भारत की पनडुब्बी क्षमता | 10 Nov 2021
प्रिलिम्स के लिये:डीज़ल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ, प्रथम विश्व युद्ध, स्कॉर्पीन पनडुब्बी, P-75 मेन्स के लिये:भारतीय पनडुब्बी क्षमता एवं उनके आधुनिकीकरण से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अपनी पनडुब्बियों के बेड़े के आधुनिकीकरण के मामले में पहले से ही एक दशक पीछे है, जबकि चीन अपनी बड़ी नौसेना और अति विशिष्ट पनडुब्बी क्षमताओं में आगे बढ़ गया है।
- प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान पनडुब्बी पहली बार नौसैनिक युद्ध में एक प्रमुख कारक बन गई, द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) में भी पनडुब्बियों ने बड़े पैमाने पर भूमिका निभाई।
प्रमुख बिंदु
- भारत में पनडुब्बियों की संख्या:
- वर्तमान में भारत में 15 पारंपरिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ हैं, जिन्हें एसएसके ( SSK) के रूप में वर्गीकृत किया गया है और एक परमाणु बैलिस्टिक पनडुब्बी है, जिसे एसएसबीएन (SSBN) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारत की अधिकांश पनडुब्बियाँ 25 वर्ष से अधिक पुरानी हैं, जिनमें से कई का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।
- पनडुब्बियों का वर्गीकरण:
- डीज़ल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ (SSK):
- डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ परिचालन हेतु डीज़ल इंजनों द्वारा चार्ज की गईं इलेक्ट्रिक मोटरों का उपयोग करती हैं। इन इंजनों को संचालित करने के लिये हवा और ईंधन की आवश्यकता होती है, इसलिये उन्हें बार-बार सतह पर आना पड़ता है, जिससे उनका पता लगाना आसान हो जाता है।
- एसएसके पनडुब्बियों में से चार शिशुमार श्रेणी (Shishumar Class) की पनडुब्बियाँ हैं, जिन्हें वर्ष 1980 के दशक में जर्मनी के सहयोग से भारत लाया और बनाया गया।
- किलो श्रेणी या सिंधुघोष श्रेणी की आठ पनडुब्बियाँ हैं, जिन्हें वर्ष 1984 और वर्ष 2000 के बीच रूस (पूर्व सोवियत संघ सहित) से खरीदा गया था।
- तीन कलवरी श्रेणी की स्कॉर्पीन पनडुब्बी (P-75) हैं, जिसका निर्माण फ्राँस के नेवल ग्रुप के सहयोग से भारत के मझगांव डॉक पर किया गया है।
- परमाणु शक्ति आक्रामक पनडुब्बी (SSN):
- SSN अनिश्चित काल तक समुद्र के भीतर रहकर कार्य कर सकते हैं; यह केवल चालक दल की सहनशक्ति या खाद्य आपूर्ति की कमी से प्रभावित हो सकती है। ये पनडुब्बियाँ टॉरपीडो, एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइल और लैंड-अटैक क्रूज़ मिसाइल जैसे कई सामरिक हथियारों से भी लैस हैं।
- भारत अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांँस और चीन के साथ छह देशों में एसएसएन है।
- भारत द्वारा आईएनएस चक्र 2 एसएसएन पनडुब्बी रूस से वर्ष 2022 तक लीज़ पर ली गई है।
- परमाणु शक्ति बैलिस्टिक मिसाइलयुक्त पनडुब्बी (SSBN):
- यह एक धीमी गति से चलने वाला 'बॉम्बर' या बमबारी करने वाला यंत्र और परमाणु हथियारों के लिये एक गोपनीय ‘लॉन्च प्लेटफॉर्म’ है।
- अरिहंत और निर्माणाधीन तीन एसएसबीएन सामरिक बल कमान (SFC) का हिस्सा हैं।
- भारत की आधुनिकीकरण योजना:
- 30-वर्षीय योजना: वर्ष 1999 में सुरक्षा पर कैबिनेट समिति द्वारा अनुमोदित स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण के लिये 30-वर्षीय योजना (2000-30) निर्मित की गई, जिसके तहत एक विदेशी मूल उपकरण निर्माता (OEM) के सहयोग से भारत में निर्मित दो उत्पादन श्रेणियों की छह पनडुब्बियों के निर्माण की परिकल्पना की गई थी।
- इन परियोजनाओं को P-75 और P-75I के नाम से जाना जाता था।
- यह अनुमान लगाया गया था कि भारत को 2012-15 तक 12 नई पनडुब्बियाँ मिल जाएंगी। इसके बाद भारत वर्ष 2030 तक अपने 12 बेड़े निर्मित करेगा, जिससे बेड़ों (Fleet) की संख्या 24 हो जाएगी तथा पुरानी पनडुब्बियों को सेवामुक्त कर दिया जाएगा।
- लेकिन P-75 के अनुबंध पर फ्रांँस की DCNS के साथ वर्ष 2005 में ही हस्ताक्षर किये गए थे। वर्तमान में यह अनुबंध नौसेना समूह के साथ किया गया है।
- P-75: निर्माणाधीन छह पनडुब्बियों में से P-75 के तहत अब तक तीन कलवरी श्रेणी की स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की डिलीवरी की गई है।
- P-75I: अभी इसका संचालन शेष है; इस संबंध में प्रस्ताव जुलाई 2021 में जारी किया गया था।
- यह स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप मॉडल के तहत भारत का पहली पनडुब्बी होगी, जिसे वर्ष 2015 में लाया गया था।
- 30-वर्षीय योजना: वर्ष 1999 में सुरक्षा पर कैबिनेट समिति द्वारा अनुमोदित स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण के लिये 30-वर्षीय योजना (2000-30) निर्मित की गई, जिसके तहत एक विदेशी मूल उपकरण निर्माता (OEM) के सहयोग से भारत में निर्मित दो उत्पादन श्रेणियों की छह पनडुब्बियों के निर्माण की परिकल्पना की गई थी।
- भारतीय नौसेना निर्माण के लिये चुनौतियाँ:
- चीन की नौसेना शक्ति:
- इस तथ्य के बावजूद कि समुद्र ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत चीन को उसके प्राकृतिक भौगोलिक लाभों को देखते हुए रोक सकता है, भारतीय समुद्र के बेड़े में अपेक्षित क्षमता की कमी बनी हुई है।
- चीन के पास पहले से ही 350 युद्धपोतों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, जिसमें 50 पारंपरिक और 10 परमाणु पनडुब्बी शामिल हैं।
- आधुनिकीकरण में भारत की देरी:
- उदाहरण: P-75 हेतु किये गए अनुबंध पर हस्ताक्षर करने में देरी।
- भारतीय नौसेना की अनिवार्यताओं में कमी:
- भारतीय नौसेना की अन्य महत्वपूर्ण कमियाँ हैं, जिनमें आवश्यक क्षमताएँ शामिल हैं, जैसे-"दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगाने हेतु उन्नत टोड ऐरे सोनार (ATAS), एवं उन्हें अप्रभावी करने के लिये भारी वज़न वाले टॉरपीडो और विभिन्न वायु रक्षा प्रणालियाँ, जो न केवल उनकी उत्तरजीविता हेतु बल्कि उनकी समग्र आक्रामक क्षमता हेतु भी महत्वपूर्ण हैं।
- समझौता रद्द करना:
- भारत ने असंबद्ध भ्रष्टाचार घोटाले के परिणामस्वरूप ‘फिनमेकैनिका’ की सहायक कंपनी WASS द्वारा निर्मित भारी वज़न वाले ब्लैक शार्क टॉरपीडो का एक सौदा रद्द कर दिया, जिसमें फिनमेकैनिका, ऑगस्टा-वेस्टलैंड की एक अन्य सहायक कंपनी शामिल थी।
- AIP सिस्टम का धीमी गति से विकास:
- वायु स्वतंत्र प्रणोदन (Air Independent Propulsion -AIP) प्रणाली पनडुब्बियों की गोपनीयता बनाए रखती है साथ ही लंबे समय तक पानी के भीतर रहने की अनुमति देती है।
- हालाँकि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी AIP प्रणाली के विकास में देरी हुई है।
- नौसेना पर सरकार का कम ध्यान:
- भारतीय बजट का अधिकांश हिस्सा सेना पर केंद्रित है, जिसमें वायु सेना दूसरे स्थान पर है और नौसेना तीसरे स्थान पर है।
- नौसैनिक क्षमता निर्माण समयावधि के दौरान पूंजी-गहन साबित होने की समस्या भारत को अपनी नौसेना क्षमताओं के विकास की गति में वृद्धि से रोकता है, यहाँ तक कि चीन जैसे प्रतियोगी अधिक तेज़ी से आगे बढ़ते हैं।
- चीन की नौसेना शक्ति:
आगे की राह
- जब तक नौसैनिक कौशल में अंतर को जल्दी से कम नहीं किया जाएगा, तब तक हिंद महासागर पर चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने में भारत की अक्षमता बनी रहेगी।
- अगर भारत को क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान) और उसकी इंडो-पैसिफिक महत्त्वाकांक्षाओं पर बात करनी है, तो रक्षा क्षेत्र में आधुनिकीकरण की देरी को जल्दी से दूर करना चाहिये।
- भारत को अपनी संबंधित क्षमताओं में गिरावट को रोकने के लिये अपनी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और अपनी जटिल अधिग्रहण प्रक्रिया को बदलने की आवश्यकता है।