महिलाओं के प्रति अपराधों की बढ़ती शिकायतें : एनसीडब्ल्यू | 08 Sep 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने सूचित किया कि वर्ष 2021 के प्रारंभिक आठ महीनों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की शिकायतों में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 46% की वृद्धि हुई है।
- राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन जनवरी 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता और समान भागीदारी हासिल करने में सक्षम बनाने की दिशा में प्रयास करना है।
- अक्तूबर 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को एक ‘कभी न खत्म होने वाले चक्र’ (Never-Ending Cycle) के रूप में परिभाषित किया।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- प्रमुख अपराध (शिकायतों की संख्या):
- गरिमामयी जीवन जीने के अधिकार के खिलाफ > घरेलू हिंसा > विवाहित महिलाओं का उत्पीड़न या दहेज उत्पीड़न > महिलाओं का शील भंग या छेड़छाड़ > बलात्कार और बलात्कार का प्रयास > साइबर अपराध।
- राज्यवार आँकड़े:
- उत्तर प्रदेश (10,084)> दिल्ली (2,147)> हरियाणा (995)> महाराष्ट्र (974)।
- प्रमुख अपराध (शिकायतों की संख्या):
महिलाओं के प्रति हिंसा:
- परिचय:
- संयुक्त राष्ट्र महिलाओं के खिलाफ हिंसा को "लिंग आधारित हिंसा के रूप में परिभाषित करता है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं को शारीरिक, यौन या मानसिक नुकसान या पीड़ा होती है, जिसमें इस तरह के कृत्यों की धमकी, ज़बरदस्ती या मनमाने ढंग से उनको स्वतंत्रता से वंचित (चाहे सार्वजनिक या निजी जीवन में हो) करना शामिल है।
- महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक सामाजिक, आर्थिक, विकासात्मक, कानूनी, शैक्षिक, मानव अधिकार और स्वास्थ्य (शारीरिक और मानसिक) का मुद्दा है।
- कोविड -19 के प्रकोप के बाद से सामने आए आँकड़ों और रिपोर्टों से पता चला है कि महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा, विशेष रूप से घरेलू हिंसा में वृद्धि हुई है।
- कारण:
- लैंगिक असमानता महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बड़े कारणों में से एक है जो महिलाओं को कई प्रकार की हिंसा के जोखिम में डालती है।
- उनके अधिकारों को व्यापक रूप से संबोधित करने वाले कानूनों की अनुपस्थिति और मौजूदा विधियों की अज्ञानता।
- सामाजिक रवैये, कलंक और कंडीशनिंग ने भी महिलाओं को घरेलू हिंसा के प्रति संवेदनशील बना दिया है तथा ये मामलों की कम रिपोर्टिंग के मुख्य कारक हैं।
- प्रभाव:
- महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य परिणाम महिलाओं को उनके जीवन के सभी चरणों में प्रभावित करते हैं।
- उदाहरण के लिये प्रारंभिक शैक्षिक नुकसान न केवल सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा और लड़कियों के लिये शिक्षा के अधिकार हेतु प्राथमिक बाधा उत्पन्न करते हैं; बल्कि उच्च शिक्षा तक उनकी पहुँच को प्रतिबंधित करने और यहाँ तक कि श्रम बाज़ार में महिलाओं के लिये सीमित अवसरों की उपलब्धता के लिये भी दोषी हैं।
- वैश्विक प्रयास:
- ‘स्पॉटलाइट’ इनिशिएटिव: यूरोपीय संघ (EU) और संयुक्त राष्ट्र (UN) ने महिलाओं एवं लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के सभी रूपों को खत्म करने पर केंद्रित इस नई वैश्विक, बहु-वर्षीय पहल शुरू की है।
- इसका यह नाम इसलिये रखा गया है, क्योंकि यह विभिन्न मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है और उन्हें लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण के प्रयासों के केंद्र में रखती है।
- ‘महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस- 25 नवंबर।
- ‘यूएन वीमेन’ संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई है, जो लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु समर्पित है।
- ‘स्पॉटलाइट’ इनिशिएटिव: यूरोपीय संघ (EU) और संयुक्त राष्ट्र (UN) ने महिलाओं एवं लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के सभी रूपों को खत्म करने पर केंद्रित इस नई वैश्विक, बहु-वर्षीय पहल शुरू की है।
- भारतीय प्रयास
- संवैधानिक सुरक्षात्मक उपाय:
- मौलिक अधिकार
- यह सभी भारतीयों को समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14), लिंग के आधार पर राज्य द्वारा किसी भी प्रकार के भेदभाव से स्वतंत्रता (अनुच्छेद 15[1]) और महिलाओं के पक्ष में राज्य द्वारा किये जाने वाले विशेष प्रावधानों (अनुच्छेद 15[3]) की गारंटी देता है।
- मौलिक कर्त्तव्य
- अनुच्छेद 51(A) के तहत महिलाओं की गरिमा के लिये अपमानजनक प्रथाओं को प्रतिबंधित किया गया है।
- मौलिक अधिकार
- विधायी ढांँचा:
- संवैधानिक सुरक्षात्मक उपाय:
आगे की राह
- महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा समानता, विकास, शांति के साथ-साथ महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों की पूर्ति में एक बाधा बनी हुई है।
- कुल मिलाकर सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का वादा -’किसी को पीछे नहीं छोड़ना’ - महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को समाप्त किये बिना पूरा नहीं किया जा सकता है।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध का समाधान केवल कानून के तहत अदालतों में ही नहीं किया जा सकता है बल्कि इसके लिये एक समग्र दृष्टिकोण और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदलना आवश्यक है।
- इसके लिये कानून निर्माताओं, पुलिस अधिकारियों, फोरेंसिक विभाग, अभियोजकों, न्यायपालिका, चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग, गैर-सरकारी संगठनों, पुनर्वास केंद्रों सहित सभी हितधारकों को एक साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।