प्रारंभिक परीक्षा
बेनिन ब्रॉन्ज़
जर्मनी ने बेनिन से लूटी गई 20 बेनिन ब्रॉन्ज़ पट्टिकाएँ और मूर्तियाँ नाइजीरिया को लौटा दीं।
- जुलाई 2022 में जर्मनी द्वारा नाइजीरिया के साथ लगभग 1,100 बेनिन ब्रॉन्ज़ के स्वामित्व के हस्तांतरण हेतु समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद इन कीमती कलाकृतियों की वापसी हुई।
बेनिन ब्रॉन्ज़:
- बेनिन ब्रॉन्ज़ वर्तमान नाइजीरिया में बेनिन के प्राचीन साम्राज्य की 3,000 से अधिक मूर्तियों और कलाकृतियों का एक समूह है। यह लगभग 16वीं शताब्दी का है।
- वर्ष 1897 में बेनिन शहर पर कुख्यात छापे के दौरान ब्रिटिश औपनिवेशिक ताकतों द्वारा इन्हें लूट लिया गया था।
- इनमें से कई कलाकृतियाँ विशेष रूप से राजाओं या ओबास और राज्य की राजमाताओं के लिये अधिकृत किये गए थे।
- ये कलाकृतियाँ बेनिन साम्राज्य की संस्कृति के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों के साथ इसके संबंधों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। इनमें से कुछ कलाकृतियाँ यूरोपीय लोगों के साथ राज्य के संबंधों की भी प्रदर्शित करती हैं।
अन्य लूटी गई कलाकृतियों को देशों द्वारा वापस किये जाने की मांग:
- कोह-ए-नूर हीरा:
- विभाजन-पूर्व भारत और ब्रिटिश राज में कोह-ए-नूर का एक लंबा इतिहास रहा है। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान आंध्र प्रदेश में इसका खनन किया गया था।
- दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध के दौरान वर्ष 1849 में रानी विक्टोरिया द्वारा हीरे का अधिग्रहण किया गया था, इसी समय पंजाब को ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन लाया गया था।
- लाहौर की अंतिम संधि पर हस्ताक्षर के बाद अंग्रेज़ों ने इस हीरे को अपने कब्ज़े में ले लिया था।
- लॉर्ड डलहौज़ी और महाराजा दलीप सिंह के बीच 1849 में हुई लाहौर संधि के तहत कोहिनूर हीरे को लाहौर के महाराजा ने इंग्लैंड की महारानी को सौंप दिया था।
- रॉसेटा स्टोन:
- दूसरा प्रसिद्ध उदाहरण रॉसेटा स्टोन है। वर्तमान में ब्रिटिश संग्रहालय में प्रदर्शित यह मिस्र का एक प्राचीन पत्थर है जिसमें शिलालेख हैं, यह मिस्र-विज्ञान का आधार है।
- मिस्र को जीतने के लिये सम्राट के अभियान के दौरान वर्ष 1799 में राशिद (रॉसेटा) शहर के पास नेपोलियन बोनापार्ट की सेना द्वारा पत्थर की खोज की गई थी। वर्ष 1801 में फ्राँसीसियों को हराने के बाद इसे अंग्रेज़ों को सौंप दिया गया था।
स्रोत :इंडियन एक्सप्रेस
प्रारंभिक परीक्षा
DRDO की मिशन मोड परियोजनाओं पर कैग की रिपोर्ट
हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के मिशन मोड (MM) परियोजनाओं की अवधि तथा लागत में वृद्धि को चिह्नित किया गया है।
- MM परियोजनाओं को DRDO द्वारा विशिष्ट उपयोगकर्त्ता आवश्यकताओं और उनके पूरा होने के लिये निश्चित समयसीमा के आधार पर उच्च प्राथमिकता के साथ शुरू किया जाता है।
- ये परियोजनाएँ उन तकनीकों पर निर्भर करती हैं जो पहले से उपलब्ध एवं प्रमाणित हैं तथा DRDO या भारत के भीतर या विदेश से अल्प सूचना पर आसानी से उपलब्ध हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- समग्र परियोजना प्रबंधन में अक्षमताएँ रही हैं जिसके परिणामस्वरूप लागत में वृद्धि, परियोजनाओं के प्रत्याशित लाभों का अधिक मूल्यांकन और रिपोर्ट प्रस्तुत करने में देरी के कई उदाहरण सामने आए हैं।
- सफल परियोजनाओं के उत्पादन में विलंब के मुद्दे रहे हैं जो ऐसी परियोजनाओं को शुरू करने के उद्देश्य को ही विफल कर देते हैं।
- इस तथ्य के बावजूद कि अंतर्निहित प्रौद्योगिकी की उपलब्धता के कारण MM परियोजनाओं में बहुत उच्च परिणाम निश्चितता है, DRDO द्वारा ऐसी परियोजनाओं की शुरुआत और मंज़ूरी में काफी देरी हुई थी।
- 178 परियोजनाओं में से 119 में मूल समय-सारणी का पालन नहीं किया जा सका।
- 49 मामलों में अतिरिक्त समय वास्तव में मूल समयसीमा के 100% से अधिक था।
- विलंब का परास 16 से 500% तक था और इसमें कई बार विस्तार किया गया था।
- जनवरी 2010 और दिसंबर 2019 के दौरान सफल घोषित 86 परियोजनाओं में से 20 परियोजनाओं में एक या अधिक प्रमुख उद्देश्य/मापदंड प्राप्त नहीं हुए थे।
- परियोजना प्रस्ताव के सभी प्रमुख उद्देश्यों/मापदंडों को प्राप्त करने के लिये समय बढ़ाने की मांग के बजाय इन परियोजनाओं को सफल मान कर बंद कर दिया गया।
- DRDO और सेवाओं के बीच तालमेल की कमी भी थी, जिसके परिणामस्वरूप गुणात्मक आवश्यकताओं, वितरण और उपयोगकर्त्ता परीक्षणों के परिणामों को लेकर अलग-अलग विचार थे। इसने MM परियोजनाओं की समग्र सफलता दर को प्रभावित किया।
CAG:
- भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) भारत के संविधान के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण है।
- यह भारतीय लेखापरीक्षा और लेखा विभाग का प्रमुख और सार्वजनिक क्षेत्र का प्रमुख संरक्षक है।
- इस संस्था के माध्यम से संसद और राज्य विधानसभाओं के लिये सरकार एवं अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों (सार्वजनिक धन खर्च करने वाले) की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है तथा यह जानकारी जनसाधारण को दी जाती है।
- एक बार CAG के पद से सेवानिवृत्त होने/इस्तीफा देने के बाद वह भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय का पदभार नहीं ले सकता।
- अनुच्छेद 148 CAG के एक स्वतंत्र कार्यालय का प्रावधान करता है।
- CAG से संबंधित अन्य प्रावधानों में शामिल हैं: अनुच्छेद 149-151 (कर्तव्य और शक्तियाँ, संघ एवं राज्यों के खातों का प्रपत्र तथा लेखापरीक्षा रिपोर्ट), अनुच्छेद 279 (शुद्ध आय की गणना आदि), तीसरी अनुसूची (शपथ या प्रतिज्ञान), छठी अनुसूची (असम, मेघालय, त्रिपुरा व मिज़ोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन)।
DRDO
- परिचय :
- DRDO रक्षा मंत्रालय का रक्षा अनुसंधान एवं विकास विंग है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों से सशक्त बनाना है।
- आत्मनिर्भरता व सफल स्वदेशी विकास एवं सामरिक प्रणालियों तथा प्लेटफाॅर्मों जैसे- अग्नि और पृथ्वी शृंखला मिसाइलों के उत्पादन की इसकी खोज जैसे- हल्के लड़ाकू विमान, तेजस: बहु बैरल रॉकेट लाॅन्चर, पिनाका: वायु रक्षा प्रणाली, आकाश: रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला आदि ने भारत की सैन्य शक्ति को प्रभावशाली निरोध पैदा करने तथा महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करने में प्रमुख योगदान दिया है।
- DRDO के विभिन्न कार्यक्रम:
- एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP):
- यह मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय रक्षा बलों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के प्रमुख कार्यों में से एक था।
- IGMDP के तहत विकसित मिसाइलें हैं: पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश, नाग।
- मोबाइल ऑटोनोमस रोबोट सिस्टम (MARS):
- MARS लैंड माइन्स और इनर्ट एक्सप्लोसिव डिवाइसेज़ (Inert Explosive Devices- IEDs) को संभालने के लिये एक स्मार्ट मज़बूत रोबोट है जो भारतीय सशस्त्र बलों से शत्रुओं को दूर कर निष्क्रिय करने में मदद करता है।
- कुछ एड-ऑन के साथ इस प्रणाली का उपयोग वस्तु के लिये ज़मीन खोदने और विभिन्न तरीकों से इम्प्रवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस को डिफ्यूज़ करने हेतु भी किया जा सकता है।
- लद्दाख में सबसे ऊंँचा स्थलीय केंद्र:
- लद्दाख में DRDO का केंद्र पैंगोंग झील के पास चांगला में समुद्र तल से 17,600 फीट ऊपर है, जिसका उद्देश्य प्राकृतिक और औषधीय पौधों के संरक्षण के लिये एक प्राकृतिक कोल्ड स्टोरेज इकाई के रूप में कार्य करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष का प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारत में यह सुनिश्चित करने के अलावा कि सार्वजनिक निधियों का उपयोग कुशलतापूर्वक एवं उनके इच्छित उद्देश्य के लिये किया जाता है, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) के कार्यालय का क्या महत्त्व है?(2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा सही है / हैं? (a) केवल 1, 3 और 4 उत्तर : (c) मेन्सप्रश्न.“नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है।” समझाएँ कि यह उसकी नियुक्ति की पद्धति और शर्तों के साथ-साथ उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों की सीमा में कैसे परिलक्षित होती है? (2018) प्रश्न. संघ एवं राज्यों की लेखाओं के संबध में नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की शक्तिओं का प्रयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 से व्युत्पन्न है। चर्चा कीजिये कि क्या सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना अपने स्वयं (नियंत्रक और महालेखापरीक्षक) की अधिकारिता का अतिक्रमण करना होगा या नहीं। (2016) |
स्रोत : द हिंदू
प्रारंभिक परीक्षा
क्रायोमेश और फ्रोज़न प्रवाल /कोरल
ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ पर काम करते हुए वैज्ञानिकों ने अपने पहले परीक्षण में कोरल को फ्रीज़ और स्टोर करने के लिये एक नई विधि का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।
प्रवाल को फ्रीज़ करने की आवश्यकता:
- समुद्र का बढ़ता तापमान कोरल के नाजुक पारिस्थितिक तंत्र को अस्थिर कर देता है, अतः वैज्ञानिक कोरल रीफ की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं।
- ग्रेट बैरियर रीफ ने विगत सात वर्षों में चार विरंजन घटनाओं का सामना किया है, जिसमें ला नीना घटना के दौरान पहली बार ब्लीचिंग भी शामिल है, जो आमतौर पर तापमान ठंडाकर देती है।
- ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ मरीन साइंसेज़ (AIMS) में वैज्ञानिकों ने कोरल लार्वा को फ्रीज़ करने के लिये क्रायोमेश का इस्तेमाल किया।
प्रवाल को फ्रीज़ करने की पद्धति:
- क्रायोमेश:
- क्रायोमेश, यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा कॉलेज ऑफ साइंस एंड इंजीनियरिंग के एक दल द्वारा तैयार किया गया था।
- यह वज़न में हल्की होती है और इसे कम लागत में निर्मित किया जा सकता है।
- यह कोरल को बेहतर ढंग से संरक्षित करती है और इसमें क्रायोप्लेट्स के गुण होते हैं।
- क्रायोमेश तकनीक कोरल लार्वा को -196°C (-320.8°F) पर संग्रह करने में मदद करेगी।
- महत्त्व:
- क्रायोजेनिक रूप से जमे हुए प्रवालों को संग्रहीत किया जा सकता है और बाद में प्राकृतिक रूप से इन्हें पुन: उपयोग में लाया जा सकता है।
- लेकिन वर्तमान प्रक्रिया में लेज़र सहित परिष्कृत उपकरणों की आवश्यकता होती है, हालाँकि नया व हल्का "क्रायोमेश" सस्ते में निर्मित किया जा सकता है और इस तकनीक के माध्यम से प्रवाल को बेहतर ढंग से संरक्षित किया जा सकता है।
प्रवाल भित्ति:
- परिचय:
- प्रवाल समुद्री अकशेरूकीय या ऐसे जंतु हैं जिनमें रीढ़ नहीं होती है। वैज्ञानिक वर्गीकरण के तहत प्रवाल फाइलम निडारिया और एंथोजोआ वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
- प्रवाल आनुवंशिक रूप से समान जीवों से बने होते हैं जिन्हें ‘पॉलीप्स’ कहा जाता है। इन पॉलीप्स में सूक्ष्म शैवाल होते हैं जिन्हें ज़ूजैन्थेले (Zooxanthellae) कहा जाता है जो उनके ऊतकों के भीतर रहते हैं।
- प्रवाल और शैवाल आपस में संबंधित होते हैं।
- प्रवाल ज़ूजैन्थेले को प्रकाश संश्लेषण हेतु आवश्यक यौगिक प्रदान करता है।
- बदले में ज़ूजैन्थेले कार्बोहाइड्रेट की तरह प्रकाश संश्लेषण के जैविक उत्पादों की प्रवाल को आपूर्ति करता है, जो उनके कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल के संश्लेषण हेतु प्रवाल पॉलीप्स द्वारा उपयोग किया जाता है।
- यह प्रवाल को आवश्यक पोषक तत्त्वों को प्रदान करने के अलावा इसे अद्वितीय और सुंदर रंग प्रदान करता है।
- उन्हें "समुद्रों के वर्षावन" भी कहा जाता है।
- प्रवाल दो प्रकार के होते हैं:
- हार्ड कोरल/प्रवाल: वे कठोर, सफेद प्रवाल एक्सोस्केलेटन बनाने के लिये समुद्री जल से कैल्शियम कार्बोनेट निकालते हैं।
- ‘सॉफ्ट’ कोरल/प्रवाल: ‘सॉफ्ट’ कोरल एक कठोर कैल्शियम कार्बोनेट है जो कंकाल और चट्टानों का निर्माण नहीं करता है, हालाँकि वे एक प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र में मौजूद हैं।
- महत्त्व:
- ये समुद्री जैवविविधता का 25% से अधिक का समर्थन करते हैं, हालाँकि वे समुद्र तल का केवल 1% हैं।
- चट्टानों द्वारा समर्थित समुद्री जीवन वैश्विक मछली पकड़ने के उद्योगों को और बढ़ावा देता है।
- इसके अलावा प्रवाल भित्ति तंत्र के सेवा व्यापार और पर्यटन के माध्यम से वार्षिक आर्थिक मूल्य में 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई है।
ग्रेट बैरियर रीफ:
- यह विश्व का सबसे व्यापक और समृद्ध प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र है, जो कि 2,900 से अधिक भित्तियों और 900 से अधिक द्वीपों से मिलकर बना है।
- यह ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के उत्तर-पूर्वी तट पर 1400 मील तक फैला हुआ है।
- इसे बाह्य अंतरिक्ष से देखा जा सकता है और यह जीवों द्वारा बनाई गई विश्व की सबसे बड़ी एकल संरचना है।
- इसे वर्ष 1981 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में चुना गया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष का प्रश्न (PYQ)प्रश्न 1. निम्नलिखित समूहों में से किनमें ऐसी जातियाँ होती हैं जो अन्य जीवों के साथ सहजीवी संबंध बना सकती हैं? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: केवल 1 और 2 उत्तर: (D) व्याख्या:
अतः विकल्प D सही है। प्रश्न.2 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न.3 निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. उदाहरण के साथ प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (मेन्स-2019) |
स्रोत: द हिंदु
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 26 दिसंबर, 2022
वीर बाल दिवस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री गुरू गोविंद सिंह के प्रकाश पर्व पर 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। 26 दिसंबर वह दिन है जब साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को क्रमशः महज 6 साल एवं 9 साल की छोटी सी उम्र में मुगल सेना द्वारा मार दिया गया था। साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह तथा साहिबजादा फतेह सिंह सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्र थे। उन्होंने अपनी आस्था को त्यागने के बजाय मौत को प्राथमिकता दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि माता गुजरी, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और 4 साहिबजादों की वीरता एवं आदर्श लाखों लोगों को ताकत देता है। वे अन्याय के आगे कभी नहीं झुके। उन्होंने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जो समावेशी और सामंजस्यपूर्ण हो। इस अवसर पर कई कार्यक्रम और प्रतियोगिताएँ आयोजित की जा रही हैं। 'साहिबजादे' की कहानियाँ सुनाने वाली झाँकी के साथ सेना का एक बैंड भी मार्च में हिस्सा लेगा। प्रधानमंत्री कार्यक्रम के दौरान लगभग 300 बाल कीर्तनियों के नेतृत्व में "शब्द कीर्तन" में भाग लेंगे तथा दिल्ली के हज़ारों स्कूली बच्चे सोमवार को इंडिया गेट से कर्तव्य पथ तक मार्च पास्ट करेंगे और पूरे भारत को नन्हें साहिबजादों की शहादत का इतिहास बताएंगे।
कृत्रिम हृदय
आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) के विशेषज्ञों ने एक कृत्रिम हृदय (Artificial Heart) तैयार किया है, जो हृदय रोग संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिये मददगार साबित होगा। कृत्रिम हृदय या आर्टिफिशियल हार्ट का जानवरों पर परीक्षण अगले साल शुरू होगा। इसके बाद हार्ट ट्रांसप्लांट (Heart Transplant) आसान होगा और गंभीर रोगियों में आर्टिफिशियल हार्ट ट्रांसप्लांट किये जा सकते हैं। आईआईटी कानपुर तथा देश भर के 10 वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की एक टीम ने दो साल में इस कृत्रिम हृदय को तैयार किया है। जानवरों पर परीक्षण फरवरी या मार्च से शुरू होगा। परीक्षण में सफलता के बाद दो वर्षों में मनुष्यों में इसका प्रत्यारोपण किया जा सकेगा। हृदय रोग तेज़ी से बढ़ रहा है जिसके फलस्वरूप बड़ी संख्या में मरीजों को हृदय प्रत्यारोपण की सलाह दी जाती है, मरीजों की परेशानी कम करने के लिये यह कृत्रिम हृदय विकसित किया जा रहा है। भारत 80 प्रतिशत उपकरण और इम्प्लांट विदेशों से आयात करता है , केवल 20 प्रतिशत उपकरण एवं इम्प्लांट भारत में निर्मित किये जाते हैं।
मनानाला नल्लाथरवु मंद्रम योजना
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने मेडिकल कॉलेज के छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने हेतु मनानाला नल्लाथरवु मंद्रम या मनम (MANAM) योजना शुरू की है। इसका उद्देश्य मेडिकल छात्रों को आत्महत्या करने से रोकने के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित रोगियों के सही उपचार के लिये उन्हें प्रशिक्षित करना है। इस पहल के अंतर्गत छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करने में मदद मिलेगी। इसके लिये एक हेल्पलाइन नंबर 14416 भी जारी की गई है। तमिलनाडु सरकार ने इस पहल का शुभारंभ तिरुचि, पुडुकोट्टई एवं करूर ज़िलों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में किया है।