पर COVID-19 का प्रभाव

  • 30 Apr 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय महिला आयोग, COVID-19 

मेन्स के लिये:

वैश्विक अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव (United Nations Secretary General) एंटोनियो गुटेरेस (Antonio Guterres) ने एक लेख के माध्यम से विश्व भर में महिलाओं के लिये COVID-19 से उत्पन्न हुई चुनौतियों और उनकी समस्याओं पर चिंता व्यक्त की है।

मुख्य बिंदु:

  • वर्तमान में विश्व के विभिन्न देशों में COVID-19 के नियंत्रण के लिये लागू लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
  • हाल ही में यूनाइटेड किंगडम में एक प्रमुख महिला सहायता हेल्पलाइन पर घरेलू हिंसा के मामलों की शिकायतों में 700% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • लॉकडाउन के दौरान महिला हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है परंतु सार्वजनिक सेवाओं और यातायात के बाधित होने से महिला सहायता समूह सक्रिय रूप से अपनी सेवाएँ नहीं दे पा रहे हैं तथा कई अन्य आर्थिक दबाव के कारण कर्मचारियों की छँटनी करने या संस्था को बंद करने को विवश हुए हैं।
  • COVID-19 के कारण महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता के लिये उत्पन्न हुए खतरे शारीरिक हिंसा से कहीं अधिक हैं।
  • ध्यातव्य है कि हाल ही में ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ (National Commission for Women- NCW) ने जानकारी दी थी कि देश में लागू लॉकडाउन के दौरान महिला और घरेलू हिंसा के मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई है।  

असमान अवसर और प्रतिनिधित्व:    

  • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर अधिकांश महिलाएँ ऐसे क्षेत्रों में कार्य करती हैं जहाँ उन्हें अन्य सुविधाओं के बगैर कम मज़दूरी पर कार्य करना पड़ता है। जैसे- घरेलू सहायक, दैनिक मज़दूर, स्ट्रीट वेंडर (Street Vendor) या हेयर ड्रेसर आदि। 
  • हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ द्वारा जारी अनुमान के अनुसार, अगले तीन महीनों में वैश्विक रूप से लगभग 200 मिलियन कामगारों को नौकरी गँवानी पड़ेगी और इनमें से बहुत से उन क्षेत्रों से संबंधित हैं जिनमें महिलाओं की भागीदारी अधिक है।
  • नौकरियों में कमी के कारण आय में कटौती के साथ ही स्कूल बंद होने, वृद्ध लोगों की ज़रूरतों और अस्पतालों के दबाव के कारण महिलाओं पर देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ी हैं तथा बहुत सी छात्राओं को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी है। 
  • पश्चिमी अफ्रीका के देश ‘सिएरा लियोन’ (Sierra Leone) में इबोला महामारी के दौरान स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं का नामांकन 50% से घटकर 34% हो गया था।
  • COVID-19 के कारण पुरुषों को भी रोज़गार में कटौती का सामना करना पड़ रहा है, परंतु ऐसा देखा गया है कि सामान्य परिस्थितियों में भी महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक घरेलू कार्य करती हैं।
  • ऐसे में व्यावसायिक गतिविधियों के शुरू होने पर भी यदि बच्चों के स्कूल बंद रहते हैं तो आमतौर पर बच्चों की देखभाल के लिये महिलाओं को ही कहा जाएगा जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उनके रोज़गार और आय पर पड़ेगा।

नेतृत्व की भूमिकाओं में: 

  • स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी जहाँ लगभग 70% है वहीं स्वास्थ्य क्षेत्र में ही प्रबंधन की भूमिकाओं/पदों में महिलाओं की संख्या पुरुषों की अपेक्षा बहुत ही कम है।
  • वैश्विक रूप से राजनीतिक नेतृत्त्व में भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी का अनुपात भी बहुत ही कम (लगभग 1/10) है।

समाधान:

  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनुसार, असुरक्षित नौकरियों में कार्यरत महिलाओं को शीघ्र ही एक बुनियादी सामाजिक सुरक्षा प्रदान किये जाने की आवश्यकता है, जिनमें स्वास्थ्य बीमा,  पेड सिक लीव (Paid Sick Leave), चाइल्डकेयर, इनकम प्रोटेक्शन, बेरोज़गारी भत्ता आदि शामिल है।   
  • इस महामारी से निपटने के लिये निर्णायक मंचों पर महिलाओं की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है जिससे इस महामारी की बदतर/सबसे खराब परिस्थितियों (संक्रमण की दूसरी लहर, श्रमिकों की कमी और सामाजिक अस्थिरता आदि) से बचा जा सके। 
  • कम आय पर काम करने और असमान प्रतिनिधित्व से महिलाओं के हितों की क्षति के साथ-साथ समाज और अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।
  • COVID-19 की महामारी के पश्चात अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के प्रयासों के तहत आसान दरों पर ऋण, कैश ट्रांसफर, ऋण माफी और अन्य योजनाओं में महिलाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिये।  
  • देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका के महत्त्व को स्वीकार किया जाना चाहिये। 

निष्कर्ष: 

COVID-19 महामारी हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिये ही एक चुनौती नहीं है बल्कि यह समानता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और मानव गरिमा की भी परीक्षा है। महिलाओं के मुद्दों और अधिकारों को सामने रखते हुए हम इस महामारी को आसानी से पीछे छोड़ सकते हैं और एक ऐसे समुदाय तथा समाज का निर्माण कर सकते हैं जिससे सभी को लाभ होगा।   

स्रोत: द हिंदू 

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