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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 09 Nov, 2023
  • 19 min read
प्रारंभिक परीक्षा

रेडिएटिव कूलिंग पेंट

स्रोत: पी.आई.बी.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (JNCASR) बेंगलुरु के शोधकर्त्ताओं ने एक अनूठा पेंट पेश किया है जिसमें रेडिएटिव कूलिंग का प्रयोग किया जाता है।

  • बढ़ते वैश्विक तापमान और संधारणीय शीतलन समाधानों की अत्यधिक आवश्यकता के मद्देनजर, यह नवीन, लागत प्रभावी एवं पर्यावरण-अनुकूल रेडिएटिव कूलिंग तकनीक एक प्रभावी समाधान के रूप में सामने आई है।

रेडिएटिव कूलिंग तकनीक: 

  • परिचय: 
    • रेडिएटिव कूलिंग तकनीक एक ऐसी विधि है जिसे वायुमंडल में थर्मल विकिरण उत्सर्जित करके किसी वस्तु से उष्मा को खत्म करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिससे वस्तु का तापमान कम हो जाता है।
    • यह तकनीक वायुमंडलीय संचरण विंडो (8-13 µm) का उपयोग करके अत्यधिक ठंडे क्षेत्रों (लगभग 3 केल्विन) में सीधे थर्मल विकिरण उत्सर्जित करके ठंडी सतहों के निर्माण में सहायता करती है।
      • यह प्रक्रिया विशेष रूप से बिज़ली की निर्भरता के बिना होती है।

  • आवश्यकता: 
    • बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग और नगरीय उष्मा द्वीप प्रभावों ने प्रभावी शीतलन प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता को बढ़ा दिया है।
      • एयर कंडीशनर, बिजली के पंखे एवं रेफ्रिजरेटर जैसे पारंपरिक सक्रिय कूलिंग उपकरण भारी मात्रा में बिजली की खपत करते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तथा पृथ्वी की सतह के तापमान में वृद्धि होती है।
    • रेडिएटिव कूलिंग तकनीक वायुमंडलीय ट्रांसमिशन विंडो के माध्यम से बिजली की खपत के बिना थर्मल विकिरण उत्सर्जित करके इन चुनौतियों का समाधान करती है।
  • रेडिएटिव कूलिंग पेंट 
    • यह एक नए मैग्नीशियम ऑक्साइड (MgO)-पॉलीविनाइलिडीन फ्लोराइड (PVDF) पॉलिमर नैनो-कंपोज़िट से प्राप्त होता है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध, सस्ते, गैर विषैले एवं गैर-हानिकारक पदार्थों से तैयार किया जाता है।
      • यह उच्च सौर परावर्तन तथा अवरक्त तापीय उत्सर्जन के साथ महत्त्वपूर्ण कूलिंग क्षमताओं को प्रदर्शित करता है। 
      • डाईइलेक्ट्रिक नैनोकणों के साथ MgO-PVDF के परिणामस्वरूप उच्च सौर परावर्तन (96.3%) और उच्च तापीय उत्सर्जन (98.5%) हुआ। 
    • इमारतों पर बढ़ती गर्मी के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये तैयार किया गया यह पेंट बिजली की खपत को कम करता है तथा भीषण गर्मी के दिनों में आवश्यक शीतलन प्रदान करता है
      • उत्कृष्ट ऑप्टिकल गुणों के साथ यह तेज़ धूप में सतह के तापमान को लगभग 10°C तक कम कर देता है, जो पारंपरिक सफेद पेंट से बेहतर प्रदर्शन करता है।
    • इसके जल प्रतिरोधी, हाइड्रोफोबिक गुण के कारण इसे उच्च एकरूपता व अच्छे आसंजन के साथ विभिन्न सतहों पर आसानी से लेपित किया जा सकता है।

प्रारंभिक परीक्षा

कवच प्रणाली

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में आंध्र प्रदेश के विजयनगरम ज़िले में दो यात्री ट्रेनों की भिडंत हो गई, यह दुखद घटना ट्रैफिक कोलिज़न अवॉइडेंस सिस्टम (Traffic Collision Avoidance Systems -TCAS) की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। स्वदेशी "कवच" नामक प्रणाली के प्रयोग से इस दुर्घटना को रोका जा सकता था।

कवच प्रणाली क्या है? 

  • परिचय: 
    • कवच टक्कर-रोधी विशेषताओं के साथ एक कैब सिग्नलिंग ट्रेन नियंत्रण प्रणाली है जिसे अनुसंधान डिज़ाइन और मानक संगठन (Research Design and Standards Organisation- RDSO) द्वारा तीन भारतीय अनुबंधकारों के सहयोग से तैयार किया गया है।
      • इसे देश के राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणाली के रूप में अपनाया गया है।
    • यह सेफ्टी इंटीग्रिटी लेवल-4 (SIL-4) मानकों का पालन करता है और मौजूदा सिग्नलिंग प्रणाली पर एक सतर्क निगरानीकर्त्ता के रूप में कार्य करता है, 'लाल सिग्नल' के निकट पहुँचने पर यह लोको पायलट को सचेत करता है तथा सिग्नल को पार करने से रोकने के लिये आवश्यकता पड़ने पर स्वचालित ब्रेक लगाता है।
      • आपातकालीन स्थितियों के दौरान यह प्रणाली SoS संदेश जारी करती है।
    • नेटवर्क मॉनिटर सिस्टम के माध्यम से इस प्रणाली में ट्रेन की गतिविधियों की केंद्रीकृत लाइव निगरानी की सुविधा उपलब्ध है।
      • तेलंगाना के सिकंदराबाद में भारतीय रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूरसंचार संस्थान (IRISET) कवच के लिये 'उत्कृष्टता केंद्र' हैं।
  • कवच के घटक: 
    • इच्छित मार्ग पर निर्धारित रेलवे स्टेशनों में कवच प्रणाली के इनस्टॉलेशन में तीन आवश्यक घटक शामिल हैं:
    • पहला घटक: रेलवे ट्रैक में रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) तकनीक का समावेश करना।
      • RFID वस्तुओं अथवा व्यक्तियों की पहचान करने के लिये रेडियो तरंगों का उपयोग करता है और भौतिक संपर्क या दूर से वायरलेस डिवाइस की जानकारी का स्वचालित आकलन करने के लिये विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों का उपयोग करता है।
    • दूसरा घटक: लोकोमोटिव, जिसे चालक के केबिन के रूप में जाना जाता है, में एक RFID रीडर, एक कंप्यूटर और ब्रेक इंटरफेस उपकरण लगाया जाता है।
    • तीसरा घटक: इसमें प्रणाली की कार्यक्षमता को बेहतर बनाने के लिये रेलवे स्टेशनों पर टॉवर और मॉडेम जैसे रेडियो बुनियादी ढाँचे भी शामिल हैं।
  • कवच प्रणाली के उपयोग से संबंधी चुनौतियाँ: 
    • लगभग 1,500 किलोमीटर की इसकी सीमित कवरेज और 50 लाख रुपए प्रति किलोमीटर की स्थापना लागत इसके समक्ष सबसे प्रमुख चुनौती है, जिससे 68,000 किलोमीटर के रेल नेटवर्क में इसे पूरी तरह से निष्पादित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

नोट: वर्तमान में भारतीय रेलवे ने सिग्नलिंग और टेलीकॉम बजट खंड के तहत 4,000 करोड़ रुपए का बजट रखा है, जिसमें विशेष रूप से कवच को लागू करने के लिये राष्ट्रीय रेल संरक्षण कोष (RRSK) के तहत 2,000 करोड़ रुपए शामिल हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित संचार प्रौद्योगिकियों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. निकट-परिपथ (क्लोज़-सर्किट) टेलीविज़न
  2. रेडियो आवृत्ति अभिनिर्धारण
  3. बेतार स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क

उपार्युक्त में कौन-सी लघु परास युक्तियाँ/प्रौद्योगिकियाँ मानी जाती हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

 उत्तर: (d)


प्रारंभिक परीक्षा

पूसा-44 का विकल्प, पूसा-2090

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में पराली दहन पर रोक लगाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप चावल की किस्म पूसा-2090 को समस्याग्रस्त लंबी अवधि वाली चावल की किस्म पूसा-44 के विकल्प के रूप में अपनाने के लिये चर्चा शुरू हो गई है।

पूसा-44 और पूसा-2090 क्या है?

  • पूसा-44: 
    • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा उगाई गई लंबी अवधि की चावल की किस्म पूसा-44, पराली जलाने में प्रमुख योगदानकर्ता रही है।
    • बुआई से लेकर कटाई तक 155-160 दिनों का इसका विकास चक्र अक्तूबर के अंत में समाप्त  होता है, जिससे अगली फसल से पूर्व खेत को तैयार करने के लिये बहुत कम समय बचता है।
    • समय की कमी के कारण किसान जल्दी खेत तैयार करने के किये पराली जलाते हैं जिससे गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • हालाँकि इस किस्म के धान को पकने में अधिक समय लगता है किंतु इसकी अधिक उपज (औसतन 35-36 क्विंटल प्रति एकड़) वाली प्रकृति इसे किसानों के बीच लोकप्रिय बनाती है।

नोट: मौजूदा खरीफ सीज़न के दौरान विशेषकर पंजाब में गैर-बासमती किस्मों वाले धान की खेती में पूसा-44 की खेती बड़ी मात्रा में की जाती है। जबकि बासमती की किस्मों वाले धान की कटाई में नरम पुआल बचता है जिससे पराली दहन कम होता है, लेकिन उनकी खेती का क्षेत्र अपेक्षाकृत छोटा होता है।

  • पूसा-2090: एक संभावित विकल्प:
    • IARI ने पूसा-2090 विकसित किया है, जो कि पूसा-44 तथा CB-501 (कम समय में पकने वाली जैपोनिका चावल शृंखला) के बीच मिश्रण से प्राप्त एक उन्नत किस्म है। 
    • यह किस्म धान की उचित पैदावार बनाए रखते हुए 120-125 दिनों की छोटी अवधि में पक जाती है तथा पराली जलाने के मुख्य मुद्दे का समाधान करती है।
    • यह Pusa-44 की उच्च उपज विशेषताओं को CB-501 के त्वरित परिपक्वता चक्र के साथ जोड़ता है, जो इसे एक आशाजनक विकल्प बनाता है।
    • अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना में इसका परीक्षण किया गया है और इसे दिल्ली के आस-पास एवं ओडिशा जैसे क्षेत्रों में खेती के लिये उपयुक्त बताया गया है।
      • जिन क्षेत्रों में Pusa-2090 का परीक्षण किया गया है, वहाँ के किसानों ने आशाजनक उपज परिणाम की सूचना दी है।

पराली दहन के विकल्प क्या हो सकते हैं?

  • PUSA डीकंपोज़र का प्रयोग: डीकंपोज़र कवक उपभेदों को निष्कर्षित कर बनाए गए कैप्सूल के रूप में होते हैं जो धान के भूसे को तेज़ी से विघटित करने में मदद करते हैं।
  • हैप्पी सीडर: यह एक ट्रैक्टर-माउंटेड उपकरण है जो पराली दहन का पर्यावरण-अनुकलित विकल्प प्रस्तुत करता है।
    • यह धान के भूसे को काटने और उठाने का काम करता है, साथ ही खुली मिट्टी में गेहूँ की बुआई करता है तथा बुआई क्षेत्र पर भूसे को सुरक्षात्मक गीली घास के रूप में जमा करता है।
  • पैलेटाइज़ेशन: धान का भूसा जब सूख जाता है और पेलेट्स में परिवर्तित हो जाता है, तो एक व्यवहार्य वैकल्पिक ईंधन स्रोत बन जाता है।
    • कोयले के साथ मिश्रित होने पर इन पेलेट्स का उपयोग थर्मल पावर संयंत्रों और उद्योगों में किया जा सकता है जिससे संभावित रूप से कोयले के उपयोग से बचा जा सकता है तथा कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. समोच्च बाँधना
  2. रिले क्रॉपिंग
  3. शून्य जुताई

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपरोक्त में से कौन मिट्टी में कार्बन पृथक्करण/भंडारण में सहायता/मदद करता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर: (b)


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 09 नवंबर, 2023

स्कूलों में सेनेटरी नैपकिन वितरित करने के लिये नीतियों की आवश्यकता

सर्वोच्च न्यायालय द्वार केंद्र को सैनिटरी नैपकिन वितरण पर ज़ोर देने के साथ एक "इष्टतम" मासिक धर्म स्वच्छता रणनीति रिकॉर्ड करने तथा देश में सरकारी सहायता प्राप्त और आवासीय स्कूलों में प्रति महिला जनसंख्या पर लड़कियों के शौचालयों की संख्या निर्धारित करने के लिये एक राष्ट्रीय मॉडल स्थापित करने का आदेश दिया है।

  • यह माना गया कि कुछ राज्य पहले से ही सैनिटरी नैपकिन के वितरण के लिये अपनी योजनाएँ लागू कर रहे हैं।
    • तमिलनाडु में लड़कियों को छह नैपकिन वाले 18 पैकेट दिये गए।
    • पूर्वोत्तर राज्यों ने भी अपनी-अपनी योजनाओं में प्रगतिशीलता दिखाई है।
  • नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) में 15-24 आयु वर्ग की महिलाओं के प्रतिशत में महत्त्वपूर्ण सुधार पाया गया, जो अपने मासिक धर्म चक्र के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीके का उपयोग करती हैं, यह प्रतिशत NFHS-4 में 58% था जो बढ़कर 78% हो गया है।

और पढ़ें: विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस, स्वच्छ भारत दिशानिर्देश

सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग फंड का 80% हिस्सा अप्रयुक्त 

उद्योग मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के माध्यम से सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिये आवंटित 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर में से लगभग 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का दावा नहीं किया गया है।

  • वर्ष 2021 में, भारत ने देश में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की PLI योजना की घोषणा की।
  • घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिये भारत सरकार द्वारा PLI योजना शुरू की गई थी।
    • यह योजना भारत में उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
    • इसमें 14 प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं:

और पढ़ें: भारत सेमीकंडक्टर मिशन

आधार प्रमाणीकरण: कारागार सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण

गृह मंत्रालय ने देश के लगभग 1,300 कारागारों में कैदियों और आगंतुकों के लिये आधार प्रमाणीकरण लागू करने हेतु एक पहल का प्रस्ताव पेश किया है।

  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा विकसित ई-प्रिज़न प्रणाली के साथ आधार सेवाओं के एकीकरण का उद्देश्य कैदियों एवं आगंतुकों का सटीक सत्यापन करना है, ताकि कारागार प्रणाली के भीतर पहचान संबंधी धोखाधड़ी को कम करके कैदी प्रबंधन से संबंधित प्रशासनिक प्रक्रियाओं को बेहतर व सरल बनाया जा सके।
  • गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, प्रमाणीकरण प्रक्रिया स्वैच्छिक होगी, जिसमें प्रासंगिक दिशा-निर्देशों का पालन करने की ज़िम्मेदारी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की होगी।

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस

प्रतिवर्ष 9 नवंबर को उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को उत्तरी उत्तर प्रदेश से अलग कर भारत के 27वें राज्य के रूप में गठित किया गया था।

  • राज्य का मूल नाम उत्तरांचल था, किंतु वर्ष 2007 में इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। उत्तराखंड नाम संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ "उत्तरी भाग" है।
  • उत्तराखंड प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक महत्त्व की भूमि है। यह बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री नाम के चार पवित्र हिंदू तीर्थ स्थलों की भूमि है।
  • उत्तराखंड में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, फूलों की घाटी (Valley of Flowers) और नंदा देवी राष्‍ट्रीय उद्यान मौजूद हैं।


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