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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 12 Dec, 2023
  • 21 min read
प्रारंभिक परीक्षा

भारत काला अज़ार के उन्मूलन के निकट

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स 

भारत, आँत संबंधी लीशमैनियासिस, जिसे आमतौर पर काला अज़ार/कालाज़ार  के नाम से जाना जाता है, को खत्म करने की कगार पर है। हालिया रिपोर्ट के अनुसार, इसके मामलों और मौतों में उल्लेखनीय गिरावट के साथ देश विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित उन्मूलन लक्ष्य को पूरा करने के करीब पहुँच गया है।

  • भारत का पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश, सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में काला अज़ार को खत्म करने के लिये WHO द्वारा मान्यता प्राप्त पहला देश था।

काला अज़ार क्या है?

  • संदर्भ : 
    • विसेरल लीशमैनियासिस को आमतौर पर काला अज़ार के रूप में जाना जाता है, यह एक धीमी गति से बढ़ने वाली स्वदेशी बीमारी है जो जीनस लीशमैनिया के प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होती है।
      • इसे काला ज्वर या दमदम ज्वर भी कहते हैं।
      • भारत में लीशमैनिया डोनोवानी इस बीमारी को फैलाने वाला एकमात्र परजीवी है।
  • संचरण और लक्षण: 
    • यह रेत मक्खियों द्वारा फैलता है। जीनस फ्लेबोटोमस अर्जेंटाइप्स की सैंडफ्लाई भारत में काला अज़ार की एकमात्र ज्ञात वाहक है।
    • इसमें बुखार, वजन में कमी, प्लीहा और यकृत का बढ़ना आदि लक्षण देखे जाते हैं। यदि इसका उपचार न किया जाए तो 95% मामलों में यह घातक हो सकता है।
  • भारत में दर्ज मामले: 
    • वर्ष 2023 में भारत में इसके 530 मामलों के साथ चार मौतें दर्ज की गईं, जो पिछले वर्षों की तुलना में कम है।
      • इसके अतिरिक्त पोस्ट-काला अज़ार डर्मल लीशमैनियासिस (PKDL) के 286 मामले थे।
  • पोस्ट-काला अज़ार त्वचीय लीशमैनियासिस (PKDL): 
    • यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब लीशमैनिया डोनोवानी त्वचा कोशिकाओं के भीतर घुसपैठ कर पनपता है, जिसके परिणामस्वरूप त्वचा पर घाव बन जाते हैं।
    • कालाज़ार के कुछ मामलों में PKDL उपचार के बाद उभरता/पनपता है किंतु अब यह माना जाता है कि PKDL आँत के चरण से गुज़रे बिना भी हो सकता है। हालाँकि PKDL कैसे विकसित होता है यह समझने के लिये अधिक डेटा की आवश्यकता है।
      • आँत का चरण आँत के लीशमैनियासिस (काला-अज़ार) के प्रारंभिक चरण को संदर्भित करता है, जहाँ परजीवी आंतरिक अंगों को प्रभावित करता है।
  • उपचार:
    • भारत में कालाज़ार के प्राथमिक उपचार में लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन B इंजेक्शन देना शामिल है।
      • PKDL के मानक उपचार में 12 सप्ताह तक ओरल मिल्टेफोसिन शामिल होता है, जिसमें रोगी की आयु तथा वजन के आधार पर खुराक को समायोजित किया जाता है।
  • भारत में रोकथाम हेतु रणनीतियाँ:
    • प्रभावी छिड़काव: सैंडफ्लाई प्रजनन तथा बीमारी के प्रसार को रोकने के लिये इनडोर अवशिष्ट छिड़काव (Indoor Residual Spraying) का प्रयोग करना।
    • दीवार पलस्तर (Wall Plastering): सैंडफ्लाई प्रजनन क्षेत्रों में कमी लाने के लिये दीवार पर पलस्तर के लिये जेरार्ड मिट्टी का उपयोग करना।
    • उपचार अनुपालन: आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता) नेटवर्क के माध्यम से PKDL उपचार सुनिश्चित करना।

नोट: WHO ने कालाज़ार को खत्म करने के लिये वर्ष 2030 तक का लक्ष्य रखा है। WHO के उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग रोड मैप में भी यह लक्ष्य शामिल है।

  • भारत सरकार ने वर्ष 1990-91 में एक केंद्र प्रायोजित काला-अज़ार नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2002) में वर्ष 2010 तक कालाज़ार उन्मूलन की परिकल्पना की गई थी जिसे बाद में वर्ष 2015 तक परिशोधित किया गया था। वर्तमान में भारत में वर्ष 2023 तक कालाज़ार उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।


प्रारंभिक परीक्षा

चंद्रयान-3 प्रोपल्शन मॉड्यूल पृथ्वी की कक्षा में लौटा

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा चंद्रयान- 3 मिशन के प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM) को सफलतापूर्वक वापिस लाया गया, जो विक्रम लैंडर को अलग होने से पहले चंद्रमा की सतह के 100 किमी. के भीतर ले आया।

  • इस ऐतिहासिक घटना में चंद्रमा की सतह पर नियंत्रित लैंडिंग तथा पृथ्वी कक्ष में सफल वापसी शामिल थी।

चंद्रयान मिशन क्या है?

भारत ने कुल तीन चंद्रयान मिशन यानी चंद्रयान-1, चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 लॉन्च किये हैं।

  • चंद्रयान-1:
    • चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन चंद्रयान-1 था जिसे वर्ष 2008 में सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। इसे चंद्रमा की परिक्रमा करने और बोर्ड पर लगे उपकरणों के साथ अवलोकन करने के लिये डिज़ाइन किया गया था।
    • चंद्रयान-1 की प्रमुख खोजें:
      • चाँद पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि।
      • प्राचीन चंद्र लावा प्रवाह द्वारा निर्मित चंद्र गुफाओं के साक्ष्य
      • चंद्रमा की सतह पर प्राचीन टेक्टोनिक गतिविधि पाई गई।
      • खोजे गए दोष और फ्रैक्चर उल्कापिंड के प्रभावों के साथ-साथ अतीत की आंतरिक टेक्टोनिक गतिविधि की विशेषताएँ हो सकती हैं।
  • चंद्रयान-2:
    • चंद्रयान-2 एक एकीकृत 3-इन-1 अंतरिक्ष यान है जिसमें चंद्रमा का एक ऑर्बिटर, विक्रम (विक्रम साराभाई के बाद) लैंडर और प्रज्ञान (ज्ञान) रोवर शामिल है, जो चंद्रमा का अध्ययन करने के लिये वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित हैं।
    • लॉन्च: 22 जुलाई 2019
      • लैंडर विक्रम: लैंडिंग के बाद यह अपनी जगह पर ही रहता है और अधिकतर चंद्रमा की भूकंपीय गतिविधि एवं वातावरण की जाँच करता है।
      • रोवर प्रज्ञान: रोवर एक छह पहियों वाला सौर ऊर्जा चालित वाहन है, साथ ही  स्वयं को अलग भी करता है और धीरे-धीरे सतह पर रेंगता है, अवलोकन करने के साथ डेटा भी एकत्र करता है।
      • चंद्रयान-2 का लैंडर अपने उच्च वेग के कारण चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था अथवा उसकी लैंडिंग कठिनाई से हुई थी।
        • हालाँकि इसका ऑर्बिटर बहुत अच्छे से कार्य कर रहा है और यह चंद्रयान-3 के लैंडर से संपर्क करेगा।
  •  चंद्रयान-3:  
    • यह भारत का तीसरा चंद्र मिशन तथा चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने का दूसरा प्रयास था।
    • लॉन्च: 14 जुलाई, 2023
    • उद्देश्य:
      • चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित एवं सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन करना।
      • चंद्रमा पर रोवर के अवलोकन का प्रदर्शन करने के लिये।
      • इन-सीटू वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना।
    • इसमें एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (LM), प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM) तथा एक रोवर शामिल है, जिसका उद्देश्य इंटरप्लेनेटरी मिशनों के लिये आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों को विकसित तथा प्रदर्शित करना है।

चंद्रयान-3 प्रोपल्शन मॉड्यूल क्या है?

  • चंद्रयान-3: इसने लैंडर की चंद्रमा की यात्रा के लिये पूर्ण ऑर्बिटर के स्थान पर हल्के वजन वाले प्रोपल्शन मॉड्यूल का उपयोग किया।
  • रहने योग्य ग्रह पृथ्वी की स्पेक्ट्रोपोलारिमेट्री (SHAPE): चंद्रयान -3 प्रणोदन मॉड्यूल SHAPE नामक एक एकल उपकरण ले गया।
    • यह एक प्रायोगिक पेलोड था जिसे पृथ्वी की उन विशेषताओं का अध्ययन करने के लिये डिज़ाइन किया गया था जो इसे रहने योग्य बनाती हैं, जिसका लक्ष्य रहने योग्य एक्सोप्लैनेट की पहचान करना है।
  • प्रज्ञान रोवर: प्रणोदन मॉड्यूल लैंडर से अलग हो गया, जो प्रज्ञान रोवर को ले गया। इसके अतिरिक्त छह महीनों तक चंद्रमा की परिक्रमा करने का अनुमान था, जिसमें SHAPE पृथ्वी का अवलोकन करेगा।

प्रणोदन मॉड्यूल पृथ्वी की कक्षा में कैसे लौटता है?

  • यह प्रयोग ISRO को आगे की योजना बनाने के लिये एक सॉफ्टवेयर मॉड्यूल विकसित करने की दिशा में कार्य करने की अनुमति देता है।
  • ईंधन की उपलब्धता और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पृथ्वी पर वापसी के लिये सर्वोत्तम प्रक्षेप पथ तैयार किया गया।
  • जब भी पृथ्वी दिखाई देती है तो SHAPE पेलोड को संचालित किया जाता है, जिसमें एक विशेष ऑपरेशन भी शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

इसरो द्वारा लॉन्च किया गया मंगलयान:

  1. इसे मार्स ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है।
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला दूसरा देश बन गया है। 
  3. भारत अपने पहले ही प्रयास में स्वयं के अंतरिक्षयान द्वारा मंगल ग्रह की परिक्रमा करने में सफल एकमात्र देश बन गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की? (2016)


प्रारंभिक परीक्षा

अमृत प्रौद्योगिकी

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने जल जीवन मिशन और भारतीय प्रौद्योगिकी द्वारा आर्सेनिक और धातु निष्कासन (AMRIT) की प्रगति पर प्रकाश डाला है।

अमृत (AMRIT) प्रौद्योगिकी क्या है?

  • यह तकनीक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), मद्रास द्वारा विकसित की गई थी। इसे पानी से आर्सेनिक और धातु आयनों को हटाने, पानी की गुणवत्ता के मुद्दों को संबोधित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • प्रौद्योगिकी नैनो-स्केल आयरन ऑक्सी-हाइड्रॉक्साइड का उपयोग करती है, जो पानी से गुज़रने पर आर्सेनिक को प्रमुख रूप से हटा देती है।
  • AMRIT घरेलू और सामुदायिक स्तर पर जल शुद्धिकरण दोनों के लिये लागू है।
  • यह तकनीक जल जीवन मिशन के व्यापक लक्ष्यों के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य भारत में ग्रामीण परिवारों को सुरक्षित और पीने योग्य नल का पानी उपलब्ध कराना है।
  • पेयजल और स्वच्छता विभाग की 'स्थायी समिति' द्वारा जल और स्वच्छता चुनौतियों के समाधान पर विचार के लिये इस प्रौद्योगिकी की सिफारिश की गई है।

नोट:

  • आर्सेनिक भू-पर्पटी का एक प्राकृतिक घटक है जो वायु, जल और भूमि में पूरे पर्यावरण में व्यापक रूप से वितरित है। यह अपने अकार्बनिक रूप में अत्यधिक विषैला होता है।
  • पेयजल और भोजन से लंबे समय तक आर्सेनिक के संपर्क में रहने से कैंसर और त्वचा पर घाव हो सकते हैं। आर्सेनिक की लगातार विषाक्तता से ब्लैकफूट रोग (BFD) हो सकता है, जो निचले अंगों में रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करता है।

जल जीवन मिशन क्या है?

  • परिचय:
    • वर्ष 2019 में लॉन्च किये गए जल जीवन मिशन की परिकल्पना सतत् विकास लक्ष्य- 6 (सभी के लिये स्वच्छ जल और स्वच्छता) के तहत ग्रामीण भारत के सभी घरों में वर्ष 2024 तक व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से स्वच्छ, सुरक्षित एवं पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने हेतु की गई है।
    • इसमें वर्ष 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर जल की आपूर्ति की परिकल्पना की गई है।
    • भारत सरकार ने जल जीवन मिशन (शहरी) भी लॉन्च किया है जिसे भारत के सभी 4,378 वैधानिक शहरों में कार्यात्मक नल के माध्यम से जल आपूर्ति के सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
  • उद्देश्य
    • नल और सीवर कनेक्शन सुरक्षित करना।
    • जल निकायों का पुनर्जीवन।
    • एक चक्राकार जल अर्थव्यवस्था बनाना।
  • जल जीवन मिशन की प्रगति:
    • अगस्त 2019 में केवल 16.8% ग्रामीण घरों में नल के जल का कनेक्शन था। दिसंबर 2023 तक यह बढ़कर लगभग 71.51% हो गया।
    • नल जल आपूर्ति की प्रतीक्षा कर रही सभी 378 आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों को सामुदायिक जल शोधन संयंत्रों (CWPP) के माध्यम से सुरक्षित पेयजल प्राप्त होने की सूचना है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:  

प्रश्न. जल तनाव क्या है? भारत में यह क्षेत्रीय रूप से कैसे और क्यों भिन्न है? (2019)


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 12 दिसंबर, 2023

ममीफाइड लंगूर  

मिस्र में ममीफाइड लंगूर के साक्ष्य ने एक सदी से भी अधिक समय से वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने माइटोकॉन्ड्रियल DNA का उपयोग करके इन प्राचीन अवशेषों के पीछे के रहस्यों को उजागर किया।

  • DNA विश्लेषण से पता चला है कि लंगूर के साक्ष्य की पुष्टि वर्तमान तटीय इरिट्रिया के प्राचीन शहर एडुलिस में हुई थी।
  • अध्ययन ने प्राचीन मिस्र के साथ एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार, पंट के खोए हुए शहर और एडुलिस के संभावित स्थान पर प्रकाश डाला।
  • निष्कर्षों ने मिस्र और एडुलिस के बीच ऐतिहासिक व्यापार संबंधों पर ज़ोर दिया, इसने भारत, मिस्र तथा यूरोप के बीच व्यापार इतिहास में लाल सागर को एक महत्त्वपूर्ण नोड के रूप में उजागर किया।
  • पापियो अनुबिस और पापियो हमाद्रियास दोनों बबून की प्रजातियाँ हैं। बबून पुरानी दुनिया के बंदर हैं जो पापियो वंश का हिस्सा हैं।
    • पापियो अनुबिस सबसे व्यापक रूप से वितरित बबून प्रजाति है, जो अधिकांश मध्य उप-सहारा अफ्रीका में पाई जाती है।
    • पापियो हमाद्रियास अफ्रीकी महाद्वीप पर दक्षिणी लाल सागर के क्षेत्र, इथियोपिया, सोमालिया और इरिट्रिया में पाया जाता है।
    • IUCN रेड लिस्ट में उन्हें "कम जोखिम, कम चिंतनीय" स्थिति के रूप में दर्ज किया गया है।

रक्तचूषक प्रवृत्ति के नर मच्छर

हाल ही में वैज्ञानिकों ने 130 मिलियन वर्ष पुराने सबसे पुराने ज्ञात मच्छर जीवाश्मों का पता लगाया है, जिससे प्राचीन नर मच्छरों के रक्तचूषक होने की प्रवृत्ति का पता चला है। ये जीवाश्म मच्छरों के विकासवादी इतिहास तथा रोग वाहक के रूप में उनकी भूमिका के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

  • ये जीवाश्म क्रीटेशियस काल के दो नर मच्छरों का दर्शाते हैं, जिनके मुख में लंबे छेदन-चूषक अंग होते हैं जो अमूमन केवल मादा मच्छरों में ही देखे जाते हैं।
    • इस खोज से पता चलता है कि मूल रूप से सभी मच्छर हेमेटोफैगस (रक्तचूषक) थे, चाहे उनका लिंग कुछ भी हो।
    • नर मच्छरों के मुखांग वर्तमान के मादा मच्छरों की तुलना में छोटे थे।
  • मच्छर रक्तचूषक होते हैं तथा मलेरिया, पीत-ज्वर, ज़ीका बुखार एवं डेंगू सहित परजीवियों व व्याधियों को अपने मेज़बानों तक पहुँचाते हैं।
  • शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि मच्छर उन कीटों से विकसित हुए हैं जो रक्त को अवशोषित नहीं करते हैं, उनके मुखांग शुरू में पौष्टिक तरल पदार्थों तक पहुँचने के लिये पौधों को छेदने हेतु अनुकूलित होते हैं।
    • क्रेटेशियस काल के दौरान फूलों वाले पौधों की उपस्थिति ने नर और मादा मच्छरों के बीच भोजन के व्यवहार में अंतर में भूमिका निभाई होगी।
  • मच्छरों की उत्पत्ति संभवतः खोजे गए जीवाश्मों से लाखों वर्ष पहले हुई थी, आणविक साक्ष्य जुरेसिक काल के दौरान उनके अस्तित्व का सुझाव देते हैं।

सैन्य अभ्यास “विनबैक्स-2023”

  • भारतीय सशस्त्र बलों की टुकड़ी संयुक्त सैन्य अभ्यास VINBAX-2023 के चौथे संस्करण में भाग लेने के लिये हनोई, वियतनाम पहुँच गई है।
  • VINBAX अभ्यास 2018 में शुरू किया गया था और इसका पहला संस्करण मध्य प्रदेश के जबलपुर में आयोजित किया गया था।
  • यह एक वार्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है जो वैकल्पिक रूप से भारत और वियतनाम में आयोजित किया जाता है।
  • उद्देश्य:
    • यह अभ्यास सहयोगात्मक साझेदारी, अंतर-संचालनीयता को बढ़ावा देने और शांतिरक्षा अभियानों पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय VII के तहत दोनों पक्षों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करता है।
    • यह अभ्यास एक कमांड पोस्ट अभ्यास सह फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास के रूप में आयोजित किया जाएगा जिसमें एक अभियंताओं की टीम और एक मेडिकल टीम की तैनाती तथा रोज़गार पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • परिचालन क्षेत्रों में सड़क, पुलिया, हेलीपैड, गोला बारूद आश्रय और अवलोकन चौकियों के निर्माण के आधुनिक तरीकों पर विचारों का आदान-प्रदान किया जाएगा।

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