आंध्र प्रदेश में मध्यपाषाणकालीन शैलचित्रों की खोज
हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) के एक पूर्व पुरातत्त्वविद् ने मध्यपाषाणकालीन शैलचित्रों की खोज की है जिसमें आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले में ज़मीन के एक हिस्से को जोतते हुए एक व्यक्ति को दर्शाया गया है।
- यह तीर्थस्थलों की स्थापत्य विशेषताओं का पता लगाने के लिये कृष्णा नदी की निचली घाटी के सर्वेक्षण के दौरान पाई गई।
- इससे पहले वर्ष 2018 में पुरातत्त्वविदों ने गुंटूर ज़िले के दचेपल्ली में प्राकृतिक चूना पत्थर संरचनाओं पर लगभग 1500-2000 ईसा पूर्व नवपाषाण युग के अनुमानित प्रागैतिहासिक शैलचित्रों की खोज की थी।
मुख्य निष्कर्ष:
- प्राकृतिक शैलाश्रय:
- ओर्वाकल में एक पहाड़ी पर प्राकृतिक रूप से बनी गुफाओं की दीवारों और छत पर शैलचित्र पाए गए हैं।
- ये गुफाएँ प्रागैतिहासिक काल के दौरान उन मनुष्यों के लिये आश्रय स्थल के रूप में कार्य करती थीं जो उस समय इस क्षेत्र में रहते थे।
- मध्यपाषाणकालीन शैलचित्र:
- खोजी गई पाँच गुफाओं में से दो में शैलचित्रों का विशिष्ट चित्रण है।
- मध्यपाषाणकालीन युग के लोगों द्वारा निष्पादित यह चित्रकला उस युग की कलात्मक क्षमताओं और प्रथाओं की झलक को दर्शाती है।
- कलात्मक सामग्री:
- शैल चित्र प्राकृतिक सफेद काओलिन और लाल गेरू रंग का उपयोग करके बनाए गए थे।
- ‘गेरू’ मिट्टी, रेत और फेरिक ऑक्साइड से बना एक रंगद्रव्य है।
- काओलिनाइट एक नरम, मिट्टी जैसा और आमतौर पर सफेद खनिज है जो फेल्डस्पार जैसे एल्युमीनियम सिलिकेट खनिजों के रासायनिक अपक्षय द्वारा उत्पादित होता है।
- समय के साथ हवा और हवा के संपर्क में आने से चित्रों को काफी नुकसान हुआ है। हालाँकि कुछ रेखाचित्र और रूपरेखाएँ बरकरार हैं।
- शैल चित्र प्राकृतिक सफेद काओलिन और लाल गेरू रंग का उपयोग करके बनाए गए थे।
- चित्रित दृश्य:
- शैलचित्र प्रागैतिहासिक काल के समुदायों के दैनिक जीवन के विभिन्न दृश्यों को दर्शाते हैं।
- पेंटिंग में एक आदमी को अपने बाएँ हाथ से एक जंगली बकरी को कुशलता से पकड़ते हुए और उसे नियंत्रित करने के लिये हुक जैसे उपकरण का उपयोग करते हुए चित्रित किया गया है।
- एक अन्य पेंटिंग में दो जोड़ों को हाथ उठाए हुए दिखाया गया है, जबकि एक बच्चा उनके पीछे खड़ा है, जो संभवतः सांप्रदायिक गतिविधियों या अनुष्ठानों का संकेत दे रहा है।
- कृषि पद्धतियाँ:
- एक महत्त्वपूर्ण पेंटिंग में एक आदमी को हल पकड़े हुए और ज़मीन जोतते हुए दिखाया गया है। यह चित्रण एक अर्द्ध-व्यवस्थित जीवन पद्धति का सुझाव देता है जहाँ समुदाय के सदस्य जानवरों को पालतू बनाने तथा फसलों की खेती करने में लगे हुए हैं, जो प्रारंभिक कृषि पद्धतियों को दर्शाते हैं।
पाषाण युग:
- पुरापाषाण युग:
- मुख्यतः यह एक शिकारी प्रवृत्ति की और खाद्य संचय करने वाली संस्कृति मानी जाती है।
- पुरापाषाणकालीन उपकरणों में धारदार पत्थर, चॉपर, हाथ की कुल्हाड़ी, खुरचनी, भाला, धनुष और तीर आदि शामिल हैं तथा ये आमतौर पर कठोर क्वार्टजाइट चट्टान से बने होते थे।
- मध्य प्रदेश के भीमबेटका में पाए गए शैलचित्र और नक्काशी से पता चलता है कि इस काल में शिकार एक मुख्य जीवन निर्वाह गतिविधि थी।
- भारत में पुरापाषाण काल को तीन चरणों में विभाजित किया गया है:
- प्रारंभिक पुरापाषाण काल (500,000-100,000 ईसा पूर्व)
- मध्य पुरापाषाण काल (100,000-40,000 ईसा पूर्व)
- उत्तर पुरापाषाण काल (40,000-10,000 ईसा पूर्व)
- मेसोलिथिक (मध्य पाषाण) युग (10,000 ईसा पूर्व-8000 ईसा पूर्व):
- प्लेइस्टोसीन काल से होलोसीन काल तक संक्रमण और जलवायु में अनुकूल परिवर्तन इस युग की प्रमुख विशेषता है।
- मध्यपाषाण युग का प्रारंभिक काल शिकार, मछली पकड़ने और भोजन एकत्र करने का प्रतीक है।
- पशुओं को पालतू बनाने का कार्य इसी युग में प्रारंभहुआ।
- माइक्रोलिथ्स नामक उपकरण/औज़ार आकर में छोटे थे परंतु पुरापाषाण युग की तुलना में वे ज्यामितिक रूप से परिष्कृत थे।
- निओलिथिक (नव पाषाण) युग (8000 ईसा पूर्व-1000 ईसा पूर्व):
- इसे पाषाण युग का अंतिम चरण माना जाता, इस युग से खाद्य उत्पादन की शुरुआत हुई।
- लंबे समय तक एक ही स्थान पर रहना, मिट्टी के बर्तनों का उपयोग और शिल्प का आविष्कार नवपाषाण युग की विशेषता है।
- नवपाषाण काल के लोग पॉलिशदार पत्थर के औज़ारों एवं हथियारों का प्रयोग करते थे। इस काल के लोग विशेष रूप से पत्थर से बनी कुल्हाड़ियों का प्रयोग करते थे। नवपाषाण काल में हथौड़ा, छेनी एवं बसुली के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं।
- मेगालिथिक (महापाषाण) संस्कृति:
- महापाषाण संस्कृति में पत्थर की संरचनाओं के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जिनका निर्माण दफन स्थलों के रूप में या स्मारक स्थलों के रूप में किया गया था।
- भारत में पुरातत्त्वविदों को लौह युग (1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) में अधिकांश महापाषाण संस्कृतियों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, हालाँकि कुछ साक्ष्यों से लौह युग पूर्व (2000 ईसा पूर्व ) भी इनकी उपस्थिति के प्रमाण मिलते हैं।
- महापाषाण संस्कृति संपूर्ण प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हुई है। हालाँकि उनमें से अधिकांश स्थल प्रायद्वीपीय भारत में पाए जाते हैं, जो महाराष्ट्र (मुख्य रूप से विदर्भ), कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में केंद्रित हैं।
स्रोत: द हिंदू
क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये फोनाॅन में हेर-फेर
हाल के एक अध्ययन में IBM के शोधकर्त्ताओं ने क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये उपयोग किये जाने वाले फोनाॅन में हेर-फेर करने हेतु’ एक ध्वनिक बीम-स्प्लिटर विकसित किया है, जो संभावित रूप से पारंपरिक कंप्यूटरों की पहुँच से परे जटिल समस्याओं को हल कर सकता है।
- आमतौर पर प्रकाशिकी अनुसंधान में उपयोग किये जाने वाले बीम-स्प्लिटर, प्रकाश की किरण को दो भागों में विभाजित करते हैं। बीम-स्प्लिटर की कार्यप्रणाली क्वांटम भौतिकी पर आधारित है।
फोनाॅन:
- फोनाॅन कंपन ऊर्जा के पैकेट हैं और इन्हें ध्वनि के क्वांटम समकक्ष माना जा सकता है।
- फोटॉन, जो प्रकाश ऊर्जा के पैकेट हैं, के समान फोनाॅन संभावित रूप से क्वांटम कंप्यूटिंग (क्यूबिट्स) में सूचना की इकाइयों के रूप में काम कर सकते हैं।
- शोधकर्त्ता क्वांटम कंप्यूटिंग उद्देश्यों के लिये फोनाॅन में हेर-फेर और नियंत्रण करने के तरीकों की जाँच कर रहे हैं।
- इलेक्ट्रॉन्स या फोटॉन में हेर-फेर के अनुरूप फोनाॅन में हेर-फेर करने के तरीकों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण है।
ध्वनिक बीम-स्प्लिटर:
- यह धातु की छड़ों से बना कंघी के आकार का एक छोटा उपकरण है। इसे लिथियम नायोबेट से बने एक छोटे चैनल में रखा गया था।
- चैनल के प्रत्येक छोर पर एक सुपरकंडक्टिंग क्यूबिट था जो अलग-अलग फोनाॅन्स (Phonons) का उत्सर्जन कर सकता था और उनके बारे में पता लगा सकता था।
- पूरे सेट-अप को बहुत कम तापमान पर रखा गया था। फोनाॅन्स अरबों परमाणुओं के सामूहिक कंपन का प्रतिनिधित्व करते हैं और उसी तरह व्यवहार करते हैं जिस प्रकार फोटॉन एक ऑप्टिकल बीम-स्प्लिटर के साथ अभिक्रिया करते हैं।
- एक फोनाॅन को जब एक तरफ से उत्सर्जित किया गया तब यह अपेक्षित से आधे समय के लिये परावर्तित हुआ और बाकी आधे समय में यह दूसरी तरफ संचारित हुआ।
- यदि एक ही समय में दोनों तरफ से फोटॉन उत्सर्जित होते, तो वे सभी एक ही तरफ समाप्त हो जाते।
- डेटा ने पुष्टि की कि इस प्रकार दो-फोनाॅन का हस्तक्षेप हुआ, जो दर्शाता है कि फोनाॅन फोटॉन की तरह ही क्वांटम कार्य करते हैं।
क्वांटम कंप्यूटिंग:
- परिचय:
- क्वांटम कंप्यूटिंग एक तेज़ी से उभरती हुई तकनीक है जो पारंपरिक कंप्यूटरों की बहुत जटिल समस्याओं को हल करने हेतु क्वांटम यांत्रिकी के नियमों का उपयोग करती है।
- क्वांटम यांत्रिकी भौतिकी की उप-शाखा है जो क्वांटम के व्यवहार का वर्णन करती है जैसे- परमाणु, इलेक्ट्रॉन, फोटॉन और आणविक एवं उप-आणविक क्षेत्र।
- यह अवसरों से परिपूर्ण नई तकनीक है जो हमें विभिन्न संभावनाएँ प्रदान करके भविष्य की हमारी दुनिया को आकार देगी।
- यह वर्तमान की पारंपरिक कंप्यूटिंग प्रणालियों की तुलना में सूचना को मौलिक रूप से संसाधित करने का एक अलग तरीका है।
- क्वांटम कंप्यूटिंग एक तेज़ी से उभरती हुई तकनीक है जो पारंपरिक कंप्यूटरों की बहुत जटिल समस्याओं को हल करने हेतु क्वांटम यांत्रिकी के नियमों का उपयोग करती है।
- विशेषताएँ:
- वर्तमान में पारंपरिक कंप्यूटर बाइनरी 0 और 1 अवस्थाओं के रूप में जानकारी संग्रहीत करते हैं, जबकि क्वांटम कंप्यूटर क्वांटम बिट्स का उपयोग कर गणना करने के लिये प्रकृति के मूलभूत नियमों पर आधारित होते हैं।
- बिट जो कि 0 या 1 क्यूबिट अवस्थाओं के संयोजन में हो सकता है, के विपरीत क्वांटम बड़ी गणना की अनुमति देता है और उन्हें जटिल समस्याओं को हल करने की क्षमता प्रदान करता है जिसमें सबसे शक्तिशाली पारंपरिक सुपर कंप्यूटर भी सक्षम नहीं हैं।
- महत्त्व:
- क्वांटम कंप्यूटर सूचना में हेर-फेर करने के लिये क्वांटम यांत्रिकी परिघटना को शामिल कर सकते हैं और आणविक एवं रासायनिक अंतःक्रिया की प्रक्रियाओं, अनुकूलन समस्याओं का समाधान करने एवं कृत्रिम बौद्धिक क्षमता को बढ़ावा दे सकते हैं।
- ये नई वैज्ञानिक खोजों, जीवन रक्षक दवाओं और आपूर्ति शृंखलाओं में सुधार, लॉजिस्टिक एवं वित्तीय डेटा के विश्लेषण के अवसर प्रदान कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से वह कौन-सा संदर्भ है जिसमें "क्यूबिट" शब्द का उल्लेख किया गया है? (a) क्लाउड सेवाएँ उत्तर: (b) |
स्रोत: द हिंदू
जीरा की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि
पिछले कुछ महीनों में जीरा की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
- मूल्य वृद्धि का मुख्य कारण जीरा की आपूर्ति और इसकी मांग के बीच अत्यधिक असंतुलन है। बाज़ार में जीरा की आवक मांग की तुलना में काफी कम है जिससे इस मसाले की कमी देखी जा रही है।
जीरा से संबंधित प्रमुख बिंदु:
- परिचय:
- जीरा एक सुगंधित मसाला है जो भारतीय व्यंजनों का स्वाद बढ़ा देता है। यह महत्त्वपूर्ण मसालों में से एक है जिसका व्यापक रूप से पाक कला के साथ-साथ औषधीय प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि भारत में जीरा की उत्पत्ति भूमध्य सागर से हुई है। जीरा के बारे में मिस्रवासी 5,000 साल पहले जानते थे और यह पिरामिडों में पाया जाता था।
- जीरा एक सुगंधित मसाला है जो भारतीय व्यंजनों का स्वाद बढ़ा देता है। यह महत्त्वपूर्ण मसालों में से एक है जिसका व्यापक रूप से पाक कला के साथ-साथ औषधीय प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जाता है।
- महत्त्व:
- इस पौधे का आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण भाग इसका सूखा बीज है। इसका उपयोग विभिन्न संस्कृतियों के विभिन्न व्यंजनों में मसाले के रूप में या तो साबुत या पाउडर के रूप में किया जाता है।
- जीरे के तेल में जीवाणुरोधी गतिविधि होने की सूचना है। इसका उपयोग पशु चिकित्सा दवाओं और विभिन्न अन्य उद्योगों में किया जाता है।
- जलवायु और खेती:
- जीरा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है और यह सभी प्रकार की मिट्टी में अच्छी तरह से उगता है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
- जीरा की खेती मौसम की स्थिति के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। इसके लिये नमी रहित मध्यम ठंडी और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है, इसी कारण इसकी खेती गुजरात तथा राजस्थान के विशिष्ट क्षेत्रों तक सीमित है।
- जीरा की खेती वाले क्षेत्र के तौर पर गुजरात में स्थित उंझा, इसकी फसल की कीमतें निर्धारित करने वाले प्राथमिक बाज़ार के रूप में उभर कर सामने आया है।
- गुजरात, देश में प्रमुख जीरा उत्पादक राज्य है।
- यह एक रबी फसल है, जिसकी बुवाई अक्तूबर से नवंबर तक की जाती है और इसकी कटाई फरवरी और मार्च में की जाती है।
- प्रमुख उत्पादक:
- कुल उत्पादन में लगभग 70% भागीदारी के साथ भारत विश्व भर में जीरे का सबसे बड़ा उत्पादक है।
- सीरिया, तुर्किये, संयुक्त अरब अमीरात और ईरान जैसे अन्य देश शेष 30% का उत्पादन करते हैं।
- इन देशों में गृहयुद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पादन में आई रुकावटों ने एक प्रमुख उत्पादक के रूप में भारत के महत्त्व को उजागर किया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 22 जून, 2023
एस्टोनिया ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाया
एस्टोनिया की संसद ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिये एक कानून को मंज़ूरी दे दी है और ऐसा करने वाला वह पहला मध्य यूरोपीय देश बन गया है। यह कदम एस्टोनिया को क्षेत्र में उसके पड़ोसियों से अलग करता है, जहाँ समलैंगिक विवाह अवैध है। समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह 34 अन्य देशों में कानूनी रूप से किया जाता है और मान्यता प्राप्त है। इन 34 में से 23 ने कानून के माध्यम से, 10 ने अदालती फैसलों के माध्यम से समलैंगिक जोड़ों को विवाह करने की अनुमति दी। नीदरलैंड वर्ष 2001 में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाला पहला देश था। भारतीय कानून प्रणाली वर्तमान में समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देती है और देश के कानून विवाह को एक पुरुष और एक महिला के बीच मिलन के रूप में परिभाषित करते हैं। हालाँकि नवंबर 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के कुछ हिस्सों को हटाकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया।
और पढ़ें: समलैंगिक विवाह
एकीकृत सिम्युलेटर कॉम्प्लेक्स 'ध्रुव'
हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने कोच्चि में दक्षिणी नौसेना कमान में एकीकृत सिम्युलेटर कॉम्प्लेक्स (ISC) 'ध्रुव' का उद्घाटन किया। यह अति-अत्याधुनिक सुविधा स्वदेशी रूप से विकसित अत्याधुनिक सिम्युलेटर्स से सुसज्जित है तथा भारतीय नौसेना के व्यावहारिक प्रशिक्षण में क्रांति लाने के लिये तैयार है। ISC 'ध्रुव' के अंदर रखे गए सिम्युलेटर नेविगेशन, नौसैनिक जहाज़ों के संचालन और नौसेना की रणनीति में वास्तविक समय के अनुभव प्रदान करेंगे जिससे प्रशिक्षण प्रक्रिया में काफी वृद्धि होगी। विशेष रूप से इन सिम्युलेटर्स का उपयोग मित्र देशों के कर्मियों को प्रशिक्षित करने के साथ-साथ रक्षा सहयोग को मज़बूत करने के लिये किया जाएगा। प्रदर्शित किये गए सभी सिम्युलेटर्स में मल्टी-स्टेशन हैंडलिंग सिम्युलेटर (MSSHS), एयर डायरेक्शन एंड हेलीकॉप्टर कंट्रोल सिम्युलेटर (ADHCS) तथा एस्ट्रोनेविगेशन डोम ने विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया है। शिप हैंडलिंग सिम्युलेटर जो 18 देशों में निर्यात किये गए हैं, सिम्युलेटर निर्माण में भारत की शक्ति को उजागर करते हैं। एस्ट्रोनेविगेशन डोम जो भारतीय नौसेना में अपनी तरह का पहला अनूठा सिम्युलेटर है, देश की नवीन क्षमताओं को प्रदर्शित करता है।
और पढ़ें… भारतीय नौसेना
अमेरिकी सीनेट ने भारत के लिये 'नाटो प्लस फाइव' रक्षा दर्जे का प्रस्ताव रखा
अमेरिकी सीनेट के सह-अध्यक्षों ने हाल ही में घोषणा की कि उनकी योजना भारत को 'नाटो प्लस फाइव' रक्षा दर्जा देने वाला कानून पेश करने की है, यह संयोगपूर्ण है कि भारत के प्रधानमंत्री इन दिनों वाशिंगटन यात्रा पर हैं। इस व्यवस्था में वर्तमान में अमेरिका, उसके नाटो भागीदार देश और पाँच अन्य देश: ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया, जापान और इज़रायल शामिल हैं। इसका उद्देश्य रक्षा संबंधों को बढ़ाना तथा रक्षा उपकरणों के हस्तांतरण को सुविधाजनक बनाना है। हालाँकि भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पहले ही इस रूपरेखा को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह भारत पर लागू नहीं होता है। इस विचार के समर्थन में अमेरिका ने भारत की सुरक्षा क्षमताओं को मज़बूत करने के लिये विशेष रूप से चीन द्वारा उत्पन्न खतरे को देखते हुए दोनों देशों के बीच रक्षा व्यापार को बढ़ावा देने के महत्त्व पर ज़ोर दिया। इसका लक्ष्य दोनों देशों के बीच व्यापक साझेदारी सुनिश्चित करना है।
और पढ़ें…उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO)
सेंट पीटर्सबर्ग अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंच (SPIEF)
सेंट पीटर्सबर्ग अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंच (St. Petersburg International Economic Forum- SPIEF) के 26वें संस्करण ने पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाए रखने के रूस के दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित किया है। यूक्रेन के साथ युद्ध ने रूस को वैकल्पिक आर्थिक एवं भू-राजनीतिक गठबंधन तलाशने हेतु प्रेरित किया है। पश्चिम से वरिष्ठ प्रतिनिधियों और CEO की अनुपस्थिति के कारण इस वर्ष SPIEF में अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी का स्तर कम था। SPIEF आर्थिक क्षेत्र हेतु रूसी वार्षिक व्यापार कार्यक्रम है, जो वर्ष 1997 से सेंट पीटर्सबर्ग में तथा वर्ष 2006 से रूसी राष्ट्रपति के नेतृत्व में आयोजित किया जा रहा है। यह मंच प्रमुख रूसी और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के प्रमुखों, राज्य प्रमुखों, राजनीतिक नेताओं, विशेषज्ञों तथा नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को वैश्विक आर्थिक एजेंडे पर प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने एवं सतत् विकास हेतु सर्वोत्तम विधियों व विशेषज्ञता का आदान-प्रदान करने के लिये एक-साथ लाता है। यह मंच रूस और अन्य देशों के विभिन्न क्षेत्रों एवं क्षेत्रों से निवेश तथा व्यावसायिक परियोजनाओं व पहलों की एक प्रदर्शनी भी आयोजित करता है।