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भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक क्रॉपलैंड विस्तार

  • 31 Dec 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

क्रॉपलैंड क्षेत्र, क्रॉपलैंड शुद्ध प्राथमिक उत्पादन, सतत् विकास लक्ष्य, वनों की कटाई, खाद्य और कृषि संगठन (FAO)।

मेन्स के लिये:

क्रॉपलैंड क्षेत्र के विस्तार का प्रभाव और इसे दूर करने के लिये उठाए जा सकने वाले कदम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक नए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2003-2019 तक विश्व में क्रॉपलैंड क्षेत्र (Copland Area) में 9% और क्रॉपलैंड शुद्ध प्राथमिक उत्पादन (Net Primary Production- NPP) में 25% की वृद्धि हुई है।

  • वृद्धि का मुख्य कारण अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में कृषि का विस्तार था।

क्रॉपलैंड क्षेत्र

  • क्रॉपलैंड को 'मानव उपभोग, चारा (घास सहित) और जैव ईंधन हेतु वार्षिक शाकाहारी फसलों के लिये उपयोग की जाने वाली भूमि' के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • वार्षिक फसलें, स्थायी चरागाह और स्थानांतरित खेती को परिभाषा से बाहर रखा गया है।
    • शाकाहारी ऊर्जा फसलें (Herbaceous Energy Crops) बारहमासी होती हैं जिनकी सालाना कटाई की जाती है।

क्रॉपलैंड शुद्ध प्राथमिक उत्पादन

  • शुद्ध प्राथमिक उत्पादन (NPP) को ऑटोट्रॉप (Autotrophs) और उनके श्वसन द्वारा निर्धारित ऊर्जा के बीच अंतर के रूप में परिभाषित किया गया है, जो आमतौर पर भूमि की सतह तथा समय की प्रति यूनिट जैवभार में वृद्धि के बराबर है।
    • ऑटोट्रॉप एक ऐसा जीव है जो प्रकाश, जल, कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य रसायनों का उपयोग कर अपना भोजन स्वयं बना सकता है।
    • श्वसन एक रासायनिक प्रतिक्रिया है जो सभी जीवित कोशिकाओं में होती है, ग्लूकोज से ऊर्जा उत्पन्न होती है।


प्रमुख बिंदु

  • क्रॉपलैंड विस्तार:

    • अफ्रीका में सबसे बड़ा क्रॉपलैंड विस्तार देखा गया।
    • अफ्रीका में, वर्ष 2004-2007 से वर्ष 2016-2019 तक क्रॉपलैंड विस्तार में तेज़ी आई, वार्षिक विस्तार दरों में दो गुना से अधिक की वृद्धि हुई।
      • क्रॉपलैंड्स (शुष्क भूमि सिंचाई को छोड़कर) में प्राकृतिक वनस्पति रूपांतरण का सबसे बड़ा अनुपात अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण अमेरिका में पाया गया।
      • जनसंख्या वृद्धि के कारण इस अवधि के दौरान वैश्विक प्रति व्यक्ति फसल क्षेत्र में 10% की कमी आई, लेकिन गहन कृषि भूमि उपयोग के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति वार्षिक फसल भूमि NPP में 3.5% की वृद्धि हुई।
  • विस्तार का कारण:

    • कृषि विस्तार को अक्सर निरंतर जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्य और ऊर्जा आवश्यकताओं में वैश्विक वृद्धि के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में समझाया जाता है।
      • वर्ष 2003-2019 से वैश्विक जनसंख्या में 21% की वृद्धि हुई।
  • विस्तार के साथ मुद्दे:

    • SDG15 के विरुद्ध :
      • वन हानि में फसल भूमि का विस्तार एक प्रमुख कारक है, जो सतत् विकास लक्ष्य 15 (SDG 15) का प्रतिकूल है।
        • SDG 15 का उद्देश्य वनों की कटाई और प्राकृतिक आवासों के क्षरण को रोकना है।
        • नए क्रॉपलैंड के 49% क्षेत्र ने प्राकृतिक वनस्पतियों और वृक्षों के आवरण को बदल दिया, जो स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा हेतु स्थिरता लक्ष्य के साथ संघर्ष का संकेत देते हैं।
    • पारिस्थितिक खतरा:
      • यह ग्रह के पारिस्थितिक स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक है।
        • क्रॉपलैंड का विस्तार ज़्यादातर मध्य और दक्षिण अमेरिका में जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट को प्रभावित करता है, जबकि क्रॉपलैंड गहनता से विशेष रूप से सब-सहारा अफ्रीका, भारत तथा चीन में जैव विविधता को खतरा है।
          • कृषि गहनता को तकनीकी रूप से कृषि उत्पादन में वृद्धि प्रति यूनिट इनपुट के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
    • वनों की कटाई का कारण
      • कृषि विस्तार वनों की कटाई और वन विखंडन का मुख्य कारण बना हुआ है।
    • FAO’s का अनुमान:
      • खाद्य और कृषि संगठन (FAO’s) के अनुसार यदि वर्तमान रुझान कायम रहा तो वर्ष 2050 तक दुनिया की कृषि योग्य भूमि लगभग 70 मिलियन हेक्टेयर बढ़ जाएगी और अधिकांश नई कृषि भूमि उन क्षेत्रों में होगी जो वर्तमान में वनाच्छादित हैं।
  • भारत में कृषि भूमि:

    • वर्ष 2018 में भारत में कृषि भूमि 60.43% बताई गई थी।
      • कृषि भूमि, उन भूमि क्षेत्र के हिस्से को संदर्भित करती है जो स्थायी फसलों के तहत और स्थायी चरागाह के तहत कृषि योग्य है।
      • कृषि भूमि के तहत FAO द्वारा अस्थायी फसलों के तहत परिभाषित भूमि (दोहरी फसल वाले क्षेत्रों को एक बार गिना जाता है), घास काटने या चारागाह के लिये अस्थायी घास का मैदान के तहत भूमि तथा अस्थायी रूप से परती भूमि शामिल होती है।

आहे की राह:

  • बेहतर कृषि पद्धतियाँ और प्रौद्योगिकी आवास हानि को कम तथा वन्यजीवों की रक्षा करते हुए कृषि उत्पादकता में वृद्धि कर सकती है।
    • "टिकाऊ गहनता" के रूप में जाना जाने वाला यह दृष्टिकोण का उद्देश्य एकीकृत फसल प्रबंधन और उन्नत कीट नियंत्रण जैसी तकनीकों का उपयोग करके मौज़ूदा कृषि भूमि के उत्पादन को बढ़ावा देना है।
    • यदि व्यापक रूप से टिकाऊ गहनता लागू की जाती है तो वर्तमान में खेती के तहत भूमि की कुल मात्रा को भी कम किया जा सकता है।
  • वन्यजीव आवासों की रक्षा हेतु विकासशील देशों को अधिक टिकाऊ कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करके भूमि के मौज़ूदा क्षेत्रों की उत्पादकता में वृद्धि करनी चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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