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भारतीय अर्थव्यवस्था

विनिवेश का वार्षिक लक्ष्य

  • 29 Jan 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

सरकार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में  विनिवेश (Disinvestment) से 3% से कम राजस्व जुटा पाई है। अतः राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) चालू वित्त वर्ष के लिये और अधिक हो सकता है।

  • सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिये कितनी उधारी की ज़रूरत होगी। कुल राजस्व में उधारी को शामिल नहीं किया जाता है।

प्रमुख बिंदु

वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये विनिवेश लक्ष्य:

  • वित्त मंत्री ने वर्ष 2020 के केंद्रीय बजट को पेश करते समय 2.1 लाख करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य की घोषणा की थी। इस तरह का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण पाने के लिये निर्धारित किया गया था ।
  • विनिवेश से इस वर्ष अब तक प्राप्त होने वाली कुल राशि 17.9 हज़ार करोड़ रुपए है जो लक्षित राजस्व का लगभग 3% है।

कम राजस्व प्राप्ति का कारण:

  • विनिवेश से राजस्व प्राप्ति का वार्षिक लक्ष्य, सामान्य लक्षित राजस्व से तीन से चार गुना अधिक निर्धारित किया गया था।
  • विनिवेश के लिये चिह्नित सार्वजनिक परिसंपत्तियों की बिक्री की गति धीमी रही।
  • सरकार के कामकाज को वर्तमान वर्ष में कोविड-19 महामारी ने गंभीर रूप से प्रभावित किया था।
  • सामान्यतः सरकार (कुछ वर्षों को छोड़कर) विनिवेश से उतना पैसा नहीं जुटा पाती जितना वह चाहती है।

Disinvestment-Targets

विनिवेश का अर्थ:

  • विनिवेश का अर्थ सरकार द्वारा की जाने वाली संपत्तियों की बिक्री या परिशोधन से है। इन संपत्तियों में सामान्यतः केंद्र और राज्यों के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, परियोजनाएँ और अन्य अचल संपत्तियों को शामिल किया जाता है।
  • विनिवेश, सरकारी खजाने पर राजकोषीय बोझ को कम करने या विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करने के लिये धन जुटाने हेतु किया जाता है।
    • इसके लिये केंद्र सरकार कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) जैसे- एयर इंडिया, भारत पेट्रोलियम, दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन आदि में निवेश करती है।
    • चूँकि सरकार के पास इन उपक्रमों के अधिकांश शेयर (51% से अधिक शेयर) हैं। अतः केंद्र इन सार्वजनिक उपक्रमों में अपने शेयरधारिता को बेचकर धन जुटा सकती है।

विनिवेश की विधियाँ:

  • कम मात्रा में विनिवेश: ये ऐसे विनिवेश होते हैं जिसके बाद भी सरकार के पास 51% से अधिक शेयर शेष बच जाते हैं और इन उपक्रमों का प्रबंधन सरकार के नियंत्रण में रहता है।
    • इसी प्रकार के विनिवेश के तहत सरकार ने वर्ष 2020 में जीवन बीमा निगम (LIC) में अपनी हिस्सेदारी कम कर दी।
  • अधिक मात्रा में विनिवेश: इस प्रकार के विनिवेश से सरकार के पास किसी उपक्रम में 51% से कम शेयर रह जाते हैं और सरकार इन उपक्रमों के प्रबंधन कार्य को नियंत्रित नहीं करती है।
  • पूर्ण विनिवेश या निजीकरण: यह अधिक मात्रा में किये जाने विनिवेश का एक रूप है जिसमें खरीदार को कंपनी पर 100% नियंत्रण का अधिकार दिया जाता है यानी भारत सरकार उस PSU को पूरी तरह से बेच देती है।
    • भारत सरकार ने वर्ष 2001 में एल्युमीनियम कंपनी को वेदांता समूह को बेच दिया था।

सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश का कारण:

  • उनके कामकाज की समग्र दक्षता में सुधार करना।
  • उन्हें आर्थिक और कॉर्पोरेट हितों को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक प्रभाव से अलग रखना।
    • खासकर जब पीएसयू सरकार के साथ लेन-देन करता है, उदाहरण के लिये जब वह अपने उत्पादों और सेवाओं को सरकार को बेचता है तो मूल्य निर्धारण बाज़ार के कारकों के अलावा अन्य कारकों से प्रभावित हो सकता है।
  • इस तरह के सार्वजनिक उपक्रमों को और अधिक कुशल बनाने के लिये।
  • निजी या कॉर्पोरेट स्वामित्व के परिणामस्वरूप अधिक कुशल प्रबंधन हो सकता है।
  • बजट घाटे को कम करना यानी इसके व्यय और कर राजस्व के बीच के अंतर को भरना।
  • आधारभूत संरचना और कल्याणकारी योजनाओं जैसे अन्य क्षेत्रों के लिये अधिक धन की अवश्यकत को पूरा करने के लिये।

विनिवेश के दृष्टिकोण में बदलाव:

  • आर्थिक उदारीकरण से पहले सरकार की संपत्ति के मुद्रीकरण हेतु परिवार की चांदी (Family Silver) बेचने जैसे प्रयासों की आलोचना की गई थी।
  • लेकिन उदारीकरण के बाद सरकारी हिस्सेदारी में कमी विशेष रूप से रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों, जहाँ सरकार की उपस्थिति आवश्यक नहीं है, में विनिवेश का स्वागत किया जाता है।

विनिवेश के लिये नोडल एजेंसी:

  • वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (Investment and Public Asset Management) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में भारत सरकार के निवेश को प्रबंधित करता है।
  • केंद्र की संपत्ति की बिक्री DIPAM के शासनादेश के अंतर्गत आती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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