भारत में चीतों की पुनःवापसी
यह एडिटोरियल 25/07/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Ecostani / Despite concerns, the Cheetah project is worth pursuing” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में चीतों की पुनःवापसी की योजना और संबंधित चिंताओं के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
चीता स्थल पर सबसे तेज़ दौड़ने वाले पशु है जिसे वर्ष 1952 में भारत में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। अब एक बार फिर उसे भारत में लाने की योजना पर कार्य चल रहा है जिसके तहत मध्य प्रदेश के कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (KNP) में उन्हें पुनर्वासित किया जाएगा। इन अफ्रीकी चीतों को भारत और अफ्रीका (मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से) के बीच एक अंतर-महाद्वीपीय स्थानान्तरण परियोजना के तहत लाया जा रहा है।
- आरंभ में ईरान से और अब अफ्रीकी महाद्वीप से चीतों को भारत लाने की योजना दशकों से चल रही है और यह पर्याप्त विवादग्रस्त रही है। भारत के कई जीव संरक्षणवादी इस योजना की सफलता पर संदेह रखते हैं और उन्हें भय है कि यह स्थानांतरण की आवश्यकता रखने वाली एशियाई शेर जैसी अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण से ध्यान भटकाएगा।
चीता की पुनःवापसी के पीछे भारत का तर्क और संबंधित चुनौतियाँ:
- जैविक उद्देश्य: चीता के पूर्व आवास के प्रतिनिधि क्षेत्रों में इसकी पारिस्थितिकी तंत्र कार्य भूमिका को फिर से स्थापित करना और एक प्रजाति के रूप में चीता के संरक्षण की दिशा में वैश्विक प्रयास में योगदान करना।
- चीता को वापस लाने के बाद भारत एकमात्र ऐसा देश बन जाएगा जहाँ ‘बिग कैट’ प्रजाति के पाँचों सदस्य—बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ और चीता उपस्थित होंगे।
- आजीविका विकल्पों में वृद्धि: चीता का पुनःप्रवेश उन क्षेत्रों के और आसपास के क्षेत्रों के स्थानीय समुदायों के लिये इकोटूरिज्म और संबंधित गतिविधियों से बढ़े हुए राजस्व के माध्यम से आजीविका की वृद्धि करेगा।
- खाद्य शृंखला को बरकरार रखना: शीर्ष शिकारी खाद्य शृंखला में सभी स्तरों को नियंत्रित करते हैं और उन्हें खाद्य शृंखला के लिये छत्र प्रजाति (Umbrella Species) माना जाता है।
- खुले वन पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने और फ़ूड वेब में संतुलन वापस लाने के लिये संसाधन जुटाने हेतु चीता एक प्रमुख और छत्र प्रजाति साबित हो सकता है।
- जलवायु परिवर्तन शमन: यह चीता संरक्षण क्षेत्रों में पारिस्थितिकी तंत्र बहाली गतिविधियों के माध्यम से कार्बन जब्ती की भारत की क्षमता को बढ़ाएगा और इस तरह वैश्विक जलवायु परिवर्तन शमन लक्ष्यों में योगदान देगा।
भारत में चीतों के विलुप्त होने का कारण:
- भारत में चीता ईसवी सन के पहले से इतिहास में दर्ज किया गया है। चीतों को पकड़े जाने का रिकॉर्ड 1550 के दशक का है।
- ऐतिहासिक आनुवंशिक अड़चन के कारण आनुवंशिक विविधता के स्तर में कमी, जिसके परिणामस्वरूप वन्य क्षेत्र में इसके उच्च शिशु मृत्यु दर और क़ैद में प्रजनन करने की इसकी कम क्षमता इसके विलुप्त होने के कुछ प्रमुख कारक थे।
- शिकार मनोरंजन: शिकार मनोरंजन के लिये सदियों से वन्य क्षेत्रों से चीतों (नर और मादा दोनों) को व्यापक रूप से और लगातार पकड़ा जाता रहा।
- 16वीं शताब्दी के बाद से मनुष्यों के साथ इसके संपर्क के विस्तृत विवरण उपलब्ध होते हैं जब मुग़लों और दक्कन के अन्य राज्यों द्वारा इसे दर्ज किया गया।
- ‘बाउंटी किलिंग’: अंग्रेजों ने वर्ष 1871 में इसे मारने के लिये इनाम की घोषणा कर प्रजातियों के संकट को और बढ़ा दिया।
- इसके विलुप्त होने का अंतिम चरण ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की समाप्ति के साथ पूरा हुआ।
- यह दर्ज किया गया है कि अंतिम बचे चीतों को वर्ष 1947 में भारत में मार डाला गया और आधिकारिक तौर पर वर्ष 1952 में इन्हें विलुप्त घोषित कर दिया गया।
भारत में चीता के स्थानांतरण से संबद्ध चुनौतियाँ
- बाड़े से वन्य क्षेत्र में संक्रमण: एक महत्त्वपूर्ण समस्या यह है कि बाड़े में रहने वाला और आहार के लिये मनुष्यों पर निर्भर कोई चीता वन्य क्षेत्र में मुक्त किये जाने पर क्या स्वयं शिकार कर सकने में सक्षम होगा।
- उदाहरण के लिये, सुंदरी नामक एक बाघिन (जो ओडिशा के सतकोसिया से एक असफल पुनर्वास प्रयास के बाद लौटी थी) को अंततः जीवन भर के लिये भोपाल चिड़ियाघर में रखा गया।
- अनुकूलन क्षमता: पुन:प्रवेश कराई गई प्रजातियाँ उनके छोटे आकार और स्रोत एवं मूल पर्यावासों के बीच जलवायु एवं पारिस्थितिक अंतर के कारण बहाव (Drift), चयन और जीन प्रवाह विकासवादी प्रक्रियाओं के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशीलता होती हैं।
- अफ्रीकी चीतों को दौड़ने के लिये लंबी खुली जगह की आवश्यकता होती है। भारतीय उद्यान अफ्रीका के उद्यानों की तुलना में बहुत छोटे हैं; इस तरह उनके मुक्त गमन के लिये कम अवसर प्रदान करते हैं।
- अफ्रीका में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि मादा चीता अकेले रहती है और बहुत दूर तक घूमती रहती है, जबकि नर अपने छोटे क्षेत्रों की रक्षा करते हैं और उधर से गुज़रती मादाओं से संबंध बनाते हैं। यह प्रजनन संबंधी समस्या उत्पन्न करता है।
- अफ्रीकी चीतों को दौड़ने के लिये लंबी खुली जगह की आवश्यकता होती है। भारतीय उद्यान अफ्रीका के उद्यानों की तुलना में बहुत छोटे हैं; इस तरह उनके मुक्त गमन के लिये कम अवसर प्रदान करते हैं।
- बड़े शिकारी जीवों के साथ सह-अस्तित्व: चूँकि अन्य कहीं और कभी भी ऐसा नहीं हुआ है कि चीता बिग कैट प्रजाति के अन्य जीवों के साथ रहा हो, इसलिये चीतों, शेरों, बाघों और तेंदुओं के सह-अस्तित्व का सुझाव देने के लिये वास्तविक जीवन का कोई अनुभव उपलब्ध नहीं है।
- अध्ययनों से पता चला है कि अफ्रीका में तेंदुओं ने चीतों का भी शिकार किया है और कुनो के लिये भी इसी तरह की आशंका व्यक्त की जा रही है, जहाँ लगभग 50 तेंदुए उसी मूल क्षेत्र के आसपास रहते हैं जहाँ चीतों को रखा जाएगा।
- पुनर्वास संबंधी चिंताएँ: चीता के आवास को पर्याप्त रूप से संरक्षित करने के लिये कई गाँवों को स्थानांतरित करना होगा, जो निश्चित रूप से स्थानीय लोगों को प्रभावित करेगा और अशांति एवं पलायन का कारण बनेगा।
विश्व में अन्य पुन:प्रवेश कार्यक्रम
- बीसलपुर रिवाइल्डिंग प्रोजेक्ट 2018: इस परियोजना ने जोधपुर और उसके आसपास के क्षेत्र में जीवों और वनस्पतियों की कई प्रजातियों के अलावा 150 से अधिक लुप्तप्राय भारतीय मृगों को पुनर्स्थापित किया।
- गौर (इंडियन बाइसन): मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में 19 गौरों के स्थानांतरण में अफ्रीका की एक सफारी कंपनी अग्रणी रही थी।
- एक दशक में गौर झुंड की संख्या 70 से अधिक हो गई।
- अमेरिकन बाइसन: फर व्यापार के लिये अत्यधिक शिकार और वध के कारण अमेरिकी बाइसन की आबादी 1890 के दशक में 750 पशुओं तक कम हो गई थी।
- संरक्षण पहल, पुन:प्रवेश और जनसंख्या प्रबंधन के माध्यम से आज इनकी संख्या लगभग 350,000 तक पहुँच गई है।
- ग्रे वुल्फ: 21 वर्ष पहले येलोस्टोन पार्क में ग्रे वुल्फ के पुनःप्रवेश ने इस अमेरिकी राष्ट्रीय उद्यान में बदतर पारितंत्र को सफलतापूर्वक व्युत्क्रमित करने में मदद की।
भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिये अन्य पहल
- विधिक ढाँचा:
- वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के साथ भारत का सहयोग:
आगे की राह
- पुनःप्रवेश के बाद की निगरानी: पशु चिकित्सा पर्यवेक्षण और अनुकूलन की सीमा के वैज्ञानिक मूल्यांकन के साथ निगरानी की एक उचित रणनीति की आवश्यकता है।
- जंगलों में छोड़े गए चीतों और अन्य मांसाहारियों पर नज़र रखने के लिये ट्रैकिंग टीमों का संगठित होना आवश्यक है।
- जागरूकता अभियान: स्थानीय लोगों में जागरूकता प्रसार और युवाओं को संवेदनशील बनाने के लिये उन्हें पुन:प्रवेश योजना से परिचित कराना होगा, जिसके लिये विभिन्न आउटरीच और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिये।
- चीता पुनःप्रवेश कार्यक्रम के प्रति जागरूकता के प्रसार हेतु आधिकारिक शुभंकर के रूप में चिंटू चीता को प्रस्तुत किया जाना इस दिशा में एक प्रगतिशील कदम है।
- प्राथमिकता सूची प्रबंधन: विभिन्न वन्यजीवों के संरक्षण हेतु नीतियों के मूल्यांकन और कार्यान्वयन के लिये प्राथमिकता सूची तैयार करने के लिये एक उपयुक्त तंत्र का होना आवश्यक है।
- वर्ष 2017-2031 की अवधि के लिये वर्तमान योजना सहित राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना में चीता पुनःप्रवेश योजना मौजूद नहीं है, जबकि शेरों का स्थानानांतरण 1950 के दशक से ही राष्ट्रीय प्राथमिकता में शामिल रहा है।
- मूल स्थानीय प्रजातियों और उनके पर्यावास की सुरक्षा पर भी समान ध्यान दिया जाना चाहिये।
- उपयुक्त पुनर्वास तंत्र: उनकी सुरक्षा और संतुष्टि सुनिश्चित करने के लिये प्रशासनिक अधिकारियों और स्थानीय लोगों के बीच उपयुक्त संचार सहित उपयुक्त पुनर्वास नीति तैयार करने की आवश्यकता है।
अभ्यास प्रश्न: भारत में चीतों के विलुप्त होने के कारणों की विवेचना कीजिये। भारत में चीतों के पुनःप्रवेश से संबद्ध पारिस्थितिक चुनौतियाँ कौन-सी हैं?