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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 28 Feb, 2023
  • 24 min read
प्रारंभिक परीक्षा

ALMA टेलीस्कोप

ALMA (Atacama Large Millimetre/submillimetre Array) उत्तरी चिली के अटाकामा रेगिस्तान में स्थित रेडियो टेलीस्कोप है। इसका सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर अपग्रेड किया जाएगा।

  • अपग्रेड  ALMA अधिक डेटा एकत्र करने और स्पष्ट छवियाँ निर्मित करने में सक्षम होगा।

ALMA:

  • परिचय: 
    • ALMA एक अत्याधुनिक टेलीस्कोप है जो मिलीमीटर और सबमिलीमीटर तरंग दैर्ध्य पर आकाशीय पिंडों का अध्ययन करता है, ये धूल के बादलों के माध्यम से प्रवेश कर सकते हैं एवं खगोलविदों को धूमिल और दूर की आकाशगंगाओं तथा तारों की जाँच करने में मदद करते हैं। 
    • ALMA को यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला (European Southern Observatory- ESO), संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन (National Science Foundation- NSF) और जापान के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान संस्थान (National Institutes of Natural Sciences- NINS) के साथ-साथ NRC (कनाडा), MOST और ASIAA (ताइवान) तथा KASI (कोरिया गणराज्य) व चिली गणराज्य के सहयोग से स्थापित किया गया है। 
  • विशेषताएँ: 
    • असाधारण संवेदनशीलता के चलते यह अत्यधिक धुँधले रेडियो संकेतों का भी पता लगाने में मदद करता है।
    • इसके 66 एंटेना में से प्रत्येक रिसीवर के एक सेट से लैस है जो विद्युत चुबंकीय स्पेक्ट्रम पर तरंग दैर्ध्य की विशिष्ट श्रेणियों का पता लगाने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।  
    • प्रत्येक एंटीना द्वारा एकत्र किये गए डेटा को एक छवि में संयोजित करने के लिये ALMA एक सहसंयोजक का उपयोग करता है।
      • ALMA कोरिटेलर एक शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर है जो एंटेना द्वारा एकत्र किये गए डेटा की विशाल मात्रा को संसाधित करता है और असाधारण रिज़ॉल्यूशन के साथ खगोलीय वस्तुओं की विस्तृत छवियाँ बनाता है।
      • यह तकनीक खगोलविदों को दूर की आकाशगंगाओं, सितारों और अन्य खगोलीय पिंडों का अध्ययन करने में सहायता प्रदान करती है, जो पहले संभव नहीं था।
  • ALMA द्वारा की गई खोजें:
    • वर्ष 2013 में ALMA ने स्टारबर्स्ट आकाशगंगाओं की खोज की जो ब्रह्मांड के इतिहास में अनुमानित समय के पूर्व से ही मौजूद थीं।
    • ALMA ने वर्ष 2014 में एक युवा तारे, HL तौरी (Tauri) के चारों ओर की प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क की विस्तृत छवियाँ भी प्रदान कीं, जिसने ग्रहों के निर्माण के बारे में मौजूदा सिद्धांतों को चुनौती दी।
    • इस टेलीस्कोप ने वर्ष 2015 में आइंस्टीन रिंग घटना को देखने में वैज्ञानिकों की सहायता की, ऐसी घटनाएँ तब होती हैं जब आकाशगंगा या तारे से प्रकाश पृथ्वी के रास्ते किसी विशाल वस्तु से गुज़रता है।

ALMA का चिली के अटाकामा मरुस्थल में स्थित होने का कारण:

  • यह चिली के अटाकामा मरुस्थल में चजनंतोर पठार पर समुद्र तल से 16,570 फीट (5,050 मीटर) की ऊँचाई पर स्थित है क्योंकि इसके द्वारा पता लगाए गए मिलीमीटर और सबमिलीमीटर तरंगें पृथ्वी पर वायुमंडलीय जल वाष्प अवशोषण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
  • यह मरुस्थल पृथ्वी पर सबसे शुष्क क्षेत्र भी है, जिसका अर्थ है कि इसकी अधिकांश रातें बादल और नमी से मुक्त होती हैं, जिससे यह खगोलीय अवलोकन के लिये एक आदर्श स्थान बन जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रारंभिक परीक्षा

ASI ने खोजा 1300 वर्ष पुराना बौद्ध स्तूप

हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) ने ओडिशा के जाजपुर ज़िले में खोंडालाइट खनन स्थल पर 1,300 वर्ष पुराने स्तूप की खोज की है।

  • यह वह स्थान है जहाँ से पुरी में 12वीं शताब्दी के श्री जगन्नाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण परियोजना हेतु खोंडालाइट पत्थरों की आपूर्ति की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • यह स्तूप 4.5 मीटर ऊँचा हो सकता है और प्रारंभिक आकलन से पता चला है कि यह 7वीं या 8वीं शताब्दी का हो सकता है।
  • यह परभदी में पाया गया था जो ललितगिरि के पास स्थित है, एक प्रमुख बौद्ध परिसर है जिसमें बड़ी संख्या में स्तूप और मठ हैं।
    • एक पत्थर के ताबूत के अंदर बुद्ध के अवशेष वाले एक विशाल स्तूप की खोज के कारण ललितगिरि बौद्ध स्थल को तीन साइटों (ललितगिरि, रत्नागिरि और उदयगिरि) में सबसे पवित्र माना जाता है।

खोंडालाइट चट्टान: 

  • खोंडालाइट एक प्रकार की कायांतरित चट्टान है जो भारत के पूर्वी घाट में विशेष रूप से ओडिशा राज्य में पाई जाती है। इसका नाम चट्टानों के खोंडालाइट समूह के नाम पर रखा गया है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह लगभग 1.6 अरब वर्ष पहले प्रोटेरोज़ोइक युग के दौरान बनी थी।
  • खोंडालाइट मुख्य रूप से फेल्डस्पार, क्वार्ट्ज़ और अभ्रक से बनी है एवं गुलाबी-ग्रे रंग इसकी विशेषता है। इसे सामान्यतः निर्माण में एक सजावटी पत्थर के रूप में उपयोग किया जाता है तथा विशेष रूप से स्थायित्व और अपक्षय के प्रतिरोध हेतु बेशकीमती है।
  • प्राचीन मंदिर परिसरों में खोंडालाइट पत्थरों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। कुछ परियोजनाओं जैसे- विरासत सुरक्षा क्षेत्र, जगन्नाथ बल्लभ तीर्थ केंद्र आदि के सौंदर्य को बनाए रखने हेतु उनका व्यापक रूप से उपयोग करने का प्रस्ताव है।

स्तूप:

  • परिचय: स्तूप वैदिक काल से भारत में प्रचलित शवाधान टीले थे।
  • वास्तुकला: स्तूप में एक बेलनाकार ड्रम होता है जिसमें शीर्ष गोल अंडाकार, हर्मिका एवं छत्र होता है।
    • अंडाकार: बुद्ध के अवशेषों को ढँकने के लिये मिट्टी के टीले का प्रतीकात्मक गोलार्द्ध टीला (कई स्तूपों में वास्तविक अवशेषों का उपयोग किया गया था)।
    • Anda: Hemispherical mound symbolic of the mound of dirt used to cover Buddha’s remains (in many stupas actual relics were used).
    • हरमिका: टीले के ऊपर चौकोर रेलिंग।
    • छत्र: ट्रिपल छत्र को सहारा देने वाला केंद्रीय स्तंभ।
  • प्रयुक्त सामग्री: स्तूप का मुख्य भाग कच्ची ईंटों से बना था, जबकि बाहरी सतह पकी हुई ईंटों का उपयोग करके बनाई गई थी, जिन्हें बाद में प्लास्टर और मेढ़ी (Medhi) की एक मोटी परत से ढक दिया गया था और तोरण को लकड़ी की मूर्तियों से सजाया गया था।
  • उदाहरण:
    • मध्य प्रदेश में सांची स्तूप अशोक स्तूपों में सबसे प्रसिद्ध है।
    • उत्तर प्रदेश में पिपरहवा स्तूप सबसे पुराना स्तूप है।
    • बुद्ध की मृत्यु के बाद बनाए गए स्तूप: राजगृह, वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लकप्पा, रामग्राम, वेथापिडा, पावा, कुशीनगर और पिप्पलिवन।
    • बैराट, राजस्थान में स्तूप: एक गोलाकार टीला और एक प्रदक्षिणा पथ के साथ भव्य स्तूप।

  UPSCसिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2021)

(a) अजंता की गुफाएँ वाघोरा नदी के घाट में स्थित हैं।
(b) सांची स्तूप चंबल नदी के घाट में स्थित है।
(c) पांडु-लीना गुफा मंदिर नर्मदा नदी के घाट में स्थित है।
(d) अमरावती स्तूप गोदावरी नदी के घाट में स्थित है।

उत्तर: (a) 

व्याख्या: 

  • अजंता गुफाएँ महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास वाघोरा नदी के पास सह्याद्रि पर्वतमाला (पश्चिमी घाट) में रॉक-कट गुफाओं की एक शृंखला के रूप में स्थित हैं। इसमें कुल 29 गुफाएँ (सभी बौद्ध) हैं, जिनमें से 25 को विहार या आवासीय गुफाओं के रूप में, जबकि 4 को चैत्य या प्रार्थना हॉल के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल बौद्ध कला के चित्रों, मूर्तियों और मंदिरों का संग्रह है, जिसका निर्माण 200 ईसा पूर्व से 500 ईस्वी के बीच किया गया था।
  • साँची स्तूप मध्य प्रदेश में स्थित है। यह बेतवा नदी के ठीक पश्चिम में और विदिशा से लगभग 5 मील (8 किमी) दक्षिण-पश्चिम में एक ऊँचे पठारी क्षेत्र में स्थित है। इसे वर्ष 1989 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल नामित किया गया था।
  • बौद्ध स्मारक पांडवलेनी गुफाएँ, जिन्हें पांडु लेना गुफाओं और त्रिरश्मी गुफाओं के नाम से भी जाना जाता है, 24 रॉक-कट (पहाड़ों को काट कर निर्मित) गुफाओं का एक समूह है। ये नासिक शहर की त्रिवश्मी पहाड़ी के उत्तरी ओर स्थित हैं। नासिक शहर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है।
  • अमरावती स्तूप एक हाथी को वश में करते हुए भगवान बुद्ध को मानव रूप में दिखाता है। यह स्तूप, साँची स्तूप की तुलना में लंबा है और एक विशाल गोलाकार गुंबद के साथ-साथ चार मुख्य दिशाओं में फैले हुए ऊँचे मंच हैं। अमरावती स्तूप कृष्णा नदी के पास स्थित है। 

अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. प्रारंभिक बौद्ध स्तूप-कला, लोक वर्ण्य विषयों और कथानकों को चित्रित करते हुए बौद्ध आदर्शों की सफलतापूर्वक व्याख्या करती है। विशदीकरण कीजिये। (2016) 

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2023

वर्ष 1986 में भारत सरकार ने "रमन प्रभाव" की खोज की घोषणा के उपलक्ष्य में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में नामित किया था।

  • इस वर्ष का संस्करण भारत की G20 अध्यक्षता के आलोक में "ग्लोबल साइंस फॉर ग्लोबल वेल-बीइंग" की थीम के तहत मनाया जा रहा है।

रमन प्रभाव (Raman Effect):  

  • भौतिक विज्ञानी सीवी रमन को रमन प्रभाव की खोज के लिये वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला।
  • इसका तात्पर्य किसी पदार्थ द्वारा प्रकाश के अप्रत्यास्थ प्रकीर्णन (Inelastic Scattering) से है, जो प्रकीर्णित प्रकाश की आवृत्ति में परिवर्तन का कारण बनता है।
    • सरल शब्दों में यह प्रकाश की तरंग दैर्ध्य में परिवर्तन है जो प्रकाश की किरणों के अणुओं द्वारा विक्षेपित होने के कारण होता है।
  • रमन प्रभाव Raman Spectroscopy हेतु आधार का निर्माण करता है जिसका उपयोग रसायनज्ञों एवं भौतिकविदों द्वारा पदार्थ के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये किया जाता है।  
  • रमन प्रभाव, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी की नींव है, जिसका उपयोग रसायनज्ञ और भौतिकविद सामग्रियों के बारे में जानने के लिये करते हैं।
    • स्पेक्ट्रोस्कोपी, पदार्थ और विद्युत चुंबकीय विकिरण के बीच अंतःक्रिया का अध्ययन है

विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अन्य भारतीय :

  नोबेल पुरस्कार विजेता 

            विषय  

        संबंधित क्षेत्र 

              वर्ष  

  हर गोविंद खुराना 

    औषधि

आनुवंशिक कोड की व्याख्या व प्रोटीन संश्लेषण में इसका कार्य।

  1968 

सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर 

    भौतिक विज्ञान

तारों की संरचना और विकास के लिये महत्त्वपूर्ण भौतिक प्रक्रियाएँ।

  1983 

वेंकटरमन रामकृष्णन

    रसायन विज्ञान

राइबोसोम की संरचना और कार्य। 

  2009 

विज्ञान के क्षेत्र में भारत का प्रमुख योगदान:

  • गणित: भारत ने शून्य, दशमलव प्रणाली, बीजगणित और त्रिकोणमिति की अवधारणा सहित गणित के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
    • भारतीय गणितज्ञ जैसे- आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त (चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्र हेतु सूत्र प्रदान किये) और रामानुजन ने इस क्षेत्र में अग्रणी योगदान दिया है।
  • खगोल विज्ञान: प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें पृथ्वी की परिधि का निर्धारण, चंद्र नोड्स की खोज एवं सौरमंडल के सूर्यकेंद्रित मॉडल का विकास शामिल है।
    • ज्योतिष वेदांग खगोलीय डेटा का उल्लेख करने वाला पहला वैदिक पाठ, 4000 ईसा पूर्व का है।
  • चिकित्सा: आयुर्वेद भारत में चिकित्सा की पारंपरिक प्रणाली, विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणालियों में से एक है।
    • चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथ विभिन्न चिकित्सा स्थितियों एवं उनके उपचारों का विस्तृत विवरण प्रदान करते हैं। 
  • प्रौद्योगिकी: भारत में तकनीकी नवाचार का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसमें धातु विज्ञान, जहाज़ निर्माण और कपड़ा उत्पादन का विकास शामिल है।
    • सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्राचीन शहर मोहनजोदड़ो जो 4,500 वर्ष पहले अस्तित्त्व में था, में एक परिष्कृत सीवेज और जल निकासी व्यवस्था थी।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण: भारत ने हाल के वर्षों में अंतरिक्ष अन्वेषण में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, जिसमें वर्ष 2014 में मार्स ऑर्बिटर मिशन का सफल प्रक्षेपण और चंद्रयान मिशन तथा भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान शामिल है, जो वर्ष 2024 में लॉन्च होने वाला है।
प्रश्न. विज्ञान किस प्रकार हमारे जीवन के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है? विज्ञान आधारित तकनीकों के कारण कृषि में कौन-से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं?

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 28 फरवरी, 2023

वन रैंक-वन पेंशन (OROP)  

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों के बाद रक्षा मंत्रालय ने रक्षा लेखा महानियंत्रक (Controller General Defence Accounts- CGDA) को वन रैंक-वन पेंशन (OROP) की संपूर्ण बकाया राशि एक ही किश्त में जारी करने का निर्देश दिया। OROP का अर्थ सैन्य अधिकारियों को समान रैंक हेतु समान सेवा अवधि के लिये समान पेंशन का भुगतान करना है, भले ही उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि कुछ भी हो। OROP से पहले पूर्व सैनिकों को सेवानिवृत्ति के समय वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार पेंशन मिलती थी। उत्तर प्रदेश और पंजाब में OROP लाभार्थियों की संख्या सबसे अधिक है। योजना का क्रियान्वयन भगत सिंह कोश्यारी की अध्यक्षता में गठित कोश्यारी समिति की संस्तुति पर आधारित था।

और पढ़ें… वन रैंक-वन पेंशन (OROP)  

येलो रिवर 

महान येलो रिवर, चीनी सभ्यता की 'मातृ नदी' को प्रागैतिहासिक काल के बाद से विनाशकारी बाढ़ के कारण प्रभावित होने की वजह से 'आपदा की नदी' और 'चीन के शोक (China’s Sorrow) ' के रूप में भी जाना जाता है। हाल ही के एक अध्ययन में पाया गया कि लोएस पठार, जो येलो रिवर से घिरा हुआ है, तटबंध बनाने की चीनी प्रथा के कारण अक्सर ऊपर के क्षेत्रों में आने वाली बाढ़ का एक अन्य कारण है। येलो रिवर विश्व की छठी सबसे लंबी नदी है और यह सबसे अधिक तलछट से भरी पड़ी है। इसे हुआंग हे के रूप में भी जाना जाता है, यह किन्हाई प्रांत से निकलती है और लोएस पठार से होते हुए बहती है, जहाँ से यह अपने साथ तलछट भी ले जाती है जो इसके जल को उनका विशिष्ट पीला रंग प्रदान करता है। उत्तरी चीन के मैदान पर निचले क्षेत्र में इस नदी के कारण बाढ़ की संभावना बनी रहती है क्योंकि पठार से तलछट या लोएस (एक प्रकार की गाद) आमतौर पर नदी के तल पर जमा हो जाते हैं और इसकी ऊँचाई में वृद्धि करते है।

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ओलिव रिडले कछुए

अधिकारी और वैज्ञानिक इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि ओडिशा के रुशिकुल्या रूकरी ज़िले में ओलिव रिडले कछुओं के बड़े पैमाने पर घोंसले बनाने या 'अरिबादा' की शुरुआत किस वजह से हुई। ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य के बाद रुशिकुल्या समुद्र तट को भारत में समुद्री कछुओं के लिये दूसरा सबसे बड़ा रूकरी (प्रजनन स्थल) माना जाता है। उपयुक्त जलवायु और समुद्र तट की स्थिति ओलिव रिडले कछुओं के बड़े पैमाने पर घोंसले बनाने के कुछ शुरुआती कारण थे। ओलिव रिडले कछुए विश्व में पाए जाने वाले सभी समुद्री कछुओं में सबसे छोटे और प्रचुर मात्रा में हैं। ये कछुए मांसाहारी होते हैं और इनका नाम उनके जैतून के रंग के कारपेस (आवरण) से मिलता है। वे अपने अद्वितीय घोंसले के लिये जाने जाते हैं जिसे 'अरिबादा' कहा जाता है, जहाँ हज़ारों मादाएँ अंडे देने के लिये एक ही समुद्र तट पर एक साथ आती हैं। वे प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागरों के गर्म पानी में पाए जाते हैं। ओलिव रिडले कछुओं को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 में शामिल किया गया है, यह IUCN की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध है तथा जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के परिशिष्ट I में उल्लेखित है। 

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और पढ़े…ओलिव रिडले: जोखिम और संबंधित पहल

बिस्फेनॉल A

बिस्फेनॉल A (BPA) पॉली कार्बोनेट प्लास्टिक और एपॉक्सी रेज़िन (थर्मोसेटिंग पॉलिमर की श्रेणी) में उपयोग होने वाला एक रसायन है एवं यह विशेष रूप से पानी की बोतलों, बच्चों की बोतलों तथा अन्य खाद्य कंटेनरों में पाया जाता है। BPA औद्योगिक बहिःस्रावों और डिस्चार्ज लीचेट्स के माध्यम से सतह के मीठे जल को दूषित करता है (कोई भी दूषित तरल जो ठोस अपशिष्ट निपटान स्थल के माध्यम से रिसने वाले जल से उत्पन्न होता है, दूषित पदार्थों को जमा करता है एवं उपसतह क्षेत्रों में पहुँच जाता है)। पानी में BPA का निर्वहन तब होता है जब पर्याप्त धूप होती है और प्लास्टिक नरम हो जाता है। हाल के एक अध्ययन के अनुसार, यह मच्छरों के प्रजनन को भी गति देता है। शरीर में BPA रसायन के प्रवेश से यह हार्मोन के साथ हस्तक्षेप कर अंतःस्रावी तंत्र को बाधित कर देता है और भ्रूण, शिशुओं तथा बच्चों के मस्तिष्क एवं प्रोस्टेट ग्रंथि को प्रभावित करता है। 

और पढ़ें… प्रभावी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन


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