प्रिलिम्स फैक्ट्स (10 Feb, 2022)



‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना

हाल ही में ‘विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड’ (SERB) ने ग्रीष्मकालीन सत्र के लिये 'एक्सीलेरेट विज्ञान' योजना के एक कार्यक्रम 'अभ्यास' के तहत आवेदन आमंत्रित किये हैं।

  • ‘विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड’ (SERB) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), केंद्रीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय का एक स्वायत्त निकाय है।

‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना

  • ‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ (AV) योजना वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने और एक वैज्ञानिक कार्यबल तैयार करने का प्रयास करती है, जो अनुसंधान कॅरियर और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में उद्यम कर सकता है।
  • ‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ (AV) योजना का लक्ष्य देश में अनुसंधान आधार का विस्तार करना है, जिसमें तीन व्यापक लक्ष्य शामिल हैं- सभी वैज्ञानिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का समेकन/एकत्रीकरण, हाई-एंड अभिविन्यास कार्यशालाएँ शुरू करना और प्रशिक्षण एवं कौशल इंटर्नशिप के अवसर पैदा करना। 

‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ (Accelerate Vigyan) योजना के घटक:

  • अभ्यास (ABHYAAS): 
    • अभ्यास (ABHYAAS): एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना का एक प्रमुख घटक है, जिसका लक्ष्य स्नातकोत्तर (Post-Graduate) एवं पीएचडी के छात्रों को उनके संबंधित विषय में कौशल विकास के लिये प्रोत्साहित करना है। इस कार्यक्रम के दो उप-घटक ‘कार्यशाला’ (KARYASHALA) और ‘वृत्तिका’ (VRITIKA) हैं।
      • यह उन शोधकर्त्ताओं के लिये विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है जिनके पास सीखने की क्षमता/सुविधाओं/अवसंरचना तक पहुँचने के सीमित अवसर हैं।
  • सम्मोहन (SAMMOHAN) घटक: 'सम्मोहन' घटक कार्यक्रम के 2 उप-घटक संयोजिका (SAONJIKA) और संगोष्ठी (SANGOSHTI) हैं।
    • संयोजिका (SAONJIKA): इसका उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में क्षमता निर्माण गतिविधियों को सूचीबद्ध करना है।
    • संगोष्ठी (SANGOSHTI): संगोष्ठी, SERB द्वारा पूर्व में संचालित कार्यक्रम है।

ऐसी पहलों की प्रासंगिकता:

  • क्षमता निर्माण: AV के सभी उप-घटकों के माध्यम से विभिन्न विषयों में विकसित कुशल जनशक्ति का डेटाबेस क्षमता निर्माण में मदद करेगा।
  • सामाजिक उत्तरदायित्व: यह योजना देश में वैज्ञानिक समुदाय की सामाजिक ज़िम्मेदारी हासिल करने का भी प्रयास करती है।

वर्ष 2022-23 के बजट में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने संबंधी पहलें:

  • नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के लिये पाँच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपए के परिव्यय की घोषणा की गई।
    • यह सुनिश्चित करेगा कि पहचान किये गए राष्ट्रीय-प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान देने के साथ देश के समग्र अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत किया जाए।
  • बजट में सरकार द्वारा समर्थित अनुसंधान एवं विकास संस्थानों, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के बीच बेहतर तालमेल बनाने के साथ-साथ उनकी आंतरिक स्वायत्तता को बनाए रखने हेतु नौ शहरों में छत्र संरचनाओं/अम्ब्रेला स्ट्रेक्चर  (Umbrella Structures) की स्थापना की भी घोषणा की गई।
    • इसे शिक्षा मंत्रालय द्वारा समन्वित किया जाएगाऔर इस उद्देश्य के लिये एक निश्चित अनुदान राशि अलग से रखी जाएगी। 
    • फरवरी 2020 की बजट घोषणा के अनुसार, जैव प्रौद्योगिकी विभाग URJIT समूहों (विश्वविद्यालय अनुसंधान संयुक्त उद्योग अनुवाद क्लस्टर) को लागू कर रहा है, जिन्हें 10 स्थानों पर स्थापित किया जा रहा है।
    • ये अम्ब्रेला स्ट्रक्चर्स की गतिविधियों के पूरक होंगे।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


अटल सुरंग

हाल ही में अटल सुरंग को आधिकारिक तौर पर वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा '10,000 फीट से अधिक ऊँचाई  पर स्थित विश्व की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग' के रूप में प्रमाणित किया गया है।

  • वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स यूके, एक ऐसा संगठन है जो प्रामाणिक प्रमाणीकरण के साथ वैश्विक असाधारण रिकॉर्ड को सूचीबद्ध और सत्यापित करता है।

प्रमुख बिंदु 

अटल सुरंग की विशेषताएंँ:

  • 9.02 किलोमीटर लंबी यह सुरंग 3,000 मीटर की ऊंँचाई से अधिक दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग है।
  • यह रोहतांग दर्रे के पश्चिम में एक पहाड़ को काटकर गुज़रती है और यह सोलांग घाटी तथा सिसु के बीच की दूरी को लगभग 46 किमी कम करती है जिसे पूरा कवर करने में लगभग 15 मिनट का समय लगता है। पहले इन दोनों बिंदुओं के बीच का सफर तय करने में करीब 4 घंटे का समय लगता था।
    • रोहतांग दर्रा (ऊँचाई 3,978 मीटर) हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है।
    • यह सुरंग हिमालय के पीर पंजाल रेंज में अवास्थित है।

सुरंग का महत्त्व:

  • कनेक्टिविटी: अटल सुरंग लद्दाख से वर्ष भर कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, यह सुरंग वर्ष भर लद्दाख को मनाली और चंडीगढ़ से जोड़ती है, क्योंकि यह रोहतांग दर्रे से गुज़रती है, जो सर्दियों के महीनों में बर्फ से ढका रहता है।
  • सामरिक: यह सुरंग देश के सशस्त्र बलों को सीमावर्ती क्षेत्रों में साल भर की कनेक्टिविटी प्रदान करके एक रणनीतिक लाभ प्रदान करती है।
  • बुनियादी सुविधाएँ: लद्दाख के निवासी जिन्हें स्वास्थ्य देखभाल और खाद्य आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं का लाभ उठाने के लिये भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा था, वे अब मनाली पहुँच सकते हैं और इस नई सुरंग का उपयोग करके देश के बाकी हिस्सों से जुड़ सकते हैं। पेट्रोल व सब्जी की आपूर्ति जैसी आवश्यक वस्तुएँ भी वर्ष भर उपलब्ध रहेंगी।
  • किसानों के लिये वरदान: यात्रा के समय में कमी से कई लोगों को मदद मिलती है, खासकर उन किसानों को जिनकी मटर और आलू जैसी कीमती फसलें बाज़ार पहुँचने से पहले ट्रकों में नहीं सड़ेंगी।
  • पर्यटन को बढ़ावा: इस क्षेत्र में पर्यटकों के आगमन में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है और एक वर्ष से कुछ अधिक समय में घाटी व राज्य ने सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में काफी विकास देखा है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भू-चुंबकीय तूफान

हाल ही में एलन मस्क (Elon Musk) की कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) द्वारा लॉन्च किये गए हाई-स्पीड इंटरनेट स्टारलिंक सैटेलाइट्स (High-speed internet satellites) में से कुछ सैटेलाइट्स भू-चुंबकीय तूफान (Geomagnetic storm) की वजह से नष्ट हो गए, जो इस घटना से एक दिन पहले ही लॉन्च किये गए थे

  • इन उपग्रहों को पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश के दौरान जलाने की व्यवस्था की गई थी ताकि अंतरिक्ष में मलबा न रह जाए।
  • हालाँकि इस घटना में लॉन्च बैच के 40 उपग्रहों के नुकसान को  एक विशाल  घटना के रूप में वर्णित किया गया है।

स्टारलिंक (Starlink):

  • स्टारलिंक एक स्पेसएक्स प्रोजेक्ट है, यह परिक्रमा करने वाले अंतरिक्षयान के एक समूह के साथ ब्रॉडबैंड नेटवर्क बनाने के लिये है जो अंततः हज़ारों की संख्या में हो सकते हैं।
  • स्टारलिंक उपग्रह जो कक्षा में गतिशीलता व ऊँचाई बनाए रखने और मिशन के अंत में अंतरिक्षयान को वापस वायुमंडल में मार्गदर्शन हेतु आवेग उत्पन्न करने के लिये बिजली और क्रिप्टन गैस का उपयोग करते हैं।
  • स्टारलिंक नेटवर्क अंतरिक्ष से डेटा संकेतों को प्राप्त करने के लिये किये जा रहे कई प्रयासों में से एक है।

भू-चुंबकीय तूफान (Geomagnetic Storm):

  • सौर तूफान सूर्य के धब्बों (सूर्य पर 'अंधेरे' क्षेत्र जो आसपास के फोटोस्फीयर - सौर वातावरण की सबसे निचली परत की तुलना में ठंडे होते हैं) से जुड़ी चुंबकीय ऊर्जा के निकलने के दौरान आते हैं और कुछ मिनटों या घंटों तक रह सकते हैं।
  • एक भू-चुंबकीय तूफान पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की एक बड़ी गड़बड़ी है जो तब होती है जब सौर हवा से पृथ्वी के आसपास के अंतरिक्ष वातावरण में ऊर्जा का कुशल आदान-प्रदान होता है।
    • मैग्नेटोस्फीयर हमारे ग्रह को हानिकारक सौर एवं ब्रह्मांडीय कण विकिरण से बचाता है, साथ ही यह पृथ्वी को ‘सोलर विंड’- सूर्य से प्रवाहित होने वाले आवेशित कणों का निरंतर प्रवाह से भी सुरक्षा प्रदान करता है।
  • ये तूफान ‘सोलर विंड’ में भिन्नता के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं, जो पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर के प्रवाह, प्लाज़्मा और इसके वातावरण में बड़े बदलाव लाते हैं।
    • भू-चुंबकीय तूफान का निर्माण करने वाली सौर पवनें [मुख्य रूप से मैग्नेटोस्फीयर में दक्षिण दिशा में प्रवाहित होने वाली सौर पवनें (पृथ्वी के क्षेत्र की दिशा के विपरीत)] उच्च गति से काफी लंबी अवधि (कई घंटों तक) तक प्रवाहित होती हैं।
    • यह स्थिति ‘सोलर विंड’ से ऊर्जा को पृथ्वी के चुंबकमंडल में स्थानांतरित करने हेतु प्रभावी है।
  • इन स्थितियों के परिणामस्वरूप आने वाले सबसे बड़े तूफान सौर कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) से जुड़े होते हैं, जिसके तहत सूर्य से एक अरब टन या उससे अधिक प्लाज़्मा इसके एम्बेडेड चुंबकीय क्षेत्र के साथ पृथ्वी पर आता है।
    • CMEs का आशय प्लाज़्मा एवं मैग्नेटिक फील्ड के व्यापक इजेक्शन से है, जो सूर्य के कोरोना (सबसे बाहरी परत) से उत्पन्न होते हैं।

यह पृथ्वी को किस प्रकार प्रभावित करता है?

  • अंतरिक्ष के मौसम पर प्रभाव:
    • सभी सोलर फ्लेयर्स पृथ्वी तक नहीं पहुँचते हैं, लेकिन सोलर फ्लेयर्स/तूफान, सोलर एनर्जेटिक पार्टिकल्स (SEPs), हाई-स्पीड सोलर विंड्स और कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष व ऊपरी वायुमंडल में अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित कर सकते हैं।
  • अंतरिक्ष-निर्भर सेवाओं के संचालन पर प्रभाव:
    • सौर तूफान ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (जीपीएस), रेडियो और उपग्रह संचार जैसी अंतरिक्ष संबंधी सेवाओं के संचालन को प्रभावित कर सकते हैं। इसके कारण विमान उड़ान, पावर ग्रिड और अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम असुरक्षित हो जाते हैं।
  • मैग्नेटोस्फीयर में संभावित समस्या:
    • कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) लाखों मील प्रति घंटे की गति से यात्रा करने वाले पदार्थ से संभावित रूप से मैग्नेटोस्फीयर में गड़बड़ी पैदा कर सकता है, जो कि पृथ्वी के चारों ओर सुरक्षा कवच है।
    • स्पेसवॉक पर अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी के सुरक्षात्मक वातावरण के बाहर सौर विकिरण के संभावित स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।

सौर तूफान की भविष्यवाणी:

  • सौर भौतिक विज्ञानी और अन्य वैज्ञानिक सामान्य रूप से सौर तूफान एवं सौर गतिविधियों की भविष्यवाणी करने के लिये कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करते हैं।
    • वर्तमान मॉडल तूफान के आगमन के समय और उसकी गति की भविष्यवाणी करने में सक्षम है।
    • लेकिन तूफान की संरचना या अभिविन्यास का अभी भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
  • चुंबकीय क्षेत्र के कुछ झुकाव मैग्नेटोस्फीयर से अधिक तीव्र प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकते हैं और अधिक तीव्र चुंबकीय तूफानों को ट्रिगर कर सकते हैं।
    • लगभग हर गतिविधि के लिये उपग्रहों पर बढ़ती वैश्विक निर्भरता के साथ बेहतर अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान और उपग्रहों की सुरक्षा हेतु अधिक प्रभावी तरीकों की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत का नया स्तनपायी: व्हाइट चीक्ड मकाक

हाल ही में ‘ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया’ (ZSI) के वैज्ञानिकों ने देश में एक नई स्तनपायी प्रजाति- ‘व्हाइट चीक्ड मकाक’ (मकाका ल्यूकोजेनिस) की खोज की है।

  • इस प्रजाति को पहली बार चीन में वर्ष 2015 में खोजा गया था, इससे पहले भारत में इसके अस्तित्व के बारे में नहीं पता था।
  • अब भारतीय वैज्ञानिकों ने मध्य अरुणाचल प्रदेश के सुदूर अंजॉ ज़िले में इसकी उपस्थिति का पता लगाया है।
  • नवीनतम खोज से भारत में स्तनपायी जानवरों की संख्या 437 से 438 हो गई है।

White-Cheeked-Macaque

व्हाइट चीक्ड मकाक:

  • व्हाइट चीक्ड मकाक के गाल सफेद होते हैं, गर्दन पर लंबे और घने बाल होते हैं तथा लंबी पूँछ होती है, यह  अन्य मैकाक से काफी अलग होती है।
  • यह दक्षिण पूर्व एशिया में खोजा गया अंतिम स्तनपायी है।
  • अरुणाचल मकाक और व्हाइट चीक्ड मकाक दोनों पूर्वी हिमालय में एक ही जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में मौजूद हैं।
    • व्हाइट चीक्ड मकाक और अरुणाचल मकाक (मकाका मुंजाला) के साथ-साथ मकाक की अन्य प्रजातियाँ असमिया मकाक (Macaca assamensis) और रीसस मकाक (Macaca mulatta) हैं जो एक ही भूदृश्य में पाई गई हैं।
    • परिदृश्य में मकाक की सभी प्रजातियों के लिये संभावित खतरा स्थानीय लोगों द्वारा शिकार और शहरीकरण एवं बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण आवास में गिरावट है।
  • यह प्रजाति भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम द्वारा संरक्षित नहीं है, क्योंकि अब तक यह ज्ञात नहीं था कि यह प्रजाति भारत में मौजूद है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 फरवरी, 2022

आईसीसी अंडर-19 विश्व कप 2022

हाल ही में ICC U-19 विश्व कप 2022 का फाइनल 5 फरवरी को एंटीगुआ के सर विवियन रिचर्ड्स स्टेडियम में खेला गया जिसमें भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ चार विकेट से जीत हासिल की। आईसीसी अंडर-19 विश्व कप में यह भारत का  रिकॉर्ड पांँचवाँ अंडर-19 खिताब है। इंग्लैंड की टीम द्वारा भारतीय टीम को 190 रन का लक्ष्य दिया गया था जिसे भारतीय टीम ने 47.4 ओवर में पूरा कर छह विकेट पर 195 रन पर बनाए। आईसीसी अंडर-19 विश्व कप 2022 वेस्टइंडीज़ में जनवरी-फरवरी 2022 में आयोजित एक सीमित ओवरों का क्रिकेट टूर्नामेंट था। इसमें 16 टीमों ने हिस्सा लिया। यह अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप का 14वाँ संस्करण था और वेस्टइंडीज़ में आयोजित पहला टूर्नामेंट था। बांग्लादेश इस टूर्नामेंट का डिफेंडिंग चैंपियन रहा। इस टूर्नामेंट के मैच एंटीगुआ, सेंट किट्स, गुयाना और त्रिनिदाद में खेले गए। फाइनल मैच एंटीगुआ के सर विवियन रिचर्ड्स स्टेडियम में खेला गया।

एम. जगदीश कुमार

हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने एम. जगदीश कुमार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह नियुक्ति 5 साल की अवधि या 65 वर्ष की आयु होने तक (जो भी पहले हो) के लिये की गई है। एम. जगदीश कुमार को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया था। वह IIT मद्रास के पूर्व छात्र हैं। उन्होंने IIT मद्रास से पीएचडी की और वाटरलू यूनिवर्सिटी, कनाडा से डॉक्टरेट किया। वह मूल रूप से  तेलंगाना के हैं और कराटे में माहिर है। उन्होंने IIT दिल्ली के विद्युत विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्य किया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नींव 28 दिसंबर, 1953 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने रखी थी। विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग विश्‍वविद्यालयी शिक्षा के मापदंडों के समन्‍वय, निर्धारण और अनुरक्षण हेतु वर्ष 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा स्‍थापित एक स्‍वायत्‍त संगठन है। पात्र विश्‍वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के अतिरिक्‍त, आयोग केंद्र और राज्‍य सरकारों को उच्‍चतर शिक्षा के विकास हेतु आवश्‍यक उपायों पर सुझाव भी देता है।

इसका मुख्यालय देश की राजधानी नई दिल्ली में है। इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलूरू में हैं।

विश्व दलहन दिवस

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2019 में दलहन के महत्त्व को चिह्नित करने और आम लोगों में उसके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस का आयोजन करने की घोषणा की। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य स्थायी खाद्य उत्पादन में दलहन के महत्त्व को रेखांकित करना है। वर्ष 2013 में दलहन के महत्त्व को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष (IYP) के रूप में अपनाया। अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष (IYP) की सफलता के बाद बुर्किना फासो (पश्चिम अफ्रीका का एक देश) ने विश्व दलहन दिवस का प्रस्ताव रखा। इसके पश्चात् वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस के रूप में घोषित किया। ज्ञात हो कि बीते पाँच-छह वर्षों में देश में दालों का उत्पादन 140 लाख टन से बढ़कर 240 लाख टन तक पहुँच गया है। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2050 तक देश में 320 लाख टन दालों की ज़रूरत होगी। दालों को पोषण और प्रोटीन के मामले में समृद्ध एवं स्वस्थ आहार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। सतत् विकास 2030 एजेंडा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी दलहन महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

एंड्यूरेंस 22 अभियान

एंड्यूरेंस 22 अभियान (Endurance 22 Expedition) हाल ही में केप टाउन से निर्धारित समय पर रवाना हुआ। यह अंटार्कटिका में वेडेल सागर (Weddell Sea) की ओर अग्रसर हुआ है। एंड्यूरेंस 22 अभियान को फाॅकलैंड्स मैरीटाइम हेरिटेज ट्रस्ट द्वारा रवाना किया गया था। इस अभियान का उद्देश्य प्रसिद्ध ध्रुवीय खोजकर्त्ता सर अर्नेस्ट शेकलटन (Sir Ernest Shackleton) के खोए हुए जहाज़ एंड्यूरेंस का पता लगाना, सर्वेक्षण और फिल्म बनाना है। इस अभियान को कुल 35 दिनों के लिये  समुद्र में संचालित किया जाएगा। इस अभियान का संचालन एसए अगुलहास II (SA Agulhas II) से किया जाएगा, जो दक्षिण अफ्रीकी बर्फ तोड़ने वाला ध्रुवीय आपूर्ति और अनुसंधान जहाज़ है। इस अभियान का नेतृत्व डॉ. जॉन शियर्स द्वारा किया जा रहा है, जो एक ध्रुवीय भूगोलवेत्ता और खोजकर्त्ता हैं।