प्रीलिम्स फैक्ट्स: 21 जनवरी, 2020
सफेद राइनो
White Rhino
हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने इन-विट्रो-फर्टिलाइज़ेशन (In-vitro-Fertilization-IVF) प्रक्रिया का उपयोग करके उत्तरी सफेद राइनो (White Rhino) का एक भ्रूण बनाया है।
- वर्तमान में विश्व में केवल दो उत्तरी सफेद राइनो हैं।
सफेद राइनो (White Rhino) के बारे में
- हाथी के बाद सफेद राइनो दूसरा सबसे बड़ा स्थलीय स्तनपायी है।
- सफेद राइनो के ऊपरी होंठ वर्गाकार होने के कारण इसे वर्गाकार होंठ वाले गैंडे (Square-lipped Rhinoceros) के रूप में भी जाना जाता है।
- इसकी आनुवंशिक रूप से भिन्न दो उप-प्रजातियाँ (उत्तरी सफेद राइनो और दक्षिणी सफेद राइनो) मौजूद हैं और ये अफ्रीकी महाद्वीप में दो अलग-अलग क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- सफेद राइनो को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की लाल सूची में निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) की श्रेणी में रखा गया है और इसकी उप-प्रजातियों में उत्तरी सफेद राइनो को अतिसंकट ग्रस्त (Critically Endangered) तथा दक्षिणी सफेद राइनो को निकट संकटग्रस्त (Near Threatened) की श्रेणी में रखा गया है।
अफ्रीकी राइनो के बारे में
- अफ्रीका महाद्वीप में एक काला राइनो भी पाया जाता है जिसकी संख्या बहुत कम बची है और इसकी तीन उप-प्रजातियाँ पहले से ही विलुप्त हो चुकी हैं।
- काला राइनो को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की लाल सूची में अतिसंकटग्रस्त (Critically Endangered) की श्रेणी में रखा गया है।
एशियाई राइनो के बारे में
- भारतीय राइनो, अफ्रीकी राइनो से अलग है और इसका केवल एक सींग होता है। इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की लाल सूची में सुभेद्य (Vulnerable) श्रेणी में रखा गया है।
- एक जावा राइनो भी है जिसका एक सींग होता है और एक सुमात्रा राइनो जिसके अफ्रीकी राइनो की तरह दो सींग होते हैं।
जीईएम संवाद
GeM Samvaad
सार्वजनिक खरीद मंच 'गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (Government e-Marketplace-GeM)' ने जीईएम संवाद (GeM Samvaad) नामक एक राष्ट्रीय आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया है।
उद्देश्य: इसका उद्देश्य देश भर में फैले हितधारकों के साथ-साथ स्थानीय विक्रताओं तक पहुँच सुनिश्चित करना या उनसे संपर्क साधना है।
मुख्य बिंदु:
- जीईएम के माध्यम से भारत सरकार खरीदारों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बाज़ार में स्थानीय विक्रेताओं को ऑन-बोर्डिंग की सुविधा प्रदान करने हेतु देश भर के हितधारकों और स्थानीय विक्रेताओं तक पहुँचने की कोशिश कर रही है।
- 'वॉइस ऑफ कस्टमर’ (Voice of Customer) पहल के तहत जीईएम विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं (यूज़र्स) से आवश्यक जानकारियाँ एवं सुझाव प्राप्त करने की आशा कर रहा है जिनका उपयोग इस पूरी प्रणाली में बेहतरी सुनिश्चित करने हेतु किया जाएगा।
नगा जनजातियाँ
Naga Tribes
नगा जनजातियाँ नगालैंड, मणिपुर व अरुणाचल प्रदेश में निवास करती हैं तथा इनका संबंध इंडो-मंगोलाॅयड प्रजाति से है।
मुख्य नगा जनजातियाँ:
- प्रत्येक नगा जनजाति कई वंशों में विभाजित है, कुछ मुख्य नगा जनजातियाँ हैं- अंगामी, चांग, कोन्याक, फोम्स, पोचुरी, संगमा, सेमा, कुकी, चखेसंग, लोथा, रेंगमा, ज़ेलिंग।
भाषा एवं संस्कृति:
- नगा जनजातियों में प्रत्येक जनजाति की अपनी भाषा और सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं। ये अधिकतर नागामी भाषा में संवाद करते हैं जो असमिया, बंगाली और हिंदी का मिश्रण है।
- नगा जनजातियों की 60 प्रकार की बोलियाँ हैं जिनका संबंध चीनी-तिब्बती भाषाओं से है।
व्यवसाय एवं आहार:
- इनका मुख्य व्यवसाय कृषि, पशुपालन व मुर्गीपालन है और ये झूमिंग कृषि करते हैं।
- ये अधिकांशतः नग्नावस्था में घूमते हैं। इनका मुख्य आहार सब्जी, मछली, मांस के साथ-साथ चावल व बाजरा है।
विवाह एवं धार्मिक रीति -रिवाज:
- नगा जनजातियाँ विवाह से संबंधित मामलों में रूढ़िवादी हैं। एक ही गोत्र के मध्य विवाह करना पूर्णतः प्रतिबंधित है।
- नगा लोग मुख्यत: तीन देवताओं (स्वर्ग का स्वामी- लुगं किनाजिंगबा, पृथ्वी का स्वामी- लिजबा, मृतक की देखभाल करने वाला- मोजूंग) को मानते हैं।
कुकी जनजाति
Kuki Tribe
कुकी भारत, बांग्लादेश और म्याँमार में पाए जाने वाले कुछ जनजातियों के समूह को कहते हैं, ये जनजातियाँ सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में ही निवास करती हैं।
निवास एवं नृजातीय समूह:
- भारत में अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर कुकी जनजाति लगभग सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाई जाती है और इस जनजाति का संबंध मंगोलॉयड समूह (Mongoloid group) से है।
संवैधानिक स्थिति:
- भारतीय संविधान में चिन-कुकी समूह की लगभग 50 जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है।
चिन-कुकी समूह (Chin-Kuki group) के बारे में
- म्याँमार के चिन प्रांत के लोगों के लिये ‘चिन’ पद का प्रयोग किया जाता है, जबकि भारतीय क्षेत्र में चिन लोगों को ‘कुकी’ कहा जाता है।
- चिन-कुकी समूह (Chin-Kuki group) में गंगटे (Gangte), हमार (Hmar), पेइती (Paite), थादौ (Thadou), वैपी (Vaiphei), जोऊ/ज़ो (Zou), आइमोल (Aimol), चिरु (Chiru), कोइरेंग (Koireng), कोम (Kom), एनल (Anal), चोथे (Chothe), लमगांग (Lamgang), कोइरो (Koirao), थंगल (Thangal), मोयोन (Moyon) और मोनसांग (Monsang) शामिल हैं।
- गौरतलब है कि अन्य समूहों जैसे- पेइती, जोऊ/ज़ो, गंगटे और वैपी अपनी पहचान ज़ोमी जनजाति के रूप में करते हैं तथा स्वयं को कुकी नाम से दूर रखते हैं।
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान
Ranthambore National Park
अवस्थिति:
- रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले (अरावली और विंध्य पर्वत शृंखलाओं के जंक्शन पर) में स्थित है।
भौगोलिक विस्तार:
- अरावली पहाड़ियों और विंध्य पठार के आसपास के क्षेत्र में स्थित, रणथम्भौर वन 1334 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला है, जिसमें 392 वर्ग किमी. क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया है।
- रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान दक्षिण में चंबल नदी और उत्तर में बनास नदी से घिरा हुआ है।
चंबल नदी:
- चंबल नदी का उद्गम विंध्याचल शृंखला के जानापाओ पहाड़ियों से होता है।
- यह मालवा पठार से होकर बहती है और उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले में यमुना में मिलती है।
चंबल नदी पर निर्मित बांध:
- इस नदी पर गांधी सागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध, जवाहर सागर बांध, कोटा बैराज बनाए गए हैं
बनास नदी:
- बनास, चंबल की एक सहायक नदी है।
- इसका उद्गम अरावली पर्वत शृंखला के दक्षिणी भाग से होता है।
- यह सवाई माधोपुर के पास राजस्थान-मध्य प्रदेश की सीमा पर चंबल से मिलती है।
वनस्पति:
- रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान की वनस्पतियाँ उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती एवं कंटीली होती हैं।
- यहाँ ढाक (इसके अन्य नाम पलाश, छूल, परसा, टेसू, किंशुक, केसू हैं।) नामक वृक्ष पाया जाता है, जो सूखे की लंबी अवधि के अनुकूल होता है।
- इसका वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा (Butea Monosperma) है।
- इस वृक्ष में ग्रीष्मकाल में लाल फूल आते हैं इन आकर्षक फूलों के कारण इसे ‘जंगल की आग’ भी कहा जाता है।
ऐतिहासिक घटनाक्रम:
- इस उद्यान को वर्ष 1955 में ‘वन्यजीव अभयारण्य’ घोषित किया गया और वर्ष 1973 में इसे ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत बाघ संरक्षण का दर्जा दिया गया तथा वर्ष 1980 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
इसमें अभयारण्य शामिल हैं?
- रणथम्भौर के निकटवर्ती जंगलों को वर्ष 1984 में सवाई मानसिंह अभयारण्य (Sawai Mansingh Sanctuary) और केलादेवी अभयारण्य (Keladevi Sanctuary) घोषित किया गया था।
- वर्ष 1991 में रणथम्भौर टाइगर रिज़र्व का विस्तार सवाई मानसिंह और केलादेवी अभयारण्यों तक किया गया।
इस उद्यान में तीन बड़ी झीलें- पदम तालाब (Padam Talab), मलिक तालाब (Malik Talab) और राज बाग तालाब (Raj Bagh Talab) हैं।