भारी धातु प्रदूषण | 07 Jun 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारी धातु, भारी धातु प्रदूषण, नमामि गंगे मिशन, केंद्रीय जल आयोग। मेन्स के लिये:नदी प्रदूषण में भारी धातुओं का योगदान, अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) ने जानकारी दी है कि भारत की नदियाँ गंभीर धातु प्रदूषण का सामना कर रही हैं।
- भारत में प्रत्येक चार नदी निगरानी स्टेशनों में से तीन में सीसा, लोहा, निकल, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम और तांबे जैसी भारी ज़हरीली धातुओं का खतरनाक स्तर पाया गया है।
भारी धातु प्रदूषण:
- भारी धातु:
- भारी धातुओं को उन तत्त्वों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिनकी परमाणु संख्या 20 से अधिक और परमाणु घनत्व 5 ग्राम सेमी 3 से अधिक होता है तथा जिसमें धातु जैसी विशेषताएँ पाई जाती हैं। उदाहरण के लिये आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, सीसा, मैंगनीज़, पारा, निकल, यूरेनियम आदि।
- भारी धातु प्रदूषण का कारण:
- तेज़ी से बढ़ते कृषि और धातु उद्योगों, अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन, उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप हमारी नदियों, मिट्टी और पर्यावरण पर भारी धातु प्रदूषण का प्रभाव पड़ा है।
- भूजल में भारी धातुओं के प्राथमिक स्रोत कृषि और औद्योगिक संचालन, लैंडफिलिंग, खनन एवं परिवहन हैं।
- कृषि जल अपवाह के माध्यम से भारी धातुएँ नदी में पहुँच जाती हैं।
- उद्योगों से अपशिष्ट जल का निर्वहन (जैसे चर्मशोधन उद्योग जो क्रोमियम जैसे भारी धातुओं का एक बड़ा स्रोत है) नदी निकायों में भारी धातु प्रदूषण की गंभीरता को और बढ़ा देता है।
- भारी धातु पौधों, जानवरों और पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहते हैं।
भारी धातुओं के स्रोत:
- मुख्यतः दो प्रकार के स्रोतों के माध्यम से भारी धातुएँ पर्यावरण में प्रवेश करती हैं।
- प्राकृतिक स्रोत:
- भारी धातुएँ पृथ्वी की क्रस्ट में प्राकृतिक रूप से मौजूद होती हैं। चट्टानें भारी धातुओं के प्राकृतिक स्रोत हैं। भारी धातुएँ चट्टानों में खनिजों के रूप में उपस्थित होती हैं। उदाहरण आर्सेनिक, तांबा, सीसा आदि।
- मानवजनित स्रोत:
- खनन, औद्योगिक और कृषि कार्य पर्यावरण में भारी धातुओं के सभी मानवजनित स्रोत हैं।
- इन भारी धातुओं का उत्पादन उनके संबंधित अयस्कों से विभिन्न तत्त्वों के खनन एवं निष्कर्षण के दौरान किया जाता है।
- खनन, गलाने और अन्य औद्योगिक गतिविधियों के दौरान वातावरण में उत्सर्जित भारी धातुएँ शुष्क एवं गीले निक्षेपण द्वारा भूमि पर जमा हो जाती हैं।
- औद्योगिक अपशिष्ट और घरेलू सीवेज जैसे अपशिष्ट जल का निष्कासन पर्यावरण में भारी धातुओं को बढ़ाता है।
- रासायनिक उर्वरकों के उपयोग और जीवाश्म ईंधन के दहन से पर्यावरण में भारी धातुओं का उत्सर्जन भी मानवजनित स्रोत है।
- प्राकृतिक स्रोत:
भारी धातु प्रदूषण निगरानी के निहितार्थ:
- भारत में 764 नदी गुणवत्ता निगरानी स्टेशन हैं, जो 28 राज्यों में फैले हुए हैं।
- केंद्रीय जल आयोग ने अगस्त 2018 और दिसंबर 2020 के बीच भारी धातुओं के लिये 688 साइटों से पानी के नमूनों की जांँच की।
- गंगा नदी के 33 निगरानी स्टेशनों में से 10 में भारी धातुओं के संदूषकों का उच्च स्तर था।
- 21 राज्यों में प्रदूषण की जांँच करने के बाद पाया गया कि 588 जल गुणवत्ता स्टेशनों में से कुल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया और जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD) क्रमशः 239 और 88 में अधिक थी।
- यह इंगित करता है कि उद्योग, कृषि और घरेलू अपशिष्ट जल उपचार की स्थिति अपर्याप्त है।
- सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट की स्टेट ऑफ द एन्वायरनमेंट रिपोर्ट 2022 के अनुसार, नदी, जो कि नमामि गंगे मिशन का केंद्र बिंदु है, में सीसा, लोहा, निकल, कैडमियम और आर्सेनिक (सीएसई) उच्च स्तर है।
- यह रिपोर्ट सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त पर्यावरण विकास पर आंँकड़ों का वार्षिक संकलन है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, दस राज्य अपने सीवेज का उपचार नहीं करते हैं।
- भारत में 72% सीवेज अपशिष्ट अनुपचारित छोड़ दिया जाता है।
भारी धातु प्रदूषण के प्रभाव:
- पर्यावरण में प्रवेश करने वाली ये ज़हरीली भारी धातुएंँ जैव संचय और जैव आवर्द्धन का कारण बन सकती हैं।
- जैव संचय:
- जल, वायु और भोजन सहित सभी स्रोतों से किसी जीव में प्रदूषक का शुद्ध संचय जैव संचय कहलाता है।'
- जैव आवर्द्धन:
- जैव आवर्द्धन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शिकारियों के भीतर ज़हरीले रसायन संचित होते हैं। यह प्रायः संपूर्ण खाद्य शृंखला में होता है और सभी जीवों को प्रभावित करता है परंतु शृंखला में शीर्ष पर रहने वाले जानवर अधिक प्रभावित होते हैं।
- जैव संचय:
- कुछ भारी धातुएंँ जैविक गतिविधियों और वृद्धि पर प्रभाव डालती हैं, जबकि अन्य एक या एक से अधिक अंगों में जमा हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई तरह के गंभीर रोग जैसे- कैंसर, त्वचा रोग, तंत्रिका तंत्र विकार आदि उत्पन्न होते हैं।
- धातु विषाक्तता के परिणामस्वरूप मुक्त कणों का उत्पादन होता है, जो DNA को नुकसान पहुंँचाते हैं।
- ये भारी धातुएंँ प्रकृति में आसानी से नष्ट नहीं होती हैं और जहर के रूप में जानवरों के साथ-साथ मानव शरीर में बहुत अधिक मात्रा में जमा हो जाती हैं।
- भारी धातु का सेवन विकासात्मक मंदता, गुर्दे की क्षति, विभिन्न प्रकार के कैंसर और यहांँ तक कि चरम मामलों में मृत्यु से संबंधित है।
नमामि गंगे मिशन :
- नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम' के रूप में अनुमोदित किया गया था, ताकि प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण एवं कायाकल्प के दोहरे उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।
- यह जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग तथा जल शक्ति मंत्रालय के तहत संचालित किया जा रहा है।
- यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) और इसके राज्य समकक्ष संगठनों यानी राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों (SPMGs) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- NMCG राष्ट्रीय गंगा परिषद का कार्यान्वयन विंग है, यह वर्ष 2016 में स्थापित किया गया था जिसने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) को प्रस्थापित किया।
- कार्यक्रम के मुख्य स्तंभ हैं:
- सीवेज ट्रीटमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर
- रिवर फ्रंट डेवलपमेंट
- नदी-सतह की सफाई
- जैव विविधता
- वनीकरण
- जन जागरण
- औद्योगिक प्रवाह निगरानी
- गंगा ग्राम
केंद्रीय जल आयोग :
- केंद्रीय जल आयोग जल संसाधन के क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख तकनीकी संगठन है और वर्तमान में यह जल शक्ति मंत्रालय के अधीन कार्य कर रहा है।
- आयोग राज्य सरकारों के परामर्श से सिंचाई, बाढ़ प्रबंधन, बिजली उत्पादन, नौवहन आदि के उद्देश्य के लिए पूरे देश में जल संसाधनों के नियंत्रण, संरक्षण, विकास और उपयोग की योजनाओं को शुरू करने, समन्वय करने और आगे बढ़ाने के लिये ज़िम्मेदार है।