प्रारंभिक परीक्षा
हिमालयी याक
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standard Authority of India- FSSAI) ने हिमालयी याक को 'खाद्य पशु' के रूप में मंज़ूरी दे दी है।
- इस कदम से पारंपरिक दूध और मांँस उद्योग का हिस्सा बनाकर उच्च तुंगता वाले गोजातीय/बोवाइन पशुओं की आबादी में गिरावट को रोकने में मदद मिलने की उम्मीद है।
- खाद्य पशु वे हैं जिन्हें मनुष्यों द्वारा पाला जाता है और खाद्य उत्पादन या उपभोग के लिये उपयोग किया जाता है।
हिमालयी याक
- परिचय:
- याक बोवाइन (Bovini) जनजाति से संबंधित हैं, जिसमें बाइसन, भैंस और मवेशी भी शामिल हैं। यह -40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकता है।
- इनके लंबे बाल उच्च उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों में रहने हेतु इन्हें अनूकूल बनाते है, जो पर्दे की तरह अपने पक्षों से लटके रहते हैं। इनके बाल इतने लंबे होते हैं कि वे कभी-कभी ज़मीन को छूते हैं।
- हिमालयी लोगों द्वारा याक को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है। तिब्बती किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापक गुरु रिनपोछे ने सबसे पहले याक को पालतू बनाया था।
- भारतीय हिमालयी क्षेत्र के उच्च तुंगता वाले स्थानों पर उन्हें खानाबदोशों की जीवन रेखा के रूप में भी जाना जाता है।
- याक बोवाइन (Bovini) जनजाति से संबंधित हैं, जिसमें बाइसन, भैंस और मवेशी भी शामिल हैं। यह -40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकता है।
- पर्यावास:
- ये तिब्बती पठार और उससे सटे उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों के लिये स्थानिक हैं।
- 14,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर याक सबसे अधिक आरामदायक स्थिति में रहते हैं। भोजन की खोज में ये 20,000 फीट की ऊँचाई तक चले जाते हैं और प्रायः 12,000 फीट से नीचे नहीं उतरते हैं।
- याक पालन करने वाले भारतीय राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर शामिल हैं।
- याक की देशव्यापी जनसंख्या प्रवृत्ति दर्शाती है कि इनकी आबादी बहुत तेज़ी से घट रही है। भारत में याक की कुल आबादी लगभग 58,000 है। इसमें वर्ष 2012 में आयोजित पिछली पशुधन गणना से लगभग 25% की गिरावट आई है।
- इस भारी गिरावट को बोविड (मवेशी परिवार का एक स्तनपायी) से होने वाले कम पारिश्रमिक को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो खानाबदोश प्रकृति वाले याक को पालने एवं उनकेे रखरखाव एवं हेतु हतोत्साहित करता है।
- ऐसा मुख्य रूप से इसलिये है क्योंकि याक का दूध और मांँस पारंपरिक डेयरी तथा मांँस उद्योग का हिस्सा नहीं हैं एवं उनकी बिक्री स्थानीय उपभोक्ताओं तक ही सीमित है।
- याक की देशव्यापी जनसंख्या प्रवृत्ति दर्शाती है कि इनकी आबादी बहुत तेज़ी से घट रही है। भारत में याक की कुल आबादी लगभग 58,000 है। इसमें वर्ष 2012 में आयोजित पिछली पशुधन गणना से लगभग 25% की गिरावट आई है।
- ये तिब्बती पठार और उससे सटे उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों के लिये स्थानिक हैं।
- महत्त्व:
- याक स्थानिक खानाबदोशों के लिये एक बहुआयामी सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक भूमिका निभाता है, जो इन्हें मुख्य रूप से हिमालय क्षेत्र के ऊंँचे इलाकों में अन्य कृषि गतिविधियों की कमी के कारण अपने पोषण और आजीविका सुरक्षा अर्जित करने में मदद करते हैं।
- खतरा:
- जलवायु परिवर्तन:
- वर्ष के गर्म महीनों के दौरान उच्च ऊँचाई पर पर्यावरणीय तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप याक में उष्मागत तनाव (Heat Stress) बढ़ जाता है जो इसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर रहा है।
- इनब्रीडिंग:
- चूँकि युद्धों और संघर्षों के कारण सीमाएँ बंद हैं इसलिये मूल याक क्षेत्र से नए याक जर्मप्लाज्म (Germplasm) की उपलब्धता की कमी के कारण सीमाओं के बाहर पाए जाने वाले याक इनब्रीडिंग से प्रभावित हैं।
- जलवायु परिवर्तन:
- जंगली याक (Bos mutus) की संरक्षण स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य
- IUCN द्वारा याक की जंगली प्रजातियों को बोस म्यूटस जबकि घरेलू प्रजातियों को बोस ग्रूनिएन्स के तहत वर्गीकृत करता है।
- CITES: परिशिष्ट-I
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972: अनुसूची- I
- IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य
स्रोत: द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
काले प्रवाल
हाल ही में शोधकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया के तट पर ग्रेट बैरियर रीफ और कोरल सागर में सतह से 2,500 फीट (762 मीटर) नीचे रहने वाले काले प्रवाल की पाँच नई प्रजातियों की खोज की है।
काले प्रवाल:
- काले प्रवाल (एंथोज़ोआ: एंटीपाथारिया) उथले जल से लेकर 26,000 फीट (8,000 मीटर) से अधिक की गहराई तक में पाए जा सकते हैं। कुछ प्रवाल 4,000 से अधिक वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।
- हालाँकि, काले प्रवालों का वर्गीकरण कई अन्य एंथोज़ोअन समूहों की तुलना में स्पष्ट नहीं है।
- इनमें से कई प्रवाल शाखाओं वाले होते हैं और जो पंख या झाड़ियों की तरह दिखते हैं।
- उथले-जल में पाए जाने वाले रंगीन प्रवाल ऊर्जा के लिये सूर्य और प्रकाश संश्लेषण पर निर्भर होते हैं, के विपरीत काले प्रवाल फिल्टर फीडर होते हैं और गहरे जल में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले छोटे प्राणिप्लवक का सेवन करते हैं।
- इसी तरह, उथले जल के प्रवाल जो मछलियों से भरी रंगीन चट्टानों जैसे होते हैं, काले प्रवाल महत्त्वपूर्ण निवास स्थान के रूप में कार्य करते हैं। यहाँ मछली और अकशेूरुकीय भोजन करते हैं और शिकारियों से अपना बचाव करते हैं । उदाहरण के लिये, 2,554 अलग-अलग अकशेरूकीय एक काले प्रवाल समूह में रहते थे जिसे वैज्ञानिकों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया तट से वर्ष 2005 में एकत्रित किया था।
प्रवाल भित्ति:
- परिचय:
- प्रवाल समुद्री अकशेरूकीय या ऐसे जंतु हैं जिनमें रीढ़ नहीं होती है। वैज्ञानिक वर्गीकरण के तहत प्रवाल फाइलम निडारिया और एंथोजोआ वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
- प्रवाल आनुवंशिक रूप से समान जीवों से बने होते हैं जिन्हें ‘पॉलीप्स’ कहा जाता है। इन पॉलीप्स में सूक्ष्म शैवाल होते हैं जिन्हें ज़ूजैन्थेले (Zooxanthellae) कहा जाता है जो उनके ऊतकों के भीतर रहते हैं।
- प्रवाल और शैवाल आपस में संबंधित होते हैं।
- प्रवाल ज़ूजैन्थेले को प्रकाश संश्लेषण हेतु आवश्यक यौगिक प्रदान करता है।
- बदले में ज़ूजैन्थेले कार्बोहाइड्रेट की तरह प्रकाश संश्लेषण के जैविक उत्पादों की प्रवाल को आपूर्ति करता है, जो उनके कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल के संश्लेषण हेतु प्रवाल पॉलीप्स द्वारा उपयोग किया जाता है।
- यह प्रवाल को आवश्यक पोषक तत्त्वों को प्रदान करने के अलावा इसे अद्वितीय और सुंदर रंग प्रदान करता है।
- उन्हें "समुद्रों के वर्षावन" भी कहा जाता है।
- प्रवाल दो प्रकार के होते हैं:
- हार्ड कोरल/प्रवाल:
- वे कठोर,सफेद प्रवाल एक्सोस्केलेटन बनाने के लिये समुद्री जल से कैल्शियम कार्बोनेट निकालते हैं।
- कठोर प्रवाल कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) से बने एक कठोर कंकाल का उत्पादन करते हैं जो एक क्रिस्टल रूप में होता है जिसे अर्गोनाइट कहा जाता है।
- वे प्राथमिक रीफ-बिल्डिंग प्रवाल हैं। वे कठोर प्रवाल जो चट्टानों का निर्माण करते हैं उन्हें हर्मेटिपिक प्रवाल कहा जाता है
- ‘सॉफ्ट’ कोरल/प्रवाल:
- ‘सॉफ्ट’ कोरल एक कठोर कैल्शियम कार्बोनेट है जो कंकाल और चट्टानों का निर्माण नहीं करता है, हालाँकि वे एक प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र में मौजूद हैं।
- ये ज़्यादातर समूह में रहते हैं; अक्सर देखने में ये एक बड़े जीव की तरह प्रतीत होते हैं लेकिन वास्तव में एक बड़ी संरचना से बनी हई संयुक्त कॉलोनी होती है। आमतौर,पर ये सॉफ्ट प्रवाल कॉलोनियाँ देखने में पेड़ों, झाड़ियों और घास से मिलती-जुलती प्रतीत होती हैं।
- महत्त्व:
- ये समुद्री जैव विविधता का 25% से अधिक का समर्थन करते हैं, हालाँकि वे समुद्र तल का केवल 1% हैं।
- चट्टानों द्वारा समर्थित समुद्री जीवन वैश्विक मछली पकड़ने के उद्योगों को और बढ़ावा देता है।
- इसके अलावा, प्रवाल भित्ति तंत्र के सेवा व्यापार और पर्यटन के माध्यम से वार्षिक आर्थिक मूल्य में 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई है।
- हार्ड कोरल/प्रवाल:
- प्रवाल दो प्रकार के होते हैं:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष का प्रश्न (PYQ)प्रश्न.1 निम्नलिखित समूहों में से किनमें ऐसी जातियाँ होती हैं जो अन्य जीवों के साथ सहजीवी संबंध बना सकती हैं? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर का चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (D) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न.2 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न.3 निम्नलिखित में से किसमें प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग के प्रवाल जीवन प्रणाली पर प्रभावों को उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019) |
स्रोत: द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
लाल ग्रह दिवस
नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) द्वारा 28 नवंबर, 1964 के दिन मेरिनर-4 को लॉन्च किया गया था जिसके उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 28 नवंबर को लाल ग्रह दिवस मनाया जाता है।
- मेरिनर-4 ने पहली बार मंगल पर महत्त्वपूर्ण जानकारी और तस्वीरें खींची थीं।
मंगल ग्रह
- आकार और दूरी:
- मंगल सौरमंडल में सूर्य की ओर से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, इसीलिये इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है।
- मंगल ग्रह पृथ्वी के आकार का लगभग आधा है।
- पृथ्वी से समानता (कक्षा और घूर्णन):
- मंगल ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हुए6 घंटे में एक चक्कर पूरा करता है, जो कि पृथ्वी पर एक दिन (23.9 घंटे) के समान है।
- मंगल ग्रह का अक्षीय झुकाव 25 डिग्री है। यह लगभग पृथ्वी के समान है, जो कि4 डिग्री के अक्षीय झुकाव पर स्थित है।
- पृथ्वी की तरह मंगल ग्रह पर भी अलग-अलग मौसम पाए जाते हैं, लेकिन वे पृथ्वी के मौसम की तुलना में लंबी अवधि के होते हैं क्योंकि सूर्य की परिक्रमा करने में मंगल अधिक समय लेता है।
- मंगल ग्रह के दिनों को सोल (Sols) कहा जाता है, जो 'सौर दिवस' का लघु रूप है।
- अन्य विशेषताएँ:
- मंगल के लाल दिखने का कारण इसकी चट्टानों में लोहे का ऑक्सीकरण, जंग लगना और धूल कणों की उपस्थिति है, इसलिये इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है।
- मंगल ग्रह पर सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी स्थित है, जिसे ओलंपस मॉन्स (Olympus Mons) कहते हैं।
- मंगल के दो छोटे उपग्रह हैं- फोबोस और डीमोस।
विभिन्न मंगल मिशन:
- नासा के पास एक लैंडर (मार्स इनसाइट), दो रोवर्स (क्यूरोसिटी और पर्सिवरेंस), और तीन ऑर्बिटर्स (मार्स रिकोनेसेंस ऑर्बिटर, मार्स ओडिसी, मावेन) हैं।
- एक्सोमार्स रोवर (2021) (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी)
- तियानवेन-1 : चीन का मंगल मिशन (2021)
- संयुक्त अरब अमीरात का ‘होप’ मिशन(यूएई का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन) (2021)
- भारत का मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) या मंगलयान (2013)
- मंगल 2 और मंगल 3 (1971) (सोवियत संघ)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. ‘‘यह प्रयोग तीन ऐसे अंतरिक्षयानों को काम में लाएगा जो एक समबाहु त्रिभुज की आकृति में उड़ान भरेंगे जिसमें प्रत्येक भुजा एक मिलियन किलोमीटर लंबी है और यानों के बीच लेज़र चमक रही होंगी।’’ कथित प्रयोग किसे संदर्भित करता है?(2020) (a) वॉयेजर-2 उत्तर: D व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) इसरो द्वारा प्रक्षेपित मंगलयान
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
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स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
प्रारंभिक परीक्षा
SARAS 3 टेलीस्कोप और पहले तारे का संकेत
हाल ही में SARAS 3 रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग करके, वैज्ञानिकों ने एक रेडियो ल्युमिनस गैलेक्सी के विशेषताओं का निर्धारण किया है जो कि बिग बैंग के ठीक 200 मिलियन वर्ष बाद बनी थी, जिसे कॉस्मिक डॉन के रूप में जाना जाता है।
- शोधकर्त्ताओं ने SARAS 3 के डेटा का उपयोग ऊर्जा उत्पादन, चमक और पहली पीढ़ी की आकाशगंगाओं के द्रव्यमान पर प्रकाश डालने के लिये किया है जो रेडियो तरंग दैर्ध्य में प्रकाशमान है।
प्रमुख बिंदु:
- खगोलीय आरंभ काल के बारे में नई जानकारी ने शुरुआती रेडियो लाउड आकाशगंगाओं की विशेषताओं की जानकारी दी जो आमतौर पर सुपरमैसिव ब्लैक होल द्वारा संचालित होती हैं।
- SARAS 3 द्वारा खगोलविदों को यह जानकारी मिली थी कि खगोलीय निर्माण की प्रारंभिक अवस्था में आकाशगंगाओं के भीतर 3% से भी कम गैसीय पदार्थ सितारों में परिवर्तित हो गए थे, और यह कि सबसे शुरुआती आकाशगंगाएँ जो रेडियो उत्सर्जन में चमकीली थीं, उनमे एक्स-रे में भी प्रधानता थीं। इससे प्रारंभिक आकाशगंगा और उसके आसपास के ब्रह्मांडीय गैस में ऊष्मा पैदा हुई।
SARAS 3 रेडियो टेलीस्कोप:
- SARAS ‘रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (RRI) का एक उच्च-जोखिम वाला उच्च-लाभ प्रायोगिक प्रयास है।
- SARAS 3 को वर्ष 2020 की शुरुआत में कर्नाटक के दंडिगनहल्ली झील और शरवती बैकवाटर पर तैनात किया गया था।
- SARAS का लक्ष्य भारत में एक ऐसे सटीक रेडियो टेलीस्कोप का डिज़ाइन, निर्माण और स्थापना है जिससे प्रारंभिक ब्रह्मांड में विकसित तारों और आकाशगंगाओं से संबंधित रेडियो तरंग संकेतों का पता लगाया जा सके।
रेडियो तरंगें और रेडियो टेलीस्कोप:
- रेडियो तरंगें:
- विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम में रेडियो तरंगों की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है। ये एक फुटबॉल के आकार से लेकर पृथ्वी (ग्रह) के समान विशाल आकार तक हो सकती हैं। रेडियो तरंगों की खोज वर्ष 1880 के दशक के अंत में हेनरिक हर्ट्ज़ (Heinrich Hertz) ने की थी।
- रेडियो स्पेक्ट्रम की रेंज 3 किलोहर्ट्ज़ से 300 गीगाहर्ट्ज़ तक मानी जाती है।
- रेडियो टेलीस्कोप:
- रेडियो टेलीस्कोप की मदद से दुर्बल रेडियो प्रकाश तरंगों को एकत्र किया जाता है और उनकी केंद्रीयता बढ़ाकर इनका उपयोग विश्लेषण हेतु किया जाता है।
- ये तारों, आकाशगंगाओं, ब्लैक होल और अन्य खगोलीय पिंडों से प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले रेडियो प्रकाश का अध्ययन करने में मददगार साबित होती हैं।
- ये विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए टेलीस्कोप प्रकाश की सबसे दीर्घ तरंगदैर्ध्य का निरीक्षण करते हैं जो 1 मिलीमीटर से लेकर 10 मीटर से अधिक लंबी होती हैं। तुलना के लिये दृश्यमान प्रकाश तरंगें केवल कुछ सौ नैनोमीटर लंबी होती हैं। एक नैनोमीटर कागज़ के एक टुकड़े की मोटाई का केवल 1/10,000वाँ हिस्सा होता है। वास्तव में हम आमतौर पर रेडियो प्रकाश को उसकी तरंगदैर्ध्य से नहीं बल्कि उसकी आवृत्ति से संदर्भित करते हैं।
स्रोत:द हिंदू
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 29 नवंबर, 2022
कामचटका प्रायद्वीप
हाल ही में कामचटका प्रायद्वीप में दो ज्वालामुखी विस्फोट हुए हैं। वे रूस के उत्तरपूर्वी भाग के छह ज्वालामुखियों में से हैं जिनमे ज्वालामुखी विस्फोट हुआ है। कामचटका प्रायद्वीप रूस के साइबेरिया क्षेत्र के सुदूर पूर्व में 1,250 किमी. लंबा प्रायद्वीप है। इसका क्षेत्रफल 472,300 वर्ग किमी. है। यह उत्तर में साइबेरिया से जुड़ा हुआ है। इसके पूर्व में प्रशांत महासागर है और पश्चिम में ओखोत्स्क सागर है। कामचटका प्रायद्वीप “रिंग ऑफ फायर” का भाग है। कामचटका का अधिकांस क्षेत्र पहाड़ी है और इसपर लगभग 160 ज्वालामुखी स्थित हैं, जिनमें से 29 अभी भी सक्रिय माने जाते हैं। इनमें से एक ज्वालामुखी, क्लुचेव्स्काया सोप्का, 15,584 फुट ऊँचा है और पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा ज्वालामुखी माना जाता है। कामचटका पर विविध प्रकार के पशु-पक्षी पाए जाते हैं, जिनमें से ब्राउन बिअर सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है जो बहुत बड़े आकार का होता है।
7वाँ वैश्विक प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन
7वें वैश्विक प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन आज से नई दिल्ली में शुरू हो रहा है। वैश्विक प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन (Global Technology Summit- GTS) भारत की ओर से आयोजित इस तीन दिवसीय इस सम्मेलन में प्रतिनिधि भौतिक और वर्चुअल दोनों तरीकों से भाग लेंगे। विदेश मंत्रालय और कार्नेगी इंडिया की मेज़बानी में भू-प्रौद्योगिकी पर होने वाला यह भारत का प्रमुख वार्षिक सम्मेलन है। इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को विदेश मंत्री संबोधित करेंगे और इसका मुख्य विषय भू-डिजिटल व्यवस्था और इसके प्रभाव हैं। विदेश मंत्रालय के अनुसार इस सम्मेलन में प्रौद्योगिकी, सरकार, सुरक्षा, अंतरिक्ष, स्टार्टअप, डाटा, कानून, लोक स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, अकादमिक और आर्थिक मुद्दों पर विश्व के प्रमुख बुद्धिजीवी अपने विचार प्रस्तुत करने के साथ-साथ प्रौद्योगिकी तथा इसके भविष्य के संबंध में महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर चर्चा की जाएगी। GTS 2022 में 50 से अधिक पैनल चर्चा, मुख्य भाषण, पुस्तक विमोचन और अन्य कार्यक्रमों में 100 से अधिक वक्ता भाग लेंगे। अमेरिका, सिंगापुर, जापान, नाइज़ीरिया, ब्राज़ील, भूटान, यूरोपीय संघ और अन्य देशों के मंत्री और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी भी शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।