प्रिलिम्स फैक्ट्स (15 Sep, 2022)



नौसेना अभ्यास काकाडू

रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना द्वारा आयोजित एक बहुराष्ट्रीय नौसैनिक अभ्यास काकाडू में भाग लेने के लिये भारत के  INS सतपुड़ा और P-8I समुद्री गश्ती विमान ऑस्ट्रेलिया के डार्विन पहुँच गए हैं।

Kakadu

नौसेना अभ्यास काकाडू:

  • परिचय:
    • अभ्यास काकाडू एक संयुक्त-सक्षम, द्विवार्षिक अभ्यास है जो रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना द्वारा आयोजित किया जाता है तथा यह रॉयल ऑस्ट्रेलियाई वायु सेना द्वारा समर्थित है।
    • काकाडू नौसेना का प्रमुख समुद्री अभ्यास है, जो समुद्री और हवाई क्षेत्रों में राष्ट्रों के बीच अंतर-संचालन क्षमता विकसित करने के साथ ही समुद्री सुरक्षा एवं निगरानी के लिये प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करता है।
    • इसकी शुरुआत वर्ष 1993 में हुई थी।
  • नौसेना अभ्यास काकाडू-2022:
    • यह दो सप्ताह तक चलने वाला अभ्यास है, जो बंदरगाह और समुद्र दोनों क्षेत्रों में आयोजित किया जाता है, जिसमें 14 नौसेनाओं के  जहाज़ और समुद्री विमान शामिल होते हैं।
    • भागीदारी: इसमें लगभग 19 जहाज़ों, 34 विमानों और 25 देशों के 3000 से अधिक कर्मियों के शामिल होने की संभावना है।
    • थीम: साझेदारी, नेतृत्व, दोस्ती।
    • महत्त्व: नौसेना की सबसे महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सहभागिता गतिविधि के रूप में भाग लेने वाले देशों के बीच संबंधों के निर्माण के लिये अभ्यास काकाडू महत्त्वपूर्ण है।
      • यह अभ्यास क्षेत्रीय भागीदारों को संयुक्त रूप से कांस्टेबुलरी ऑपरेशन से लेकर उच्च समुद्री क्षेत्र में युद्ध जैसी बहुराष्ट्रीय समुद्री गतिविधियों को संचालित करने का अवसर प्रदान करता है।

ऑस्ट्रेलिया के साथ अन्य सैन्य अभ्यास

स्रोत: पी.आई.बी.


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 सितंबर, 2022

‘अभियंता दिवस’

देश में प्रतिवर्ष 15 सितंबर को ‘अभियंता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। अभियंता दिवस भारत  के सुविख्यात इंजीनियर डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिन्हें आधुनिक भारत के ‘विश्वकर्मा’ के रूप में जाना जाता है। इस वर्ष उनकी 161वीं जयंती मनाई जा रही है। एम. विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर, 1861 को मैसूर (कर्नाटक) के 'मुद्देनाहल्ली' नामक स्थान पर हुआ था। भारत सरकार ने वर्ष 1968 में उनकी जन्म तिथि को ‘अभियंता दिवस’ घोषित किया था। डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को बाँध डिज़ाइन के मास्टर के रूप में भी जाना जाता है। कृष्णा राजा सागर झील और बाँध उनकी सबसे उल्लेखनीय परियोजनाओं में से एक है, जो कर्नाटक में स्थित है। उस समय वह भारत में सबसे बड़ा जलाशय था। वे मैसूर के दीवान भी रहे। वर्ष 1955 में उनकी अभूतपूर्व तथा जनहितकारी उपलब्धियों के लिये उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया। जब वह 100 वर्ष के हुए तो भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया। उन्हें ब्रिटिश नाइटहुड अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था।

‘राजभाषा कीर्ति पुरस्कार’

सूरत (गुजरात) में आयोजित राष्ट्रीय हिंदी दिवस समारोह में राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (Rashtriya Ispat Nigam Limited-RINL), विशाखापत्तनम इस्पात संयंत्र को देश के सर्वोत्कृष्ट राजभाषा कीर्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। RINL को लगातार चौथी बार ‘ग’ श्रेणी में प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया है। सूरत मेंं आयोजित द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में गृह और सहकारिता मंत्री की उपस्थिति में राज्य के मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड के अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक अतुल भट्ट को यह पुरस्कार प्रदान किया। हिंदी गृहपत्रिका श्रेणी में भी हिंदी पत्रिका ‘सुगंध’ को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इसी समारोह में नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (उपक्रम), विशाखापत्तनम को भी ‘ग’ श्रेणी में द्वितीय पुरस्कार प्रदान किया गया।

‘बायो-इथेनॉल परियोजना’

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने 14 सितंबर को गुजरात के सूरत में कृषक भारती कोआपरेटिव लिमिटेड की बायो-इथेनॉल परियोजना, कृभको हज़ीरा का शिलान्यास किया। इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री और रेल राज्यमंत्री सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। कृभको की जैव-इथेनॉल परियोजना, सहकारी क्षेत्र, पर्यावरण सुधार, किसानों की आय को दोगुना करने, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने व ग्लोबल वॉर्मिंग की चुनौती का सामना करने के बहुआयामी अभियान की दिशा में एक सार्थक कदम है। इस परियोजना से हज़ीरा में 2,50,000 लीटर की दैनिक क्षमता वाला बायो-इथेनॉल संयंत्र स्थापित होगा जो 8.25 करोड़ लीटर जैव-ईंधन का उत्पादन करेगा, इससे 2.5 लाख मीट्रिक टन मक्का या अन्य उपजों  के लिये अच्छा बाज़ार भी मिलेगा। गुजरात के लगभग 9 ज़िलों में मक्का मुख्य उपज है और इसके अलावा राज्य के 10 ज़िलों में मक्का की पैदावार हो सकती है और इस संयंत्र के माध्यम से किसानों को बहुत लाभ हो सकता है। साथ ही इससे ख़राब मक्के से भी बायो ईंधन बनाकर देश के अर्थतंत्र और विदेशी मुद्रा भंडार को लाभ होगा तथा यह संयंत्र किसानों के जीवन में एक नई आशा का संचार करेगा।