NCST का 22वाँ स्थापना दिवस | 21 Feb 2025
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, ST से संबंधित प्रावधान मेन्स के लिये:जनजातीय कल्याण में NCST का महत्त्व, अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने अपना 22वाँ स्थापना दिवस (19 फरवरी) मनाया, जिसमें अनुसूचित जनजातियों (ST) के अधिकारों की रक्षा में आयोग की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- उत्पत्ति और विकास: वर्ष 1992 में अनुसूचित जातियों (SC) और ST के लिये एक वैधानिक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गई थी। बाद में, ST की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिये, 19 फरवरी, 2004 को 89वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से अनुच्छेद 338 में संशोधन करके तथा संविधान में अनुच्छेद 338A जोड़कर NCST की स्थापना की गई।
- संरचना और कार्यकाल:
- संरचना: NCST में एक अध्यक्ष (कैबिनेट मंत्री स्तर), एक उपाध्यक्ष (राज्य मंत्री स्तर) और तीन सदस्य (सचिव स्तर) होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- कम-से-कम एक अन्य सदस्य महिला होनी चाहिये।
- कार्यकाल और पुनर्नियुक्ति: सभी सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है। किसी सदस्य को अधिकतम दो कार्यकाल के लिये पुनर्नियुक्त किया जा सकता है।
- प्रमुख कार्य: अनुच्छेद 338A(5) के तहत, NCST ST के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपायों की निगरानी, जनजातीय अधिकारों के मुद्दों को संबोधित तथा सामाजिक-आर्थिक विकास पर सलाह प्रदान करता है।
- जनजातीय कल्याण पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपता है, नीतिगत उपाय सुझाता है, तथा अनुसूचित जनजाति कल्याण कार्यक्रमों की देखरेख करता है।
- इसके अतिरिक्त, NCST (अन्य कार्यों का विनिर्देश) नियम, 2005 के अंतर्गत, आयोग आदिवासियों के लिये भूमि स्वामित्त्व अधिकारों (वन अधिकार अधिनियम, 2006) की सिफारिश करता है, तथा वैकल्पिक आजीविका रणनीतियों का सुझाव प्रदान करता है।
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) के पूर्ण कार्यान्वयन का समर्थन, तथा स्थानांतरित खेती को कम करने तथा समाप्त करने के समाधान की मांग की।
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NCST से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- प्रशासनिक और वित्तीय बाधाएँ: NCST जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, जिसमें वित्तीय और परिचालन स्वायत्तता का अभाव है, जिससे बजट तथा संचालन में इसकी स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- संविधान के अनुच्छेद 338A(9) में यह प्रावधान है कि केंद्र और राज्य सरकारें अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर NCST से परामर्श करेंगी।
- हालाँकि, अनेक राज्य और विभाग यह परामर्श करने में विफल रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी जनजातीय कल्याण नीतियों का निर्माण होता है जिनमें आयोग की भूमिका नहीं होती है।
- संविधान के अनुच्छेद 338A(9) में यह प्रावधान है कि केंद्र और राज्य सरकारें अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर NCST से परामर्श करेंगी।
- जनशक्ति का अभाव: NCST जनजातीय कल्याण योजनाओं की समीक्षा करता है, लेकिन सीमित कर्मचारियों और खराब समन्वय के कारण इसकी प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न होता है।
- ऐतिहासिक दृष्टि से, NCST में प्रमुख पदों जैसे- अध्यक्ष और सदस्यों की लंबे समय से रिक्तियाँ बनी हुई हैं।
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जनशक्ति के अभाव और नौकरशाही देरी के कारण समाधान में लंबा समय लग जाता है, जिससे कई मामले वर्षों तक लंबित रह जाते हैं और जनता का विश्वास प्रभावित होता है।
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कमज़ोर प्रवर्तन शक्तियाँ: NCST की सिफारिशें आबद्धकर नहीं हैं, जिससे अनुसूचित जनजातियों के लिये सुरक्षात्मक उपायों का क्रियान्वन करने की इसकी क्षमता सीमित हो जाती है।
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जनजातियों के विरुद्ध अत्याचार, भूमि के अन्यसंक्रामण (Alienation) और आरक्षण लाभ से वंचित करने के संबंध में अनेक याचिकाएँ प्राप्त होने के बावजूद NCST के पास स्वयं के निर्देशों का कार्यान्वन करने की शक्ति का अभाव है।
- इससे इसका (आयोग) का प्राधिकार प्रभावित होता है और सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही कम होती है।
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- जागरूकता और जनसंपर्क का अभाव: अनेक जनजातीय समूह अपने अधिकारों और NCST के अस्तित्व से अनभिज्ञ हैं जो दर्शाता है कि आयोग की मूल स्तर पर मज़बूत उपस्थिति का अभाव है।
आगे की राह
- विधिक अधिदेश का सुदृढ़ीकरण: NCST को सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के विभिन्न प्रावधानों के कार्यान्वयन के संदर्भ में केंद्रीय सूचना आयोग को दी गई शक्तियों की तर्ज पर दंड अधिरोपित किये जाने का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिये।
- क्षमता निर्माण: NCST में स्टाफ की कमी से इसके संचालन को अप्रभावित रखने हेतु इसके कर्मियों के लिये एक अलग कैडर बनाया जाना चाहिये।
- नीतियों पर अनिवार्य परामर्श: सरकार को अनुच्छेद 338A(9) का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिये, जिससे मंत्रालयों और राज्यों के लिये सभी जनजातीय कल्याण नीतियों पर NCST से परामर्श करना अनिवार्य हो जाए।
- शिकायतें: NCST के पास हिंसा, विस्थापन और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर कार्रवाई के लिये एक समर्पित शिकायत निवारण प्रकोष्ठ होना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अधिदेश क्या है? जनजातीय अधिकारों की रक्षा में इसकी प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है? (2022) (a) इससे जनजातीय लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी। उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017) |