भारत - अमेरिका संबंध और भावी भविष्य
यह एडिटोरियल 26/06/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Old Friends in a Challenging World” लेख पर आधारित है। इसमें भारत-अमेरिका संबंधों में हाल की प्रगति के बारे में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि दोनों देशों के अलग-अलग विदेश नीति दृष्टिकोण उनके संबंधों के लिये किस तरह वृहत चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
प्रिलिम्स के लिये:भारत-अमेरिका संबंध, भारत-अमेरिका iCET पहल, क्वाड समूह, भारत के हल्के लड़ाकू विमान के लिये GE का F414 इंजन, भारत-अमेरिका द्विपक्षीय रक्षा अभ्यास मेन्स के लिये:भारत अमेरिका संबंध - हालिया विकास, भू-राजनीतिक चुनौतियाँ और आगे की राह। |
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किया जाना (अमेरिका में आगंतुक किसी विदेशी नेता के लिये एक दुर्लभ सम्मान) इस तथ्य को प्रकट करता है कि भारत-अमेरिका संबंध गहन एवं व्यापक बनते जा रहे हैं और इसकी परिकल्पना इस रूप में की गई है कि यह ‘‘एक ऐतिहासिक प्रगति है जो न केवल अमेरिका और भारत के लिये लाभप्रद है, बल्कि समग्र विश्व के लिये लाभप्रद है।”
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंध विभिन्न कारकों पर आधारित हैं, जिनमें भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ते बाज़ार आकार, अमेरिकी व्यापार एवं राजनीति में भारतीय प्रवासियों के बढ़ते प्रभाव के साथ-साथ चीनी आक्रामकता को रोकने की समय की आवश्यकता पर उनकी आपसी सहमति शामिल है।
जैसे-जैसे अमेरिका अपने हिन्द-प्रशांत (Indo-Pacific) संलग्नता को गहरा करता जा रहा है और भारत अपनी क्षेत्रीय शक्ति को सुदृढ़ कर रहा है, इन लोकतांत्रिक शक्तियों के बीच बनी साझेदारी में भू-राजनीतिक शतरंज की बिसात को नया आकार देने की क्षमता है।
भारत-अमेरिका संबंधों का वर्तमान परिदृश्य
- आर्थिक प्रगति:
- वर्ष 2000 के बाद से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में दस गुना वृद्धि हुई है जो वर्ष 2022 में 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर तक पहुँच गया और वर्ष 2021 में भारत अमेरिका का 9वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया। वस्तुओं एवं सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार की वृद्धि वर्ष 2021 में 160 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गई।
- अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और सबसे महत्त्वपूर्ण निर्यात बाज़ार है। यह उन कुछ देशों में से एक है जिनके साथ भारत व्यापार अधिशेष (trade surplus) की स्थिति रखता है। वर्ष 2021-22 में भारत का अमेरिका के साथ 32.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार अधिशेष था।
- राजनीतिक विचारधारा में समानता:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में निरंतर विकास, शांति और समृद्धि के लिये IPEF की दक्षता के बारे में दोनों देश समान विचार रखते हैं।
- भारत अमेरिका के नेतृत्व वाले ‘समृद्धि के लिये हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा’ (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity- IPEF) में भी शामिल हुआ है।
- हालाँकि रूस-यूक्रेन संकट, अफगानिस्तान के मुद्दे और ईरान को लेकर दोनों देशों की प्रतिक्रियाओं में व्यापक विरोधाभास भी रहा है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में निरंतर विकास, शांति और समृद्धि के लिये IPEF की दक्षता के बारे में दोनों देश समान विचार रखते हैं।
- रक्षा सहयोग:
- भारत—जो शीत युद्ध (Cold War) की अवधि में अमेरिकी हथियारों तक पहुँच नहीं बना सका था—ने पिछले दो दशकों में 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के अमेरिकी हथियार खरीदे हैं।
- हालाँकि, यहाँ अमेरिका के लिये प्रेरणा यह रही है कि वह भारत को अपनी सैन्य आपूर्ति के लिये रूस पर ऐतिहासिक निर्भरता में कमी लाने में मदद दे, जो स्वयं उसके हित में भी है।
- भारत और अमेरिका की सशस्त्र सेनाएँ व्यापक द्विपक्षीय सैन्य अभ्यासों (‘युद्ध अभ्यास’, ‘वज्र प्रहार’) में और ‘क्वाड’ समूह में चार भागीदारों के साथ लघुपक्षीय अभ्यास (‘मालाबार’) में संलग्न होती हैं।
- अमेरिका और भारत मध्य-पूर्व एशिया में गठित एक अन्य समूह में इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के साथ शामिल हुए हैं जिसे I2U2 (India, Israel, UAE and the US) के रूप में जाना जाता है। इस समूह जो नया क्वाड (new Quad) भी कहा जा रहा है।
- भारत—जो शीत युद्ध (Cold War) की अवधि में अमेरिकी हथियारों तक पहुँच नहीं बना सका था—ने पिछले दो दशकों में 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के अमेरिकी हथियार खरीदे हैं।
- आगामी प्रगति:
- अमेरिकी कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी भारत में एक नई सेमीकंडक्टर असेंबली एवं परीक्षण सुविधा के निर्माण के लिये अगले पाँच वर्षों में लगभग 2.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगी।
- इसमें आगे 60,000 भारतीय इंजीनियरों के प्रशिक्षण के साथ-साथ एक सहयोगी इंजीनियरिंग केंद्र स्थापित करने के लिये 4 वर्षों में 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की योजना भी शामिल है।
- भारत के हलके लड़ाकू विमानों के लिये भारत में GE के F414 इंजनों के लाइसेंस अंतर्गत निर्माण के लिये अमेरिका के जनरल इलेक्ट्रिक एरोस्पेस और भारत के HAL के बीच संपन्न समझौता हाल की सबसे महत्त्वपूर्ण प्रगति है। यह समझौता प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के अस्वीकरण (technology denial regime) के अंत का प्रतीक है।
- अमेरिकी कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी भारत में एक नई सेमीकंडक्टर असेंबली एवं परीक्षण सुविधा के निर्माण के लिये अगले पाँच वर्षों में लगभग 2.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगी।
- भारत, एक अमेरिकी सहयोगी के रूप में:
- दोनों देशों के व्यापक पारस्परिक एवं रणनीतिक हितों के बावजूद चूँकि भारत अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता (non-alignment) का दृष्टिकोण रखता है, इसलिये उसे 'अमेरिकी सहयोगी' (US Ally) नहीं कहा जा सकता।
- भारतीय नेताओं ने, वे किसी भी राजनीतिक दल के रहे हों, लंबे समय से विश्व के प्रति भारत के दृष्टिकोण की एक केंद्रीय विशेषता के रूप में विदेश नीति की स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी है।
- विशेष रूप से शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से, भारतीय नेताओं ने अमेरिका के साथ संबंधों में सुधार का प्रयास किया है, लेकिन इसके लिये विदेश नीति के प्रति भारत के स्वतंत्र दृष्टिकोण से कोई समझौता नहीं किया है।
- दोनों देशों के व्यापक पारस्परिक एवं रणनीतिक हितों के बावजूद चूँकि भारत अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता (non-alignment) का दृष्टिकोण रखता है, इसलिये उसे 'अमेरिकी सहयोगी' (US Ally) नहीं कहा जा सकता।
- भारत की ‘बहुपक्षीय’ विदेश नीति:
- भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री ने भारतीय कूटनीति की रूपरेखा तैयार करने के लिये ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (world as one family) के दर्शन पर बल दिया है।
- इस दृष्टिकोण को बहुपक्षीयता या ‘बहुसंरेखण’ (multialignment) कहा गया है – जो जहाँ तक संभव हो सकारात्मक संबंधों की तलाश पर लक्षित है।
- इस सिद्धांत के अनुरूप ही भारत ने सऊदी अरब के साथ ही ईरान के साथ; इज़राइल के साथ ही फिलिस्तीन के साथ और अमेरिका के साथ ही रूस के साथ भी अपने संबंधों को सजगता से प्रबंधित किया है।
- भारत ने उन देशों के साथ भी संलग्नता रखने का अपना अधिकार सुरक्षित रखा है जो अमेरिका के सहयोगी नहीं हैं (जैसे रूस, ईरान और यहाँ तक कि चीन), यदि उसके राष्ट्रीय हित ऐसी आवश्यकता निर्धारित करते हैं।
- भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री ने भारतीय कूटनीति की रूपरेखा तैयार करने के लिये ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (world as one family) के दर्शन पर बल दिया है।
भारत-अमेरिका संबंध की प्रमुख चुनौतियाँ
- अमेरिका द्वारा भारतीय विदेश नीति की आलोचना:
- भारतीय अभिजात वर्ग ने लंबे समय से विश्व को गुटनिरपेक्षता के चश्मे से देखा है तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही गठबंधन संबंध (alliance relationships) अमेरिकी विदेश नीति के केंद्र में रहा है।
- भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति, विशेषकर शीत युद्ध के दौरान, हमेशा पश्चिम और विशेष रूप से अमेरिका के लिये चिंता का विषय रही है।
- 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका ने भारत से अफगानिस्तान में सेना भेजने की मांग की थी लेकिन भारतीय सेना ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया था।
- वर्ष 2003 में जब अमेरिका ने इराक़ पर हमला किया, तब भी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सैन्य समर्थन से इनकार कर दिया था।
- अभी हाल में भी, रूसी-यूक्रेन युद्ध पर भारत ने अमेरिका के दृष्टिकोण का पालन करने से इनकार कर दिया और राष्ट्रीय आवश्यकता के अनुरूप सस्ते रूसी तेल का आयात रिकॉर्ड स्तर पर जारी रखा है।
- भारत को ‘इतिहास के सही पक्ष’ में लाने की मांग को लेकर प्रायः अमेरिका समर्थक आवाज़ें उठती रही हैं।
- भारतीय अभिजात वर्ग ने लंबे समय से विश्व को गुटनिरपेक्षता के चश्मे से देखा है तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही गठबंधन संबंध (alliance relationships) अमेरिकी विदेश नीति के केंद्र में रहा है।
- अमेरिका के विरोधियों के साथ भारत की संलग्नता:
- भारत ने ईरान और वेनेजुएला के तेल के खुले बाज़ार पहुँच पर अमेरिकी प्रतिबंध की आलोचना की है।
- ईरान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में लाने के लिये भारत ने भी सक्रिय रूप से कार्य किया है।
- चीन समर्थित एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक (AIIB) में प्रमुख भागीदार बने रहने के अलावा भारत ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिये चीन के साथ 18 दौर की वार्ता भी संपन्न की है।
- अमेरिका द्वारा भारतीय लोकतंत्र की आलोचना:
- विभिन्न अमेरिकी संगठन और फ़ाउंडेशन, कुछ अमेरिकी कांग्रेस एवं सीनेट सदस्यों के मौन समर्थन के साथ, भारत में लोकतांत्रिक विमर्श, प्रेस और धार्मिक स्वतंत्रता एवं अल्पसंख्यकों की वर्तमान स्थिति को प्रश्नगत करने वाली रिपोर्ट्स पेश करते रहे हैं।
- अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2023 और भारत पर मानवाधिकार रिपोर्ट 2021 ऐसी कुछ चर्चित रिपोर्ट्स रही हैं।
- विभिन्न अमेरिकी संगठन और फ़ाउंडेशन, कुछ अमेरिकी कांग्रेस एवं सीनेट सदस्यों के मौन समर्थन के साथ, भारत में लोकतांत्रिक विमर्श, प्रेस और धार्मिक स्वतंत्रता एवं अल्पसंख्यकों की वर्तमान स्थिति को प्रश्नगत करने वाली रिपोर्ट्स पेश करते रहे हैं।
- आर्थिक तनाव:
- ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ ने अमेरिका में इस आशंका का प्रसार किया है कि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी बंद बाज़ार अर्थव्यवस्था में परिणत होता जा रहा है।
- अमेरिका ने जीएसपी कार्यक्रम के तहत भारतीय निर्यातकों को प्राप्त शुल्क-मुक्त लाभों की समाप्ति का निर्णय लिया (जून 2019 से प्रभावी), जिससे भारत के दवा, कपड़ा, कृषि उत्पाद और ऑटोमोटिव पार्ट्स जैसे निर्यात-उन्मुख क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं।
भारत-अमेरिका संबंधों को बेहतर बनाने के लिये क्या किया जा सकता है?
- बहु-संरेखण के साथ आगे बढ़ना: यूक्रेन-रूस संघर्ष के साथ वैश्विक शक्तियाँ नए समूहों में संगठित हो रही हैं। भारत के लिये रूस और अमेरिका के बीच एक कठिन राह पर चलने की चुनौती है। भारत का दृष्टिकोण अब तक यह रहा है कि अपने सर्वोत्तम राष्ट्रीय हित में कार्य करे और इसे आगे भी जारी रहना चाहिये।
- भारत को इस संतुलनकारी कार्य का सामंजस्य करना होगा और प्रबल मतभेदों को दूर करने के लिये संवाद एवं कूटनीति पर बल देना होगा। भारत को उस लगातार बढ़ती खाई का हिस्सा नहीं बनना चाहिये जिससे विश्व शांति के लिये खतरा ही उत्पन्न हो सकता है।
- सर्वोत्तम साझा हित का लाभ उठाना: नई भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी एक ऐसे एशिया की कल्पना करना संभव बनाती है जो किसी एक शक्ति के प्रभुत्व के समक्ष असुरक्षित नहीं होगी।
- दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग की वृद्धि से भारत को अमेरिका के मज़बूत समर्थन के साथ चीन के साथ अपनी सैन्य क्षमताओं में भारी अंतर को दूर करने में भी मदद मिलेगी।
- एशियाई शक्ति संतुलन को स्थिर करने और चीन के उदय एवं एशिया में उसकी आक्रामकता से उत्पन्न भूराजनीतिक मंथन से निपटने में भारत और अमेरिका दोनों ही गहन हित रखते हैं।
- आर्थिक अंतर्संबंध: भारत-अमेरिका आर्थिक संलग्नता को निवेश एवं व्यापार के वृहत प्रवाह के साथ और अधिक स्थिरता प्रदान किये जाने की आवश्यकता है। भारत में अमेरिकी निवेश 54 बिलियन डॉलर आँका गया है जो इसके वैश्विक निवेश के 1% से भी कम है। इसके साथ ही, भारत को भी अमेरिका में निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है। दोनों देशों के बीच परस्पर निर्भरता का सृजन करना महत्त्वपूर्ण है।
- भारत के लिये विनिर्माण-आधारित निर्यात वृद्धि और अवसंरचनात्मक विकास को प्रोत्साहित करके एक विकसित राष्ट्र बनने के लिये अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को सुदृढ़ करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अमेरिकी बाज़ार तक अधिक पहुँच और प्रौद्योगिकीय सहयोग के बिना यह सफल नहीं हो सकता।
- भारत-अमेरिका iCET सही दिशा में बढ़ाया गया कदम है।
- भारत का आर्थिक उत्थान अमेरिका के उतने ही हित में होगा जितना कि प्रौद्योगिकी सक्षमकारिता एवं वैश्विक मामलों में अमेरिका का नेतृत्व भारत के हित में।
- इस वास्तविकता को विश्व मंच पर भारत की तटस्थता और नाटो जैसे गुट से संबद्ध होने से इसके इनकार के शोर में नहीं खो नहीं जाना चाहिये।
- भारत के लिये विनिर्माण-आधारित निर्यात वृद्धि और अवसंरचनात्मक विकास को प्रोत्साहित करके एक विकसित राष्ट्र बनने के लिये अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को सुदृढ़ करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अमेरिकी बाज़ार तक अधिक पहुँच और प्रौद्योगिकीय सहयोग के बिना यह सफल नहीं हो सकता।
- सतत् विकास में सहयोग:
- संशोधित भारत-अमेरिका सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (US-India Strategic Clean Energy Partnership- SCEP) जैसी पहलें भारत में नवीकरणीय ऊर्जा परिनियोजन के विकास को बढ़ावा देने में सहयोग का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
- अमेरिका भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के लिये धन तक पहुँच को सुविधाजनक बनाकर और भी सहायता कर सकता है।
- स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु कार्रवाई पर साझेदारी को गहरा कर दोनों देश आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देते हुए अपने वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
- संशोधित भारत-अमेरिका सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (US-India Strategic Clean Energy Partnership- SCEP) जैसी पहलें भारत में नवीकरणीय ऊर्जा परिनियोजन के विकास को बढ़ावा देने में सहयोग का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
- निजी क्षेत्रों को शामिल करना: विभिन्न कंपनियों के CEOs अब अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने के लिये ‘चाइना प्लस वन’ की रणनीति अपना रहे हैं। हाल ही में, Apple द्वारा भारत में अपना पहला रिटेल स्टोर स्थापित करने का निर्णय न केवल अन्य तकनीकी कंपनियों के लिये देश के आकर्षण को बढ़ाता है, बल्कि अत्याधुनिक तकनीक का उत्पादन करने और अपनी विनिर्माण क्षमता को सुदृढ़ करने की इसकी क्षमता को भी प्रदर्शित करता है।
- यह कदम एक महत्त्वपूर्ण संकेत है कि विभिन्न कंपनियाँ चीन से दूर अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता ला रही हैं।
- भारत अमेरिका की सहायता से चिप विनिर्माण और केस विनिर्माण का ‘हब’ बनने के लिये अपनी तत्परता का संकेत भी दे सकता है।
- खाद्य सुरक्षा के कवरेज का विस्तार: राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ ही खाद्य सुरक्षा भी भारत के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। बढ़ते तापमान के साथ जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा के लिये बड़ा खतरा उत्पन्न कर रहा है जहाँ गरीब देश असंगत रूप से प्रभावित हो रहे हैं और भारत भी इसका अपवाद नहीं है।
- अमेरिका न केवल रक्षा, अंतरिक्ष और सेमीकंडक्टर्स में बल्कि कृषि क्षेत्र की प्रौद्योगिकियों में भी अग्रणी देश है।
- अमेरिका-भारत सहयोग के अगले दौर में खाद्य और कृषि को सहयोग के मुख्य क्षेत्रों में से एक के रूप में शामिल करने का विशेष प्रयास करना चाहिये।
- इसमें विकासशील विश्व के अधिकतम लोगों (चाहे वे एशिया में हों या अफ्रीका में) का कल्याण करने की क्षमता है।
निष्कर्ष
- भारतीय प्रधानमंत्री ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में अपने संबोधन के दौरान कहा कि
- “पिछले कुछ वर्षों में AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में कई प्रगतियाँ हुई हैं। इसके साथ ही, एक अन्य AI यानी अमेरिका एंड इंडिया में और भी महत्त्वपूर्ण विकास हुए हैं।'' उनका यह वक्तव्य हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते संबंधों को भलीभांति प्रकट करता है।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘हालाँकि रूस, ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों के मामले में भारत और अमेरिका की नीतियाँ अलग-अलग हैं, चीन एक ऐसा हित है जो दोनों देशों को एक साथ संरेखित करता है और इसलिये सहयोग की एक अच्छी संभावना प्रदान करता है।’’ टिप्पणी कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020) प्रश्न.'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज करने में विफलता है, जो भारत को आत्म-समादर और महत्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके ।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019) |