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एडिटोरियल

  • 29 Nov, 2022
  • 16 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का हरित-ऊर्जा संक्रमण

यह एडिटोरियल 26/11/2022 को फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित “A green-energy boost” लेख पर आधारित है। इसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और हरित ऊर्जा संक्रमण की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

जलवायु परिवर्तन एक अस्तित्व संबंधी संकट है जो मानव इतिहास के क्रम को बदतर दिशा की ओर बदल देने की क्षमता रखता है। जीवाश्म ईंधन पारंपरिक ऊर्जा स्रोत हैं जो जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़े योगदानकर्त्ता हैं। वे वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 75% से अधिक भाग के लिये और सभी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों के लगभग 90% भाग के लिये ज़िम्मेदार हैं।

  • बेहतर भविष्य के लिये, हरित ऊर्जा एक प्रमुख समाधान है जिसके माध्यम से वर्ष 2070 तक भारत के शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को भी पूरा किया जा सकता है।
  • इस प्रकार, भारत को आर्थिक विकास के एक नए मॉडल का नेतृत्व करना चाहिये जो कार्बन-गहन दृष्टिकोण (जिसे अतीत में कई देशों ने अपनाया) से परहेज कर सके और स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण हेतु अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये एक खाका प्रदान करे।

हरित ऊर्जा क्या है?

  • हरित ऊर्जा (Green energy ) नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा के लिये प्रयुक्त शब्द है। हरित ऊर्जा को प्रायः स्वच्छ, सतत या नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में भी जाना जाता है।
    • हरित ऊर्जा का उत्पादन वायुमंडल में जहरीली ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता, जिसका अर्थ है कि यह बहुत कम (या नगण्य) पर्यावरणीय प्रभाव डालता है।
  • कुछ महत्त्वपूर्ण हरित ऊर्जा स्रोतों में सौर, पवन, भूतापीय, बायोगैस, निम्न-प्रभाव पनबिजली और कुछ योग्य बायोमास स्रोतों द्वारा उत्पादित बिजली शामिल हैं।

भारत हरित ऊर्जा संक्रमण को कैसे सुगम बना रहा है?

  • भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोगकर्त्ता देश है। वर्ष 2000 के बाद से ऊर्जा का उपयोग दोगुना हो गया है, जहाँ 80% मांग अभी भी कोयला, तेल और ठोस बायोमास द्वारा पूरी की जा रही है।
    • प्रति व्यक्ति आधार पर देखें तो भारत का ऊर्जा उपयोग और उत्सर्जन वैश्विक औसत के आधे से भी कम है।
  • हरित ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में प्रयास:
    • वर्ष 2019 में भारत ने घोषणा की कि वह वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा की अपनी स्थापित क्षमता को 450 GW तक ले जाएगा।
    • उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना (PLI) नवीकरणीय ऊर्जा के लिये कच्चे माल के उत्पादन हेतु विनिर्माण क्षेत्र के संवर्द्धन के संबंध में भारत सरकार की एक और पहल है।
    • पीएम-कुसुम (प्रधानमंत्री-किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान ) का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 25,750 मेगावाट की सौर ऊर्जा क्षमता का दोहन कर किसानों को वित्तीय एवं जल सुरक्षा प्रदान करना है।
      • जल पंपों का सोलराइज़ेशन उपभोक्ता के दरवाज़े पर उपलब्ध बिजली वितरण की दिशा में एक कदम है।
    • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय अपनी वेबसाइट पर अक्षय ऊर्जा पोर्टल और इंडिया रिन्यूएबल आइडिया एक्सचेंज (IRIX) पोर्टल की भी होस्टिंग करता है।
      • IRIX एक ऐसा मंच है जो ऊर्जा के प्रति जागरूक भारतीयों और वैश्विक समुदाय के बीच विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।

भारत के ऊर्जा संक्रमण को आकार देने वाली अन्य प्रमुख पहलें

भारत के ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ

  • ऊर्जा निर्धनता एवं असमानता: भारत में ऊर्जा तक पहुँच एक बड़ी समस्या है और पहुँच की वृहत असमानताओं से देश ग्रस्त है। भारत में लगभग 77 मिलियन परिवार अभी भी रोशनी के लिये मिट्टी के तेल या केरोसिन का उपयोग करते हैं।
    • ग्रामीण भारत में यह समस्या और भी विकट है, जहाँ लगभग 44% तक घरों में बिजली की सुविधा नहीं है।
    • जबकि भारत ने ऊर्जा निर्धनता को दूर करने के लिये विभिन्न कार्यक्रमों और पहलों की शुरुआत की है, उन्हें स्थानीय स्तर पर लॉजिस्टिकल समस्याओं एवं अपर्याप्त कार्यान्वयन की स्थिति का सामना करना पड़ा है।
  • आयात पर निर्भरता और आपूर्ति शृंखला का शस्त्रीकरण: भारत का कच्चा तेल आयात बिल वर्ष 2022-23 की पहली छमाही में 76% बढ़कर 90.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया और कुल आयात मात्रा में 15% की वृद्धि हुई।
    • आयातित तेल पर बढ़ती निर्भरता के साथ भारत की ऊर्जा सुरक्षा गंभीर दबाव में है, जबकि संकटग्रस्त भू-राजनीति के कारण वर्तमान में बाधित वैश्विक आपूर्ति शृंखला इस समस्या को और बढ़ा रही है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में भी भारत सौर मॉड्यूल जैसी वस्तुओं के लिये व्यापक रूप से चीन जैसे अन्य देशों पर निर्भर है।
      • सौर मूल्य शृंखला में पश्चगामी एकीकरण (Backward integration) अनुपस्थित है क्योंकि भारत में वर्तमान में सौर वेफर्स और पॉलीसिलिकॉन के निर्माण की कोई क्षमता नहीं है। यह परिदृश्य स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में बाधक है।
  • जलवायु परिवर्तन प्रेरित ऊर्जा संकट: जलवायु परिवर्तन प्रत्यक्ष रूप से ईंधन की आपूर्ति, ऊर्जा की आवश्यकता के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा अवसंरचना के भौतिक लचीलेपन को प्रभावित करता है।
    • जलवायु परिवर्तन से प्रेरित ग्रीष्म लहर (Heatwaves) और अनियमित मानसून पहले से ही मौजूदा ऊर्जा उत्पादन को दबाव में ला रहे हैं, जिससे जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम करना और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • महिला स्वास्थ्य के लिये जोखिम: महिलाएँ घरेलू गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं और स्वास्थ्य जोखिम का सामना करती हैं जब दीर्घकालिक घरेलू ऊर्जा जलावन लकड़ी, कोयला एवं गोबर के उपले जैसे गैर-स्वच्छ स्रोतों से प्राप्त की जाती है।
    • गैर-स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से महिलाओं में श्वसन, हृदय और मनोवैज्ञानिक रोगों का खतरा बढ़ जाता है तथा मातृ एवं शिशु मृत्यु दर की भी वृद्धि होती है।
  • कोयले की मांग एवं आपूर्ति के बीच बढ़ता अंतर: कोयला मंत्रालय के 2021 के आँकड़ों से पता चलता है कि कोयले की मांग और घरेलू आपूर्ति के बीच का अंतर बढ़ रहा है।
    • पर्याप्त भंडार की उपलब्धता के बावजूद बड़े कोयला उत्पादक राज्यों में कोयले की निकासी में कमी आई है।
    • बढ़ती कीमतों और बिजली संयंत्रों के साथ अनसुलझे लंबित अनुबंध संबंधी मुद्दों के कारण यह समस्या और भी गंभीर होती जा रही है।
  • बढ़ती मांग, बढ़ती ऊर्जा लागत: शहरीकरण और औद्योगीकरण की बढ़ती दर के साथ अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने अपनी विश्व ऊर्जा आउटलुक रिपोर्ट में कहा है कि अकेले भारत की ऊर्जा आवश्यकता में ही प्रतिवर्ष 3% की वृद्धि होगी।
    • इसके साथ ही, वैश्विक स्तर पर पेट्रोलियम की कीमतों में तेज़ वृद्धि हुई है।

आगे की राह

  • हरित ऊर्जा के साथ महिला सशक्तिकरण को जोड़ना: ऊर्जा क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण और उनका नेतृत्व स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देकर निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण को गति देने में मदद कर सकता है।
    • उपयुक्त संक्रमण (Just Transition) एक लैंगिक परिप्रेक्ष्य भी शामिल होना चाहिये ताकि कार्यबल में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये हरित रोज़गार अवसरों में समान अवसरों की गारंटी दी जा सके।
    • विशेष रूप से घरों में ज़िम्मेदार माता, पत्नी और बेटी की तरह महिलाएँ उद्यमिता और नीति निर्माण में योगदान कर हरित ऊर्जा संक्रमण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
  • हरित आपूर्ति शृंखला में विविधता लाना: स्वच्छ ऊर्जा की आपूर्ति शृंखलाओं को केवल विकसित देशों तक सीमित रखने के बजाय अधिकाधिक देशों तक विविधिकृत करने की आवश्यकता है।
    • इस संबंध में, COP27 के जलवायु वित्त एजेंडे को एक वाहक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे-जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को प्रतिस्थापित किया जाएगा, राजस्व एवं रोज़गार कुछ भौगोलिक क्षेत्रों से दूसरे क्षेत्रों में स्थानांतरित होते जाएंगे और इसे सावधानी से प्रबंधित करने की आवश्यकता होगी।
  • न्यूनतम लागत ऊर्जा समाधानों में प्रोत्साहन प्रदान करना: भारत विश्वविद्यालय स्तर के नवाचारों को प्रोत्साहित कर सकता है जो भारत को आर्थिक रूप से व्यवहार्य स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को आगे बढ़ाने में मदद करेगा। इस प्रकार, भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का भी उपयोग किया जा सकता है और छात्रों को पारंपरिक शिक्षा की तुलना में अनुसंधान एवं नवाचार की ओर अधिक बढ़ावा दिया जाएगा।
    • उदाहरण के लिये, उजाला कार्यक्रम (Unnat Jyoti by Affordable LEDs for All- UJALA) ने एलईडी बल्बों की इकाई लागत में 75% से अधिक की कमी को संभव किया है।
    • पर्यावरण, वानिकी और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के साथ संयुक्त रूप से ‘इन अवर लाइफटाइम’ (In Our LiFEtime) अभियान शुरू किया है, जो 18 से 23 वर्ष आयुवर्ग के युवाओं से संवहनीय जीवनशैली के अनुकूल बनने और इसे बढ़ावा देने का आग्रह करता है और उन्हें प्रोत्साहित भी करता है। यह इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • हरित परिवहन पर ध्यान केंद्रित करना: सार्वजनिक परिवहन की पुनर्कल्पना करने और इसके प्रति भरोसे की पुनर्बहाली की आवश्यकता है। इस क्रम में अधिक बसों की खरीद, ई-बसों को अपनाने, बस गलियारों एवं रैपिड ट्रांजिट सिस्टम के निर्माण के साथ ही सार्वजनिक परिवहन के डिजिटलीकरण जैसे प्रयास किये जा सकते हैं।
    • जैव ईंधन द्वारा जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित किये जाने के साथ ही उत्सर्जन मानदंडों को कठोर बनाया जाना चाहिये।
    • विद्युतीकरण को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न इलेक्ट्रिक फ्रेट कॉरिडोर का विकास भी इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभों को प्राप्त कर सकने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • ऊर्जा संक्रमण के प्रति बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण: भारत में भविष्य का विकास विभिन्न मोर्चों पर प्रत्यास्थता की मांग करेगा, जैसे ऊर्जा प्रणाली डिज़ाइन, शहरी विकास, औद्योगिक विकास एवं आंतरिक आपूर्ति-शृंखला प्रबंधन और गरीबों की आजीविका।
    • वितरित ऊर्जा प्रणालियों और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर भारत कमोडिटी आयात एवं विदेशी आपूर्ति शृंखलाओं के लिये अपने जोखिम को धीरे-धीरे कम कर सकता है।
    • भारत की विनिर्माण क्षमता और प्रौद्योगिकीय नेतृत्व उसे अवसर दे रहा है कि वह ‘मेक इन इंडिया’ का लाभ उठाते हुए देश को एक अधिक आत्मनिर्भर हरित अर्थव्यवस्था और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी हरित ऊर्जा निर्यात केंद्र में बदल दे।
      • हरित ऊर्जा से संबद्ध चक्रीय अर्थव्यवस्था समाधान भारत की भविष्य की अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता बननी चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत के ऊर्जा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति पर विचार कीजिये और देश को हरित ऊर्जा की ओर आगे ले जाने के लिये अभिनव तरीके सुझाइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

Q. इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
  2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2
 (C) 1 और 2 दोनों
 (D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (C)


मुख्य परीक्षा

Q. "सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए सस्ती, भरोसेमंद, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी करें। (वर्ष 2018)


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