प्रारंभिक परीक्षा
अनंग ताल झील
हाल ही में संस्कृति मंत्रालय ने दक्षिणी दिल्ली में स्थित ऐतिहासिक अनंग ताल झील के जीर्णोद्धार का आदेश दिया है।
- राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने अधिकारियों से इसके संरक्षण कार्य में तेज़ी लाने को कहा है ताकि साइट को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जा सके।
प्रमुख बिंदु:
- यह झील दिल्ली के महरौली में स्थित है जिसका निर्माण तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय द्वारा 1060 ईस्वी में कराया गया था।
- उन्हें 11वीं शताब्दी में दिल्ली की स्थापना करने और इसे बसाने हेतु जाना जाता है।
- सहस्राब्दी पुराना अनंग ताल दिल्ली के प्रारंभिक कालखंड का प्रतीक है।
- अनंग ताल का राजस्थान से एक मज़बूत संबंध है क्योंकि महाराजा अनंगपाल को पृथ्वीराज चौहान के नाना के रूप में जाना जाता है, जिनका किला राय पिथौरा, ASI की सूची में शामिल है।
अनंगपाल द्वितीय:
- अनंगपाल द्वितीय, जिसे अनंगपाल तोमर के नाम से जाना जाता है, तोमर वंश से संबंधित थे।
- वह ढिल्लिका पुरी के संस्थापक थे, जो अंततः दिल्ली के नाम से जाना गया।
- दिल्ली के प्रारंभिक इतिहास के साक्ष्य कुतुब मीनार से सटी मस्जिद कुव्वत उल इस्लाम के लोहे के स्तंभ पर खुदे हुए हैं।
- कई शिलालेखों और सिक्कों के अध्ययन से पता चलता है कि अनंगपाल तोमर 8वीं-12वीं शताब्दी के बीच दिल्ली और हरियाणा के शासक थे।
- उन्होंने भग्नावशेष पर शहर का निर्माण कराया और अपनी देख-रेख में अनंग ताल बावली तथा लाल कोट का निर्माण कराया।
- अनंगपाल तोमर द्वितीय के बाद उनका पोता पृथ्वीराज चौहान उत्तराधिकारी बना।
- दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1192 में पृथ्वीराज चौहान की तराइन (वर्तमान हरियाणा) की लड़ाई में घुरिद सेनाओं से हार के बाद हुई।
तोमर राजवंश के बारे में:
- तोमर राजवंश उत्तरी भारत के प्रारंभिक मध्ययुगीन छोटे राजवंशों में से एक है।
- पौराणिक साक्ष्य (पुराणों के लेखन) इसे हिमालय क्षेत्र के प्रारंभिक राजवंशों में शामिल करने की पुष्टि करते हैं। भाट परंपरा के अनुसार, तोमर राजवंश 36 राजपूत जनजातियों में से एक था।
- राजवंश का इतिहास अनंगपाल के शासनकाल की अवधि तक देखा जा सकता है जिन्होंने 11वीं शताब्दी में दिल्ली शहर की स्थापना की और 1164 में चौहान (चाहमान) साम्राज्य में दिल्ली को शामिल किया।
- हालाँकि दिल्ली बाद में निर्णायक रूप से चौहान साम्राज्य का हिस्सा बन गई, मुद्राशास्त्र और तुलनात्मक रूप से बाद के साहित्यिक साक्ष्य इंगित करते हैं कि संभवतः वर्ष 1192-93 में मुसलमानों द्वारा दिल्ली की अंतिम विजय तक अनंगपाल और मदनपाल जैसे तोमर राजाओं ने सामंतों के रूप में शासन करना जारी रखा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रारंभिक परीक्षा
वायु स्वतंत्र प्रणोदन प्रौद्योगिकी
हाल ही में फ़्रांँस के नेवल ग्रुप ने P-75 इंडिया प्रोजेक्ट के लिये बोली को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि यह अभी तक एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन ( AIP) प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं करता है।
- लगभग 10 देश एआईपी प्रौद्योगिकी विकसित कर चुके हैं या विकसित करने के करीब हैं तथा लगभग 20 देशों के पास एआईपी पनडुब्बियांँ मौजूद हैं।
प्रोजेक्ट-75 इंडिया:
- जून 1999 में कैबिनेट कमेटी ऑफ सिक्योरिटी (CCS) ने 30 वर्षीय पनडुब्बी निर्माण योजना को मंज़ूरी दी थी जिसमें वर्ष 2030 तक 24 पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण करना शामिल था।
- पहले चरण में उत्पादन की दो श्रृंखलायें स्थापित की जानी थीं- पहली, पी-75; दूसरी, पी-75आई। प्रत्येक श्रृंखला को छह पनडुब्बियों का उत्पादन करना था।
- जबकि छह P-75 पनडुब्बियांँ डीज़ल-इलेक्ट्रिक हैं, उन्हें बाद में AIP तकनीक से सुसज्जित किया जा सकता है।
- पहले चरण में उत्पादन की दो श्रृंखलायें स्थापित की जानी थीं- पहली, पी-75; दूसरी, पी-75आई। प्रत्येक श्रृंखला को छह पनडुब्बियों का उत्पादन करना था।
- इस परियोजना में 43,000 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से अत्याधुनिक वायु-स्वतंत्र प्रणोदन प्रणाली से लैस छह पारंपरिक पनडुब्बियों के स्वदेशी निर्माण की परिकल्पना की गई है।
वायु स्वतंत्र प्रणोदन:
- परिचय:
- AIP पारंपरिक गैर-परमाणु पनडुब्बियों के लिये तकनीक है।
- पनडुब्बियांँ अनिवार्य रूप से दो प्रकार की होती हैं: पारंपरिक और परमाणु।
- पारंपरिक पनडुब्बियांँ डीज़ल-इलेक्ट्रिक इंजन का उपयोग करती हैं, जिससे उन्हें ईंधन के दहन के लिये वायुमंडलीय ऑक्सीजन प्राप्त करने हेतु प्रतिदिन सतह पर आना पड़ता है।
- यदि पनडुब्बी AIP प्रणाली से सुसज्जित है तो इन्हें सप्ताह में केवल एक बार ऑक्सीजन लेने की आवश्यकता होगी।
- स्वदेशी रूप से विकसित AIP नौसेना सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (NMRL-DRDO) के प्रमुख मिशनों में से एक है, जिसे नौसेना के लिये DRDO (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक माना जाता है।
- ईंधन सेल आधारित AIP प्रणाली:
- ईंधन सेल आधारित AIP में इलेक्ट्रोलाइटिक ईंधन सेल केवल पानी के साथ हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोजन से ऊर्जा उत्पादन करता है जिससे समुद्री प्रदूषण करने वाले अपशिष्ट उत्पाद कम उत्पन्न होते हैं।
- ये सेल अत्यधिक कुशल होते हैं और इनमें गतिमान पुर्जे नहीं होते हैं, इस प्रकार ये सेल यह सुनिश्चित करते हैं कि पनडुब्बी में ध्वनि का कम उत्सर्जन हो।
AIP के लाभ और हानि:
- लाभ:
- डीज़ल इलेक्ट्रिक पनडुब्बी की मारक क्षमता पर AIP का बल गुणक प्रभाव डालता है क्योंकि यह नाव की पानी के अंदर रहने की क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है।
- ईंधन सेल आधारित AIP अन्य प्रौद्योगिकियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती है।
- AIP तकनीक एक पारंपरिक पनडुब्बी को सामान्य डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की तुलना में अधिक समय तक जलमग्न रखती है।
- सभी पारंपरिक पनडुब्बियों को अपने जनरेटर चलाने के लिये सतह पर उतरना पड़ता है जो उसकी बैटरी को रिचार्ज करते हैं और नाव को पानी के नीचे कार्य करने में सक्षम बनाते हैं।
- हालँकि जितनी अधिक बार एक पनडुब्बी सतह पर आती है, शत्रुओं द्वारा इसकी निगरानी की संभावना उतनी ही अधिक बढ़ जाती है।
- डीज़ल-इलेक्ट्रिक नौकाओं द्वारा दो से तीन दिनों की तुलना में AIP किसी पनडुब्बी को लगभग 15 दिनों से अधिक समय तक पानी के अंदर रखने में सक्षम है।
- हानि:
- AIP स्थापित करने से नावों की लंबाई और वज़न बढ़ जाता है, इसके लिये जहाज़ पर दबावयुक्त तरल ऑक्सीजन (LOX) भंडारण और तीनों प्रौद्योगिकियों हेतु आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
- MESMA (ऑटोनॉमस सबमरीन एनर्जी मॉड्यूल) और स्टर्लिंग इंजन के गतिमान भागों से कुछ ध्वनिक शोर उत्पन्न होता है जिस कारण पनडुब्बी की इकाई लागत लगभग 10% बढ़ जाती है।
वर्तमान में भारत के पास उपलब्ध पनडुब्बियांँ:
- भारत में 16 पारंपरिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियांँ हैं, जिन्हें एसएसके (SSKs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पी-75 के तहत अंतिम दो कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियों के चालू होने के बाद यह संख्या बढ़कर 18 हो जाएगी।
- भारत के पास दो परमाणु बैलिस्टिक पनडुब्बी भी हैं जो सबमर्सिबल शिप बैलिस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर (Submersible Ship Ballistic Missile Nuclear-SSBN) के रूप में वर्गीकृत हैं।
- 30 वर्ष की परियोजना के तहत P-75I के पूरा होने तक भारत के पास छह डीज़ल-इलेक्ट्रिक, छह एआईपी-संचालित और छह परमाणु हमले वाली पनडुब्बियांँ होने का अनुमान है।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा 'आईएनएस अस्त्रधारिणी' का सबसे अच्छा वर्णन है, जो हाल ही में खबरों में था? (2016) (a) उभयचर (एम्फिब) युद्ध जहाज़ उत्तर: (c) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 04 मई, 2022
अंतर्राष्ट्रीय अग्निशमन दिवस
प्रतिवर्ष 4 मई को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय अग्निशमन दिवस का आयोजन किया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य उन अग्निशमन कर्मियों को याद करना है, जिन्होंने समाज की रक्षा करते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया है। ज्ञात हो कि 4 जनवरी, 1999 को ऑस्ट्रेलिया के वनों में लगी आग बुझाने के दौरान पाँच अग्निशमन कर्मियों की मृत्यु हो गई थी और इसी घटना को चिह्नित करते हुए प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दिवस का आयोजन किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय अग्निशमन दिवस का प्रतीक लाल और नीला रिबन है। इसमें लाल रंग आग को दर्शाता है एवं नीला रंग पानी को और ये रंग दुनिया भर में आपातकालीन सेवाओं का संकेत देते हैं। यह दिवस अग्निशामकों को उनकी प्रतिबद्धता, असाधारण साहस और नि:स्वार्थ सेवा के लिये धन्यवाद करने हेतु मनाया जाता है। इसके अलावा भारत में 14 अप्रैल को राष्ट्रीय अग्निशमन दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1944 में 14 अप्रैल को मुंबई बंदरगाह पर एक मालवाहक जहाज़ में अचानक आग लग गई थी, जिसमें काफी मात्रा में रुई, विस्फोटक और युद्ध उपकरण थे। इस आग पर काबू पाने की कोशिश में 66 अग्निशमनकर्मी आग की चपेट में आकर अपने प्राण गँवा बैठे थे। इन्हीं अग्निशमन कर्मियों की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को राष्ट्रीय अग्निशमन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
देश का 100वाँ यूनिकॉर्न
बंगलूरू स्थित नियोबैंक प्लेटफॉर्म 'ओपेन' 100वाँ यूनिकॉर्न बन गया है। नए सिरे से फंडिंग जुटाने के बाद कंपनी का मूल्य एक अरब डॉलर को पार कर गया है। भारत वर्तमान में यूनिकॉर्न का दर्जा प्राप्त कंपनियों की संख्या के मामले में वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है (अमेरिका और चीन से पीछे, लेकिन यू.के. एवं जर्मनी से आगे)। यूनिकॉर्न, वे स्टार्ट-अप होते हैं जिनका मूल्य 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होता है। इस शब्द को पहली बार कैलिफोर्निया के पालो अल्टो में स्थित एक सीड-स्टेज वेंचर कैपिटल फंड ‘काउबॉय वेंचर्स’ के संस्थापक ‘ऐलीन ली’ द्वारा गढ़ा गया था। यूनिकॉर्न मानव संसाधन क्षेत्र में भर्ती से संबंधित अवधारणा को संदर्भित करता है।
विश्व अस्थमा दिवस
विश्व अस्थमा दिवस (World Asthma Day) प्रत्येक वर्ष मई महीने के पहले मंगलवार को मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व अस्थमा दिवस 3 मई, 2022 को मनाया गया। इस वर्ष विश्व अस्थमा दिवस-2022 की थीम ‘क्लोज़िंग गैप्स इन अस्थमा केयर’ (Closing Gaps in Asthma Care) है। इसका मूल उद्देश्य विश्व भर में अस्थमा की बीमारी एवं देखभाल के बारे में जागरूकता फैलाना है। वर्ष 1998 में पहली बार ‘ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा’ (GINA) ने इसका आयोजन बार्सिलोना (स्पेन) में हुई ‘प्रथम विश्व अस्थमा बैठक’ के बाद किया था। हालाँकि COVID-19 के कारण इस वर्ष वैश्विक स्तर पर इसका आयोजन स्थगित कर दिया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व में लगभग 235 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। ‘ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा’ (GINA) को वर्ष 1993 में अस्थमा के लिये वैश्विक पहल के रूप में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ’ (National Institutes of Health), ‘नेशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट’ (National Heart, Lung and Blood Institute- NHLBI) के सहयोग से शुरू किया गया था। अस्थमा फेफड़ों की एक पुरानी बीमारी है, जिसके कारण रोगी को साँस लेने में समस्या होती है। यह गैर-संचारी रोगों में से एक है। इस बीमारी के दौरान श्वसनमार्ग में सूजन से सीने में जकड़न, खाँसी, साँस लेने में तकलीफ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है। ये लक्षण आवृत्ति एवं गंभीरता (Frequency and Severity) में भिन्न होते हैं। जब लक्षण नियंत्रण में नहीं होते हैं तो साँस लेना मुश्किल हो सकता है। वर्तमान में यह बीमारी बच्चों में सबसे अधिक देखने को मिलती है। अस्थमा को ठीक नहीं किया जा सकता है किंतु अगर सही समय पर सही इलाज के साथ इसका प्रबंधन किया जाए तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
हर्षदा शरद गरुड
हर्षदा शरद गरुड यूनान के हेराकलियोन में आयोजित आईडब्ल्यूएफ जूनियर विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय भारोत्तोलक बन गई हैं। हर्षदा से पहले इस चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली सिर्फ दो भारतीय खिलाड़ी हैं। वर्ष 2013 में मीराबाई चानू ने कांस्य पदक, जबकि पिछले साल अचिंता श्युली ने रजत पदक जीता था। हर्षदा ने महिलाओं के 45 किलोग्राम भार वर्ग में 153 किलोग्राम वज़न उठाया, जिसमें स्नैच में 70 किलोग्राम और क्लीन एंड जर्क में 83 किलोग्राम शामिल है। तुर्की की बेकटास कांसु ने रजत पदक जीता, जबकि मोल्डोवा की तेओडोरा लुमिनिता हिंकू ने कांस्य पदक अपने नाम किया। इसी वर्ग में हिस्सा ले रही एक अन्य भारतीय अंजलि पटेल कुल 148 किग्रा (67 किग्रा और 81 किग्रा) वज़न उठाकर पांँचवें स्थान पर रहीं। महाद्वीपीय और विश्व चैंपियनशिप में स्नैच, क्लीन एवं जर्क तथा कुल वज़न में अलग-अलग पदक दिये जाते हैं, जबकि ओलंपिक में सिर्फ कुल वज़न वर्ग में पदक दिया जाता है।