सामाजिक न्याय
मानवाधिकार दिवस
- 11 Dec 2020
- 10 min read
चर्चा में क्यों?
विश्व भर में प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस का आयोजन किया जाता है। ज्ञात हो कि इसी दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) को अपनाया था।
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के तहत मानवीय दृष्टिकोण और राज्य तथा व्यक्ति के बीच संबंध को लेकर कुछ सामान्य बुनियादी मूल्यों का एक सेट स्थापित किया है।
- वर्ष 2020 की थीम: रिकवर बेटर- स्टैंड अप फॉर ह्यूमन राइट्स
प्रमुख बिंदु
मानवाधिकार
- सरल शब्दों में कहें तो मानवाधिकारों का आशय ऐसे अधिकारों से है जो जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त होते हैं।
- मानवाधिकारों में मुख्यतः जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार तथा काम एवं शिक्षा का अधिकार, आदि शामिल हैं।
- मानवाधिकारों के संबंध में नेल्सन मंडेला ने कहा था, ‘लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है।’
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कन्वेंशन और निकाय
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR)
- इसके अंतर्गत अधिकारों और स्वतंत्रताओं से संबंधित कुल 30 अनुच्छेदों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें जीवन, स्वतंत्रता और गोपनीयता जैसे नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।
- भारत ने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के प्रारूपण में सक्रिय भूमिका अदा की थी।
- यह किसी भी प्रकार की संधि नहीं है, अतः यह प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी देश के लिये कानूनी दायित्त्व निर्धारित नहीं करता है।
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR), इंटरनेशनल कान्वेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स, इंटरनेशनल कान्वेंट ऑन इकोनॉमिक, सोशल एंड कल्चर राइट तथा इसके दो वैकल्पिक प्रोटोकॉल्स को संयुक्त रूप से ‘अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधेयक’ (International Bill of Human Rights) के रूप में जाना जाता है।
- इसके अंतर्गत अधिकारों और स्वतंत्रताओं से संबंधित कुल 30 अनुच्छेदों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें जीवन, स्वतंत्रता और गोपनीयता जैसे नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।
- अन्य कन्वेंशन
- इसमें शामिल हैं:
- कन्वेंशन ऑन द प्रिवेंशन एंड पनिशमेंट ऑफ़ द क्राइम ऑफ जेनोसाइड (वर्ष 1948)
- इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉम ऑफ रेसियल डिस्क्रिमिनेशन (वर्ष 1965)
- कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉम ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेन्सट विमेन (वर्ष 1979)
- बाल अधिकारों पर कन्वेंशन (वर्ष 1989)
- विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन (वर्ष 2006)
- ध्यातव्य है कि भारत इन सभी कन्वेंशन्स का हिस्सा है।
- इसमें शामिल हैं:
- मानवाधिकार परिषद
- मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है जो कि मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण की दिशा में कार्य करती है। यह संयुक्त राष्ट्र के 47 सदस्य देशों से मिलकर बनी है, जिनका चयन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा किया जाता है।
- सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (UPR) प्रकिया को मानवाधिकार परिषद का सबसे अनूठा प्रयास माना जाता है। इस अनूठे तंत्र के अंतर्गत प्रत्येक चार वर्ष में एक बार संयुक्त राष्ट्र के सभी 192 सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा की जाती है।
- एमनेस्टी इंटरनेशनल
- यह मानवाधिकारों की वकालत करने वाले कुछ स्वयंसेवकों का अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। यह संगठन पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर स्वतंत्र रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1961 में पीटर बेन्सन नामक एक ब्रिटिश वकील द्वारा की गई थी और इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है।
भारत में मानवाधिकार
संवैधानिक प्रावधान
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) में उल्लिखित लगभग सभी अधिकारों को भारतीय संविधान में दो हिस्सों (मौलिक अधिकार और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत) में शामिल किया गया है।
- मौलिक अधिकार: संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक। इसमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है।
- राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत: संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक। इसमें सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, काम का अधिकार, रोज़गार चयन का अधिकार, बेरोज़गारी के विरुद्ध सुरक्षा, समान काम तथा समान वेतन का अधिकार, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार तथा मुफ्त कानूनी सलाह का अधिकार आदि शामिल हैं।
सांविधिक प्रावधान
- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में केंद्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गठन की बात कही गई है, जो कि संविधान में प्रदान किये गए मौलिक अधिकारों के संरक्षण और उससे संबंधित मुद्दों के लिये राज्य मानवाधिकार आयोगों और मानवाधिकार न्यायालयों का मार्गदर्शन करेगा।
हालिया घटनाक्रम
- अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के कारण भारत पुनः मानवाधिकार को लेकर अंतर्राष्ट्रीय चर्चा के केंद्र में आ गया है।
- वर्ष 2014 से अब तक सरकार विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act) के तहत 14,000 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) का पंजीकरण रद्द कर चुकी है और इस कार्यवाही के तहत मुख्य तौर पर सरकार के आलोचकों को लक्षित किया गया है।
- बीते कई वर्षों से मुस्लिमों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के साथ-साथ दलितों तथा आदिवासियों के विरुद्ध बड़ी संख्या में लिंग व जाति आधारित अपराध की घटनाएँ दर्ज की जा रही हैं।
- ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2020’ रिपोर्ट में भारत को तिमोर-लेस्ते (Timor-Leste) और सेनेगल (Senegal) के साथ 83वें स्थान पर रखा गया है। इस वर्ष भारत का स्कोर चार अंक गिरकर 71 हो गया, जो इस वर्ष विश्व के 25 सबसे बड़े लोकतंत्रों के स्कोर में सबसे अधिक गिरावट है।
- सरकार द्वारा किये गए उपाय:
- कोरोना वायरस महामारी के दौरान सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति के लिये आवश्यक भोजन सुनिश्चित करने का प्रयास किया है, ताकि कोई भी भूखा न रहे।
- इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों के सशक्तीकरण के लिये मनरेगा के तहत किये गए काम की मज़दूरी दर में भी वृद्धि की गई है। सरकार ने महामारी से प्रभावित प्रवासी मज़दूरों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और जीवनयापन में उनकी सहायता करने के लिये उनके बैंक खातों में प्रत्यक्ष धन हस्तांतरण की व्यवस्था की है।
आगे की राह
- मानवाधिकारों को सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का केंद्रबिंदु माना जाता है, क्योंकि मानवीय गरिमा के अभाव में कोई भी व्यक्ति सतत् विकास की उम्मीद नहीं कर सकता है।
- कोरोना वायरस संकट के कारण गरीबी तथा असमानता को कम करने और मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने की दिशा में हो रहे प्रयासों पर गहरा प्रभाव पड़ा है तथा गरीबी, असमानता, भेदभाव जैसे मुद्दों ने और भी गंभीर रूप धारण कर लिया है। इन अंतरालों को कम करने तथा मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के प्रयासों के माध्यम से ही अधिक बेहतर और सतत् विश्व का निर्माण सुनिश्चित किया जा सकता है।