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एडिटोरियल

  • 29 Sep, 2021
  • 12 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक विकास के लिये बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था

यह एडिटोरियल 28/09/2021 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Expand the Study of IPRs’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था से संबद्ध समस्याओं और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल ही में वाणिज्य संबंधी स्थायी विभागीय समिति ने ‘भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था की समीक्षा’  विषयक अपनी 161वीं रिपोर्ट प्रस्तुत की है।   

समिति को विभिन्न संगठनों के साथ संवाद से यह ज्ञात हुआ कि सकल घरेलू उत्पाद, उद्योगों के विकास, रोज़गार सृजन, व्यापार एवं वाणिज्य आदि पर ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ के आर्थिक प्रभावों के विश्लेषण हेतु भारत द्वारा अभी तक कोई भी विशिष्ट अध्ययन नहीं किया गया है।  

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई स्थानों पर भारतीय व्यवस्था की तुलना अन्य विदेशी क्षेत्राधिकारों से करते हुए टिप्पणियाँ दर्ज की है। इस रिपोर्ट के तहत भारत के लिये अमेरिका या यूरोपीय संघ की नीतियों का अनुकरण करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया है।

इस संदर्भ में अर्थव्यवस्था पर ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ पारितंत्र के प्रभाव को समझने हेतु IPR व्यवस्था का अध्ययन किया जाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

IPR के अध्ययन की आवश्यकता

  • अर्थव्यवस्था में ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ के योगदान को जानने हेतु: अधिकांश देश इस बात का अध्ययन करते हैं कि ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ उनकी अर्थव्यवस्था में कितना योगदान देता है। इसके अलावा, विभिन्न देश इस बात का भी अध्ययन करते हैं कि जब गैर-लचीले (Inflexible) ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को प्रभावित करते हैं तो इससे देश को कितना नुकसान होता है। 
  • अत्यधिक स्वास्थ्य देखभाल व्यय: भारत में IPR अध्ययन विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, जहाँ स्वास्थ्य देखभाल व्यय में लगातार वृद्धि हो रही है और कुछ दवाओं की कीमत आम लोगों की पहुँच से बाहर होती जा रही है। 
  • अर्थव्यवस्था में IPR का महत्त्वपूर्ण योगदान: आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन’ (OECD) द्वारा  'विकासशील देशों में IPRs के सुदृढ़ीकरण हेतु नीति पूरक-2010' (Policy Complements to the Strengthening of IPRs in Developing Countries-2010) शीर्षक से जारी एक अध्ययन के मुताबिक,  
    • ट्रेडमार्क संरक्षण में 1% की वृद्धि से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 3.8% की वृद्धि होती है;  
    • पेटेंट संरक्षण में 1% सुधार से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में 2.8% की वृद्धि होती है; और 
    • कॉपीराइट संरक्षण में 1% सुधार से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में 6.8% की वृद्धि होती है।
  • विदेशी मुद्रा को प्रोत्साहन: माना जाता है कि भारत में आईपीआर व्यवस्था को मज़बूत करने से विदेशी मुद्रा प्रवाह को प्रोत्साहन मिलेगा, जो आर्थिक विकास को बढ़ाने और देश में उत्पादकता तथा रोज़गार के अवसर पैदा करने में मददगार होगा।

भारत में IPR से संबद्ध समस्याएँ

  • पेटेंट की कम संख्या: वर्ष 2019 में भारत में केवल 24,936 (~25000) पेटेंट प्रदान किये गए, जो कि अमेरिका और चीन में क्रमशः 3,54,430 और 4,52,804 पेटेंटों की तुलना में काफी कम है।  
    • इसके साथ ही भारत में पेटेंट की संख्या में वृद्धि की दर भी अमेरिका और चीन की तुलना में अधिक संतोषप्रद या प्रभावशाली नहीं रही है।
  • जालसाजी और पायरेसी: जालसाजी (Counterfeiting) और पायरेसी (Piracy) सहित अन्य बौद्धिक संपदा संबंधी अपराध IPR के लिये बढ़ते खतरों में शामिल हैं, जिन्हें उपयुक्त उपायों के माध्यम से विनियमित और कुशलता से नियंत्रित किया जा सकता है। 
  • डेटा अनन्यता (Data Exclusivity): विदेशी निवेशक और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ प्रायः यह आरोप लगाती हैं कि भारतीय कानून, दवा या कृषि-रासायनिक उत्पादों के व्यावसायिक अनुमोदन हेतु आवेदन करते समय सरकार को प्रस्तुत किये गए परीक्षण डेटा के अनुचित उपयोग से उन्हें संरक्षण प्रदान नहीं करते हैं। इसके लिये एक विशिष्ट ‘डेटा अनन्यता कानून’ (Data Exclusivity Law) की मांग की जा रही है। 
  • बौद्धिक संपदा अधिकारों के कथित उल्लंघन के लिये भारत, ‘संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि’ (United States Trade Representative- USTR) की ‘प्राथमिकता निगरानी सूची’ (Priority Watch List) में बना हुआ है। 
    • USTR द्वारा जारी उसकी नवीनतम ‘स्पेशल 301’ रिपोर्ट बौद्धिक संपदा ​​के संरक्षण और प्रवर्तन के संबंध में भारत को ‘दुनिया की सबसे चुनौतीपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में से एक’ करार दिया गया है।

आगे की राह

  • राज्य सरकारों की भूमिका: राज्य सरकारें बौद्धिक संपदा अधिकार के संबंध में भारतीय नीति के व्यापक ढाँचे के अंतर्गत अपनी स्वयं की रणनीतियों एवं नीतियों का निर्माण कर एक सुदृढ़ IPR व्यवस्था के विकास में रचनात्मक भागीदार की भूमिका निभा सकती हैं। 
    • उन्हें उन नीतियों के विकास में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना चाहिये, जो बौद्धिक संपदा अधिकार के महत्त्व पर लोगों को संवेदनशील बनाने, शैक्षिक संस्थानों में नवाचार को प्रोत्साहित करने एवं राज्यस्तरीय नवाचार परिषदों की स्थापना करने, IPR कानूनों के प्रवर्तन और बौद्धिक संपदा ​​अपराधों पर अंकुश लगाने पर केंद्रित हों।      
  • नागरिक समाज की भागीदारी: नागरिक समाज के सदस्यों के सुझावों को शामिल करना भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वे भारत के विकास में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता रहे हैं। 
  • गैर-सरकारी संगठनों को प्रोत्साहित करना: शिल्पकारों एवं कारीगरों से संबद्ध और पहाड़ी तथा आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय गैर-सरकारी संगठनों को लक्षित समूहों तक IPR के संबंध में जागरूकता के प्रसार के लिये संलग्न किया जा सकता है।  
    • इसके साथ ही, IPR को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक ‘टूल किट’ प्रदान किये जा सकते हैं जिनका उपयोग प्रशिक्षण में किया जा सकता है।
  • MSMEs, छोटे व्यवसायियों और व्यापारियों के बीच जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान देने के साथ देश के टीयर- I, टियर- II और दूरदराज़ के क्षेत्रों में IPR सुविधा केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये।   
  • वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देना: वाणिज्य विभाग द्वारा MSMEs, छोटे व्यापारियों और स्थानीय कारीगरों के लिये आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों और कार्यशालाओं के दौरान प्रतिभागियों को उनके उत्पादों में नवीनता या असाधारणता की पहचान करने और IPRs के रूप में इन नवीनताओं के संरक्षण के बारे में जागरूक किया जाना चाहिये।  
  • IPR नीति की समीक्षा: नवाचार एवं अनुसंधान के क्षेत्रों में नए और उभरते रुझानों के मद्देनज़र मौजूदा नीति का पुनर्मूल्यांकन किया जाना बेहद महत्त्वपूर्ण है, जिसके लिये एक सुदृढ़ तंत्र की आवश्यकता है ताकि IPRs के रूप में उनका संरक्षण किया जा सके। 
  • इसके अतिरिक्त, वर्तमान विश्व में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों की प्रासंगिकता और उपयोगिता का भी लाभ लिया जा सकता है।  
    • AI और AI-संबंधी आविष्कारों तथा समाधानों की IPR के रूप में सुरक्षा के लिये अधिकारों की एक अलग श्रेणी का निर्माण किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

भारत जैसे विकासशील देश के लिये आर्थिक विकास को कल्याणकारी मुद्दों के साथ संतुलित करना काफी महत्त्वपूर्ण है। एक कुशल एवं न्यायसंगत बौद्धिक संपदा प्रणाली सभी देशों को आर्थिक विकास और सामाजिक एवं सांस्कृतिक कल्याण के लिये एक उत्प्रेरक के रूप में बौद्धिक संपदा की क्षमता का अनुभव कराने में मदद कर सकती है।

अभ्यास प्रश्न: अर्थव्यवस्था पर IPR पारितंत्र के प्रभाव को समझने के लिये बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था का होना महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिये।


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