किसानों की आय बढ़ाने हेतु 7 नई योजनाएँ | 03 Sep 2024

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि और संबद्ध क्षेत्र, पशुधन और बागवानी, डिजिटल कृषि मिशन (DAM), एग्री स्टैक, कृषि निर्णय सहायता प्रणाली, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), नई शिक्षा नीति 2020, कृषि विज्ञान केंद्र

मेन्स के लिये:

भारतीय कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की भूमिका।

स्रोत:पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के लिये लगभग 14,000 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय वाली सात नई योजनाओं की घोषणा की।

  • ये योजनाएँ अनुसंधान और शिक्षा को आगे बढ़ाने, जलवायु लचीलापन बढ़ाने, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन को अनुकूलित करने, कृषि क्षेत्र में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने तथा पशुधन एवं बागवानी के विकास पर केंद्रित हैं।
  • इन पहलों का व्यापक उद्देश्य किसानों को जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियाँ अपनाने के लिये आवश्यक क्षमताएँ प्रदान करना है।

प्रमुख योजनाएँ क्या हैं?

  • डिजिटल कृषि मिशन (DAM): डिजिटल कृषि मिशन के दो आधार स्तंभ हैं: एग्री स्टैक और कृषि निर्णय समर्थन प्रणाली
    • एग्री स्टैक: यह प्रौद्योगिकियों और डिजिटल डेटाबेस का एक संग्रह है, जो किसानों तथा कृषि क्षेत्र पर केंद्रित है।
    • एग्री स्टैक किसानों के लिये एक एकीकृत मंच तैयार करेगा, जो उन्हें कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में संपूर्ण सेवाएँ प्रदान करेगा।
    • कार्यक्रम के अंतर्गत प्रत्येक किसान के पास एक विशिष्ट डिजिटल पहचान (किसान ID) होगी, जिसमें व्यक्तिगत विवरण, कृषि की भूमि के बारे में जानकारी, साथ ही उत्पादन और वित्तीय विवरण शामिल होंगे।
      • प्रत्येक ID को व्यक्ति की डिजिटल राष्ट्रीय ID आधार से जोड़ा जाएगा।

  • कृषि निर्णय समर्थन प्रणाली: इसका उद्देश्य प्रासंगिक भू-स्थानिक और गैर-भू-स्थानिक डेटा जैसे रिमोट-सेंसिंग डेटा, मौसम डेटा, मृदा डेटा, फसल हस्ताक्षर लाइब्रेरी, जलाशय डेटा, भूजल डेटा और सरकारी योजनाओं से संबंधित डेटा को एक मानकीकृत रूप में एकीकृत व संगृहीत करना है।

  • मृदा प्रोफाइल मानचित्रण: 
    • इसके अंतर्गत लगभग 142 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि के लिये 1:10,000 पैमाने पर विस्तृत मृदा प्रोफाइल मानचित्रों की परिकल्पना की गई है, जिसमें 29 मिलियन हेक्टेयर मृदा प्रोफाइल सूची का मानचित्रण पहले ही किया जा चुका है।

  • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा कार्यक्रमों के लिये फसल विज्ञान: ये छह प्रमुख स्तंभों पर आधारित हैं, अनुसंधान व शिक्षा को आगे बढ़ाना, पौधों के आनुवंशिक संसाधनों का प्रबंधन, खाद्य एवं चारा फसलों का आनुवंशिक संवर्धन, दलहन और तिलहन फसलों में सुधार, कीट विज्ञान, सूक्ष्म जीव विज्ञान तथा परागण पर अनुसंधान के साथ-साथ वाणिज्यिक फसल किस्मों का विकास।
  • कृषि शिक्षा, प्रबंधन और सामाजिक विज्ञान का सुदृढ़ीकरण: इसका उद्देश्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तत्त्वावधान में कृषि शिक्षा, प्रबंधन और सामाजिक विज्ञान का सुदृढ़ीकरण करना है
    • इस पहल का उद्देश्य नई शिक्षा नीति, 2020 के अनुरूप कृषि अनुसंधान और शिक्षा को आधुनिक बनाना है।
    • यह कार्यक्रम डिजिटल DPI, AI, बिग डेटा और रिमोट सेंसिंग जैसी अत्याधुनिक तकनीकों पर आधारित है। इसके अतिरिक्त इसमें प्राकृतिक कृषि तथा जलवायु अनुकूलता पर केंद्रित घटक शामिल होंगे।
  • संधारणीय पशुधन स्वास्थ्य और उत्पादन: यह योजना पशुधन और डेयरी क्षेत्रों से किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से संधारणीय पशुधन स्वास्थ्य तथा उत्पादन को प्रोत्साहन के लिये समर्पित है।
    • यह योजना पशु स्वास्थ्य प्रबंधन, पशु चिकित्सा शिक्षा, डेयरी उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी में उन्नति, पशु आनुवंशिक संसाधन प्रबंधन एवं सुधार, साथ ही पशु पोषण और छोटे मवेशियों (जुगाली करने वाले छोटे पशुओं) के विकास जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता देगी।
  • उद्यान कृषि का सतत् विकास: कैबिनेट ने उद्यान कृषि के सतत् विकास पर केंद्रित एक महत्त्वपूर्ण योजना को भी स्वीकृति दी है।
    • इस पहल का उद्देश्य बागवानी फसलों की खेती के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाना है।
    • कार्यक्रम में उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण बागवानी किस्मों सहित फसलों की एक विस्तृत शृंखला है जिनमें जड़, प्रकंद, कंदीय तथा शुष्क फसलें; साथ ही सब्जियाँ, फूलों की कृषि, मशरूम की फसलें, बागान की फसलें, मसाले, औषधीय एवं सुगंधित पौधे शामिल है।
  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK): कृषि विज्ञान केंद्रों का उद्देश्य देश भर में कृषि विस्तार सेवाओं और स्थायी संसाधन प्रबंधन पद्धतियों को बढ़ावा देना है।
    • KVK का उद्देश्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, शोधन और प्रदर्शन के माध्यम से कृषि एवं संबद्ध उद्यमों में स्थान-विशिष्ट प्रौद्योगिकी मॉड्यूल का मूल्यांकन करना है।
  • प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (NRM): NRM योजना को भी कैबिनेट ने स्वीकृति दी।
    • यह वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों का सतत् उपयोग है, जबकि यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य की पीढ़ियाँ अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।

भारत के कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?

  • फसल तैयारी चरण:
    • मृदा स्वास्थ्य निगरानी: उन्नत मृदा सेंसर और रिमोट सेंसिंग तकनीकें मृदा स्वास्थ्य एवं पोषक तत्त्वों के स्तर की सटीक निगरानी करने में सक्षम बनाती हैं। यह उर्वरकों तथा मृदा संशोधनों के लक्षित अनुप्रयोग, मृदा उर्वरता एवं स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ाने की अनुमति देता है।
    • कृषि मशीनरी: कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने में मशीनीकरण का अहम योगदान रहा है। आधुनिक कृषि मशीनरी को अपनाने से परिचालन दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और श्रम लागत में कमी आई है, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।
    • जैव प्रौद्योगिकी: इसने आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों जो कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोधी हैं, अनावृष्टि-सहिष्णु हैं तथा उपज बढ़ाने वाली हैं, के विकास में मदद की है । इन नवाचारों के कारण कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई है, फसल का नुकसान कम हुआ है तथा फसल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
  • खेती का चरण:
    • ड्रोन की भूमिका: ड्रोन या मानव रहित हवाई वाहन (UAV) कृषि में परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में उभरे हैं। इनका उपयोग हवाई बीजारोपण, सटीक कीटनाशक छिड़काव और दूरस्थ डेटा संग्रह, अनुसंधान की सुविधा एवं कृषि प्रबंधन प्रक्रियाओं को बढ़ाने के लिये बड़े पैमाने पर किया जाता है।
    • कृषि-तकनीक स्टार्टअप की भूमिका: कृषि-तकनीक स्टार्टअप नवीन तकनीकों और आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रयोग करके कृषि परिवर्तन को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • वे कृषि तकनीकों में उन्नति, दक्षता में सुधार और वित्त तक पहुँच बढ़ाने में योगदान देते हैं, जिससे कृषि क्षेत्र में क्रांति आती है।
    • जलवायु अनुकूलन प्रौद्योगिकियाँ: जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों और मौसम पूर्वानुमान उपकरणों जैसे नवाचार किसानों को बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल ढलने में सहायता करते हैं
      • ये प्रौद्योगिकियाँ जलवायु-संबंधी जोखिमों को कम करने और फसल के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिये रणनीतियों के विकास का समर्थन करती हैं।
    •  नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण: सौर ऊर्जा चलित सिंचाई प्रणाली और बायोगैस उत्पादन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को अपनाना, टिकाऊ कृषि पद्धतियों का समर्थन करता है
      • ये नवाचार जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करते हैं और किसानों के लिये ऊर्जा लागत को कम करते हैं।
  • कटाई का चरण और खाद्य प्रसंस्करण:
    • आपूर्ति शृंखला अनुकूलन: ब्लॉकचेन और IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) जैसे प्रौद्योगिकी-संचालित समाधान, कृषि आपूर्ति शृंखलाओं की पारदर्शिता एवं दक्षता को बढ़ाते हैं। ये प्रौद्योगिकियाँ ट्रेसबिलिटी में सुधार करती हैं, लेन-देन की लागत कम करती हैं और उत्पादों की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करती हैं।
    • सटीक पशुधन खेती: पशुधन के लिये पहनने योग्य सेंसर और निगरानी प्रणाली जैसी प्रौद्योगिकियाँ पशु स्वास्थ्य, व्यवहार एवं उत्पादकता पर वास्तविक समय का डेटा प्रदान करती हैं। इससे पशुधन के बेहतर प्रबंधन तथा पशु कल्याण में वृद्धि होती है।
      • इन तकनीकों ने खाद्य अपव्यय को कम किया है और खाद्य भंडारण तथा परिवहन की दक्षता में सुधार किया है, जिससे समग्र खाद्य सुरक्षा में वृद्धि हुई है।
    • खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण: खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण में तकनीकी प्रगति ने यह सुनिश्चित किया है कि भोजन सुरक्षित रहे तथा इसकी शेल्फ लाइफ लंबी हो।
    • बाज़ार तक पहुँच: प्रौद्योगिकी ने किसानों के लिये बाज़ार तक पहुँच में क्रांतिकारी बदलाव किया है, जिससे उन्हें स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों तक पहुँचने में मदद मिली है।
      • इंटरनेट और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के उदय ने किसानों को बिचौलियों को दरकिनार करते हुए सीधे खरीदारों से जुड़ने और लाभप्रदता बढ़ाने में सक्षम बनाया है।
    • ज्ञान साझा करने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म: डिजिटल प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन फोरम कृषि ज्ञान और सर्वोत्तम पद्धतियों के प्रसार की सुविधा प्रदान करते हैं
      • किसान विशेषज्ञ सलाह, शैक्षिक संसाधनों और सहकर्मियों के सहयोग को प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उन्हें बेहतर कृषि निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

कृषि से संबंधित प्रमुख पहलें:

निष्कर्ष

कृषि-तकनीक में उत्पादकता, दक्षता और धारणीयता में वृद्धि द्वारा भारत के कृषि परिदृश्य में परिवर्तन लाने की पर्याप्त संभावना है, लेकिन इसका सफल कार्यान्वयन कई महत्त्वपूर्ण चुनौतियों को नियंत्रित करने पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त पारंपरिक पद्धतियों के साथ कृषि-तकनीक को एकीकृत करना, विनियामक एवं नीतिगत अंतराल को संबोधित करना तथा पर्यावरणीय व सामाजिक प्रभावों पर विचार करना एक समावेशी और संवहनीय/सतत् कृषि परिवर्तन को प्रोत्साहित करने हेतु आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के कृषि क्षेत्र में परिवर्तन लाने में कृषि-तकनीक की भूमिका की विवेचना कीजिये। इसके कार्यान्वयन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिये तथा इन मुद्दों को हल करने के उपाय बताइये?UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है। (2020)

  1. सभी फसलों के कृषि उत्पाद के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना
  2.  प्राथमिक कृषि साख समितियों का कंप्यूटरीकरण 
  3.  सामाजिक पूंजी विकास
  4.  कृषकों को निशुल्क बिजली की आपूर्ति
  5.  बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋण की माफी
  6.  सरकारों द्वारा शीतागार सुविधाओं को स्थापित करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3, 4 और 5
(c) केवल 2, 3 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. 'डिजिटल भारत' कार्यक्रम खेत उत्पादकता और आय को बढ़ाने में किसानों की किस प्रकार सहायता कर सकता है? सरकार ने इस संबंध में क्या कदम उठाए हैं? (2015)

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021)