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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 11 Feb, 2023
  • 14 min read
प्रारंभिक परीक्षा

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन

नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइन्स में बमबारी (सितंबर 2022) को लेकर हाल ही में खोजी पत्रकारों द्वारा किये गए दावों ने बहस और विवाद को जन्म दिया है।

Bornholm

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन: 

  • परिचय:  
    • नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन प्राकृतिक गैस पाइपलाइन है जो रूस और जर्मनी को जोड़ने वाले बाल्टिक सागर के नीचे से गुज़रती है।
      • इस पाइपलाइन का निर्माण यूक्रेन जैसे पारंपरिक पारगमन प्रणाली वाले देशों के बजाय रूस से यूरोप तक प्राकृतिक गैस के परिवहन के उद्देश्य से किया गया था। 
    • नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन की पहली लाइन का निर्माण कार्य वर्ष 2011 में तथा दूसरी का वर्ष 2012 में पूरा हुआ था और तब से यह यूरोप के लिये प्राकृतिक गैस का प्रमुख स्रोत बन गई है।
      • नॉर्ड स्ट्रीम-1, जल के नीचे से गुज़रने वाली 1,224 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन है जो बाल्टिक सागर के माध्यम से पूर्वोत्तर जर्मनी के लुबमिन को उत्तर-पश्चिम रूस में वायबोर्ग से जोड़ती है। 
      • नॉर्ड स्ट्रीम- 2, जो लेनिनग्राद (रूस) में उस्त-लुगा से लुबमिन तक विस्तृत है, एक बार पूरी तरह से चालू हो जाने के बाद इसमें प्रतिवर्ष 55 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस के परिवहन की क्षमता है।
  • हालिया समस्या:  
    • सितंबर 2022 में बाल्टिक सागर में जल के भीतर विस्फोटों की एक शृंखला ने नॉर्ड स्ट्रीम- 1 और 2 पाइपलाइन्स को काफी क्षति पहुँचाई।
      • भूकंप विज्ञानियों ने रिसाव का कारण उस क्षेत्र में समुद्र के नीचे विस्फोट होना बताया है
  • महत्त्व:  
    • नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन यूरोप और रूस दोनों के लिये आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
    • यूरोप के लिये:
      • नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन प्राकृतिक गैस का एक विश्वसनीय और लागत प्रभावी स्रोत होने के साथ ही इस क्षेत्र के कई देशों के लिये ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
      • कई यूरोपीय व्यवसायों का नॉर्ड स्ट्रीम 2 में बड़ा निवेश है और इन व्यवसायों का सरकारों पर दबाव भी बना रहता है।
        • आखिरकार रूस द्वारा गैस आपूर्ति में कमी किये जाने के कारण पहले से ही गैस की ऊँची कीमतों में और वृद्धि होगी तथा यह घरेलू स्तर पर अधिक लाभकारी नहीं होगा।
    • रूस: 
      • रूस, जिसके पास दुनिया में सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार मौजूद है, के कुल बजट का लगभग 40% हिस्सा गैस एवं तेल की बिक्री से प्राप्त होता है।
      • इसके अलावा नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन रूस को यूरोप के ऊर्जा बाज़ारों पर अपना प्रभाव बढ़ाने का एक तरीका प्रदान करती है क्योंकि यह इस क्षेत्र में प्राकृतिक गैस का एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रारंभिक परीक्षा

इसरो का SSLV-D2

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) का सबसे छोटा यान, लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (Small Satellite Launch Vehicle- SSLV-D2) को दूसरे प्रयास में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश से प्रक्षेपित किया गया।

  • SSLV- D1 यान को पहली बार अगस्त 2022 में प्रक्षेपित किया गया था लेकिन यह उपग्रहों को सटीक कक्षा में स्थापित करने में विफल रहा।
  • इस बार उपकरण में संरचनात्मक परिवर्तन किये गए हैं, साथ ही चरण- 2 हेतु पृथक्करण तंत्र में परिवर्तन के साथ ऑन-बोर्ड सिस्टम के लिये तार्किक परिवर्तन किये गए हैं।

ISRO-SSLV

नोट:  

  • दो सफल विकास उड़ानें पूरी करने के बाद इसरो द्वारा एक नए वाहन को सुचारू घोषित किया गया है।
  • अंतिम परिचालन वाहन GSLV Mk- III था, जिसे अब LVM- 3 के रूप में जाना जाता है, जो वर्ष 2019 में चंद्रयान- 2 को आंतरिक्ष में ले गया था।

SSLV-D2 में शामिल उपग्रह: 

  • SSLV-D2 इसरो के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-07 और दो सह-यात्री उपग्रहों- Janus-1 एवं AzaadiSat2 को आंतरिक्ष में स्थापित करेगा।
    • Janus-1: 
      • यह एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक उपग्रह है जिसे संयुक्त राष्ट्र स्थित Antaris और इसके भारतीय भागीदारों XDLinks तथाAnanth Technologies द्वारा बनाया गया है।
      • यह एक सिक्स-यूनिट क्यूब उपग्रह है जिसमें पेलोड की संख्या पाँच है - दो सिंगापुर से, एक-एक केन्या, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया से।
    • AzaadiSat2: 
      • यह एक क्यूब उपग्रह है जिसका वज़न लगभग 8 किलोग्राम है और इसमें 75 अलग-अलग पेलोड हैं।
      • देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन पेलोड के निर्माण के लिये मार्गदर्शन प्रदान किया गया।
      • इस पेलोड को "स्पेस किड्ज़ इंडिया" की छात्र टीम द्वारा एकीकृत किया गया है। 
    • EOS-07: 
      • EOS-07 156.3 किलोग्राम का उपग्रह है जिसे इसरो द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
      • इस मिशन का उद्देश्य भविष्य के परिचालन उपग्रहों के लिये माइक्रोसेटेलाइट बसों और नई तकनीकों के साथ संगत पेलोड उपकरणों को डिज़ाइन एवं विकसित करना है। 

लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (Small Satellite Launch Vehicle-SSLV): 

  • परिचय: 
    • SSLV एक 3 चरण का प्रक्षेपण यान है जिसे टर्मिनल के रूप में तीन ठोस प्रणोदन चरणों (Solid Propulsion Stages) और तरल प्रणोदन आधारित वेग ट्रिमिंग मॉड्यूल (Velocity Trimming Module -VTM) के साथ संयोजित किया गया है।
    • SSLV का व्यास 2 मीटर और लंबाई 34 मीटर है, जिसका भार लगभग 120 टन है तथा 500 किलोमीटर की समतल कक्षीय तल में 10 से 500 किलोग्राम उपग्रह लॉन्च करने में सक्षम है।
    • इसरो के वर्कहॉर्स PSLV के लिये 6 महीने और लगभग 600 लोगों की तुलना में रॉकेट को केवल कुछ दिनों में एक छोटी सी टीम द्वारा तैयार किया जा सकता है।
  • उद्देश्य: 
    • इसे उभरते लघु (नैनो-माइक्रो-मिनी) उपग्रह वाणिज्यिक बाज़ार को आकर्षित करने के लिये विकसित किया गया है, जिसे मांग पर लॉन्च की पेशकश की गई है।
  • महत्त्व:  
    • यह कम लागत के साथ अंतरिक्ष में पहुँच प्रदान करता है, जो कम प्रतिवर्तन काल में कई उपग्रहों को समायोजित करने की सुविधा प्रदान करने के साथ न्यूनतम प्रक्षेपण अवसंरचना की मांग करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 फरवरी, 2023

पहला सुंदरबन बर्ड फेस्टिवल 

हाल ही में पहले सुंदरबन बर्ड फेस्टिवल के दौरान 145 अलग-अलग पक्षी प्रजातियों को देखा गया। इस पहले उत्सव का आयोजन पश्चिम बंगाल वन विभाग के सुंदरबन टाइगर रिज़र्व (STR) डिवीज़न द्वारा किया गया था, जिसमें कई टीमों ने सुंदरबन बायोस्फीयर रिज़र्व के अंदर विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया। बर्ड फेस्टिवल सुंदरबन की पक्षी प्रजातियों की विविधता पर आधारभूत डेटा प्रदान करता है। वर्ष 2021 में ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI)  के अनुसार, भारत में खोजी गई सभी एवियन प्रजातियों में से एक-तिहाई (पक्षियों की प्रजातियाँ) यानी 428 पक्षी प्रजातियाँ सुंदरबन में पाई गईं।

और पढ़ें…सुंदरबन का महत्त्व, भारत में बायोस्फीयर रिज़र्व, अंतर्राष्ट्रीय बायोस्फीयर रिज़र्व दिवस

बौने ग्रह पर रहस्यमयी वलय

एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि बौना ग्रह, प्लूटो असामान्य वलय वाला है जो ग्रह के आकार का लगभग आधा है। क्वाओर (Quaoar) के वलय (मूल अमेरिकी पौराणिक कथाओं में सृजन के एक देवता के नाम पर) सात ग्रहों की त्रिज्या (किसी ग्रह के केंद्र और उसकी सतह के बीच की दूरी) से अधिक दूरी पर स्थित हैं, जो अन्य ग्रहों, जिनमें वलय हैं, से बहुत दूर है। ग्रहों के वलय में बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े और अन्य पदार्थ होते हैं जो एक बड़ी वस्तु की परिक्रमा करते हैं। केवल शनि, बृहस्पति, यूरेनस तथा वरुण (नेप्च्यून), जिसमें दो अन्य छोटे ग्रह चारिकलो और ह्यूमिया शामिल हैं, को वलय के रूप में जाना जाता है।

पालम परियोजना 

तमिलनाडु के करूर ज़िले में पालम परियोजना अथवा सिटी लाइवलीहुड सेंटर शिक्षित बेरोज़गार युवाओं को नौकरियाँ प्रदान करने में काफी सफल रहा है। अधिकांश सरकारी रोज़गार के विपरीत यह ज़्यादातर निजी नौकरियों पर केंद्रित है। पश्चिमी तमिलनाडु में तिरुपुर के वस्त्र केंद्र के पास स्थित करूर ज़िला अपने उद्योगों के लिये जाना जाता है, लेकिन यह अपने घरेलू वस्त्र उत्पादों के लिये अधिक लोकप्रिय है। यह परियोजना वर्ष 2022 में शुरू हुई थी। पालम परियोजना का उद्देश्य रोज़गार की तलाश करने वालों और नियोक्ताओं के बीच एक सेतु का काम करना था। अनिवार्य रूप से पालम परियोजना का उद्देश्य एक अद्वितीय विचार के साथ आने के बजाय कई ज्ञात और अज्ञात सरकारी कार्यक्रमों एवं अवसरों का उपयोग करना था।

और पढ़ें…भारत का अद्वितीय रोज़गार संकट

तरकश (TARKASH) अभ्यास 

राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) और संयुक्त राष्ट्र स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स (SOF) द्वारा तरकश अभ्यास वर्तमान में चेन्नई में आयोजित किया रहा है। रासायनिक और जैविक युद्ध को विश्व के लिये खतरे के रूप में पहचाने जाने के साथ, आयोजित भारत-अमेरिका संयुक्त अभ्यास में पहली बार रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल एवं नाभिकीय (Chemical, Biological, Radiological and Nuclear- CBRN) हमलों के प्रति प्रतिक्रिया शामिल है। इस संयुक्त अभ्यास का उद्देश्य आतंकवादियों को तेज़ी से बेअसर करना, बंधकों को सुरक्षित छुड़ाना और आतंकवादियों द्वारा ले जाए जा रहे रासायनिक हथियारों को निष्क्रिय करना था। CBRN हथियार, जिन्हें सामूहिक विनाश के हथियारों (Weapons of Mass Destruction- WMD) के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है, का उपयोग बीते समय में विभिन्न देशों और आतंकवादी समूहों द्वारा किया गया है। CBRN का सबसे हालिया उपयोग वर्ष 2017 में सीरिया में सरीन गैस हमले के रूप में देखा गया था। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, आतंकवादियों और उनके समर्थकों सहित गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की WMD अथवा CBRN तक पहुँच प्राप्त करने तथा उनका उपयोग करने की संभावना अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिये एक गंभीर खतरा है।

और पढ़ें जैविक हथियार और रासायनिक हथियार अभिसमय, भारत-अमेरिका संबंध


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