प्रारंभिक परीक्षा
सिकल सेल रोग और थैलेसीमिया के लिये कैसगेवी थेरेपी
स्रोत:इकॉनोमिक टाइम्स
हाल ही में यूके ड्रग रेगुलेटर ने कैसगेवी (Casgevy) नामक जीन थेरेपी को मंज़ूरी दी है, जिसे सिकल सेल रोग और थैलेसीमिया के इलाज के लिये एक महत्त्वपूर्ण सफलता माना गया।
- विशेष रूप से यह CRISPR-Cas9 जीन संपादन तकनीक का लाभ उठाने वाली विश्व की पहली लाइसेंस प्राप्त थेरेपी का प्रतीक है, जिसने इसके नवप्रवर्तकों को रसायन विज्ञान में 2020 का नोबेल पुरस्कार दिलाया।
कैसगेवी थेरेपी कैसे कार्य करती है?
- सिकल सेल रोग एवं थैलेसीमिया दोनों लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन (Hb) प्रोटीन के जीन में त्रुटियों के कारण होते हैं, जो अंगों और ऊतकों तक ऑक्सीजन ले जाते हैं।
- थेरेपी में रोगी की स्वयं की रक्त स्टेम कोशिकाओं का उपयोग किया जाता है, जिन्हें CRISPR-Cas9 का उपयोग करके सटीक रूप से संपादित किया जाता है।
- BCL11A नामक जीन, जो भ्रूण से वयस्क हीमोग्लोबिन में बदलने के लिये महत्त्वपूर्ण है, साथ ही यह थेरेपी द्वारा लक्षित भी है।
- भ्रूण का हीमोग्लोबिन, जो जन्म के समय हर किसी में स्वाभाविक रूप से मौजूद होता है, में वयस्क हीमोग्लोबिन जैसी असामान्यताएँ नहीं होती हैं।
- थेरेपी भ्रूण के हीमोग्लोबिन का अधिक उत्पादन शुरू करने के लिये शरीर के अपने तंत्र का उपयोग करती है, जिससे दोनों स्थितियों के लक्षण कम हो जाते हैं।
- कैसगेवी में एक ही उपचार शामिल होता है जिसमें रक्त स्टेम कोशिकाओं को एफेरेसिस के माध्यम से निकाला जाता है और फिर रोगी में दोबारा प्रेषित करने से पूर्व लगभग छह महीने तक संपादित किया जाता है।
- एफेरेसिस एक चिकित्सा तकनीक है जिसमें किसी व्यक्ति के रक्त को एक उपकरण के माध्यम से पारित किया जाता है जो एक विशेष घटक को अलग करता है तथा शेष को परिसंचरण में वापस कर देता है।
सिकल सेल रोग और थैलेसीमिया क्या हैं?
- सिकल सेल रोग:
- परिचय: सिकल सेल रोग एक आनुवांशिक रक्त रोग है जिसमे हीमोग्लोबिन में विसंगति उत्पन्न हो जाती है, हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन है, जो ऑक्सीजन का परिवहन करता है।
- इसके कारण लाल रक्त कोशिकाएँ अर्द्धचंद्राकार आकार धारण कर लेती हैं, जिससे वाहिकाओं के माध्यम से उनकी गति बाधित होती है, जिससे गंभीर दर्द, संक्रमण, एनीमिया और स्ट्रोक जैसी संभावित जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
- केवल भारत में अनुमानतः प्रतिवर्ष 30,000-40,000 बच्चे सिकल सेल रोग के साथ जन्म लेते हैं।
- प्रकार: इसमें विभिन्न प्रकार शामिल हैं, जिसमें से प्रत्येक माता-पिता से विरासत में मिले जीन पर निर्भर करता है, जो असामान्य हीमोग्लोबिन की एन्कोडिंग करते हैं। SCD के सबसे प्रचलित रूपों में शामिल हैं:
- HbSS (सिकल सेल एनीमिया): व्यक्तियों को दो "S" जीन विरासत में मिलते हैं, प्रत्येक माता-पिता से एक, जिसके परिणामस्वरूप असामान्य हीमोग्लोबिन "S" होता है।
- यह प्रकार प्राय: कठोर अर्द्धचंद्राकार लाल रक्त कोशिकाओं की विशेषता वाले गंभीर लक्षणों की ओर ले जाता है।
- HbSC: माता-पिता में से एक से "S" जीन और दूसरे से एक अलग असामान्य हीमोग्लोबिन, "C" विरासत में मिलने से यह सिकल सेल रोग का कम प्रभावी प्रकार होता है।
- HbS बीटा थैलेसीमिया: यह रूप एक माता-पिता से "S" जीन और दूसरे से बीटा थैलेसीमिया जीन विरासत में मिलने से उत्पन्न होता है।
- गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि बीटा थैलेसीमिया "शून्य" (HbS बीटा0) है या "प्लस" (HbS बीटा+), पहले वाले में प्राय: अधिक गंभीर लक्षण प्रस्तुत होते है और बाद वाले में कम गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं।
- HbSS (सिकल सेल एनीमिया): व्यक्तियों को दो "S" जीन विरासत में मिलते हैं, प्रत्येक माता-पिता से एक, जिसके परिणामस्वरूप असामान्य हीमोग्लोबिन "S" होता है।
- परिचय: सिकल सेल रोग एक आनुवांशिक रक्त रोग है जिसमे हीमोग्लोबिन में विसंगति उत्पन्न हो जाती है, हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन है, जो ऑक्सीजन का परिवहन करता है।
- थैलेसीमिया: सिकल सेल रोग के समान थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्तियों को कम हीमोग्लोबिन के स्तर के कारण गंभीर एनीमिया का अनुभव होता है, जिससे लौह संचय को प्रबंधित करने के लिये आजीवन रक्ताधान और केलेशन थेरेपी की आवश्यकता होती है।
- प्रमुख लक्षणों में थकान, पीलिया, सांस की तकलीफ, विकास में रुकावट, चेहरे की हड्डी की विकृति (गंभीर मामलों में) शामिल हैं।
नोट: केलेशन थेरेपी भारी धातु विषाक्तता का एक सिद्ध उपचार है। इसमें ऐसे पदार्थों का उपयोग किया जाता है जो भारी धातुओं को बांधते हैं और उन्हें शरीर से निकालने में सहायता करते हैं।
नोट: भारत में राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन का लक्ष्य-2047 तक सिकल सेल एनीमिया को समाप्त करना है।
CRISPR-Cas9 टेक्नोलॉजी क्या है?
- CRISPR-Cas9 एक अभूतपूर्व तकनीक है जो आनुवंशिकीविदों और चिकित्सा शोधकर्त्ताओं को जीनोम के विशिष्ट भागों को संशोधित करने का अधिकार देती है।
- यह DNA अनुक्रम के भीतर खंडों को सटीक रूप से हटाने, जोड़ने अथवा संशोधित करने के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
- DNA को बदलने में दो महत्त्वपूर्ण घटक शामिल होते हैं। सर्वप्रथम Cas9 है, जो आणविक कैंची की एक जोड़ी की तरह DNA को सटीक स्थानों पर काटता है।
- तत्पश्चात गाइड RNA (gRNA) होता है, जिसमें एक डिज़ाइन किया गया अनुक्रम होता है। यह क्रम Cas9 को कटौती करने के लिये जीनोम में सटीक स्थान पर निर्देशित करता है।
- यह सटीक मार्गदर्शन सुनिश्चित करता है कि Cas9 जहाँ आवश्यक हो वहीं सटीक रूप से कार्य करता है, जिससे DNA में विशिष्ट परिवर्तन की अनुमति प्राप्त होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्राय: समाचारों में आने वाला Cas9 प्रोटीन क्या है? (2019) (a) लक्ष्य-साधित जीन संपादन (टारगेटेड जीन एडिटिंग) में प्रयुक्त आण्विक कैंची उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकासात्मक उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के गरीब वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायता करेंगी? (2021) |
प्रारंभिक परीक्षा
पौधों के बीच चेतावनी संकेत
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में वैज्ञानिकों ने महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि का खुलासा किया है कि पौधे अपने आसपास के पौधों से खतरे के संकेतों को कैसे समझते हैं और उन पर प्रतिक्रिया करते हैं।
- यह खोज कीटनाशकों का सहारा लिये बिना कृषि कीट नियंत्रण को बढ़ावा देने के लिये पौधों के संचार का लाभ उठाने का संभावित मार्ग प्रदान करती है।
पौधे एक-दूसरे को खतरे से कैसे आगाह करते हैं?
- पौधों के बीच संचार और समन्वय: पौधे निष्क्रिय जीव नहीं हैं जो केवल अपने पर्यावरण पर प्रतिक्रिया करते हैं। वे एक-दूसरे के साथ संवाद कर सकते हैं, साथ ही विभिन्न खतरों के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं का समन्वय कर सकते हैं।
- उनमें आस-पास के अन्य पौधों को होने वाली क्षति को रोकने की क्षमता होती है।
- रक्षात्मक प्रतिक्रिया विकसित करके पौधे स्वयं को कीट हमलावरों के लिये कम स्वादिष्ट या यहाँ तक कि अपचनीय भी बना सकते हैं।
- सिग्नलिंग एजेंट के रूप में ग्रीन लीफ वोलेटाइल्स: पौधों द्वारा संचार करने का एक तरीका ग्रीन लीफ वोलाटाइल्स (GLVs) नामक वायुजनित रसायनों को उत्सर्जित और महसूस करना है।
- क्षतिग्रस्त होने पर पौधों द्वारा उत्सर्जित GLVs, मनुष्यों के लिये ताज़ी कटी घास की सुखद गंध पैदा करते हैं। हालाँकि आसपास के पौधों के लिये यह गंध एक चेतावनी संकेत के रूप में कार्य करती है, जो संभावित खतरे का संकेत देती है।
- इसकी मध्यस्थता कैल्शियम द्वारा की जाती है, जो पूरे जीव विज्ञान में पाए जाने वाले रासायनिक और विद्युत संकेतों का एक सामान्य मध्यस्थ है।
- जब कीड़े पौधों की पत्तियों को कुतरते हैं, तो कैल्शियम आयन उनकी कोशिकाओं में भर जाते हैं, जिससे उनमें चमक पैदा होती है।
- उत्परिवर्ती सरसों के पौधे की GLVs पर प्रतिक्रिया: वैज्ञानिकों ने हाल ही में उत्परिवर्ती सरसों के पौधे पर प्रयोग किया, इसे यह जाँचने के लिये डिज़ाइन किया गया कि क्या यह GLVs पर भी प्रतिक्रिया कर सकता है।
- GLVs युक्त हवा के संपर्क में आने पर पौधे ने माइक्रोस्कोप के अंतर्गत एक चमकदार प्रतिक्रिया प्रदर्शित की, जो क्षतिग्रस्त पौधों द्वारा छोड़े गए अस्थिर घटकों को महसूस करने की क्षमता को दर्शाता है।
सतत् कृषि के लिये पादप संचार का उपयोग कैसे किया जा सकता है?
- रासायनिक उपयोग में कमी: पादप रक्षा तंत्र का लाभ उठाने से रासायनिक हस्तक्षेप की आवश्यकता कम हो सकती है। इससे कीटनाशकों के प्रयोग में कमी आ सकती है, पर्यावरण प्रदूषण कम हो सकता है और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिल सकता है।
- उन्नत फसल लचीलापन:
- पौधों के बीच संचार को प्रोत्साहित करने वाली रणनीतियों को लागू करके यह तनाव पैदा करने वाले कारकों के खिलाफ फसल के लचीलेपन को बढ़ा सकता है। जैसे कि सह-रोपण या अंतरफसल, किसान समग्र फसल स्वास्थ्य और लचीलेपन में सुधार कर सकते हैं।
- आनुवंशिक अभियांत्रिकी: आनुवंशिक संशोधन के माध्यम से पौधों के प्राकृतिक रक्षा तंत्र को बढ़ाकर, वैज्ञानिक ऐसी फसलें विकसित कर सकते हैं जो कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी हों, तथा संभावित रूप से बाहरी हस्तक्षेपों को कम कर सकें।
प्रारंभिक परीक्षा
पार्थेनन मूर्तियाँ
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स
एथेंस ने लंदन पर विवादित मूर्तियों (जिन्हें एल्गिन मार्बल्स के नाम से भी जाना जाता है) पर बातचीत से बचने का आरोप लगाया, जिससे ब्रिटिश संग्रहालय में रखी पार्थेनन मूर्तियों को लेकर ग्रीस और ब्रिटेन के बीच राजनयिक विवाद छिड़ गया है।
- उनकी स्थायी वापसी के लिये ग्रीस के बार-बार अनुरोध के बावजूद ब्रिटेन और ब्रिटिश संग्रहालय ने लगातार इनकार कर दिया है।
पार्थेनन मूर्तियाँ क्या हैं?
- परिचय:
- ब्रिटिश संग्रहालय में रखी पार्थेनन मूर्तियाँ पत्थर की ग्रीस की 30 से अधिक प्राचीन मूर्तियों का संग्रह है, जो 2,000 साल से अधिक पुरानी हैं।
- मूल रूप से एथेंस में एक्रोपोलिस पहाड़ी पर पार्थेनन मंदिर की दीवारों और मैदानों को सजाने वाली ये कलाकृतियाँ एथेंस के स्वर्ण युग के महत्त्वपूर्ण अवशेष हैं, मंदिर का निर्माण 432 ईसा पूर्व में पूरा हुआ था।
- देवी एथेना को समर्पित, पार्थेनन सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व की प्रतीक हैं।
- कलात्मक चित्रण और सांस्कृतिक महत्त्व:
- मूर्तियों के बीच 75 मीटर तक फैला एक उल्लेखनीय खंड एथेना के जन्मदिन का जश्न मनाते हुए एक जुलूस को चित्रित करता है। इसके अतिरिक्त संग्रह की अन्य मूर्तियाँ जो विभिन्न देवताओं, नायकों और पौराणिक प्राणियों को दर्शाती हैं।
- इनका जटिल शिल्प कौशल और ऐतिहासिक संदर्भ इन मूर्तियों को न केवल कलात्मक खजाना बनाते हैं बल्कि ग्रीस की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग भी बनाते हैं।
- ब्रिटेन में आगमन:
- उन्हें 19वीं सदी की शुरुआत में एल्गिन के 7वें अर्ल और ऑटोमन साम्राज्य के तत्कालीन ब्रिटिश राजदूत थॉमस ब्रूस द्वारा पार्थेनन से हटा दिया गया था। मार्बल्स को ब्रिटेन ले जाया गया और वर्ष 1816 में ब्रिटिश संग्रहालय द्वारा खरीदा गया।
- मूर्तियों को लेकर विवाद:
- मूर्तियों के संरक्षक के रूप में कार्यरत ब्रिटिश संग्रहालय का दावा है कि एल्गिन ने उन्हें ऑटोमन साम्राज्य के साथ एक अनुबंध के माध्यम से कानूनी रूप से प्राप्त किया था।
- जबकि एथेंस ने एल्गिन पर चोरी का आरोप लगाया, उसने दावा किया कि उसके पास अनुमति पात्र था। दुर्भाग्य से मूल अनुमति पत्र खो गया है, जिससे उनके दावे की प्रामाणिकता विवाद में पड़ गई है।
ऑटोमन साम्राज्य:
- ऐतिहासिक अवलोकन, उत्थान और विस्तार:
- 13वीं शताब्दी के अंत में उस्मान प्रथम द्वारा स्थापित ऑटोमन साम्राज्य, एक छोटे अनातोलियन राज्य के रूप में शुरू हुआ और धीरे-धीरे इसने न्य विजय के माध्यम से अपने क्षेत्र का विस्तार किया।
- महमद द्वितीय के नेतृत्व में ऑटोमन्स ने वर्ष 1453 में कुस्तुंतुनिया पर अधिकार कर लिया, जो बीजान्टिन साम्राज्य के अंत का प्रतीक था। यह साम्राज्य 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान सुलेमान द मैग्निफिसेंट के तहत अपने चरम पर पहुँच गया, जिसने तीन महाद्वीपों: यूरोप, एशिया और अफ्रीका में फैले एक विशाल क्षेत्र को नियंत्रित किया।
- प्रशासनिक संरचना और सांस्कृतिक विरासत:
- ऑटोमन साम्राज्य अपनी परिष्कृत प्रशासनिक प्रणाली के लिये जाना जाता था, जिसमें सुल्तान की अध्यक्षता में एक केंद्रीकृत सरकार थी।
- ऑटोमन कानूनी प्रणाली, जिसे "कानून" के नाम से जाना जाता है और तुर्की भाषा के उपयोग ने साम्राज्य के सांस्कृतिक प्रभाव बढ़ाने में योगदान दिया।
- पतन एवं विघटन:
- 17वीं सदी के अंत में सैन्य पराजयों, आंतरिक कलह और आर्थिक चुनौतियों के कारण ऑटोमन साम्राज्य को धीरे-धीरे गिरावट का सामना करना पड़ा।
- 19वीं शताब्दी में साम्राज्य को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से तंज़ीमत के नाम से पहचाने जाने वाले सुधारों की एक शृंखला देखी गई, लेकिन इसे तेज़ी से बदलते वैश्विक परिदृश्य के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये संघर्ष करना पड़ा।
- प्रथम विश्व युद्ध में केंद्रीय शक्तियों के पक्ष में साम्राज्य की भागीदारी के कारण इसकी हार हुई और बाद में विजयी मित्र राष्ट्रों द्वारा इसका विभाजन कर दिया गया। वर्ष 1923 में ऑटोमन साम्राज्य के पतन, जो इसके छह शताब्दी लंबे अस्तित्व के अंत का प्रतीक था, के साथ मुस्तफा कमाल के नेतृत्व में तुर्की गणराज्य की स्थापना हुई।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न .निम्नलिखित में से किस उभारदार मूर्तिशिल्प (रिलीफ स्कल्प्चर) शिलालेख में अशोक के प्रस्तर रूपचित्र के साथ ‘राण्यो अशोक’ (राजा अशोक) उल्लिखित है? (2019) (a) कंगनहल्ली उत्तर: (a) |
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 30 नवंबर, 2023
लैंटाना कैमारा
हाल ही में लैंटाना कैमारा नामक पौधों की विषैले और आक्रामक प्रवेशी प्रजाति से तैयार की गई पंद्रह हाथियों की मूर्तियाँ वर्तमान में बंगलूरू, कर्नाटक में विधान सौध (विधानसभा) के बाहर प्रदर्शन हेतु लगाई गई हैं।
- वर्बेनेसी समूह से संबंधित लैंटाना कैमारा मूलतः अमेरिका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक बारहमासी झाड़ी है।
- बदलते जलवायु के अनुरूप ढलने की क्षमता के कारण यह उच्च तापमान तथा नमी को सहने में सक्षम होती है।
- हालाँकि यह विश्व की दस सबसे खराब आक्रामक प्रवेशी प्रजातियों में से एक है और भारत के लिये गंभीर चिंता का कारण है।
- ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में लैंटाना का उपयोग सर्वप्रथम एक सजावटी झाड़ी के रूप में किया गया, किंतु एक आक्रामक पौधे के रूप में जल्द ही इसने कई पारिस्थितिक तंत्रों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करना शुरू कर दिया।
लैंटाना कैमारा की प्रवेशी प्रवृत्ति के कारण पश्चिमी घाट में स्थित नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व सबसे अधिक प्रभावित हॉटस्पॉट क्षेत्रों में से एक है।
प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM-JANMAN): भारत के जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाना
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24,104 करोड़ रुपए की एक महत्त्वपूर्ण आदिवासी जनकल्याण पहल प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (PM-JANMAN) को मंज़ोररी दी है।
- यह विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के उत्थान की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह 18 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश (अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह) के 75 आदिवासी समुदायों में 40 लाख से अधिक व्यक्तियों के जीवन में क्रांति ला सकता है।
- भारत में PVTGs अनुसूचित जनजाति का एक उप-वर्गीकरण है जिसे अन्य अनुसूचित जनजाति की तुलना में अधिक असुरक्षित माना जाता है।
- PVTGs को पहले आदिम जनजातीय समूह के रूप में जाना जाता था।
- जनजातीय मामलों के मंत्रालय और 2011 की जनगणना के आँकड़ों के आधार पर ओडिशा में PVTGs की आबादी सबसे अधिक है।
- भारत में PVTGs अनुसूचित जनजाति का एक उप-वर्गीकरण है जिसे अन्य अनुसूचित जनजाति की तुलना में अधिक असुरक्षित माना जाता है।
- आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, कनेक्टिविटी और आजीविका के अवसरों जैसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वों पर ध्यान देने के साथ PM-JANMAN में व्यापक पहल शामिल है।
और पढ़ें: जनजातीय समूहों के लिए प्रमुख पहल
लैंगलैंड्स प्रोग्राम, दुनिया का सबसे बड़ा गणित प्रोजेक्ट
- प्रतिनिधित्व सिद्धांत को संख्या सिद्धांत से जोड़ने के अपने अभूतपूर्व कार्य के लिये डॉ. लैंगलैंड्स ने वर्ष 2018 में एबेल पुरस्कार जीता, जो गणित के क्षेत्र में एक शीर्ष सम्मान है।
- कार्यक्रम का लक्ष्य गणित के दो दूरवर्ती क्षेत्रों संख्या सिद्धांत और हार्मोनिक विश्लेषण को जोड़ना है।
- संख्या सिद्धांत अंकगणित पर ध्यान केंद्रित करते हुए संख्याओं और उनके संबंधों का अध्ययन करता है।
- संख्या सिद्धांतकारों के असतत् अंकगणित के विपरीत, जो पूर्णांकों के साथ काम करता है, हार्मोनिक विश्लेषण तरंगों जैसी निरंतर गणितीय वस्तुओं से निपटकर आवधिक घटनाओं की जाँच करता है।
- कार्यक्रम का लक्ष्य गणित के दो दूरवर्ती क्षेत्रों संख्या सिद्धांत और हार्मोनिक विश्लेषण को जोड़ना है।
उच्च न्यायालय ने एक दशक पुरानी ज़बरन शादी को रद्द किया
- पटना उच्च न्यायालय ने एक दशक पहले हुई एक ज़बरन शादी, जिसे आमतौर पर "पकड़वा विवाह" कहा जाता है, को रद्द कर दिया।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि विवाह अमान्य था क्योंकि महत्त्वपूर्ण "सप्तपदी" अनुष्ठान, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार पवित्र अग्नि के चारों ओर सात प्रतिज्ञाएँ की जाती हैं, को शामिल नहीं किया गया था।
- 'पकड़वा विवाह' एक तरह का 'ज़बरन विवाह' है।
- यह बिहार में प्रचलित है, जिसमें प्राय: शादी के उद्देश्य से युवा पुरुषों का अपहरण करना शामिल है।
- ये शादियाँ आमतौर पर धमकियों, कभी-कभी व्यक्तियों और उनके परिवारों के जीवन को खतरे में डालकर संपन्न की जाती हैं।
और पढ़ें… हिंदू विवाह अधिनियम, 1955