प्रीलिम्स फैक्ट्स: 14 मई, 2020
नमूना पंजीकरण प्रणाली
Sample Registration System
10 मई, 2020 को भारत के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General of India) द्वारा ‘नमूना पंजीकरण प्रणाली’ (Sample Registration System) बुलेटिन जारी किया गया है। यह वर्ष 2018 के लिये राष्ट्रीय जन्म दर, मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर के एकत्रित आँकड़ों पर आधारित है।
राष्ट्रीय जन्म दर (National Birth Rate):
- वर्ष 2018 में राष्ट्रीय जन्म दर (National Birth Rate) 20 थी जबकि वर्ष 1971 में यह 36.9 थी।
- गौरतलब है कि जन्म दर को प्रति वर्ष प्रति हजार जनसंख्या पर जीवित जन्मे बच्चों की कुल संख्या से दर्शाया जाता है।
- जन्म दर के संदर्भ में बिहार (26.2) पहले पायदान पर बना हुआ है जबकि अंडमान एवं निकोबार (11.2) सबसे निचले पायदान पर है।
- ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय जन्म दर के संदर्भ में ग्रामीण-शहरी अंतर भी कम हुआ है। हालाँकि पिछले चार दशकों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में जन्म दर लगातार बढ़ी है।
- पिछले दशक में जन्म दर में लगभग 11 फीसदी की गिरावट (जो वर्ष 2009 में 22.5 से वर्ष 2018 में 20.0 थी) आई है।
मृत्यु दर (Death Rate):
- वर्ष 1971 में मृत्यु दर 14.9 थी जबकि वर्ष 2018 में यह 6.2 थी।
- गौरतलब है कि मृत्यु दर को प्रति वर्ष प्रति हजार जनसंख्या पर मृत्यु की कुल संख्या से दर्शाया जाता है।
- भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में मृत्यु दर सबसे अधिक है जबकि दिल्ली में सबसे कम है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में मृत्यु दर में कमी आई है।
- पिछले एक दशक में अखिल भारतीय स्तर पर मृत्यु दर 7.3 से घटकर 6.2 रह गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह गिरावट 7.8 से 6.7 और शहरी क्षेत्रों में 5.8 से 5.1 हुई है।
शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate):
- वर्ष 2018 में शिशु मृत्यु दर 32 है जबकि वर्ष 1971 में यह 129 थी।
- गौरतलब है कि शिशु मृत्यु दर 1 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु है। जिसे प्रति 1000 जन्म पर एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु की कुल संख्या से दर्शाया जाता है।
- देश में शिशु मृत्यु दर के संदर्भ में सबसे खराब स्थिति मध्य प्रदेश (48) की है जबकि सबसे अच्छी स्थिति नागालैंड (4) की है।
- पिछले 10 वर्षों में शिशु मृत्यु दर के संदर्भ में ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 35% और शहरी क्षेत्रों में लगभग 32% की गिरावट दर्ज की गई है।
- अखिल भारतीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर पिछले एक दशक में 50 से घटकर 32 हो गई है।
स्पिरुलिना ग्राउंडनट चिक्की
Spirulina Groundnut Chikki
हाल ही में मैसूर स्थित ‘केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान’ (Central Food Technological Research Institute- CFTRI) ने ‘स्पिरुलिना ग्राउंडनट चिक्की’ (Spirulina Groundnut Chikki) विकसित की है जो COVID-19 महामारी के समय लोगों को सूक्ष्म पोषक तत्त्व प्रदान कर सकती है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकती है।
प्रमुख बिंदु:
- यह एक स्नैक है जो अच्छे सूक्ष्म पोषक तत्त्व प्रदान करता है।
- चिक्की को तैयार करने के लिये स्पिरुलिना के साथ-साथ स्वादिष्ट एवं पौष्टिक मूंगफली का उपयोग किया गया है जो विटामिन ए, β-कैरोटीन एवं आसानी से पचने वाले एल्गल प्रोटीन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से भरपूर है।
- CFTRI के अन्य पौष्टिक स्नैक्स जैसे- ‘न्यूट्री मैंगो फ्रूट बार’ और ‘इलायची फ्लेवर पेयजल’ भी प्रवासी मज़दूरों को खाद्य पदार्थों के रूप में दिये जाने के लिये तैयार किया है।
- ‘न्यूट्री मैंगो फ्रूट बार’ मनुष्य शरीर की प्रतिरक्षा को बेहतर बनाने के लिये कार्बोहाइड्रेट, कैरोटीन, विटामिन C एवं जस्ते जैसे खनिज-पदार्थों से समृद्ध है।
- ‘इलायची फ्लेवर पेयजल’ में पारंपरिक जड़ी बूटियों के साथ प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले गुण सम्मिलित हैं।
स्पिरुलिना (Spirulina):
- स्पिरुलिना एक ऐसा जीव है जो ताजे एवं खारे जल दोनों में बढ़ता है।
- यह एक प्रकार का साइनोबैक्टीरिया है जो एकल-कोशिका वाले रोगाणुओं का एक परिवार है जिसे अक्सर ‘नीले-हरे शैवाल’ के रूप में जाना जाता है।
- इसका उपयोग आहार पूरक या भोजन के रूप में किया जाता है। इसे जलीय कृषि, मछलीघर और मुर्गीपालन उद्योगों में एक भोजन के पूरक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
- सामान्य पौधों की तरह साइनोबैक्टीरिया सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है।
राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र
National Centre for Polar and Ocean Research
गोवा स्थित ‘राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र’ (National Centre for Polar and Ocean Research- NCAOR) COVID-19 महामारी से निपटने में अपना योगदान दे रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- NCPOR के वैज्ञानिकों एवं रिसर्च स्कॉलर्स ने COVID-19 के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों को मानते हुए उचित सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए विभिन्न प्रयोगशालाओं में महत्त्वपूर्ण विश्लेषणात्मक कार्य किये हैं।
- NCPOR के वैज्ञानिक/अनुसंधान विद्वान विभिन्न शोध क्षेत्र से संबंधित शोध पत्रों को पढ़ने के लिये राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन अवधि का उपयोग कर सकते हैं जिससे आगामी दिनों में अच्छी संख्या में शोध प्रकाशनों की उम्मीद जताई जा रही है।
राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र
(National Centre for Polar and Ocean Research- NCAOR):
- ‘राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र’ (NCPOR) का गठन एक स्वायत्तशासी अनुसंधान एवं विकास संस्थान के रूप में किया गया था।
- यह केंद्र गोवा में स्थित है।
- यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) के अंतर्गत कार्य करता है।
- यह ध्रुवीय एवं दक्षिणी महासागरीय क्षेत्र में देश की अनुसंधान गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार संस्थान है।
- इसको अंटार्कटिका में भारत के स्थायी स्टेशन (मैत्री एवं भारती) के रखरखाव सहित भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के समन्वय एवं कार्यान्वयन के लिये नोडल संगठन के रूप में नामित किया गया है।
साल वन कछुआ
Sal Forest Tortoise
देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) के पारिस्थितिकीविदों द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि ‘साल वन कछुओं’ (Sal Forest Tortoise) का 90% से अधिक वितरण वर्तमान संरक्षित क्षेत्र के नेटवर्क के बाहर मौजूद है।
प्रमुख बिंदु:
- इस अध्ययन में बांग्लादेश, भूटान एवं नेपाल के साथ भारत के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया है।
- अध्ययन में पाया गया कि पूर्वोत्तर भारत में संरक्षित क्षेत्रों (जैसे- भंडार, अभयारण्य आदि) में ‘साल वन कछुओं’ का प्रतिनिधित्त्व कम-से-कम है।
- इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि इन प्रजातियों के अनुमानित वितरण का 29% उच्च घटना वाले वनाग्नि क्षेत्रों के अंतर्गत आता है।
- यह प्रजाति पूर्वोत्तर भारत में झूम कृषि वाले क्षेत्रों में निवास करती है।
- इस क्षेत्र के वनों में आग लगने से न केवल इनकी मौत हो सकती है बल्कि इनकी बस्तियों को भी नुकसान हो सकता है।
- IUCN के अनुसार, आने वाले 90 वर्षों में इन प्रजातियों की आबादी लगभग 80% तक गिर सकती है।
साल वन कछुआ (Sal Forest Tortoise):
- इसे ‘Elongated Tortoise’ एवं ‘Yellow Tortoise’ के नाम से भी जाना जाता है।
- यह दक्षिण-पूर्व एशिया एवं भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ हिस्सों विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत में पाया जाता है।
- इसका शिकार भोजन, अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार तथा स्थानीय उपयोग जैसे- सजावटी मुखौटे के लिये किया जाता है।
- चीन में इस कछुए के खोल को पीसकर बनाया गया मिश्रण एक कामोत्तेजक के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है।
- इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची-IV में रखा गया है।
- इसे IUCN की रेड लिस्ट में ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’(Critically Endangered) श्रेणी में रखा गया है।