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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 07 Nov, 2020
  • 19 min read
प्रारंभिक परीक्षा

प्रिलिम्स फैक्ट्स: 07 नवंबर, 2020

असम के मियास 

Miyas of Assam

हाल ही में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक प्रस्तावित ‘मिया संग्रहालय’ (Miya Museum) जो ‘चार-चापोरी’ (Char-Chapori) में रहने वाले लोगों की संस्कृति एवं विरासत’ को दर्शाता है, ने असम में एक नए विवाद को जन्म दिया है। 

प्रमुख बिंदु:

मियास (Miyas):

  • ‘मिया’ समुदाय में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से असम आने वाले मुस्लिम प्रवासियों के वंशज शामिल हैं। इन्हें अक्सर एक अपमानजनक तरीके से ‘मियास’ (Miyas) के रूप में संदर्भित किया जाता था।
  • इस समुदाय का पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से असम में प्रवास वर्ष 1826 में असम पर अंग्रेज़ों के अधिकार के साथ शुरू हुआ और वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन तथा वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक जारी रहा। 
  • इससे असम क्षेत्र की जनसांख्यिकीय संरचना में परिवर्तन आया है। परिणामतः असम में 6 वर्ष (1979-85) तक अवैध-आप्रवासी मुद्दे को लेकर आंदोलन हुआ।  

चार-चापोरी (Char-Chapori):

  • चार (Char) एक तैरता हुआ द्वीप है, जबकि चापोरी (Chapori) निम्न तटीय बाढ़ग्रस्त नदी किनारे हैं। 
  • ये (चार) आकृतियाँ बदलते रहते हैं, ब्रह्मपुत्र नदी में जलस्तर के घटने एवं बढ़ने के साथ इनका परिवर्तन चापोरी में भी हो जाता है।
  • चार क्षेत्रों के विकास निदेशालय (Directorate of Char Areas Development) की वेबसाइट में दिये गए आँकड़ों में बताया गया है कि वर्ष 2002-03 में सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, इनकी जनसंख्या 24.90 लाख थी।
    • क्षेत्र में बाढ़ एवं मिट्टी के कटाव के कारण यह क्षेत्र कम विकसित है। यहाँ की 80% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे निवास करती है।
  • वर्ष 2014 की ‘UNDP असम मानव विकास रिपोर्ट’ में इस क्षेत्र की निम्नलिखित समस्याओं का वर्णन किया गया था:
    • संचार की कमी
    • प्राथमिक शिक्षा से परे पर्याप्त स्कूली शिक्षा सुविधाओं की कमी 
    • बाल विवाह
    • गरीबी और अशिक्षा

भारत-इटली वर्चुअल शिखर सम्मेलन

India-Italy Virtual Summit

6 नवंबर, 2020 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इटली के प्रधानमंत्री प्रोफेसर ग्यूसेप कोंटे (Prof. Giuseppe Conte) के बीच एक वर्चुअल द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया।

प्रमुख बिंदु: 

  • गौरतलब है कि भारत-इटली संबंधों को नई दिशा देने के लिये वर्ष 2018 में इटली के प्रधानमंत्री प्रोफेसर ग्यूसेप कोंटे (Prof. Giuseppe Conte) भारत यात्रा पर आए थे।
  • इस शिखर सम्मेलन में दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी, अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी विस्तार से चर्चा हुई।
  • दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि वे G-20 समूह में एक-दूसरे के साथ मिलकर मज़बूती के साथ कार्य करेंगे।   
    • गौरतलब है कि इटली को दिसंबर 2021 में G-20 देशों की अध्यक्षता मिलेगी, जबकि वर्ष 2022 में भारत G-20 की अध्यक्षता करेगा। 
      • किसी एक देश को प्रतिवर्ष G-20 समूह के अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है, जिसे  'G-20 प्रेसीडेंसी' के रूप में जाना जाता है। अर्जेंटीना द्वारा वर्ष 2018 में तथा जापान द्वारा वर्ष 2019 में G-20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की गई थी, जबकि वर्ष 2020 में इसके अध्यक्ष के रूप में सऊदी अरब को चुना गया है।
  • इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में ज़रूरी प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद इटली के इसमें शामिल होने के निर्णय का भी भारत ने स्वागत किया है।
  • इस मौके पर दोनों देशों ने ऊर्जा, मत्स्यन, जहाज़ निर्माण एवं डिज़ाइन आदि क्षेत्रों में 15 समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • इस शिखर सम्मेलन में ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा देने के लिये निवेश, रक्षा सहयोग एवं विनिर्माण की संभावनाओं पर भी चर्चा की गई।
  • दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र ढाँचे के तहत शांति व्यवस्था की प्रभावशीलता को बढ़ाने के उद्देश्य से रक्षा संबंधों को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया। साथ ही वर्ष 2020-2025 की अवधि के लिये द्विपक्षीय साझेदारी की प्राथमिकताओं, रणनीतिक लक्ष्यों एवं तंत्र स्थापित करने के लिये इस कार्ययोजना को अपनाने का निर्णय लिया।   

पक्के टाइगर रिज़र्व

Pakke Tiger Reserve

अरुणाचल प्रदेश में पक्के टाइगर रिज़र्व (Pakke Tiger Reserve-PTR) ‘ग्रीन सोल्जर्स’ (Green Soldiers) को COVID-19 के खिलाफ बीमा कवर प्रदान करने वाला पूर्वोत्तर भारत का पहला टाइगर रिज़र्व बन गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि भारत के फ्रंटलाइन वन कर्मचारी अपर्याप्त स्वास्थ्य कवरेज के साथ सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में कार्य करते हैं। इसलिये इन्हें ‘ग्रीन सोल्जर’ (Green Soldier) कहा जाता है।
  • COVID-19 के संक्रमण के कारण टाइगर रिज़र्व के 57 फ्रंटलाइन कर्मचारियों का नौ महीने के लिये स्वास्थ्य बीमा कराया गया था। 
    • प्रत्येक का बीमा कवरेज ₹ 1 लाख का है किंतु कुछ कर्मचारी जो जल्द ही सेवानिवृत्त हो जाएंगे, उन्हें ₹ 50,000 का बीमा प्रदान किया गया है।
  • भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट (Wildlife Trust of India- WTI) नामक एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) ने फाउंडेशन सर्ज (Foundation Serge) की सहायता से बीमा राशि का भुगतान किया।    

पक्के टाइगर रिज़र्व

(Pakke Tiger Reserve-PTR):

  • पक्के टाइगर रिज़र्व, जिसे ‘पखुई टाइगर रिज़र्व’ के नाम से भी जाना जाता है, पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के पूर्वी कामेंग ज़िले में स्थित एक टाइगर रिज़र्व है। 
  • यह अरुणाचल प्रदेश राज्य में नामदफा रिज़र्व के पश्चिम भाग में स्थित है जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 862 वर्ग किमी. है। 
  • इस टाइगर रिज़र्व ने 'संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण' की श्रेणी में ‘हॉर्नबिल नेस्ट एडॉप्शन प्रोग्राम’ के लिये भारत जैव विविधता पुरस्कार (India Biodiversity Award-IBA) जीता था। 
  • यह उत्तर-पश्चिम में भारेली या कामेंग नदी और पूर्व में पक्के नदी से घिरा है। 
  • पक्के टाइगर रिज़र्व नवंबर से मार्च तक ठंडे मौसम वाली उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु क्षेत्र में अवस्थित है। 
  • यहाँ बिल्ली परिवार की तीन बड़ी प्रजातियाँ- बंगाल टाइगर, इंडियन लेपर्ड और क्लाउडेड तेंदुआ पाई जाती हैं। 
  • यहाँ विश्व स्तर पर लुप्तप्राय सफेद पंखों वाला ‘व्हाइट विंग्ड वुड डक’ (White-winged Wood Duck), अनोखा आईबिसबिल (Ibisbill) और दुर्लभ ओरिएंटल बे उल्लू (Oriental Bay Owl) तथा हॉर्नबिल आदि पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। 

हिमालय के वातावारण में ‘टारबॉल’ 

 ‘Tarball’ in Himalayan Atmosphere

हाल ही में हिमालय-तिब्बत पठार (Himalaya-Tibetan Plateau) के एक अनुसंधान स्टेशन द्वारा एकत्र किये गए हवा के नमूनों के अध्ययन में पाया गया है कि हवा में मौजूद कणों में लगभग 28% कण ‘टारबॉल’ (Tarball) हैं।

Himalaya-Range

हिमालय-तिब्बत पठार (Himalaya-Tibetan Plateau): 

  • कुछ लोग हिमालय-तिब्बत पठार को ‘तीसरा ध्रुव’ (Third Pole) मानते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में उत्तर एवं दक्षिण ध्रुवों के बाहर हिमनद एवं हिम का सबसे बड़ा भंडार मौजूद है।
    • उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन एवं मानव प्रभाव के प्रति बेहद संवेदनशील ये ग्लेशियर पिछले एक दशक में सिकुड़ते जा रहे हैं।

टारबॉल(Tarball):

  • ‘टारबॉल’ प्रकाश-अवशोषित करने वाले छोटे कार्बोनेसिअस कण (Carbonaceous Particles) हैं जो बायोमास या जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण निर्मित होते हैं और बर्फ की चादर पर जमा होते रहते हैं। 

Tarball

अध्ययन से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • अध्ययन में बताया गया है कि टारबॉल का प्रतिशत प्रदूषण के उच्च स्तर के दिनों में बढ़ जाता है जिससे ग्लेशियर के पिघलने एवं वैश्विक तापन का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • पूर्व के शोधों में बताया गया था कि ‘ब्लैक कार्बन’ (Black Carbon) नामक कण हवा के माध्यम से लंबी दूरी तय करके हिमालय के वायुमंडल तक पहुँचते हैं।
    • किंतु तब शोधकर्त्ताओं के पास हिमालयी वातावरण में ‘प्राथमिक ब्राउन कार्बन’ (Primary Brown Carbon- BrC) जो जीवाश्म ईंधन के जलने के दौरान उत्सर्जित होते हैं, की उपस्थिति के पर्याप्त प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं थे। 
    • ‘ब्राउन कार्बन’ एक ऐसा कण है जो टारबॉल (कार्बन, ऑक्सीजन से मिलकर बने छोटे, चिपचिपे गोल कण जिनमें नाइट्रोजन, सल्फर एवं पोटैशियम की कम मात्रा होती है) का निर्माण करता है।
    • बायोमास जलने से ब्लैक कार्बन (BC) के साथ उत्सर्जित होने वाले प्राथमिक ब्राउन कार्बन (BrC) एक महत्त्वपूर्ण प्रकाश-अवशोषित करने वाला कार्बोनेसिअस एरोसोल (Carbonaceous Aerosol) है।
  • इसमें बताया गया है कि सिंधु-गंगा के मैदान में गेहूँ की फसल के अवशेषों को जलाने से वातावरण में कार्बन क्लस्टर का निर्माण होता है जिसे हिमालयी वातावरण तक पहुँचाने में वायु राशियाँ अहम भूमिका निभाती हैं।
  • अध्ययन में कहा गया है कि बाहरी मिश्रित टारबॉल और आंतरिक रूप से मिश्रित टारबॉल का आकार क्रमशः 213 व 348 नैनोमीटर था।
  • शोधकर्त्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि लंबी दूरी के परिवहन से टारबॉल जलवायु प्रभाव का एक महत्त्वपूर्ण कारक हो सकता है और यह हिमालय क्षेत्र में हिमनद पिघलने का संभवतः एक कारण हो सकता है।

यह शोध 4 नवंबर, 2020 को ACS के पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पत्र (ACS’ Environmental Science & Technology Letters) में प्रकाशित हुआ था। झेजियांग विश्वविद्यालय (Zhejiang University) के शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने अनुसंधान स्टेशन से हवा के पैटर्न एवं उपग्रह डेटा का विश्लेषण किया।


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 07 नवंबर, 2020

विश्व सुनामी जागरूकता दिवस

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक वर्ष 5 नवंबर को विश्व सुनामी जागरूकता दिवस (World Tsunami Awareness Day) का आयोजन किया जाता है, जिसका उद्देश्य आम लोगों को सुनामी जैसी घातक आपदा के बारे में जागरूक करना है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस घातक आपदा के कारण पिछली एक सदी में लाखों लोगों की मृत्यु हुई है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ‘सुनामी’ (Tsunami) शब्द की उत्पत्ति जापान से हुई है, जहाँ ‘सु’ (Tsu) शब्द का अर्थ है ‘बंदरगाह’ (Harbour) और ‘नामी’ (Nami) का अर्थ है ‘लहर’ (Waves)। प्रायः तीव्र भूकंप के दौरान समुद्री प्लेट कई मीटर तक खिसक जाती है, फलस्वरूप समुद्री सतह पर ज़बरदस्त उथल-पुथल मचती है और इस कारण सागर की सतह पर जल बड़ी-बड़ी लहरों के रूप में उठता है। यद्यपि महासागरों में ये बहुत कम ऊँचाई की होती हैं, किंतु जैसे-जैसे ये किनारों की ओर बढ़ती हैं तो इनकी ऊँचाई और तीव्रता बढ़ती जाती है। यही तीव्र और ऊँची लहरें धरातल पर सुनामी कहलाती हैं। वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सबसे घातक सुनामी के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 5 नवंबर को विश्व सुनामी जागरूकता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।

यशवर्द्धन कुमार सिन्हा 

भारतीय विदेश सेवा (IFS) के सेवानिवृत्त अधिकारी यशवर्द्धन कुमार ने हाल ही में राष्ट्रपति भवन में मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) के रूप में शपथ ली है। यशवर्द्धन कुमार सिन्हा ने पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) बिमल जुल्का का स्थान लिया है, जिन्होंने 26 अगस्त, 2020 को अपना कार्यकाल पूरा किया और तभी से यह पद खाली है। 4 अक्तूबर, 1958 को जन्मे यशवर्द्धन कुमार सिन्हा 1 जनवरी, 2019 को सूचना आयुक्त के तौर पर केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में शामिल हुए और इससे पूर्व वे यूनाइटेड किंगडम (UK) तथा श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त के रूप में कार्य कर चुके हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के मुताबिक, केंद्र सरकार केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के रूप में एक निकाय का गठन करेगी। नियम के अनुसार, केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और कुछ सूचना आयुक्त होंगे, जिनकी संख्या 10 से अधिक नहीं होगी। 

रो-पैक्स टर्मिनल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गुजरात के हज़ीरा में रो-पैक्स टर्मिनल का शुभारंभ करेंगे और साथ ही हज़ीरा (Hazira) एवं घोघा के बीच रो-पैक्स सेवा की भी शुरुआत की जाएगी। ध्यातव्य है कि  रो-पैक्स टर्मिनल और रो-पैक्स सेवा की शुरुआत जलमार्गों के उपयोग और उन्हें भारत के आर्थिक विकास के साथ एकीकृत करने के प्रधानमंत्री के विज़न की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हज़ीरा में शुरू किये जा रहे रो-पैक्स टर्मिनल की लंबाई 100 मीटर, जबकि इसकी चौड़ाई 40 मीटर है, जिस पर अनुमानित रूप से 25 करोड़ रुपए की लागत आई है। इस टर्मिनल में प्रशासनिक कार्यालय इमारत, पार्किंग क्षेत्र, सबस्टेशन और वाटर टॉवर आदि कई सुविधाएँ मौजूद हैं। वहीं हज़ीरा-घोघा रो-पैक्स फेरी सेवा के भी कई फायदे होंगे। यह दक्षिणी गुजरात और सौराष्ट्र क्षेत्र के द्वार के रूप में कार्य करेगा। इससे घोघा और हज़ीरा के बीच की दूरी 370 किमी. से घटकर 90 किमी. रह जाएगी। इसके अलावा कार्गो ढुलाई की अवधि भी 10-12 घंटे से घटकर लगभग 4 घंटे ही रह जाएगी, जिससे ईंधन (लगभग 9,000 लीटर प्रतिदिन) की भारी बचत होगी और वाहनों के रख-रखाव की लागत में खासी कमी आएगी।


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