प्रारंभिक परीक्षा
हिमाचल प्रदेश के हट्टी समुदाय
केंद्र, हिमाचल प्रदेश सरकार के अनुरोध पर राज्य में अनुसूचित जनजातियों की सूची में हट्टी समुदाय को शामिल करने पर विचार कर रहा है।
- यह समुदाय 1967 से इस अधिकार की मांग कर रहा है, जब उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके (जिसकी सीमा सिरमौर ज़िले से लगती है) में रहने वाले लोगों को आदिवासी का दर्जा प्रदान किया गया था।
- आदिवासी दर्जे की उनकी इस मांग को वर्षों से विभिन्न महा खुंबलियों में पारित प्रस्तावों के कारण बल मिला है।
हट्टी समुदाय:
- हट्टी एक घनिष्ठ समुदाय है, जिसे कस्बों में 'हाट' नामक छोटे बाज़ारों में घरेलू सब्जियाँ, फसल, मांस और ऊन आदि बेचने की परंपरा से यह नाम मिला है।
- हट्टी समुदाय में पुरुष आमतौर पर समारोहों के दौरान एक विशिष्ट सफेद टोपी पहनते हैं, यह समुदाय सिरमौर से गिरि और टोंस नामक दो नदियों द्वारा विभाजित हो जाता है।
- टोंस इसे उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र से विभाजित करती है
- वर्ष 1815 में जौनसार बावर क्षेत्र के अलग होने तक उत्तराखंड के ट्रांँस-गिऋ क्षेत्र और जौनसार बावर में रहने वाले हट्टी कभी सिरमौर की शाही रियासत का हिस्सा थे।
- दोनों कुलों में समान परंपराएंँ हैं और अंतर्जातीय-विवाह आम बात है।
- हट्टी समुदायों के बीच एक कठोर जाति व्यवस्था है- भट और खश उच्च जातियांँ हैं, जबकि बधोई उनसे नीची जाति है।
- अंतर्जातीय विवाह अब परंपरागत रूप से सख्त नहीं रहे हैं।
- स्थलाकृतिक असुविधाओं के कारण कामरौ, संगरा और शिलियाई क्षेत्रों में रहने वाले हट्टी शिक्षा व रोज़गार में पीछे रह गए हैं।
- हट्टी समुदाय खुंबली नामक एक पारंपरिक परिषद द्वारा शासित होती है, जो हरियाणा के खाप पंचायत की तरह सामुदायिक मामलों को देखती है।
- पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना के बावजूद खुंबली की शक्ति को कोई चुनौती नहीं मिली है।
अनुसूचित जनजाति:
- संविधान का अनुच्छेद 366 (25) अनुसूचित जनजातियों को उन समुदायों के रूप में संदर्भित करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार निर्धारित हैं।
- अनुच्छेद 342 के अनुसार, केवल वे समुदाय जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा प्रारंभिक सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से या संसद के बाद के संशोधन अधिनियम के माध्यम से ऐसा घोषित किया गया है, उन्हें अनुसूचित जनजाति माना जाएगा।
- अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य/संघ राज्य क्षेत्र विशिष्ट है और एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित समुदाय के लिये दूसरे राज्य में भी ऐसा होने की आवश्यकता नहीं है।
- किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट करने के मानदंड के बारे में संविधान मौन है।
- आदिमता, भौगोलिक अलगाव, शर्म और सामाजिक, शैक्षिक तथा आर्थिक पिछड़ापन ऐसे लक्षण हैं जो अनुसूचित जनजाति समुदायों को अन्य समुदायों से अलग करते हैं।
- कुछ अनुसूचित जनजातियाँ, जिनकी संख्या 75 है, को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTG) के रूप में जाना जाता है, इनकी विशेषता है:
- प्रौद्योगिकी पूर्व कृषि स्तर
- स्थिर या घटती जनसंख्या
- अत्यंत कम साक्षरता
- अर्थव्यवस्था का निर्वाह स्तर
- STs हेतु सरकार की पहल:
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (FRA)
- पंचायतों का प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996
- लघु वनोपज अधिनियम 2005
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम और जनजातीय उप-योजना रणनीति जो कि अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण पर केंद्रित हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रारंभिक परीक्षा
MSME सस्टेनेबल (ZED) प्रमाणन योजना
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने MSME सस्टेनेबल (ZED-Zero Defect Zero Effect) प्रमाणन योजना शुरू की है।
योजना के बारे में:
- परिचय:
- यह योजना MSME को ZED विधियों और ZED प्रमाणन को अपनाने में सक्षम बनाने व सुविधा प्रदान के साथ उन्हें MSME चैंपियन बनने के लिये प्रेरित तथा प्रोत्साहित करती है।
- ZED शपथ लेने और पंजीकरण करने के बाद MSME सस्टेनेबल (ZED) प्रमाणन तीन स्तरों में प्राप्त किया जा सकता है:
- प्रमाणन स्तर 1: ब्रोंज़
- प्रमाणन स्तर 2: सिल्वर
- प्रमाणन स्तर 3: गोल्ड
- ZED शपथ लेने के बाद MSME किसी भी प्रमाणन स्तर के लिये आवेदन कर सकता है यदि उसे लगता है कि वह प्रत्येक स्तर में आवश्यक शर्तो को पूरा करता है।
- ZED शपथ लेने का अर्थ है कि एमएसएमई को ज़ीरो इफ़ेक्ट ज़ीरो डिफेक्ट के मूल्यों का अनुसरण करने एवं ZED के मार्ग में आगे बढ़ने हेतु "पूर्व-प्रतिबद्धता" लेनी है।
- सब्सिडी:
- योजना के तहत MSMEs को ZED प्रमाणीकरण की लागत पर निम्नलिखित संरचना के अनुसार सब्सिडी मिलेगी:
- सूक्ष्म उद्यम: 80%
- लघु उद्यम: 60%
- मध्यम उद्यम: 50%
- ज़ीरो डिफेक्ट ज़ीरो इफेक्ट समाधान की ओर बढ़ने में मदद के लिये ZED प्रमाणन के तहत MSMEs को हैंडहोल्डिंग और कंसल्टेंसी मदद हेतु 5 लाख रुपए (प्रति एमएसएमई) उपलब्ध कराए जाएंगे।
- MSMEs राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों, वित्तीय संस्थानों आदि द्वारा ZED प्रमाणन हेतु दिये जाने वाले कई अन्य प्रोत्साहनों का भी लाभ उठा सकते हैं और MSMEs कवच (कोविड-19 मदद) पहल के तहत मुफ्त ZED प्रमाणन के लिये भी आवेदन कर सकते हैं।
- योजना के तहत MSMEs को ZED प्रमाणीकरण की लागत पर निम्नलिखित संरचना के अनुसार सब्सिडी मिलेगी:
- योजना के घटक:
- उद्योग जागरूकता कार्यक्रम/कार्यशाला।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- मूल्यांकन और प्रमाणन।
- हैंड होल्डिंग।
- लाभ/प्रोत्साहन।
- पीआर अभियान, विज्ञापन और ब्रांड प्रचार।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म।
- संभावित लाभ:
- ZED प्रमाणन की प्रक्रिया के माध्यम से MSME काफी हद तक अपव्यय को कम कर अपनी उत्पादकता बढ़ा सकते हैं तथा पर्यावरण का प्रति जागरूकता बढ़ाकर ऊर्जा की बचत कर प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग कर सकते हैं और अपने बाज़ारों का विस्तार कर सकते हैं।
ZED योजना
- परिचय:
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में शुरू की गई यह योजना एक एकीकृत और व्यापक प्रमाणन प्रणाली है।
- यह योजना उत्पादों और प्रक्रियाओं दोनों में उत्पादकता, गुणवत्ता, प्रदूषण शमन, ऊर्जा दक्षता, वित्तीय स्थिति, मानव संसाधन और अभिकल्पना तथा बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR ) सहित तकनीकी कार्यों के लिये ज़िम्मेदार है।
- इसका मिशन ज़ीरो डिफेक्ट ज़ीरो इफेक्ट के सिद्धांत के आधार पर भारत में 'ZED' संस्कृति को विकसित और कार्यान्वित करना है।
- ज़ीरो डिफेक्ट:
- ज़ीरो डिफेक्ट अवधारणा एक ग्राहक केंद्रित अवधारणा है।
- शून्य गैर-अनुरूपता या गैर-अनुपालन।
- ज़ीरो वेस्ट
- ज़ीरो इफेक्ट:
- शून्य वायु प्रदूषण, तरल निर्वहन, ठोस अपशिष्ट।
- प्राकृतिक संसाधनों का शून्य अपव्यय।
- योजना का उद्देश्य:
- एमएसएमई क्षेत्र में एक ‘ज़ीरो डिफेक्ट’ पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना।
- गुणवत्तापूर्ण उपकरणों/प्रणालियों के अनुकूलन और ऊर्जा दक्ष विनिर्माण को बढ़ावा देना।
- गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के निर्माण के लिये एमएसएमई को सक्षम बनाना।
- उत्पादों और प्रक्रियाओं में अपने गुणवत्ता मानकों को लगातार उन्नत करने के लिये एमएसएमई को प्रोत्साहित करना।
- ZED निर्माण और प्रमाणन के क्षेत्र में पेशेवरों का विकास करना।
- 'मेक इन इंडिया' अभियान का समर्थन करना।
एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये अन्य पहलें:
- प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी)
- पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिये निधि की योजना (स्फूर्ति)
- नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये एक योजना (एस्पायर)
- एमएसएमई को वृद्धिशील ऋण के लिये ब्याज सबवेंशन योजना
- सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये ऋण गारंटी योजना
- चैंपियंस पोर्टल
स्रोत: पी.आई.बी.
प्रारंभिक परीक्षा
जीपीएस एडेड जीईओ ऑगमेंटेड नेविगेशन (गगन)
हाल ही में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) ने गगन (जीपीएस एडेड जीईओ ऑगमेंटेड नेविगेशन) आधारित एलपीवी ( ऊर्ध्वाधर मार्गदर्शन के साथ स्थानीय प्रदर्शन) दृष्टिकोण प्रक्रियाओं का उपयोग करके सफलतापूर्वक एक हल्का परीक्षण (Light Trial) किया।
- गगन आधारित एलपीवी उपकरण दृष्टिकोण प्रक्रियाओं के विकास के लिये क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना के तहत कई हवाई अड्डों का सर्वेक्षण किया जा रहा है।
- ऐसा इसलिये किया जा रहा है ताकि उपयुक्त रूप से सुसज्जित विमान लैंडिंग के दौरान बेहतर सुरक्षा, समय की बचत,विमान का मार्ग परिवर्तन और रद्दीकरण, ईंधन की खपत में कमी आदि के संदर्भ में अधिकतम लाभ प्राप्त कर सके।
LPV के बारे में:
- LPV उपग्रह आधारित प्रक्रिया है जिसका उपयोग विमान द्वारा लैंडिंग हेतु किया जाता है।
- LPV उन छोटे क्षेत्रीय और स्थानीय हवाई अड्डों पर विमान को उतरना संभव बनाता है जहांँ महंगे इंस्ट्रूमेंट, लैंडिंग सिस्टम के साधन उपलब्ध नही हैं।
- खराब मौसम और कम दृश्यता की स्थिति में विमान की ऊँचाई को 250 फीट तक कम करने का निर्णय परिचालन में मदद करता है।
- इस प्रकार कोई ऐसा हवाई अड्डा जिसे दृश्यता संबंधी न्यूनतम मात्रा की आवश्यकता होती है। ऐसे हवाई अड्डे सुदूर हवाई अड्डों (जो सटीक दृष्टिकोण क्षमता वाले उपकरणों से रहित हैं) से आने वाले विमानों को स्वीकार करने में सक्षम होगा, ।
गगन:
- यह सैटेलाइट बेस्ड ऑग्मेंटेशन सिस्टम (Space Based Augmentation System- SBAS) है जिसे इसरो और AII द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है ताकि सीमावर्ती उड़ान सूचना क्षेत्र (Flight Information Region-FIR) तक विस्तार करने की क्षमता के साथ भारतीय उड़ान सूचना क्षेत्र में सर्वोत्तम संभव नौवहन सेवाएंँ प्रदान की जा सकें।
- गगन उपग्रहों और ग्राउंड स्टेशनों की एक प्रणाली है जो जीपीएस सिग्नल में सुधार करती है, जिससे स्थिति की बेहतर सटीकता प्राप्त होती है।
- यह भूमध्यरेखीय क्षेत्र में भारत और पड़ोसी देशों के लिये विकसित इस तरह की पहली प्रणाली है।
- गगन प्रणाली को DGCA द्वारा 2015 में एप्रोच विद वर्टिकल गाइडेंस (APV 1) और एन-रूट (RNP 0.1) संचालन के लिये प्रमाणित किया गया था।
- दुनिया में केवल चार देश- भारत (GAGAN), अमेरिका (WAAS), यूरोप (EGNOS) और जापान (MSAS) के पास अंतरिक्ष-आधारित संवर्द्धन प्रणालियाँ हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
प्रारंभिक परीक्षा
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U 2.0)
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 (SBM-U 2.0) ने 'कचरा मुक्त शहरों' के लिये चल रहे जन आंदोलन को मज़बूत करने हेतु (BCC) कचरा मुक्त शहरों के लिये ‘राष्ट्रीय व्यवहार परिवर्तन संचार फ्रेमवर्क’ लॉन्च किया है।
राष्ट्रीय व्यवहार परिवर्तन संचार फ्रेमवर्क :
- कचरा मुक्त शहरों के लिये BCC फ्रेमवर्क राज्यों और शहरों हेतु गहन और केंद्रित अंतर-व्यक्तिगत संचार अभियानों के साथ-साथ बड़े पैमाने पर मल्टीमीडिया अभियान चलाने के लिये एक मार्गदर्शक दस्तावेज़ व ब्लूप्रिंट के रूप में काम करेगा।
- यह फ्रेमवर्क भारत के शहरी परिदृश्य को बदलने के लिये स्रोत पर पृथक्करण, संग्रह, परिवहन और कचरे के प्रसंस्करण, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन तथा डंप साइट पर उपचार जैसे विषयों पर अभियान को तेज़ करने पर केंद्रित है।
SBM-U 2.0 के बारे में:
- परिचय:
- बजट 2021-22 में घोषित SBM-U 2.0, SBM-U के पहले चरण की निरंतरता है।
- इसे अगले पांँच वर्षों में 'कचरा मुक्त शहरों' के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिये 1 अक्तूबर 2021 को लॉन्च किया गया था।
- सरकार शौचालयों से सुरक्षित प्रवाह, मल कीचड़ के निपटान और सेप्टेज का उपयोग करने का भी प्रयास कर रही है।
- इसे 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2021 से वर्ष 2026 तक पांँच वर्षों में लागू किया जाएगा।
- शहरी भारत को खुले में शौच मुक्त (Open Defecation Free- ODF) बनाने और नगरपालिका के ठोस कचरे के 100% वैज्ञानिक प्रबंधन के उद्देश्य से 2 अक्तूबर, 2014 को SBM-U का पहला चरण शुरू किया गया था जो अक्तूबर 2019 तक चला।
- लक्ष्य:
- यह कचरे का स्रोत पर पृथक्करण, एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक और वायु प्रदूषण में कमी, निर्माण एवं विध्वंस गतिविधियों से कचरे का प्रभावी ढंग से प्रबंधन तथा सभी पुराने डंप साइट के बायोरेमेडिएशन पर केंद्रित है।
- इस मिशन के तहत सभी अपशिष्ट जल को जल निकायों में छोड़ने से पहले ठीक से उपचारित किया जाएगा और सरकार अधिकतम पुन: उपयोग (Reuse) को प्राथमिकता देने का प्रयास कर रही है।
- मिशन का परिणाम:
- सभी वैधानिक शहर ODF+ प्रमाणित हो जाएंगे (पानी, रखरखाव और स्वच्छता के साथ शौचालयों पर केंद्रित)।
- 1 लाख से कम आबादी वाले सभी वैधानिक शहर (कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन के साथ शौचालयों पर केंद्रित) ओडीएफ ++ प्रमाणित हो जाएंगे।
- 1 लाख से कम आबादी वाले सभी वैधानिक कस्बों का 50% जल + प्रमाणित हो जाएगा (जिसका उद्देश्य पानी के उपचार और पुन: उपयोग करके शौचालयों को बनाए रखना है)।
- कचरा मुक्त शहरों के लिये आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल के अनुसार, सभी वैधानिक कस्बों को कम-से-कम कचरा मुक्त 3-स्टार दर्जा दिया जाएगा।
- सभी पुराने डंपसाइट्स का जैव उपचार।
स्रोत: पी.आई.बी.
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 30 अप्रैल, 2022
आयुष्मान भारत दिवस
भारत में प्रतिवर्ष 30 अप्रैल को आयुष्मान भारत दिवस का आयोजन किया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य देश के दूरदराज़ के क्षेत्रों में सस्ती चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ावा देना है। साथ ही यह दिवस समाज के वंचित और गरीब वर्गों को स्वास्थ्य लाभ एवं बीमा कवर प्रदान करने पर भी ज़ोर देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2018 में आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की गई थी, ताकि उन करोड़ों भारतीयों को स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जा सके जो चिकित्सा सुविधाएँ प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं। यह भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) के लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) के तहत की गई अनुशंसा के आधार पर शुरू किया गया था। यह पहल सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को पूरा करने और इनके प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करने हेतु शुरू की गई है। इस योजना का उद्देश्य भारत में प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक सभी स्तरों पर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में महत्त्वपूर्ण बदलावों को बढ़ावा देना तथा स्वास्थ्य प्रणाली तक आम लोगों की पहुँच सुनिश्चित करना है। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) आयुष्मान भारत योजना का एक प्रमुख घटक है, जिसे 23 सितंबर, 2018 को रांची में लॉन्च किया गया था। यद्यपि योजनाओं के निर्माण के बावजूद ज़मीनी स्तर पर भारत की स्वास्थ्य अवसंरचना में कोई महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं आया है और महामारी ने इस तथ्य को भलीभाँति उज़ागर किया है।
बाग्गावल्ली सोमाशेकर राजू
सेना के सैन्य अभियानों के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल बाग्गावल्ली सोमशेखर राजू को थलसेना का नया उप-प्रमुख नियुक्त किया गया है। लेफ्टिनेंट जनरल बाग्गावल्ली सोमाशेकर राजू एक मई को उप-सेनाध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालेंगे। यह एक दुर्लभ उदाहरण है जहाँ एक थ्री स्टार अधिकारी सेना कमांडर के रूप में कार्यकाल पूरा करने से पहले वाइस चीफ का पदभार ग्रहण करेगा। सैनिक स्कूल बीज़ापुर और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के पूर्व छात्र सोमाशेकर राजू को 15 दिसंबर को जाट रेजिमेंट में कमीशन दिया गया था। जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान उन्होंने अपनी बटालियन की कमान संभाली। उन्हें नियंत्रण रेखा के साथ उरी ब्रिगेड, एक काउंटर इंसर्जेंसी फोर्स और कश्मीर घाटी में चिनार कॉर्प्स की कमान संभालने का गौरव भी प्राप्त है। लेफ्टिनेंट जनरल राजू एक योग्य हेलीकॉप्टर पायलट भी हैं। वे सोमालिया में यूएनओएसओएम-2 ऑपरेशन के रूप में उड़ान भर चुके हैं। इसके अलावा वह जाट रेजीमेंट के कर्नल भी हैं। लेफ्टिनेंट जनरल राजू ने भारत में सभी महत्त्वपूर्ण करियर कोर्सेस में भाग लिया है और वे रॉयल कॉलेज ऑफ डिफेंस स्टडीज़, यूनाइटेड किंगडम में एनडीसी भी कर चुके हैं। सेवा में शानदार योगदान के लिये उन्हें उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और युद्ध सेवा पदक से सम्मानित किया गया है।
भारत-मालदीव अक्षय ऊर्जा हस्तांतरण परियोजना
भारत और मालदीव अक्षय ऊर्जा के हस्तांतरण हेतु एक ट्रांसमिशन इंटरकनेक्शन स्थापित करने पर सहमत हुए हैं। भारत के ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह तथा मालदीव के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन व प्रौद्योगिकी मंत्री अमीनाथ शौना के बीच हुई बैठक के दौरान इस प्रस्ताव पर चर्चा की गई। साथ ही वर्ष 2030 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के मालदीव सरकार के संकल्प पर भी चर्चा की गई। इस बैठक के दौरान दो समझौता ज्ञापन (MoU) प्रस्तावित किये गए जो वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (One Sun One World One Grid- OSOWOG) के तहत ट्रांसमिशन इंटरकनेक्शन और ऊर्जा सहयोग पर आधारित थे। वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड की अवधारणा भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2018 में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) की पहली सभा में प्रस्तुत की गई थी। इस कार्यक्रम के तहत क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे से जुड़े हुए ‘ग्रीन ग्रिड’ (Green Grid) की स्थापना के माध्यम से विभिन्न देशों के बीच ऊर्जा साझा करने तथा ऊर्जा आपूर्ति में संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया जाएगा।