भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष
मंगोलियाई बुद्ध पूर्णिमा समारोह के अवसर पर भगवान बुद्ध के चार पवित्र अवशेषों को 11 दिवसीय प्रदर्शनी के लिये भारत से मंगोलिया ले जाया जा रहा है।
- इन अवशेषों को उलानबटार में गंडन मठ परिसर के बटसागान मंदिर में प्रदर्शित किया जाना है।
- चारो अवशेष बुद्ध के 22 अवशेषों में से हैं, जो वर्तमान में दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे गए हैं।
- साथ ही उन्हें 'कपिलवस्तु अवशेष' के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे बिहार के एक स्थान जिसे कपिलवस्तु का प्राचीन शहर माना जाता है, से प्राप्त किये गए हैं। इस स्थान की खोज 1898 में हुई थी।
- वे अवशेष पवित्र व्यक्तियों से जुड़ी पवित्र वस्तुएंँ हैं।
- वे शरीर के अंग (दांँत, बाल, हड्डियांँ) या अन्य वस्तुएंँ हो सकती हैं जिन्हें पवित्र व्यक्ति ने इस्तेमाल किया या छुआ है।
- कई परंपराओं में यह माना जाता है कि लोगों को स्वस्थ करने, अनुग्रह प्रदान करने या राक्षसों को भगाने के लिये अवशेषों में विशेष शक्तियांँ होती हैं।
बुद्ध के पवित्र अवशेष:
- बौद्ध मान्यताओं के अनुसार, 80 वर्ष की आयु में बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले में मोक्ष प्राप्त किया।
- कुशीनगर के मल्लों ने एक सार्वभौमिक राजा के रूप में समारोहों के साथ उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया।
- अंतिम संस्कार की चिता से उनके अवशेषों को एकत्र कर उन्हें आठ भागों में विभाजित किया गया, जिन्हें मगध के अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवी, कपिलवस्तु के शाक्य, कुशीनगर के मल्ल, अल्लकप्पा के बुलीज, पावा के मल्ल, रामग्राम के कोलिया और वेथादिपा के एक ब्राह्मण के बीच वितरित किया गया।
- इसका उद्देश्य पवित्र अवशेषों पर स्तूप का निर्माण करना था।
- इसके बाद दो और स्तूपों का पता चलता है जिनमें से एक का निर्माण एकत्र किये गए अस्ति कलश के ऊपर तथा दूसरे का निर्माण अंगारे (लकड़ी का बिन जला कोयला) के ऊपर हुआ है।
- बुद्ध के शरीर के अवशेषों पर बने स्तूप (सरिरिका स्तूप) सबसे पहले जीवित बौद्ध मंदिर हैं। इन आठ स्तूपों में से सात को अशोक (272-232 ईसा पूर्व) ने बनवाया, तथा बौद्ध धर्म के साथ-साथ स्तूपों के पंथ को लोकप्रिय बनाने के प्रयास में उनके द्वारा बनाए गए 84,000 स्तूपों के भीतर अवशेषों के बड़े हिस्से को एकत्र किया।
कपिलवस्तु अवशेष की खोज:
- वर्ष1898 में पिपरहवा (UP के सिद्धार्थनगर के पास) में स्तूप स्थल पर एक उत्खनित ताबूत की खोज ने प्राचीन कपिलवस्तु की पहचान करने में मदद की।
- ताबूत के ढक्कन पर मौजूद शिलालेख बुद्ध और उनके समुदाय, शाक्य के अवशेषों को संदर्भित करता है।
- वर्ष 1971-77 के दौरान भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा एक और स्तूप की खुदाई में दो शैलखडी ताबूत सामने आए, जिनमें कुल 22 पवित्र अस्थि अवशेष थे, जो अब राष्ट्रीय संग्रहालय की देख-रेख में हैं।
- इसके बाद पिपरहवा के पूर्वी मठ में विभिन्न स्तरों और स्थानों से 40 से अधिक टेराकोटा मुद्रण की खोज की गई, जिससे यह प्रमाणित हुआ कि पिपरहवा ही प्राचीन कपिलवस्तु था।
मंगोलिया यात्रा के लिये सुरक्षा:
- 11 दिवसीय यात्रा के दौरान अवशेषों को मंगोलिया में 'राज्य अतिथि' का दर्जा दिया जाएगा और फिर से भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय में ले जाया जाएगा।
- यात्रा के लिये भारतीय वायु सेना ने एक विशेष हवाई जहाज़, सी-17 ग्लोबमास्टर उपलब्ध कराया है, जो भारत में उपलब्ध सबसे बड़े विमानों में से एक है।
- वर्ष 2015 में पवित्र अवशेषों को प्राचीन वस्तुओं और कला खजाने की 'एए' श्रेणी के तहत रखा गया था, जिन्हें उनकी नाजुक प्रकृति को देखते हुए प्रदर्शनी के लिये देश से बाहर नहीं ले जाया जाना चाहिये।
गौतम बुद्ध:
- उनका जन्म सिद्धार्थ के रूप में लगभग 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी में एक शाही परिवार में हुआ था, जो भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित है।
- उनका परिवार शाक्य वंश से संबंधित था, जो कपिलवस्तु, लुंबिनी में शासन करता था।
- 29 वर्ष की आयु में गौतम ने गृह त्याग दिया और सांसारिक जीवन को त्याग कर तपस्या या अत्यधिक आत्म-अनुशासन की जीवनशैली को अपनाया।
- लगातार 49 दिनों के ध्यान के बाद गौतम ने बिहार के बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे बोधि (ज्ञान) प्राप्त किया।
- बुद्ध ने अपना पहला उपदेश उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास सारनाथ गाँव में दिया था। इस घटना को धर्म चक्र प्रवर्तन के रूप में जाना जाता है।
- उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में 483 ईसा पूर्व में उनका निधन हो गया। इस घटना को महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है।
- उन्हें भगवान विष्णु (दशवतार) के दस अवतारों में से आठवाँ अवतार माना जाता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. कुछ बौद्ध रॉक-कट गुफाओं को चैत्य कहा जाता है, जबकि अन्य को विहार कहा जाता है। दोनों के बीच क्या अंतर है? (2013) (a) विहार पूजा-स्थल होता है, जबकि चैत्य बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान है। उत्तर: (b)
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विश्व मगरमच्छ दिवस
विश्व मगरमच्छ दिवस 17 जून को मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में लुप्तप्राय मगरमच्छों और मगरमच्छों की दुर्दशा को उजागर करने के लिये एक वैश्विक जागरूकता अभियान है।
भारत में मगरमच्छ की प्रजातियाँ:
- मगर या मार्श मगरमच्छ:
- विवरण:
- यह अंडा देने वाली और होल-नेस्टिंग स्पेसीज़ (Hole-Nesting Species) है जिसे खतरनाक भी माना जाता है।
- आवास:
- यह मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित है जहाँ यह मीठे पानी के स्रोतों और तटीय खारे जल के लैगून एवं मुहानों में भी पाई जाता है।
- भूटान और म्याँमार में यह पहले ही विलुप्त हो चुका है।
- खतरा:
- आवासों का विनाश और विखंडन एवं परिवर्तन, मछली पकड़ने की गतिविधियाँ तथा औषधीय प्रयोजनों हेतु मगरमच्छ के अंगों का उपयोग।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट: सुभेद्य
- CITES: परिशिष्ट- I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
- विवरण:
- एस्टुअरीन या खारे पानी का मगरमच्छ:
- परिचय:
- यह पृथ्वी पर सबसे बड़ी जीवित मगरमच्छ प्रजाति है, जिसे विश्व स्तर पर एक ज्ञात आदमखोर (Maneater) के रूप में जाना जाता है।
- निवास:
- यह मगरमच्छ ओडिशा के भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाया जाता है।
- यह दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है।
- संकट:
- अवैध शिकार, निवास स्थान की हानि और प्रजातियों के प्रति शत्रुता।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची: कम चिंतनीय
- CITES: परिशिष्ट- I (ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और पापुआ न्यू गिनी की आबादी को छोड़कर, जो परिशिष्ट- II में शामिल हैं)।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
- परिचय:
- घड़ियाल:
- विवरण:
- इन्हें गेवियल भी कहते हैं, यह एक प्रकार का एशियाई मगरमच्छ है और अपने लंबे, पतले थूथन के कारण अन्य से अलग होते हैं जो कि एक बर्तन (घड़ा) जैसा दिखता है।
- घड़ियाल की आबादी स्वच्छ नदी जल का एक अच्छा संकेतक है।
- इसे अपेक्षाकृत हानिरहित, मछली खाने वाली प्रजाति के रूप में जाना जाता है।
- आवास:
- यह प्रजाति ज़्यादातर हिमालयी नदियों के ताज़े पानी में पाई जाती है।
- विंध्य पर्वत (मध्य प्रदेश) के उत्तरी ढलानों में चंबल नदी को घड़ियाल के प्राथमिक आवास के रूप में जाना जाता है।
- अन्य हिमालयी नदियाँ जैसे- घाघरा, गंडक नदी, गिरवा नदी, रामगंगा नदी और सोन नदी इसके द्वितीयक आवास हैं।
- खतरा:
- अवैध रेत खनन, अवैध शिकार, नदी प्रदूषण में वृद्धि, बाँध निर्माण, बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने का कार्य और बाढ़।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- CITES: परिशिष्ट- I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
मानव-मगरमच्छ संघर्ष के कारण और समाधान:
- कारण:
- बढ़ते शहरीकरण के साथ नदी के किनारे और दलदली क्षेत्रों पर मनुष्यों का अतिक्रमण इन क्षेत्रों में मानव-मगरमच्छ संघर्ष को बढ़ाने के प्रमुख कारणों में से एक है।
- हॉटस्पॉट:
- गुजरात में वडोदरा, राजस्थान में कोटा, ओडिशा में भितरकनिका और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को भारत में मानव-मगरमच्छ संघर्ष का हॉटस्पॉट माना जाता है।
- संभावित समाधान:
- पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बनाए रखने में मगरमच्छों के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए स्थानीय लोगों में मगरमच्छों के संभावित स्थानांतरण के साथ जागरूकता को बढ़ावा देना प्रजातियों के संरक्षण के लिये कुछ व्यवहार्य विकल्प हैं।
मगरमच्छ संरक्षण के प्रयास :
- ओडिशा सरकार द्वारा महानदी नदी बेसिन में घड़ियाल के संरक्षण के लिये 1,000 रुपए के नकद पुरस्कार की घोषणा की है।
- वर्ष 1975 से मगरमच्छ संरक्षण परियोजना को विभिन्न राज्यों में शुरू किया गया था।
आगे की राह
- दक्षिण एशिया में सीमा पार सहयोग की अधिक संभावना है और इसकी आवश्यकता भी है।
- जहांँ भी जानवरों की सीमा पार आवाजाही हो वहांँ सूचनाओं का आदान-प्रदान होना चाहिये।
- उन जल निकायों में मगरमच्छ बहिष्करण बाड़े स्थापित किये जाने चाहिये जिनमें वे निवास करते हैं।
- उपद्रव करने वाले मगरमच्छों की पहचान की जानी चाहिये और 'मगरमच्छ दस्ते' को प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें पकड़ा जाना चाहिये। बड़े और समस्याग्रस्त (उपद्रव) मगरमच्छों को पकड़ने तथा स्थानांतरित करने के लिये एक उचित गाइडलाइन तैयार कि जानी चाहिये।
- देश में मगरमच्छों की आबादी की वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिये एक उचित सर्वेक्षण करने हेतु जनशक्ति, आधुनिक तकनीक और धन का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- यह जानवरों की जियो-टैगिंग के माध्यम से किया जा सकता है ताकि मानव-मगरमच्छ संघर्ष को रोकने के लिये उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा सके।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
उन्मेष
संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी, हिमाचल प्रदेश सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग के सहयोग से आज़ादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में शिमला में एक अंतर्राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव उन्मेष का आयोजन कर रहे हैं।
- भारत सहित 15 देशों के 425 से अधिक लेखकों, कवियों, अनुवादकों, आलोचकों और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट व्यक्तित्वों के साथ 60 से अधिक भाषाओं तथा 64 कार्यक्रमों का प्रतिनिधित्व करते हुए UNMESHA देश का सबसे बड़ा साहित्य उत्सव है।
साहित्य अकादमी:
- 12 मार्च, 1954 को भारत सरकार द्वारा औपचारिक रूप से साहित्य अकादमी का उद्घाटन किया गया।
- हालाँकि यह सरकार द्वारा स्थापित किया गया था परंतु यह अकादमी एक स्वायत्त संगठन के रूप में कार्य करती है। इसे सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत जनवरी 1956 में एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था।
- साहित्य अकादमी, भारत की राष्ट्रीय पत्र अकादमी, देश में साहित्यिक संवाद, प्रकाशन और प्रचार के लिये केंद्रीय संस्था है तथा अंग्रेज़ी सहित 24 भारतीय भाषाओं में साहित्यिक गतिविधियों का संचालन करने वाली एकमात्र संस्था है।
- अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं में साहित्यिक कृतियों के लिये सालाना 24 पुरस्कार और भारत की भाषाओं में तथा भारत की भाषाओं में साहित्यिक अनुवादों के लिये समान संख्या में पुरस्कार, जाँच चर्चा एवं चयन की एक साल की लंबी प्रक्रिया के बाद दिये जाते हैं।
- यह भारतीय साहित्य को बढ़ावा देने के लिये दुनिया भर के विभिन्न देशों के साथ साहित्यिक आदान-प्रदान कार्यक्रम भी चलाता है।
- ज्ञानपीठ पुरस्कार के बाद साहित्य अकादमी पुरस्कार भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान है।
स्रोत: पी.आई.बी.
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 जून, 2022
ऑटिस्टिक प्राइड डे
प्रतिवर्ष 18 जून को विश्व स्तर पर 'ऑटिस्टिक प्राइड डे' के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य ‘ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर’ नामक विकार से पीड़ित लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। ऑटिज़्म से पीड़ित लोगों को प्रायः मानवाधिकारों के उल्लंघन, भेदभाव और तमाम तरह की गलत धारणाओं का सामना करना पड़ता है। ‘ऑटिस्टिक प्राइड डे’ का लक्ष्य इसी प्रकार के भेदभाव को समाप्त कर ऑटिज़्म से पीड़ित लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना है। ‘ऑटिस्टिक प्राइड डे’ पहली बार वर्ष 2005 में ‘एस्पीज़ फॉर फ्रीडम’ नामक नागरिक संगठन द्वारा मनाया गया था। ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार (ASD) सामाजिक विकृतियों, संवाद में परेशानी या प्रतिबंध, व्यवहार का दोहराव और व्यवहार का स्टिरियोटाइप पैटर्न द्वारा पहचाना जाने वाला तंत्रिका विकास संबंधी जटिल विकार है। नीले रंग को ऑटिज़्म का प्रतीक माना गया है। इस विकार के लक्षण जन्म या बाल्यावस्था (पहले तीन वर्षों) में ही नज़र आने लगते हैं। यह विकार व्यक्ति की सामाजिक कुशलता एवं संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। यह जीवनपर्यंत बना रहने वाला विकार है। इस विकार से पीड़ित बच्चों का विकास अन्य बच्चों से अलग होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, विश्व स्तर पर प्रत्येक 160 बच्चों में से एक बच्चा ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन एक ऐसे पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण पर ज़ोर देता है, जो ऑटिज़्म से पीड़ित लोगों का समर्थन करता हो।
श्तेफानिया मॉरेचिनानू
हाल ही में गूगल ने रोमानियाई भौतिक विज्ञानी श्तेफानिया मॉरेचिनानू (Ștefania Mărăcineanu) का 140वाँ जन्मदिन डूडल के साथ मनाया। श्तेफानिया मॉरेचिनानू रेडियोधर्मिता की खोज और अनुसंधान में अग्रणी महिलाओं में से एक थीं। श्तेफानिया मॉरेचिनानू (Ștefania Mărăcineanu) का जन्म 18 जून, 1882 को रोमानिया में हुआ था। उन्होंने 1910 में भौतिक और रासायनिक विज्ञान की डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की, बाद में उन्होंने बुखारेस्ट में सेंट्रल स्कूल फॉर गर्ल्स में एक शिक्षक के रूप में अपना कॅरियर शुरू किया। वहाँ रहते हुए मॉरेचिनानू ने रोमानियाई विज्ञान मंत्रालय से छात्रवृत्ति अर्जित की। उन्होंने पेरिस में रेडियम संस्थान में स्नातक शोध करने का फैसला किया। भौतिक विज्ञानी मैरी क्यूरी के निर्देशन में रेडियम संस्थान तेज़ी से रेडियोधर्मिता के अध्ययन के लिये एक विश्वव्यापी केंद्र बन गया। मॉरेचिनानूु ने पोलोनियम पर अपनी पीएचडी थीसिस पर काम करना शुरू किया, एक ऐसा तत्त्व जिसे क्यूरी ने खोजा था। मॉरेचिनानू ने भौतिकी में अपनी पीएचडी पूरी करने के लिये पेरिस के सोरबोन विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। मेडॉन में खगोलीय वेधशाला में चार साल तक काम करने के बाद वह रोमानिया लौट आई और रेडियोधर्मिता के अध्ययन के लिये अपनी मातृभूमि की पहली प्रयोगशाला की स्थापना की। मॉरेचिनानू ने अपना समय कृत्रिम बारिश पर शोध करने के लिये समर्पित किया, जिसमें उसके परिणामों का परीक्षण करने के लिये अल्जीरिया की यात्रा भी शामिल थी। उन्होंने भूकंप और वर्षा के बीच की कड़ी का भी अध्ययन किया, यह रिपोर्ट करने वाली पहली महिला बनीं कि भूकंप के कारण उपरिकेंद्र में रेडियोधर्मिता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उनका निधन 15 अगस्त, 1944 को हुआ था।
फीफा U-17 महिला विश्व कप
फीफा ने हाल ही में अंडर-17 महिला विश्व कप के कार्यक्रम की घोषणा की, इसका आयोजन भारत में किया जाना है। आधिकारिक ड्रा 24 जून, 2022 को होने वाला है। इसका सेमीफाइनल गोवा के पंडित जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में होगा, जबकि फाइनल मैच नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में 30 अक्टूबर, 2022 को खेला जाएगा। यह 17 साल से कम उम्र की महिला खिलाड़ियों के लिये आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट है जिसका आयोजन फीफा द्वारा किया जाता है। यह सम-संख्या वाले वर्षों में आयोजित किया जाता है और पहली बार वर्ष 2008 में खेला गया था। इसका वर्तमान चैंपियन स्पेन है, जिसने उरुग्वे में आयोजित वर्ष 2018 टूर्नामेंट में अपना पहला खिताब जीता था। वर्ष 2020 में विश्व कप को कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था, इसका आयोजन भारत में पांँच स्थानों पर होना था लेकिन नवंबर 2020 में फीफा ने टूर्नामेंट के 2020 संस्करण को रद्द कर दिया था।