पूर्वी आर्थिक मंच (EEF) | 04 Sep 2021
प्रिलिम्स के लियेपूर्वी आर्थिक मंच, एक्ट ईस्ट नीति, ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय मेन्स के लियेपूर्वी आर्थिक मंच का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री (PM) ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से छठे पूर्वी आर्थिक मंच (EEF) के पूर्ण सत्र को संबोधित किया।
- प्रधानमंत्री ने 'विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' के अनुरूप भारत-रूस संबंधों और सहयोग के संभावित क्षेत्रों के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
प्रमुख बिंदु
- प्रधानमंत्री के संबोधन की मुख्य बातें:
- रूसी सुदूर-पूर्व के विकास के लिये राष्ट्रपति पुतिन के दृष्टिकोण की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” के तहत रूस के एक विश्वसनीय भागीदार होने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया।
- महामारी के दौरान सहयोग के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के रूप में उभरे स्वास्थ्य और फार्मा क्षेत्र के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
- उन्होंने हीरा, कोकिंग कोल, स्टील, लकड़ी समेत आर्थिक सहयोग के अन्य संभावित क्षेत्रों का भी उल्लेख किया।
- पूर्वी आर्थिक मंच के बारे में:
- ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम की स्थापना रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा वर्ष 2015 में की गई थी।
- इस फोरम की बैठक प्रत्येक वर्ष रूस के शहर व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) में आयोजित की जाती है।
- यह फोरम विश्व अर्थव्यवस्था के प्रमुख मुद्दों, क्षेत्रीय एकीकरण, औद्योगिक तथा तकनीकी क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ रूस और अन्य देशों के समक्ष मौजूद वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
- फोरम के व्यापार कार्यक्रम में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के प्रमुख भागीदार देशों और आसियान के साथ कई व्यापारिक संवाद शामिल हैं, जो दक्षिण-पूर्व एशिया में गतिशील रूप से विकासशील देशों का एक प्रमुख एकीकरण संगठन है।
- यह रूस और एशिया प्रशांत के देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को विकसित करने की रणनीति पर चर्चा करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय मंच के रूप में उभरा है।
- भारत-रूस संबंधों का महत्त्व:
- चीनी आक्रामकता के खिलाफ संतुलन: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रामकता ने भारत-चीन संबंधों की प्रगति को प्रभावित किया है, हालाँकि यह भारत-चीन के बीच तनाव को कम करने में रूस की क्षमता को भी दर्शाता है।
- रूस ने लद्दाख के विवादित गलवान घाटी क्षेत्र में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए हिंसक संघर्ष के बाद रूस, भारत तथा चीन के विदेश मंत्रियों के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक का आयोजन किया था।
- आर्थिक जुड़ाव के उभरते नए क्षेत्र: हथियार, हाइड्रोकार्बन, परमाणु ऊर्जा (कुडनकुलम), अंतरिक्ष (गगनयान) तथा हीरे जैसे सहयोग के पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा भारत और रूस के बीच आर्थिक जुड़ाव के नए क्षेत्रों (जैसे- रोबोटिक्स, नैनोटेक, बायोटेक, खनन, कृषि-औद्योगिक एवं उच्च प्रौद्योगिकी) में अवसरों के उभरने की संभावना है।
- भारत द्वारा रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक क्षेत्र में अपनी पहुँच के विस्तार के लिये कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी परियोजनाओं को भी बढ़ावा मिल सकता है।
- यूरेशियन आर्थिक संघ को पुनर्जीवित करना: रूस यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन की वैधता के लिये भारत की सॉफ्ट पॉवर का लाभ उठाने के साथ शीत युद्ध के समय की तरह ही इस क्षेत्र पर अपने आधिपत्य को फिर से स्थापित करने का प्रयास करा रहा है।
- आतंकवाद का मुकाबला: भारत और रूस साथ मिलकर अफगानिस्तान में अपनी पहुँच को बढ़ाने के लिये कार्य कर रहे हैं, साथ ही दोनों देशों ने ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) को शीघ्र ही अंतिम रूप दिये जाने की मांग की है।
- बहुपक्षीय मंचों पर समर्थन: इसके अतिरिक्त रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
- डिप्लोमेसी: रूस लंबे समय से भारत का मित्र रहा है; इसने न केवल भारत को एक दुर्जेय सैन्य प्रोफाइल बनाए रखने के लिये हथियार प्रदान किये बल्कि विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों पर अमूल्य राजनयिक समर्थन भी दिया।
- रक्षा सहयोग: हालाँकि भारत जान-बूझकर अन्य देशों से अपनी नई रक्षा खरीद में विविधता लाया है, लेकिन इसके रक्षा उपकरण (60 से 70%) का बड़ा हिस्सा अभी भी रूस से है।
- ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम, SU-30 एयरक्राफ्ट और T-90 टैंकों का भारत में उत्पादन, दोनों देशों के बीच बढ़ रहे रक्षा व सुरक्षा संबंधों का एक उदाहरण है।
- सैन्य अभ्यास:
- अभ्यास- TSENTR
- इंद्र सैन्य अभ्यास- संयुक्त त्रि-सेवा (सेना, नौसेना, वायु सेना) अभ्यास
- चीनी आक्रामकता के खिलाफ संतुलन: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रामकता ने भारत-चीन संबंधों की प्रगति को प्रभावित किया है, हालाँकि यह भारत-चीन के बीच तनाव को कम करने में रूस की क्षमता को भी दर्शाता है।